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रविवार, जुलाई 29, 2012

"बहरा राजा ,गूंगी प्रजा" (चर्चा मंच-९५५)

मित्रों!
     रविवार के लिए आपके अवलोकनार्थ लिंकों की कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ!
       सुबह की चाय और अखबार..की ताज़ा खबर दोनों साथ हों तो इसका अलग ही मज़ा हैं (कड़वा सा )| खुद से अखबार उठा कर लाना और चाय बनाना दोनों काम साथ ही होते हैं रोज़ चाय का पानी उबलता हैं और साथ ही साथ हमारे विचार.."उज्जवला की बातें करें" तो कुछ बात हमारी भी समझ में आती हैं...लोग "दूसरों" की विकृतियों के माहिर हो चले हैं...विकृति को समझना मुनाफ़े का सौदा है। कविता और लेख लिखो तो कोई टिप्पणी नहीं देता मगर किसी की विकृति को पहचान लो लोग अपनी राय देने आ जाते हैं मगर शर्त यह है कि विकृति ‘दूसरों‘ में से किसी की होनी चाहिए...बहरा राजा ,गूंगी प्रजा तो यह बलिदान किसलिए?..चर्चा हो रही है या कहिये की आज का मुद्दा ही यही है चेनलों के पास कि अन्ना के अनशन में भीड़ नहीं दिख रही...कैसे हाँ कहूँ ? जब ना कहना चाहता हूँ ? समझ नहीं पाता हूँ झंझावत में फंसा हूँ रिश्तों के बिगड़ने का खौफ दुश्मनी मोल लेने का डर मुझे ना कहने से रोकता है ...! जैविक पिता और लांछित पिता की त्रासदी... सोचिए कि कर्ण को जब पता चला होगा कि सूर्य उस के नाज़ायज़ पिता हैं तो क्या कर्ण ने भी कभी मांग की होगी सूर्य से कि अपनी रोशनी और अपनी आग मुझे भी दे दो नहीं मैं तुम्हें बदनाम कर दूंगा? खैर....हम गधे इस देश के है, घास खाना जानते हैं। लात भूतों के सहजता से, नहीं कुछ मानते हैं...! महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं महामूर्ख दरबार में...! 
     जिन्दगी को पिरोना चाहता हूँ ग़ज़ल में ,भटक रहा हूँ मैं , इस तलाशे-साहिल में ।.... एक दुनिया माटी की ...माटी की छुलनी माटी की कड़ाही माटी का बेलन माटी का चकला तवा माटी का दल घोटनी माटी की एक चूल्हा भी है वो भी माटी का एक पूरा घर माटी का सबकुछ ...! ईद का चाँद नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा ! हर घड़ी हर पल नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा...! आयाम बिंधने के...कभी कभी बिना बिंधे भी बिंध जाता है कहीं कुछ सूईं धागे की जरूरत ही नहीं होती शब्दों की मार तलवार के घाव से गहरी जो होती है मगर कभी कभी शब्दों की मार से भी परे कहीं कुछ बिंध जाता है ...! तुलसी रस का व्याधि में सर्वोत्तम उपयोग...सर्वोत्तम उपयोग,बिना पैसे घर चंगा. निर्धनता भी डाल न पाए कोई अड़ंगा...! मेरे दोस्त तुम भी लिखो शायरी..हर धङकन में एक राज होता है । हर बात को बताने का एक अंदाज होता है । जब तक ठोकर न लगे बेवफ़ाई की । हर किसी को अपने प्यार पर नाज होता है । बिलासपुर बिहार के रिंकू सिवान का ब्लाग ऐसी ही मजेदार शेरो शायरी का आप भी मज़ा लीजिए! कहती है नैना हसूँ अब मैं कैसे...बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको है तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे...! कवि ने सिर तुड़वाया पर सम्मान नहीं खोया...अक्सर लोग चारण कवियों पर आरोप लगा देते है कि वे राजपूत वीरों की अपनी रचनाओं में झूंठी वीरता का बखाण करते थे पर ऐसा नहीं था| राजपूत शासन काल में सिर्फ चारण कवि ही ऐसे होते थे जो निडर होकर अपनी बात अपनी कविताओँ में कहते थे...! वो चाँद...लम्हा लम्हा गुजरता रहा , चाँद भी मंद मंद चलता रहा छटते रहे गमो के बादल आँखों मैं सेलाब उमड़ता रहा चाँद भी आज अपनी फलक पे था हम धरती पे थे मेरा मन आसमान पे था कुछ यादगार लम्हों के करीब पंहुचा ही था कि..."प्यार कैसे करूँ"..लोग कहते हैं मैं बेबसी पे नही लिखता, किसी की तनहाइयों में नहीं दिखता ! तुझको कैसे बता दूँ की तुझसे प्यार है, इसी बात पे तो तुझ संग तकरार है ! मैंने तन्हाइयों में दर्द को समेटा है...!
      बॉलीवुड का खुबसूरत ही मैन -धर्मेन्द्र दिलीप कुमार ने उन्हें अवार्ड देते हुए कहा की अगर मुझे दुबारा जिन्दगी मिली तो मै धर्मेन्द्र जैसा हेंडसम बनना पसंद करूँगा....! शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(स) प्रेरण -(२)-पर्वत से रहना अटल ! तूफानों में हो सबल | पर्वत से रहना अटल....!मियाँ कब तक जियोगे मुखोटा लगा कर ? आज का युग दोहरे चरित्र वालों का युग है | आप बंद कमरों में जो करते हैं, अकेले में जो सोंचते हैं, हकीकत में जैसे जीना चाहते हैं वो आप हमेशा सब के सामने... "गद्दार डीएनऎ " *डीएनऎ से देखिये कैसे डीएनऎ मिल गया बाप को एक बेटा बेटे को एक बाप मिल गया बहुत खुशी की बात है बहुत पुरानी बात का बहुत दिनों बाद पता चल गया...! क्षणिकाएँ... एक जरा सी शुरूआत भी बला की तूफ़ान ले आती है फिर तो हलकी सी थपकी भी जोरदार चपत लगा जाती है ...आँसू जब बहते हैं....स्वर्ग मही का भेद स्वर्ग का नाम आते ही उसके अस्तित्व पर प्रश्न खड़े होने लगते हैं, गुण और परिभाषा जानने के पहले ही...! मौत को अपने साथ लिए चलता हूं मैं  गैरों से नहीं अपनों से ही डरता हूं मैं, शिकारी बैठे हैं ताक में यहां यही सोच के बहुत ऊँचा उड़ता हूं ....! आखिर ये दंगे होते ही क्यों हैं?....वो पल ! मेरे थे, जिए भी मैंने  ही ,लेकिन वो समर्पित थे, किसी अनजान के लिए....! "हिन्दी कुत्ता अंग्रेजी में भौंका "....!
यात्रा के बीच एक कार्टून...

31 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन सुन्दर सार्थक प्रस्तुति । आभार शास्त्रीजी ।

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  2. सुंदर सूत्र ...आभर शास्त्री जी ...मेरे स्वर आज चर्चा मंच पर देने के लिये ....!!

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  3. अच्छी प्रस्तुति |
    चर्चा में लेखों के लिंक अलग नजर नहीं आने से कहाँ क्लिक किया जाए पता ही नहीं चलता|

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    उत्तर
    1. आदरणीय रतनसिंह शेखावट जी!
      अब सही कर दिया है। अब लिंक स्पष्ट नजर आ रहे हैं।
      आभार!

      हटाएं
  4. बेहतरीन लिंक्स.मुझे शामिल किया,आभार.

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  5. बढ़िया चर्चा... जोरदार लिंक्स....
    सादर आभार।

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  6. सुन्दर सार्थक प्रस्तुति बेहतरीन लिंक्स.....आभार

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  7. बहुत उम्दा और लाभकारी चर्चा.
    आभार !!!

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  8. सार्थक प्रस्तुति उम्दा चर्चा....आभार

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  9. आपके चर्चा का अंदाज़ ही जरा हटके है.इस तरह आपने लिनक्स सजाये हैं और उनको इस तरह बयां किया है जैसे की कोई आर्टिकल पढ़ रहे हैं.हर लिंक दुसरे लिंक से खुद बा खुद मिलता नज़र आता है.बहुत बेहतरीन चर्चा और अंदाज़े चर्चा.




    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

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  10. बहुत ही सुन्दर कथा के साथ सुन्दर लिंक्स संयोजन. बेहद उम्दा बधाई ....

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  11. बहुत सुंदर लिंक मिले और देखने के लिए भी कार्टून बहुत भाया. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद !

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  12. अच्छी अच्छी लिंक्स पढने को मिली हैं आभार |
    आशा

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  13. आज के दो मुददे एक तो तिवारी के कार्टून के साथ और एक अनशन में भीड की कमी का रोना रोते ये सरकारी टुकडो पर पलने वाले चैनल इन दोनो ज्वलंत मुददो पर चर्चा में शामिल ब्लागरस ने अच्छा लिखा है

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  14. सुबह-सुबह की चाय संग,नित पढ़ना अखबार
    दोनों का हो मजा निराला,जब दिन हो रविवार,,,,,

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  15. D.N.A.,,के टेस्ट से,बात हो जाती साफ़
    किसका कौन है बेटा,कौन है इसका बाप,,,,,

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  16. अक्ल होती अगर भैस की,चारा खाकर देती ढूध
    लालू जी ने चारा खाया,निकाल रहे भैसों से दूध,,,,

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  17. बहुत सुन्दर सूत्रों से चर्चा मंच सजाया है हार्दिक आभार शास्त्री जी

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  18. बहरा राजा ,गूंगी प्रजा..तब न सुन्दर चर्चा दे खूब मजा.. हार्दिक आभार..

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  19. ..वो पल !

    किसी और के किसी के लिये
    आज कौन व्याकुल होता है
    आप हो रही हैं खुदा जानता है
    जरूर कुछ तो सोचेगा
    और करेगा भी कुछ ना कुछ
    उसके लिये जो किसी
    का बहुत कुछ है !

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  20. मौत को अपने साथ लिए चलता हूं मैं

    डर अच्छा है!!

    अपने ही डराते है
    अच्छा है कि हम
    डर डर कर पार
    हो ही जाते हैं !!

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  21. आप बहुत मेहनत करते हैं..ये हम जैसों का सौभाग्य है जो आपके चर्चा मंच में स्थान पा जाते हैं...आभार आपका..
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  22. sambad hinta swaym me ek jahar hai,kabhi kabhi yh ghar,pariwa,samaj aur rashtro ko bhi sangya shunya kar deti hai,charcha hi jindgi charcha hai bandgi hai,ese kisi ki rakhel n banne diya jay,varna fir d.n.a.test ki naubat aa jaygi.filhal Shastri ji ki nirbhikta aur safgoyee kabile tarif hai, aur shutra sanyojan behtarin."hm sbhi pagal hai aapki sakal ke piche,.mt pooch bahm kese divana bna deti hai"........

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