( 1) छोटी सी इक बात पे रोती हुई आँखें हँसने लगी ....
(2) बाबुल का अँगना महकते रहना दुआ करती हूँ ....
(3) दिल की दहलीज सूनी है कब आओगे ?....
"चिड़िया बैठी गा रही, करती करुण पुकार।
सदा महकता ही रहे, जीवन का संसार।।"
(२)
"यहाँ हो रहा ईलू- ईलू काव्य विमोचन
चलो चलें हम संघर्षों के सेहरा बांधें
और जनपथों की चीखों से राजपथों की नींद उड़ा दें
प्रेम की कविता कहने वालो सवा अरब की आबादी में
देह से पहले देश को देखो गल्ला सड़ता है..
चलो चलें हम संघर्षों के सेहरा बांधें
और जनपथों की चीखों से राजपथों की नींद उड़ा दें
प्रेम की कविता कहने वालो सवा अरब की आबादी में
देह से पहले देश को देखो गल्ला सड़ता है..
"गेहूँ की है दुर्दशा, महँगाई की मार।
देख रही है शान से, भारत की सरकार।।"
(३)
ओ धरती तुम बरसी, वह तपिश थी ग्रीष्म की,
जिसे तुम सहती रही, सूरज दहका-दहकी तुम,
नदी ताल पोखर सागर सब साक्षी थे कि
तुम तपती रही भाप बन उड़ती रही...
जिसे तुम सहती रही, सूरज दहका-दहकी तुम,
नदी ताल पोखर सागर सब साक्षी थे कि
तुम तपती रही भाप बन उड़ती रही...
"धरती प्यासी थी बहुत, जन-जीवन बेहाल।
धान लगाने के लिए, लालायित गोपाल।।"
(४)
"उसने माचिश से मेरा मुकद्दर लिख दिया,
आग दिल में थी राग होठों पर
फिर भी मैंने फूस के ढेरों पर घर कर दिया...
"माँगा पानी जब कभी, लपटें आयीं पास।
जलते होठों की यहाँ, कौन बुझाये प्यास।।
(५)
*कल का प्यार ...
आज का व्यापार.....
*गुज़रे कल का प्यार....
और
सौ बार डर के पहले
इधर-उधर देखा ,
तब घबरा के तुझे
इक * *नजर देखा |
"बात-बात में हो रही, आपस में तकरार।
प्यार-प्रीत की राह में, आया है व्यापार।।"
(६)
(७)
शीतल पवन चली सुखदायी।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।
भीग रहे हैं पेड़ों के तन,
भीग रहे हैं आँगन उपवन,
हरियाली सबके मन भाई।
(८)
आसमाँ में रोज़ जश्न हुआ करते हैं...
आँच सूरज की और चाँद पका करते हैं...
मैं तन्हा बैठ के साहिल पे समझ पाया हूँ..
के समंदर में कुछ आँसू भी बहा करते हैं...
"धरा-गगन में हो रहा, उत्सव का माहौल।
चपला देती रौशनी, बादल बोले बोल।।"
(९)
जीवन की शाख पर बैठा
मन का पाखी भोर का गीत सुनाता..
मैं कहती …
ये तो संध्या है चीर निन्द्रा की
आती बेला है
भोर बीते युग बीता क्यों है याद दिलाता..?
"बैठा जीवन शाख पे, पाखी गाता गीत।
बीते युग को याद कर, बजा रहा संगीत।।"
(१०)
बीज से पौधा, पौधे में पत्तियां, फिर फूल फिर फल
और फिर सब सौंप कर
हमें लौट जाना उसी बीज रूप में,
उसने सहर्ष स्वीकारा है
अपना जीवन चक्र
ये हम ही हैं जो बात बात में
करते हैं अपनी दृष्टि वक्र...
"बीज उगा जब धरा में, शुरू हो गया चक्र।
लेकिन मानव कर रहा, अपनी भौहें वक्र।।"
(११)
ममतामयी इंदु माँ अस्वस्थ है-
"नेह हमारा साथ है, ईश्वर पर विश्वास।
अन्धकार को चीर के, फैले धवल उजास।।"
(१२)
नंदी की सवारी, नाग अंगीकार धारी
नित संत सुखकारी, नीलकंठ त्रिपुरारी हैं।
गले मुंडमाला धारी,सर सोहै जटाधारी
वाम अंग में बिहारी, गिरिराज सुतवारी हैं।
"सावन आया झूमकर, बम-भोले का नाद।
चौमासे में मनुज तू, शंकर को कर याद।।"
(१३)
जिंदगी निष्ठुर है कितनी, फिर भी तो हम जी रहे है |
अश्कों के सागर में डूबे, आब-ए-तल्ख़ पी रहे है |
"कदम-कदम पर सुलगते, जीवन में अंगार।
अश्कों से कैसे बुझें, ज्वाला के अम्बार।।
(१४)
(१५)
समझता था खुद को शाहरुख का साला...
"तेला जी ने रच दिये, हास्य-व्यंग्य के रंग।
अपने भारत देश के, बिगड़ गये हैं ढंग।।"
(१६)
यद्यपि हमारे यहाँ कई छोटे बच्चों की हँस दीक्षा हुयी है ।
और बहुत संभव है । किसी गर्भवती महिला की भी दीक्षा हुयी हो ।
तब ऐसे बच्चे मेरे अनुभव से बहुत भाग्यशाली होते हैं....
आओ जन्म सुधार लें, सीख सिखाते ज्येष्ठ।।"
(१७)
*तेरे ही दो बेटो ने माँ कैसी आग लगाईं है
एक जलाता मंदिर दूजे ने मस्जिद तुडवाई है |
कैसी आँधी जहर भरी इस मुल्क के ऊपर छाई है
देखो दौलत पाने को उसने बन्दूक उठाई है...
"दौलत पाने के लिए, तान रहे बन्दूक।
जीवित माता-पिता का, लूट रहे सन्दूक।।"
(१८)
पंथ-प्रचारक ले मरे, झंडा डंडा तेग |
हुई कयामत उठ पड़े, रहे धरा पर रेंग |
रहे धरा पर रेंग, भेंग माथे में बैठा |
भय का कर व्यापार, बाँध के चले मुरैठा..
.
.
"अपने झण्डे के लिए, डण्डे रहे सँभाल।
जनमानस को ठग रहे, भरते घर में माल।।"
(१९)
*राजनीति की चौसर पर बिछती हैं बिसातें
नैतिकशास्त्र की बलिवेदी पर
गृहविज्ञान का समीकरण गड़बड़ाता है...
"राजनीति की बिछ रहीं, चारों ओर बिसात।
आम आदमी पर पड़ी, केवल शह और मात।।"
(२०)
धार ओर मुख नाव का, फिर तू काहे खेय !
अमिय देय दुश्मन मरे,तब बिष काहे देय !!
खटको से तू वारकर, चाहे तू जितनी बार !
प्रेम ढाल से रोक कर, करू प्यार से वार !!
"नौका लहरों में फँसी, बेबस खेवनहार।
ऐसा नाविक चाहिए, जो ले जाये पार।।"
(२१)
छाता उसके काले होने पर मत जाईये
सोख लेता है धूप चुपचाप ॥
वो देखिये अनजाने में भी
साथ हो लिए एक छाते के अन्दर....
"काली छतरी में छिपे, गोरे-गोरे लोग।
बारिश में करते सभी, छाते का उपयोग।।"
(२२)
खाकर ठोकर यूँ गिरे फिर उठकर चल नहीं पाए,
खिलाफत कर नहीं पाए....!
"सपन सलोने नैन में, आते हैं दिन-रात।
लेकिन सच होती नहीं, इन सपनों की बात।।"
(२३)
सूरज निकलते ही एक सवेरा ढूँढता है
चाँद निकलते ही एक अंधेरा
ढूँढता है पढ़ लिख कर सब कुछ
एक पाठशाला ढूँढता है
पीता नहीं है एक मधुशाला ढूँढता है....
"सूरज आया गगन में, फैला धवल प्रकाश।
मूरख दीपक हाथ ले, खोज रहा उजियास।१।
उल्लू को भात नहीं, दिन का प्यारा साथ।
अंधकार को खोजता, सदा मनाता रात।२।"
(२४)
यही तो गड़बड़झाला है दाल में सब काला है .
ओहदे पर तो होगा ही वो जब उसका साला है .
कैसे कहें जो कहना है मुंह पर लगा ताला है
"कब तक बीनेगा इसे, पूरी काली दाल।
बैठा है जिस शाख पे, काट रहा वो डाल।।"
(२५)
जागो जागो भारतवासी ये कैसी मंहगाई है
चाँवल दाल में आग लगी है दीन हीन को खाई है
पी.एम.यहाँ विश्व बैंक के पुराने खिदमदगाई है...
"महँगाई की मार से, जन-जीवन है त्रस्त।
निर्धन, श्रमिक-सिसान के, हुए हौसले पस्त।।"
बेहतरीन लिंक सुन्दर प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.पठनीय.
जवाब देंहटाएंwaah ...prastuti ke is mnmohak andaj ne dil ko khush kar diya ..aabhaar ...aabhar nd aabhar ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आप ले के
आये हैं आज
खूबसूरत है बहुत
भा रहा है सभी
को ये अंदाज
चलिये रविकर जी
शुरू हो जाते हैं
एक एक कर
लिंक खोल कर
देख आते हैं
टिप्पणियां बना कर
यहां छाप ले जाते हैं ।
डा0 निशा : "तेरे बिन "
जवाब देंहटाएंक्षणिकाएं
गजब ढा रही हैं
राई जैसी हैं
पहाड़ दिखा रही हैं ।
बहुत बढ़िया चर्चा ...अच्छे लिंक्स !
जवाब देंहटाएंआभार !
"शब्द सेतू "
जवाब देंहटाएंराजीव चतुर्वेदी
ईलू ईलू हो रहा है
बता रहे हैं
पुते हुए चेहरों का
आईना दिखा रहे हैं ।
मधुर गुंजन
जवाब देंहटाएंऋता शेखर 'मधु'
मन को नयनो से
बरसाने का खयाल
इनको आया है
अच्छा है मन
हल्का और नयन
को साफ करना
हमें भी भाया है ।
"शब्द सेतू "
जवाब देंहटाएंराजीव चतुर्वेदी
उसने माचिश से मेरा मुकद्दर लिख दिया,
अब धुंआ उठाता हुआ सहमे हुए से लोग हैं
बहुत खतरनाक
दिल ले के आये हैं
लोग बहुत देखे बारूद ले के
चलते हुऎ दिल में
ये माचिस भी साथ में
ले के आये हैं ।
यादें
जवाब देंहटाएंअशोक आहूजा
बहुत प्यार से प्यार
की परिभाषा को
समझाया है
आज के प्यार और
कल के प्यार में
बहुत खूब वाह
क्या अंतर बतलाया है
पढिये जरूर
हमे बहुत भाया है ।
लिंख 6 तथा 7
जवाब देंहटाएंउच्चारण
शास्त्री जी
बहुत सूंदर रचनाऎं !
सावन है इंद्रधनुष है
रिमझिम है ठंडक है
बारिश है छाता है
छोटी सी कविताओं
में भरकर कोई
यहां पूरा सावन
दे जाता है।
लिंक 8
जवाब देंहटाएंदिल की कलम से..
दिलीप
मेरा कुछ बोझ, मेरी नज़्म बाँट लेती है..
मेरा कुछ दर्द, मेरे शेर सहा करते हैं...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
किसी ने दिल को बरसाया है
किसी ने दिल को कलम बनाया है ।
लिंक 9
जवाब देंहटाएंअभिव्यंजना: अगला जीवन -- महेश्वरी कनेरी
यहाँ लेखिका
मन जीवन की
शाख पर लाई हैं
अगले जीवन को भी
जीने की तैयारी दिखाई है
बहुत हिम्मत पाई है ।
लिंक 10
जवाब देंहटाएंवही जीवन का प्रश्न फिर ऊठा
लेखिका अनुपमा ने फिर एक
बार उस सत्य को लिखा
निःस्वार्थ कोई बीज
आखिर हम क्यूँ नहीं बोते?
लिंक 11
जवाब देंहटाएंअब दिनेश की दिल्लगी पर टिप्पणी
ना बाबा ना हमें नहीं करनी है
बरसात शुरू हो गयी है
बहुत पानी पानी हो गया है
हमें यहाँ पर टिप्पणियों
की बाड़ थोड़ा ना भरनी है
बस थोड़ा थोड़ा चुहुल
ही तो करनी है।
लिंक 12
जवाब देंहटाएंZeal
बीबी वैसे ही खाना कम देती है
भोलेनाथ दिखा कर डरा रही हैं
सावन के व्रत रखने के लिये
राय अपने ब्लाग पर दिये जा रही हैं ।
लिंक 13
जवाब देंहटाएंदृष्टिकोण मेरी उडा़न
फिर जिंदगी का सवाल
कृ्ति-मोहित पाण्डेय औम ने उठाया है
वैसे ही दिख रहे हैं बबालों से
रूबरू करवाया है ।
यादे,
जवाब देंहटाएंअशोक आहूजा,
वो गुजरे वक्त का प्यार था
आज तो प्यार खिलवाड है,
पहले प्यार तो निस्वार्थ था
आज का प्यार व्यापार है,,,,,
लिंक 14
जवाब देंहटाएंप्यारी सिफत को चर्चामंच की तरफ से
आशीर्वाद व शुभकामनाऎं ।
लिंक 15
जवाब देंहटाएंनिरंतर की कलम से
हास्य कविता- आशिक था बेचारा इश्क का मारा
मारा नहीं बचा दिया
दूध बादाम खिला के
माँ की गोद में सुला दिया
अच्छा किया ।
मधुर गुंजन,पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंआया सावन लग गई झड़ी
थोड़ी - थोड़ी सी ठंडक बढ़ी
मूसलाधार कही बौछारे पड़ी
मौसम है, भीगने की घड़ी,,,,,,,
लिंक 16
जवाब देंहटाएंसत्य की खोज जरूरी है
सत्य है पर उसे खोजना भी
तो हमारी एक मजबूरी है।
अहा धीरेंद्र जी आईये आईये
जवाब देंहटाएंआप भी थोड़ा सा हाथ लगाइये
कल आधा हुआ था
आज तो सैकड़ा टिप्प्णियों का
यहां पर बनाइये ।
लिंक 17
आज देश का जन जन वोट के वक़्त सोच रहा
एक तरफ है गहरा कूआँ दूजे बाजू खाई है ||
आग लगी है बहुत सूंदर तरीके से दिखाई है ।
दाल में सब काला है,
जवाब देंहटाएंएम०बर्मा० जी की पोस्ट पर,...
बगावती तेवर दिखा,अपने को मुश्किल फसा डाला है
कोई हिकमत काम नदेगी,क्योंकी वहाँ उसका साला है,,,,
बहुत सुदर चर्चा
जवाब देंहटाएंकुछ अलग हटकर
लिंक 18
जवाब देंहटाएंरविकर पहरेदार, पढ़े मंतव्य घिनौना |
रहे सुरक्षित हिंद, नहीं तुम फिर से सोना ||
रविकर पर क्या कहना ।
पढ़ता कितने ध्यान से, सारे लिंक उलूक।
जवाब देंहटाएंअच्छा पाठक है वही, जिसको है ये भूख।।
लिंक 19
जवाब देंहटाएंवाणी गीत का प्रेम गीत
बहुत सूंदर !
यूनिवर्सिटी में जब विषयों को ही कोई नहीं पढा़ता है
कुलपति वहाँ का जब पति हो जाता है
सारे विश्विद्यालय को पत्नी बना ले जाता है
फिर किसी से कुछ कहाँ कहा जाता है
प्रेम के बारे में बात करना भी वहां
एक दोष जब हो जाता है
प्रेम पाठ्यक्र्म से अपने आप बाहर
खुद बा खुद चला जाता है ।
लिंक 20
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी की काव्यांजलि सबको मोहे
बडि़या मन मोहक शिक्षाप्रद हैं दोहे ।
लिंक 21
जवाब देंहटाएंबब्बन जी अच्छा चाह रहे हैं
खुद भी बनना चाह रहे हैं
हमें भी बन जाना चाहिये
समझा रहे हैं
"एक काला छाता" ।
लिंक 22 अरुण शर्मा
जवाब देंहटाएंइनके सीने में भी लगी है आग।
लिंक 24
जवाब देंहटाएंवर्मा जी दाल में काला बता रहे हैं
हमें तो अब सब दाल को काला
करके ही दे जा रहे हैं ।
लिंक 25
जवाब देंहटाएंउजबक गोठ
जगा रहा है
गजब कर रहा है
सब जगह देखा
हर कोई अपना दिल
जला रहा है
पर यहां तो माजरा ही
अलग है
ये चावल दाल में
आग लगा रहा है ।
रविकर सुना है शाम को आयेंगे
जवाब देंहटाएंबाकी का खेत उनसे खुदवायेंगे ।
,रचना मेरी शामिल हुई चर्चामंच का प्यार,
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी मेरा आपको ,बहुत बहुत आभार,,,,,,
उज्बक गोठ,
जवाब देंहटाएंजागो जागो,,,,रे ,,,,पोस्ट् पर,,
लाठी तो चलती रहे,पर आवाज न आय,
मंहगाई की मार से, जनता मरती जाय!
जनता मरती जाय, होय काला बाजारी,
रोते रहे किसान,हँस रहे देखो ब्यापारी!
नेता और व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
होय तभी सुधार देश,लेय जब जनता लाठी,
बेहद सुन्दर लिंक्स मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंलिंक - १९ गीत मेरे
जवाब देंहटाएंवाणी गीत के रचना पर,,,,
प्रेम सबसे जटिल विषय है, ना ही मुझको ज्ञान
शीर्षक रचना का होना चाहिए,"प्रेम और विज्ञान",,,,,,
शास्त्री जी,,,लिंक न० ९ से २२ तक साफ़ नही आ रहे है,पढ़ने में परेशानी हो रही है कृपया ठीक कर दे,,,,
जवाब देंहटाएंदौलत पाने के लिए, तान रहे बन्दूक।
जवाब देंहटाएंजीवित माता-पिता का, लूट रहे सन्दूक।।"
आज की चर्चा बहुत ख़ास बहुत सुन्दर लिंक्स और आपके दोहे उस पर चार चाँद लगा रहे हैं
शास्त्री जी , सुशील जी , धरेंद्र जी ,बहुत -बहुत
जवाब देंहटाएंआभार आप सब के स्नेह का ....
सब लिंक बहुत सुंदर है ,,अच्छा पढ़ने के लिए
बहुत कुछ समाया है इसमें ....
आप सब का आभार !
चर्चा मंच का यह सौभाग्य है कि इसके लिंकों पर सुधि पाठक बढ़िया टिप्पणियाँ कर रहे हैं। आशा है कि इससे पोस्टों के स्वामियों को सुख मिल रहा होगा।
जवाब देंहटाएंआज की दोहोंमय चर्चा अत्यंत रोचक है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाई.
लिंक - ११
जवाब देंहटाएंदिनेश की टिप्पणी ,,,,पोस्ट पर
इंदू जी,अस्वस्थ है,ज्ञात हुआ है आज
शीघ्र ही स्वस्थ हो,ईश्वर पर है विश्वास
ईश्वर परहै विश्वास,रहेगी इंदू की छाया
संतोष से मोबाईल पर खूब बतिआया
शीघ्र स्वस्थ हो,लौटकर घर आ जाओ
ब्लॉग जगत में फिरसे पोस्ट लगाओ,,,,,,,
बहुत ही सुन्दर सूत्र..
जवाब देंहटाएंबहुत सारे सार्थक सूत्रों का संकलन...
जवाब देंहटाएं"धरती प्यासी थी बहुत, जन-जीवन बेहाल।
धान लगाने के लिए, लालायित गोपाल।।"
टिप्पणी में आपके दोहे पसंद आए...आभार !!!
मधुर गुंजन
ऋता शेखर 'मधु'
मन को नयनो से
बरसाने का खयाल
इनको आया है
अच्छा है मन
हल्का और नयन
को साफ करना
हमें भी भाया है ।
सुशील सर ने लिंक देखा और सुंदर टिप्पणी दिया...आभार !!
सुशील जी, लिंक १२ पर आपकी टिप्पणी के सन्दर्भ में बस इतना ही कहना है की-- कम खाना देने वाली पत्नी को तो बदला नहीं जा सकता , हाँ बाबा भोलेनाथ का उपवास आप भी रखिये, इसी में भलाई है और सेहत का राज़ भी छुपा है। पति-पत्नी मिलकर उपवास करें तो दोगुना पुण्य मिलता है और अनाज की भी बचत होती है। ...:) :)...
जवाब देंहटाएं.
सुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
सुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंकिया आदि से अंत तक, धांसू ठोस कमेन्ट ।
जवाब देंहटाएंप्रोफ़ेसर चिपके गजब, अम्बुजा सीमेंट ।
अम्बुजा सीमेंट, धीर भी गजब दिखाया ।
लगातार दो दिवस, यहाँ फिफ्टी बनवाया ।
जोड़ी जुगल जमाय, रही है जमकर चर्चा ।
पर्चा चेकर सुशील, धीर दे पूरा खर्चा ।।
डाक्टर दिव्या दे रही, इक डाक्टर को डोज ।
जवाब देंहटाएंदो दिन का राशन मिला, कर उल्लू तू मौज ।।
दोहामयी सुन्दर चर्चा ..मेरी रचना को स्था्न देने के लिए आभार ..सुशील जी की टिप्पणियां तो गजब ढ़ारही है..आभार सुशील जी..
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ टिप्पणी कर गए, मित्र बुजुर्ग अशोक ।
जवाब देंहटाएंबच्चों की गलतियों पर, अवश्य दीजिये टोक ।।
सभी टिप्पणी कार हैं, धन्यवाद के पात्र ।
जवाब देंहटाएंये सब की सब तोप हैं, नहीं टिप्पणी मात्र ।
@अगला जीवन
जवाब देंहटाएंगाना गाना भोर का, संध्या बेला पास |
मन का पाखी नासमझ, नहीं आ रहा रास |
नहीं आ रहा रास, आस का झूला झूले |
करे हास-परिहास, हकीकत शाश्वत भूले |
दीदी की यह बात, नये परिधान पहन कर |
नया देश परिवेश, देखना है जी भरकर ||
@अगला जीवन
जवाब देंहटाएंगाना गाना भोर का, संध्या बेला पास |
मन का पाखी नासमझ, नहीं आ रहा रास |
नहीं आ रहा रास, आस का झूला झूले |
करे हास-परिहास, हकीकत शाश्वत भूले |
दीदी की यह बात, नये परिधान पहन कर |
नया देश परिवेश, देखना है जी भरकर ||
भावों से भरपूर है, दोहे सारे मित्र |
जवाब देंहटाएंबड़ी कुशलता से खिंचे, शब्दों के ये चित्र |
दोहे चर्चा मंच से, चोरी हुवे पचीस ।
जवाब देंहटाएंदर्ज करता हूँ रपट, दोहे बड़े नफीस ।
दोहे बड़े नफीस, यहाँ न फीस दे गया ।
शामिल धीर-सुशील, छोड़ते हैं शरम - हया ।
रविकर करे अपील, मिले दोहा पच्चीसी ।
मत दे देना ढील, काढ़ कर पढ़िए खीसी ।।
चर्चा का मतलब
जवाब देंहटाएंमुझे अब समझ में
आ रहा है
चलो आया तो सही
चाहे बहुत देर से
ही आ रहा है ।
चर्चाकार की मेहनत
जवाब देंहटाएंका कुछ तो दे जाइये
अरे कुछ मत कहिये
उसने कुछ कहा है
किसके लिये कहा है
इतना भर तो देख ही
आप जाइये
अनुग्रहीत कर सकें इस तरह तो
प्लीज ना
कर ही जाइये
खुश हो जाइये
नाराज ना हो जाइये।
इसके बाद
जवाब देंहटाएंआगे का हाल
रविकर बता रहा है।
shastri jee uchaaran mere commets accept nhi kar raha hai....
जवाब देंहटाएंआभार!
जवाब देंहटाएं