Followers


Search This Blog

Sunday, July 15, 2012

"टिप्पणी के लिए ....comments पर क्लिक कीजिए!" ( चर्चा मंच - ९४१ )

नीरसता कम हो गयी, गद्-गद् हृदय अपार।
टिप्पणियाँ जो दे रहे, उनका है आभार।।
टिप्पणी करने के लिए
पोस्ट के शीर्षक के ठीक नीचे

....comments पर क्लिक कीजिए!
अब आज की चर्चा का सिलसिला शुरू कर रहा हूँ!
(०)
हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र-
चश्मे का पड़ता फरक, दरक जाएगा चित्र ।
हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र ।
भागे भगवा मित्र, छीन कर कागज़-कूँची ।
हालत बड़ी विचित्र, सोंच दोनों की ऊंची...
(००)
अक्स दर अक्स
जब गुजरे तंग गलियों से ,
शराफत याद आती है-
*पनाहे - दर - रकीबा में
हिफाजत याद आती है -
लिया सौदा...
(०००)
"बहुत कम होते हैं "
अपने ही बनाये
पोस्टर का दीवाना हो जाना
बिना रंग भरे भी
क्योंकि कूची अपनी..
(१)

सुरसा राक्षसी
बढ़ते चरण मंहगाई के
जीना दुश्वार कर रहे
आज है यह हाल जब
कल की खबर किसे रहे
यादें सताती है
कल के खुशनुमा दिनों की...
(२)
ख़ामोशी...बेजुबां होकर भी कितना कुछ कह जाती है...
अनेकों रंग हैं इसके भी ,
कभी नाराजगी जता जाती है ये,
तो कभी दिल में मच रही हलचल का द्योतक है ..
कभी दिल के चैन का जरुरत ये बनती है ,
तो कभी बेचैनी और और बेताबी का सबब ये है...
(३)
सर्ग-2 शिशु-शांता भाग-2
सम गोत्रीय विवाह फटा कलेजा भूप का, सुना शब्द विकलांग |
राजकुमारी ठीक कर, जो चाहे सो मांग ||
भूपति की चिंता बढ़ी, छठी दिवस से बोझ |
तनया की विकृति भला, कैसे होगी सोझ ||
रात-रात भर देखते, उसकी दुखती टांग |
सपने में भी आ जमे, नटनी करती स्वांग...

(४)
करे बहानाआलसी, अश्रु बहानाकाम |
होय दुर्दशा देह की, जब से लगी हराम ।।
अन्न पकानाछोड़ दी, कान पकानारोज |
सास-बहू में पिस रहा, अभिनेता मन खोज ।।
दही जमानाभूलती, रंग जमानायाद |
करे माडलिंग रात-दिन, बढ़ी मित्र तादाद...

(५)
Blogger Navbar hide option

ब्लॉगर नैवबार को हटाने के लिए
अब आपको किसी CSS कोड को
अपने टेम्पलेट में जोड़ने की ज़रूरत नहीं रही...

(६)
गुवाहाटी की उस लड़की के नाम :
ब्रह्मपुत्र आज सिसक सिसक कर रो रही है !!!
भाग एक :हेबाला

तो हे बाला , हमें माफ़ करना ,
क्योंकि इस बार हम तुम्हारे लिये
किसी कृष्ण को इस बार धरती पर अवतरित नहीं कर सके.
actually कृष्ण भी हमसे डर गए है .
उनका कहना है कि वो दैत्य से लड़ सकते है....
(७)

भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....

ओ पथिक ...
कौन हो तुम ....?
कहाँ से आये हो..?
अरे माया मे ...
क्यों इतना भरमाये हो ...?
किस बात की जल्दी है ...?
मुझमें ही तो मिलना है ...
अरे ...रुको ......रुको ... सुनो तो .... .
मुझे भी कुछ दान देते जाओ ....
(८)
जरूरी तो नहीं मानसून की आहटों से
सबके शहर का मौसम गुलाबी हो


मानसून आ रहा है मानसून आ रहा है
सिर्फ यही तो उसे डरा रहा है
कल तक जो रहती थी बेफिक्र
आज उसकी आँखों में उतरी है बेबसी
ग्रीष्म का ताप तो जैसे तैसे सहन कर लेती है
कभी किसी वृक्ष की छाँव में सो लेती है ...
(९)


पानी गिरा कर मेह के रूप में
अन्न उगाते कभी अभिराम हैं !
शोभा दिखाते हमें अपनी जो ऐसी
फिर विद्युत रूप कभी वे ललाम हैं...!
(१०)
चीखती है चीखती है कब नदी कब बदलती है धार
कौन सी नाव किधर ले जाती है
माझी ही केवल जानता है नदी का बहाव...
(११)
विभांशु दिव्याल दयानंद पांडेय के सद्य: प्रकाशित कहानी संग्रह
‘फ़ेसबुक में फंसे चेहरे’ में संकलित
उनकी ताजा प्रकाशित कहानियों से गुज़रते हुए
मिश्रित प्रतिक्रिया पैदा होती है।
वह अपने परिवेश पर गहरी नज़र...
(१२)
गुड़िया के बाल का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा
कुछ लोग इसे बुढ़िया के बाल के नाम से भी जानते हैं
अर्थात इसे दोनों नामों से जाना जाता है।
क्यूंकि वो देखने में बिलकुल गुड़िया के और बुढ़िया के...
(१३)
पर्वत से चलकर आते हैं,
कलकल नाद सुनाते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं....
(१४)
विचारों का बादल सा होता है मन में,
हम उसे एक स्थूल रूप दे देते हैं,
शब्दों के माध्यम से,
संगीत के माध्यम से,
कला के माध्यम से...
(१५)
इला जोशी एक मल्टीनेशनल में बिज़नेस मैनेजमेंट प्रोफेश्नल हैं
और स्वतंत्र लेखन और कविता करती हैं
नैतिकता के नामर्द सिपाहियों को गौर से देख लीजिए
चलती सड़क, देश के "व्यस्त शहरों" में से एक,
आस पास मौजूद पढ़े लिखे ज़िम्मेदार "नौजवानों की फौज"
और फ़िर भी नोच फेंके गए उसके शर्म, लज्जा और लिहाज के गहने.
वही गहने जो उसकी माँ ने पैदा होते ही
तन पर पहले कपडे के साथ उसे पहना दिए...
(१६)
मेरे इस जग से तेरे उस जग तक....
इक उम्र का फासला है सुना है...
किसी सपने की चोरी हुई है...!!

(१७)
लरजती सी टहनी पर
झूल रही है एक कली
सिमटी,शरमाई सी
थोड़ी चंचल भरमाई सी
टिक जाती है
हर एक की नज़र
हाथ बढा देते हैं
सब उसे पाने को पर वो नहीं खिलती
इंतज़ार करती है बहार के आने का
कि जब बहार आए
तो कसमसा कर खिल उठेगी...
(१८)
हम प्रतिदिन जहर पी रहे हैं तो प्रेम कहाँ से उपजेगा?

सुबह की पहली किरण के साथ ही एक भूख जन्‍म लेती है, दुनिया को जानने की, अपने आस-पास हो रही गतिविधियों को समझने की और घटनाओं से अपने आपको सावधान करने की। इसलिए दरवाजे पर दस्‍तक दे रहा समाचार-पत्र तत्‍काल ही हाथ में आ जाता है। समाज और देश की सारी विद्रूपताएँ एकत्र होकर..शेष पोस्‍ट पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें - www.sahityakar.com
(१९)
यादों के दिये,
पलकों तले जलाकर रखे मैने,
आज सच में तुम्‍हारी याद आ रही है।
हर रोज तो तुम आती थी,
ऊषा की किरणों के साथ,
आशाओं के बरखा लिए..
(२०)

बलात्कार प्रधान देश





आखिर ये मुँह ही तो थक चुका था यह कहते कहते
कि भारत एक कृषि प्रधान देश है ,
भारत एक कृषि प्रधान देश है।
इस वाक्य को मंत्र की तरह
बार बार, बार बार दुहरा


(२१)
पुरुष आये मंगल से तो स्त्री कौन से देश से आई.. 
अक़्सर कहा जाता है कि हम सब दुनिया की भीड़ में अकेले हैं,
हम अकेले आए थे और अकेले ही जाएंगे।
पर इस अकेले आने-जाने के सफ़र के बीच हम अकेले नहीं रह पाते। लगभग हर इंसान देर-सवेर किसी संबंध में बंधता ही है।
मनुष्य का सबसे पहला संबंध अपनी मां से होता
(२२)
*" महाभारत " *के ध्रतराष्ट्र को कौन नहीं जानता
उसके अंधेपन को कौन नहीं जानता...
(२३)
एथेंस का सत्यार्थी उसने जब सत्य को देखा
आँखें चौंधिया गई थीं उसकी
यह कहानी तब सिर्फ पढ़ने के लिए पढ़ लेती थी
गूढ़ता समझने की शक्ति नहीं थी...

(२४)
राजनीति सिर्फ राजनीति है ,
नीति च्युत , अ -नीति -प्रधान ,
किसी की न मान , सिर्फ इंदिरा सा अभिमान ,

राजनीति सिर्फ राजनीति है . कृष्ण की प्रीती है , ...
(२५)
इन बालकों में इतनी काबलियत नहीं होती
इतनी संभाल और समझ नहीं होती कि
मुक्तावली को ठीक से ब्रश कर सकें
मंजन दातुन अपने आप से ठीक ठीक कर सकें...
(२६)
Image_Setup
भरता जा नमी तू भीतर,
अंदर गुब्बार तू बनता जा,
चाहे गरज, चाहे चमक..
हर बार तू बरसता जा...
जो गरजे, वो बरसे नहीं
दुनिया की इस रीत से परे..
तूफ़ान सा तू उठता जा ...
(२८)
(२९)
की स्थिति दलदल में फँसे
उस आदमी की तरह हो गई है,
जो दलदल से बाहर निकलने के लिए
जितना हाथ-पैर मारता है
उतना ही दलदल में भीतर धंसता जाता है...
(३०)
हिम्मत का फौलाद लिये आंखो मे

ईक ख्वाब लिये कड़ी धूप मे

मोम की गुड़िया अंगारो से खेल रही है

हॅस कर सब दुख झेल रही है..

(३१)
हिन्दू मुसलमान भारतीय या विदेशी होने से पहले
इंसान होना ज्यादा जरुरी है ?
तो क्या आप सहमत नहीं कि इतना होना भी पर्याप्त है ..
(३२)
मौन और मौन !
मौन
कर जाता है अनर्थ
सच सच होकर भी
मौन की गहराई में
खामोश रह जाता है .
बात अर्थ खो देती है
सच का सफेद आवरण
मौन के अँधेरे से
धूमिल सा हो जाता है....।
(३३)
पूरन भगत
सिआलकोट का एक राजा था, सलवान, उसकी दो रानियाँ थी
एक का नाम था इछरा और दूसरी का नाम लूणा था
सलवान के घर रानी इछरा के कोख से एक बालक ने जन्म लिया
उसका नाम पूरन रखा...!
-0-0-0-
आज के लिए केवल इतना ही...!
धन्यवाद...नमस्ते जी...!!

59 comments:

  1. मेरी पोस्ट को स्थान के लिए दिल से धन्यवाद | आज की चर्चा को बहुत खूबसूरत ढंग से सजाया है |

    ब्लॉग पर स्थापित चित्र को आकषर्क कैसे दिखाएँ

    ReplyDelete
  2. अच्छी सजी चचा में कई लिंक्स पढ़ने को मिले हैं |बहुरंगी चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

    ReplyDelete
  3. विस्तृत सुंदर लिंक्स और सुंदर प्रस्तुतिकरण ....बहुत अच्छी लगी आज की चर्चा ...आभार शास्त्री जी ..यहाँ मेरी रचना को स्थान मिला...!!

    ReplyDelete
  4. @"बहुत कम होते हैं "

    चश्मे का पड़ता फरक, दरक जाएगा चित्र ।
    हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र ।

    भागे भगवा मित्र, छीन कर कागज़-कूँची ।
    हालत बड़ी विचित्र, सोंच दोनों की ऊंची ।

    किन्तु संकुचित दृष्टि, दिखाए खूब करिश्मा ।
    कितना भी बदरंग, बदल पाते ना चश्मा ।।

    ReplyDelete
  5. (२९)
    धरती-धरती चलो चिदंबरम, आसमान की छाती न फाड़ो

    आइस मिलती फ्री में, चिदंबरम को रोज ।
    व्हिस्की का पैसा लगे, दो हजार का भोज ।
    दो हजार का भोज, गरीबी वो क्या जानें ।
    आइसक्रीम का रेट, प्रेस में खूब बखाने ।
    पानी बोतल अगर, गरीबी पी पंद्रह में ।
    राशन कैसे आय, बताओ फिर सत्तरह में ??

    ReplyDelete
    Replies
    1. लिंक न० - २९


      अपने हाथों कर रहे, अपना भंडा फोड
      सफाई देते फिर रहे, लगीहै सबमे होड,,,,,,

      Delete
  6. (२४)
    कबीरा खडा़ बाज़ार में
    राजनीति सिर्फ अ -नीति है


    वंश-वाद |
    सब बर्बाद-
    एक आध मिले साधु-
    बाकि व्याधि और विवादु ||

    ReplyDelete
  7. (८)
    जरूरी तो नहीं मानसून की आहटों से
    सबके शहर का मौसम गुलाबी हो

    पूरब में अब बाढ़ ने , ढाया कहर अजीब |
    वर्षा रानी से हुआ, ज्यादा त्रस्त गरीब |

    पश्चिम में सावन घटा , ठीक ठाक संतोष |
    कवि हृदयों में है बढ़ा, ज्यादा जोश-खरोश ||

    मेरे यहाँ अथाह जल, जल ना दिल्ली वीर |
    दिल ही की तो है कही, तेरी मेरी पीर ||

    ReplyDelete
  8. (१३)
    "कलकल नाद सुनाते हैं"



    निर्झर झरने गिर रहे, नीचे नीचे नीच ।

    फिर भी निर्मल कर रहे, सब कुछ आँखें मीच ।

    सब कुछ आँखें मीच, सींचते हैं जीवन को ।

    जाते सबके बीच, खींच मन-कलुष मगन हो ।

    बाँध अगर शैतान, रास्ता रोके उसका ।

    ऊर्जा करे प्रदान, तनिक रो-के फिर मुस्का ।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. लिंक न०- १३


      निर्झर राग सुना रहे, ये सुन्दर सा चित्र
      बाधाओं से मत घबराओ, बता रहेहै मित्र,,,,,,,

      Delete
  9. (३२)
    मौन और मौन !
    रेखा श्रीवास्तव at hindigen


    मौन रहे निर्दोष गर, दोष सिद्ध कहलाय ।
    अपराधी खुब जोर से, झूठे शोर मचाय ।
    झूठे शोर मचाय, सुने जो हल्ला गुल्ला ।
    मौन मान संकेत, फैसला देता मुल्ला ।
    पर काजी की पहल, शर्तिया करे फैसला ।
    मौन तोड़ ऐ सत्य, तोड़ मत कभी हौसला ।।

    ReplyDelete
  10. 'उन्मना' से मेरी माँ की रचना के चयन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद शास्त्री जी ! सभी लिंक्स बहुत मनमोहक हैं ! साभार !

    ReplyDelete
  11. 1.(३३)पूरन भगत
    इछरा लूणा पूरन भगत की कहानी
    एक राजा की दो दो थी रानी
    लीजिये प्रस्तुत है नवज्योज की जुबानी
    बहुत अच्छी है कहानी !

    ReplyDelete
  12. 2.(३२) मौन और मौन !
    मौन है और बहुत कुछ कह गया है !

    ReplyDelete
  13. 3.(३१)क्या आप मानते है कि ?

    इंसान हो लिया जाए
    बस इंसान होने के लिए .

    जी हम मानते हैं और कोशिश भी करते हैं
    पर कितना हो पाते हैं इंसान भगवान जानते हैं
    इंसान जानते हैं या नहीं ये पता नहीं ।

    ReplyDelete
  14. 4. (३०)औरत पर गीत...(अली शोएब सैय्यद)
    सच है और जरूरत है
    उसके सम्भलने की
    और मोम की गुडि़या
    को फौलाद में बदलने की!

    ReplyDelete
  15. 5. (२९)धरती-धरती चलो चिदंबरम, आसमान की छाती न फाड़ो
    आँखे बंद है आसमान फाड़ने वालो की
    जमीन में चलने वाले भी सो रहे हैं
    राम राज्य इसी को कहते हैं होंगे
    मौन रख लिया सब गूँगे हो रहे हैं।

    सार्थक विश्लेषण!

    ReplyDelete
  16. 6. (२८)
    भारतीय शिक्षा पद्धति, यहां की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत
    मैकाले जानता था और इसी लिये उसने भारत की रीढ़ उसकी शिक्षा पद्यति पर वार किया और उसे हम आज भी ढो रहे हैं बार बार खुद ही तोड़ रहे हैं ।

    ReplyDelete
  17. 7. (27)तू बरसता जा.
    भरता जा नमी तू भीतर,
    अंदर गुब्बार तू बनता जा,
    खूबसूरत अहसास !

    ReplyDelete
  18. 8.(२६) टिप्स हिंदी में
    बहुत कुछ है सीखने के लिये इस ब्लाग में ।

    ReplyDelete
  19. 9. (२५)राम-राम भाई
    वीरू भाई आज बहुत ही
    काम की चीज लाये हैं
    सौन्दर्य की बाते हैं
    इसलिये श्रीमति जी
    को हम दे आये हैं ।

    ReplyDelete
  20. 10. (२४)कबीरा खडा़ बाज़ार में
    अनीति बनती जा रही है जितनी
    उतनी प्रीति भी बढ़ रही है राजनीति से ।

    ReplyDelete
  21. (२६)
    टिप्स हिंदी में

    ब्लोगिंग स्कुल है ये ब्लॉग ''टिप्स हिंदी में '' जहाँ पर हिंदी ब्लोगर्स के लिए जानकारियों का खज़ाना है.इतना ज्ञान यहाँ पर मिल जायेगा ,की एक नया ब्लोगर अपनी ब्लॉग को काफी बेहतरीन बना सकता है.


    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

    ReplyDelete
  22. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    विचार बोध
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  23. 11. (२३)मधुर गुंजन सत्य का तेज
    बहुत सुंदर भाव
    सत्य को आवरण में
    डाल भी दो तब भी
    अनावृत हो जाता है
    सत्य का तेज
    कहाँ सहा जाता है !!

    ReplyDelete
  24. आज की चर्चा को काफी अच्छे लिनक्स के साथ सजाया गया है.

    चर्चा मंच की चर्चा को यूँ ही सजाते रहना ,
    कभी अलविदा ना कहना ,कभी अलविदा ना कहना.


    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

    ReplyDelete
  25. 12 (२२)" जीवन की आपाधापी "
    अंधे को अब नहीं
    चाहिये दो आँखें
    वो करना चाहता है
    सब की आँखें भी बंद
    और सब कहना
    मान ले रहे हैं
    बहुत आसानी से ।

    ReplyDelete
  26. 13. (२१)पुरुष आये मंगल से तो स्त्री कौन से देश से आई..
    उम्दा प्रस्तुति !!

    ReplyDelete
  27. 14.
    लिंक 20 का लिंक नहीं मिल रहा है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. भूल हो गयी थी!
      अब सुधार कर दिया है।
      याद दिलाने के लिए आपका आभार!

      Delete
    2. धन्यवाद !
      20.
      बहुत सटीक व्यंग !

      Delete
  28. 15.(१९)आम्रपाली…
    जरूर आयेगी वो अगली बार आम के नये बाग में !

    ReplyDelete
  29. 16. (18)हम प्रतिदिन जहर पी रहे हैं तो प्रेम कहाँ से उपजेगा?
    शिव भी तो नहीं आता अब
    जो पीले जहर के प्याले
    और हो जाये नीला खुद
    बहुत सुंदर प्रस्तुति !

    ReplyDelete
  30. 17.(१७)एक कली...

    सुंदर रचना !!

    कली को खिलना
    भी तो पड़ता है
    आज नहीं तो कल
    एक फूल बनना
    भी पड़ता है
    नई कली के आने
    के लिये खाली
    करनी ही पड़ती
    है डाल !

    ReplyDelete
  31. 18. (१६)स्वाति मेरे इस जग से
    सुंदर भावनाऎं !!
    क्या गजब
    कर लेती है
    चुपके से
    छू लेती है
    शब्दों को।

    ReplyDelete
  32. 19.तुम बहुत दिनों तक बनी दीप कुटिया की...

    मरी आत्माऎं जागती नहीं है !

    ReplyDelete
  33. 20.(१४)विचारों के बादल
    बेहतरीन रचना
    हमारे पास जो ऊपर की मंजिल में खाली स्थान है वहाँ आ जाते हैं कभी कभी उधार के विचार पर वो बादल नहीं होते लोटा भर होते हैं बस छिड़कने के लायक !!!!

    ReplyDelete
  34. 21. (१३)"कलकल नाद सुनाते हैं"
    सुंदर रचना का झरना कल कल बह रहा है ।

    ReplyDelete
  35. 22.(१२)गुड़िया के बाल उर्फ केंडी फ्लॉस

    वाह!!
    बचपन याद आ गया
    मुँह में पानी ला गया ।

    ReplyDelete
  36. 23. (११)कु-व्यवस्था तंत्र में फंसे आदमी की छटपटाहट

    उम्दा समीक्षा !

    ReplyDelete
  37. 24.(१०)उदयभान मिश्र की कविताएँ
    सुंदर रचना !

    ReplyDelete
  38. 25.(९)पानी गिरा कर मेह के रूप में
    सुंदर भाव !

    ReplyDelete
  39. 26..(८)जरूरी तो नहीं मानसून की आहटों से सबके शहर का मौसम गुलाबी हो

    मानसून कष्टकारी भी हो जाता है
    जब भी बर्बादी अपने साथ ले आता है ।

    ReplyDelete
  40. 27. (७)भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....

    रंग दो मुझे इस सावन हरा ...
    पंच तत्व से बनी ...
    भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ..

    सुंदर भावनाऎं !

    ReplyDelete
  41. 28.(६)गुवाहाटी की उस लड़की के नाम :
    ब्रह्मपुत्र आज सिसक सिसक कर रो रही है !!!

    सार्थक लेख के साथ सार्थक बहस जो जारी है !!

    ReplyDelete
  42. 29.(५)ब्लॉगर ने दिया नेवबार छुपाने के विकल्प
    बहुत अच्छे !!
    छुपाना बहुत कुछ है
    कहाँ तक छुपायेंगे ?

    ReplyDelete
  43. 30.(४)सदा खिलाना गुल नया, नया कजिन मुसकाय

    ये लो अब ये भी कर लिया
    लाल में नीला भर लिया ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. लिंक न० - ४


      पकाना खिलाना छोड़कर,शुरू किया ये काम,
      मिलना जुलना कुछ नही,कमा रहे हो नाम,,,,,,

      Delete
  44. लिंक न०- १


    कही अजीरण हो रहा, कही सताए भूख
    चिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक,,,,,,

    ReplyDelete
  45. 31.(३)भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-8
    गजब की रविकर ने रच डाली
    पढि़ये जरूर वो दोहावली ।

    ReplyDelete
  46. 32. (2) बहुत ही खामोश है ये खामोशी !
    सुंदर भाव !

    ReplyDelete
  47. 33. (१)बढ़ते चरण महगाई के
    महंगाई पर सटीक अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  48. 34. (००)
    अक्स दर अक्स
    गजब का लिखते हैं
    उदय वीर जी !!!

    ReplyDelete
  49. 35. (०)
    हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र-

    रविकर को बस पढ़
    उस पर कुछ ना लिख
    नहीं तो फिर शुरू हो जायेगा
    कुछ ना कुछ कहीं भी लिख आयेगा ।

    ReplyDelete
  50. 36,
    और अंत में
    चर्चामंच 941 के
    चर्चाकार मयंक जी का
    तहे दिल से आभार
    36 सुंदर लिंक्स तक
    पहुँचाने के लिये आज ।

    ReplyDelete
  51. लिंक - न० १४
    विचारों के बादल जब मन में आ जाते है,
    सृजनशीलता से लिखकर,मन की खुशिया पा जाते है,,,,,,,,

    ReplyDelete
  52. सुसील जी पोस्ट -न० ०००


    बना रहे है पोस्टर, बिना भरे ही रंग
    बिन चश्मे के देखते,लगते है बदरंग,,,,,,,,

    ReplyDelete
  53. बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण...ढेर सारे लिंक्स...
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार !!
    टिप्पणी के लिए आभार !!

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।