मित्रों!
आज मुझे श्री धीरेन्द्र सिंह भदौरिया जी का एक मेल मिला। जिसमें उन्होंने सुझाव दिये हैं-
शास्त्री जी,,,,नमस्कार
१ - प्रतिदिन की पोस्ट पर सारगर्भित अच्छे टिप्पणीकारों में से {एक } को
बेस्ट टिप्पणीकार के रूप से नवाजा जाये।
२ - बेस्ट टिप्पणीकार का नाम दुसरे दिन की चर्चामंच की पोस्ट पर शुरू में
ही फोटो सहित घोषित किया जाये।
आशा है की मेरा सुझाव आपको पसंद आएगा,बाकी आप जैसा उचित समझें ......!
आपका
धीरेन्द्र भदौरिया
मो०न० - 9752685538
आ.भदौरिया जी!
---
आपका सुझाव बहुत अच्छा है। मैं आज से ही इसे चर्चा मंच पर लागू कर रहा हूँ।से अच्छे टिप्पणी दाता रहे "मा. सुशील जोशी"
ये Almora, Uttarakhand, भारत में कुमायूँ विश्वविद्यालय में भौतिक-रसायन विभाग में कार्यरत हैं। इनका ब्लॉग है- "उल्लूक टाईम्स "...इन्होंने शनिवार की चर्चा में लगाए गये 25 लिंकों पर बड़ी शिद्दत से 25टिप्पणियाँ की हैं। चर्चा मंच की ओर से आपको शुभकामनाएँ और धन्यवाद!
अब देखिए कुछ अद्यतन पोस्टों के लिंक-
ये तो चली आई है परम्परा सदियों से
जो आया है वो तो समां बीत ही जाएगा.......
आज मै अपनी इस पोस्ट के साथ एक नया कॉलम शुरू कर रहा हूँ,
इस नये कॉलम का नाम होगा ''यादगार''
जिसमे मै कुछ प्रसिद के बारे में आर्टिकल लिखूंगा...
दो नैनो से बोल गई अपने मन की बात,
खुद नैना बंद सो रही, मैं जागूं दिन-रात,
आग लगा कर सुलग रहे, हैं मेरे जज़्बात,
सूखे - सूखे नैनों से, बहे प्रेम बरसात...
पाकिस्तान के कराची शहर में एक मंदिर है।
जिसका रहस्य काफी पुराना और पाताल लोक से है।
शास्त्रों के मुताबिक उस मंदिर में
भगवान राम भी पहुंच चुके हैं। ...
हम कई बार तय नहीं कर पाते कि इस पोस्ट पर क्या कमेन्ट दें ?
मेरे साथ यही हुआ जब मैंने 'ब्लॉग की ख़बरें' देखीं .
*औरतों की मौजूदगी में व्यक्ति....
शासन की डोर न सम्हाल सके
सारे यत्न असफल रहे मोह न छूटा
कुर्सी का क्यूंकि लोग सलाम कर रहे |
ना रुकी मंहगाई ना ही आगे रुक पाएगी
अर्थ शास्त्र के नियम भी सारे ताख में रख दिए
*सोयी सोयी आँखें,*
*सपनो में झांके*
*आ जरा आके,*
*रात सजा दे*
*इस रात को कर दे रंगीन.....
ए मह्जवीं !*
*कोई बात तू कर दे हसीं.... !
ये शहरों की मिट्टियाँ भी
अजीब होती हैं ना
रूप रस गंध सबसे जुदा
देखो आज मेरे क़दमों ने
फिर तुम्हारे शहर की कदमबोसी की है
कोई अनजानी सी हवा छूकर गयी है...
कहते हैं कि बादल धरती की अभिव्यक्ति को अपने में समेट लेता है।
धरती अपनी पीड़ा को शब्द नहीं देती
अपितु नि:श्वास बनाकर उष्मा के सहारे बादलों को....
आज वरसे हैं घन टूट के ,
ऊष्मा तिरोहित हो गयी ..
तप्त था आँचल ,
अभिशप्त सा धरातल
दग्ध था हृदय....
री सखी ...
देख न ..
सुहाग के बादल छाये ....
उमड़ घुमड़ घिर आये ...
सरित मन तरंग उठे.... हुलसाये ...
करे बहाना आलसी, अश्रु बहाना काम |
होय दुर्दशा देह की, जब से लगी हराम ।।
अन्न पकाना छोड़ दी, कान पकाना रोज |
विकट पुत्र पति का चरित, अभिनेता मन खोज ।...
*ब*सपा सुप्रीमों मायावती के मामले में
आज अदालत का फैसला हैरान करने वाला है।
आज अदालत का फैसला हैरान करने वाला है।
हांलाकि कोर्ट ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर
फैसला दिया होगा,
फैसला दिया होगा,
लेकिन देश की आम...
चाहत पूरी हो रही, चलती दिल्ली मेल |
राहत बंटती जा रही, सब माया का खेल |
सब माया का खेल, ठेल देता जो अन्दर |
कर वो ढील नकेल, छोड़ता छुट्टा रविकर | ....
पता नहीं, पर जब भी श्रृंगार के विषय पर
उत्साह से लगता हूँ,
उत्साह से लगता हूँ,
कोई न कोई खटका लग जाता है,
कामदेव का इस तरह कुपित ...
कामदेव का इस तरह कुपित ...
आज हिन्दू समाज में जाति या वर्ण व्यवस्था ....
निस्संदेह एक अभिशाप की तरह है.....
और,
और,
एक कलंक है ....!
परन्तु..... क्या सचमुच में ......
वर्ण व्यवस्था का....
वर्ण व्यवस्था का....
चिथरों में लिपटी दिखती है
हर रोज 'वो' कि भीगोती है
सर्द हवाएँ हर रात उसे
नयन कोर पर 'बेबसी' मुस्कुराती है
चेहरे की मुस्कराहट बेबसी छुपा जाती है ...
फ़ुरसत में हूं ...
मन में प्रश्न आता है कि यह ज़िंदगी
हमेशा सरल और सुंदर-सुंदर ही क्यों नहीं होती...
हमेशा सरल और सुंदर-सुंदर ही क्यों नहीं होती...
आदमी ही आदमी को खा रहा है दोस्तों ...........
देह की भूख प्यारे, प्यार पथ ले गई,
मजबूरी वश नेह धर्म निभा रहा है दोस्तों...
कौसानी की एक सुबह * * * * * *13 मई 2012:--
रात को हम ऐसे सोये की कुछ पता ही नहीं चला ...
सुबह जल्दी तो उठना नहीं था...
चतुर्थ अध्याय (ज्ञान-योग - ४.२०-३२)
आसक्ति हीन कर्म फल में सदा निराश्रित तृप्त है रहता.
सदा कर्म करने पर भी वह, कुछ भी कर्म नहीं है करता.
त्याग परिग्रह, काम निवृत्त हो, चित्त, शरीर नियंत्रित रखता....
*खुशियों की फुहार..
प्रतीक्षा, मिलन और विरह की अविरल सहेली, निर्मल और लज्जा से सजी-धजी नवयौवना की आसमान छूती खुशी, आदिकाल से कवियों की रचनाओं का श्रृंगार कर, उन्हें जीवंत करने वाली ‘कजरी’ सावन की हरियाली बहारों के साथ...
लक्ष्मी प्राप्ति का दिवस, रविकर अब मत चूक |
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह दर्शन मिले , छाया यहाँ उल्लूक ||
@वीर बहूटी और हरियाली जैसा गहना-‘कजरी’
जवाब देंहटाएंवीर बहती के चढ़ा , सावन का रंग |
भोले बाबा झूम के , पीते जाते भंग ||
वीर बहूटी के चढ़ा , जब सावन का रंग |
जवाब देंहटाएंभोले बाबा झूम के , पीते जाते भंग ||
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंवो जगहें जहां पैथोजंस
(रोग पैदा करने वाले ज़रासिमों ,जीवाणु ,विषाणु ,का डेरा है )
बीरुभाई के विषय, सदा रहें उत्कृष्ट |
स्वास्थ्य समस्या कर खतम, उन्नत करते सृष्ट ||
टिप्पणी जो अच्छी लगी का चुनाव करना भी एक अच्छा प्रयास होगा |आज की चर्चा विभिद लिंक्स लिए |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२०वीं-कड़ी)
जवाब देंहटाएंKashish - My Poetry
रहे नियंत्रित देहरी, राग द्वेष से दूर |
प्रस्तुत पोस्ट में सखे, ज्ञान भरा भरपूर ||
बरस रे मेघा
जवाब देंहटाएंसंस्कार कविता संग्रह
काले मेघों ने किया, रीना जी को मस्त |
झूमें, भीगे चीख लें, पर होती न पस्त ||,
@मनोज
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में ... दिल की उलझन-
कथा प्रभावित कर गई, मुकुनी रोटी स्वाद |
जिभ्या आनंदित हुई, पाया सरल प्रसाद |
पाया सरल प्रसाद, पेट भी भरा-भरा सा |
दिल को भाया साथ, खुला पट किन्तु जरा सा |
जीवन जद्दो-जहद, दिमागी खुराफात ने |
दिया अडंगा डाल, सरल सी मुलाक़ात में ||
उच्चारण
जवाब देंहटाएं"दोहा पच्चीसी"
दोहे चर्चा मंच से, चोरी हुवे पचीस ।
दर्ज करता हूँ रपट, दोहे बड़े नफीस ।
दोहे बड़े नफीस, यहाँ न फीस दे गया ।
शामिल धीर-सुशील, छोड़ते हैं शरम - हया ।
रविकर करे अपील, मिले दोहा पच्चीसी ।
मत दे देना ढील, काढ़ कर पढ़िए खीसी ।।
नैनीताल भाग 10 कौसानी 2
जवाब देंहटाएंमेरे अरमान.. मेरे सपने..
छायांकन खुबसूरती, है मनभावन साथ |
ताल शिखर घाटी सड़क, सब कुछ प्रभु के हाथ ||
@आधा सच...
जवाब देंहटाएंमायावती को "सुप्रीम" राहत ..
चाहत पूरी हो रही, चलती दिल्ली मेल |
राहत बंटती जा रही, सब माया का खेल |
सब माया का खेल, ठेल देता जो अन्दर |
कर वो ढील नकेल, छोड़ता छुट्टा रविकर |
पट-नायक के छूछ, आत्मा होती आहत |
मानसून में पोट, नोट-वोटों की चाहत ||
अजित गुप्ता का कोना
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति को मार्ग दो, नहीं तो वह विष्फोट में बदल जाएगी
टोका-टाकी व्यर्थ की, करता रहे दिमाग |
अंतर होता उर दहन, दिखे लपट न आग |
दिखे लपट न आग, दगेगी बम सी काया |
बुद्धिजीवी जाग, घूमता क्यूँ भरमाया |
चलो कहें दो बात, जबरदस्ती जो रोका |
कुछ न कहे समाज, बताओ किसने टोका |
कुछ नया रूप लेकर आया है
जवाब देंहटाएंचर्चामंच बहुत सुंदर आज सजाया है
रविकर सुबह उठते उठते
टिप्पणियों का बोरा लेकर आया है ।
टिप्पणी करने वाला
जवाब देंहटाएंयहाँ लटका दिया
जाने वाला है
किसे पता था
ऎसा समय भी
अब आने वाला है
कोई बात नहीं
मित्र रविकर
बचाने वाला है
कल के लिये
अपनी गर्दन दे
जाने वाला है ।
@बुढापा भी खुशी-खुशी बीत जायेगा
जवाब देंहटाएंम्हारा हरियाणा
बुढा़पे के साथ
हंसने की राय
दिये जा रहा है
अच्छी बात है
हमारा बुढा़पा
भी नजदीक में
आ रहा है ।
समृद्ध चर्चा.....
जवाब देंहटाएं:):)
इतबार मुबारक....:)
मोह्ब्बतनामा
जवाब देंहटाएंकादरखान दिखे तो याद आया
बहुत अर्सा हो गया उनको देखे हुऎ
आपने मिलाया शुक्रिया शुक्रिया !!!
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
जवाब देंहटाएंनयन
नयन ही नयन दिखला रहे हैं
नयनों में डूब उतरा रहे हैं
अरूण शर्मा देख लीजिये
आप भी जाकर
कि डूब रहे हैं
या किसी को
डुबा रहे हैं ।
हमारे तीर्थ स्थान और मंदिर
जवाब देंहटाएंप्रवीण गुप्ता पहुँच गये पाकिस्तान
मंदिर दिखाने हमें पंचमुखी हनुमान !!!
सोने पे सुहागा
जवाब देंहटाएंऔरतों की मौजूदगी में व्यक्ति बहस से बच नहीं सकता
एकतरफा बहस भी होती है क्या
हमें तो पता ही नहीं चला
अब ये कह रहे हैं तो
कह रहे होंगें।
@शासन की डोर न सम्हाल सके
जवाब देंहटाएंआशा जी आकाँक्षा में
लगता है मनमोहन
जी को सुना रही हैं
बहुत अच्छी कविता
बना रही हैं ।
Itz me Dp's.........:)
जवाब देंहटाएंए मह्जवीं...
रंजन रोमाँटिक हुऎ जा रहे हैं
बस मह्जवीं को बुला रहे हैं ।
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
जवाब देंहटाएंऔर तुम वहीँ एक बुत बन जाओ ...........
शहर मिट्टी और गुलाब
बहुत सुंदर है अन्दाज !!!
अजित गुप्ता का कोना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति है
सटीक लेख
वाकई हर तरफ चुप्पी है
कोई कुछ नहीं कहता
पर विस्फोट भी तो नहीं
कहीं आसपास मेरे होता ।
राग और विराग भले ही विपरीत दिशाओं में रहें पर शायद चलते साथ-साथ हैं।
जवाब देंहटाएंप्रेम सरोवर के प्रेम सागर सिंह
जीवन संघर्ष की व्यथा कथा
वाकई में छू लेती है ।
उन्नयन (UNNAYANA)
जवाब देंहटाएंउदयवीर जी
भीग गये हैं अंदर तक
अब भिगा रहे हैं सभी कौ
सुंदर छंदों की बारिश से ।
anupama's sukrity!
जवाब देंहटाएंधर रूप सावन आया ....!!
धरा पलक पुलक छाया ..
हिरदय हर्षाया ....!!
बनरा मोरा ब्याहन आया ....
बहुत सुंदर रचना
पोर पोर भिगा रही है ।
@Sushil – (July 8, 2012 9:06 AM)
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने वाला
यहाँ लटका दिया
जाने वाला है
मित्र रविकर
बचाने वाला है
कल के लिये
अपनी गर्दन दे
जाने वाला है ।
चर्चाकारों का गला, नहीं,नाप का मित्र |
खुश्बू फैलाते रहो, भेजूं माला इत्र||
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंजीवाणुओं विषाणुओं
से बचाव
कर ही डालिये
आने वाली आफत
को टालिये ।
दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी
जवाब देंहटाएंरविकर
सागर है गागर ले कर नहीं जाउंगा
वो तो भर लेता है गागर में सागर
मैं गागर के साथ ही बह जाउंगा ।
आधा सच
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक लेख !
जहाँ माया हो वहां सच का क्या काम
आधा हो या पूरा लगादो उसपर विराम।
बेसुरम में भी
जवाब देंहटाएंमाया का खेल बता रहे हैं
रविकर भी माया के मुरीद नजर आ रहे हैं ।
त्याग भोग के बीच कहीं पर
जवाब देंहटाएंप्रवीण पाण्डेय जी
बहुत सुंदर लेख
त्याग के साथ भोग समझने के लिये
ये ही समझ में आया कि
बस ६६ मिनट प्रतिदिन दीजिये, अपने प्रेम को, आप २५ वर्ष के गृहस्थ जीवन में प्रेमसिद्ध हो जायेंगे।
क्या वर्ण व्यवस्था का यही उद्देश्य था.....?????
जवाब देंहटाएंजैसे इस देश के नेता
वैसी ही वर्ण व्यवस्था
पहले भी थी कथा
अभी भी कुछ नहीं बदला।
वट वृक्ष
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
'वो' चीखती, चिल्लाती है
हर रोज कई बार
पर सुनता कौन है
देख लो 'तमाशा' यह
यहाँ हर कोई 'मौन' है
मनोज
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में ... दिल की उलझन-
जीना सरल है,
प्यार करना सरल है,
हारना सरल है,
जीतना भी सरल है,
--- तो कठिन क्या है?
“सरल” होना कठिन है।
.़़़़़़़़़़़़़़़़
उलझन बहुत आसानी से
मनोज सुलझा गया
हर उलझन को सरल
बना कर जिंदगी को
समझा गया ।
सबसे पहले तो मै चर्चा मंच के सभी सदस्यों को दिल से मुबारक बाद पेश करता हूँ ,की आपने आज तो चर्चा मंच का नक्षा ही बदल दिया.इस पर तो आज सावन की हरियाली ही हरियाली नज़र आ रही है.फिर खुबसूरत लिंकों से इसे ऐसा सजाया जैसे दुल्हन जवाहरात में हो.फिर रविकर और सुशिल की कवी टिप्पणियों ने इस पर चार चाँद लगा दिए.दूसरा मेरे साथ कादर खान की याद ताज़ा करने का दिल से धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
भारत एकता
जवाब देंहटाएंचिता पे बैठ शान्ति गीत गा रहा है दोस्तों
हम जैसों के लिये अच्छा लिखा है
नालायक के लिए
तुझे कैसी शर्म और कैसी हया,
लाज लिहाज तू करेगा क्या?
तेरे नयनो का पानी मर जो गया,
तुझे कैसा डर और कैसी सजा?
तेरी आँख का पानी मर जो गया
सबसे अच्छी टिपण्णी करने वालों को सराहने का प्रयास अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की हरियाली ,खुबसूरत लिनक्स और टिप्पणियों का अंदाज़ अच्छा लगा.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
नैनीताल भाग 10 कौसानी 2
जवाब देंहटाएंसुंदर यात्रा वृताँत !
कैलाश जी ने वाकई
जवाब देंहटाएंगीता को यूँ सरल बनाया है
हम जैसे नासमझों के
समझने लायक बहुत
ही सरल और सारगर्भित
उसे बनाया है ।
बरस रे मेघा
जवाब देंहटाएंरीना सावन की
रचना सुना रही हैं
वाकई में बारिश की बूँदे
जैसे भिगा रही हैं ।
वीर बहूटी और हरियाली जैसा गहना-‘कजरी’
जवाब देंहटाएंआकाँक्षा ने दी है बहुत ही सुंदर तरीके से जानकारी कजरी पर
सार्गर्भित लेख जरूर पढे़ ।
बेहद सुन्दर चर्चा, मेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए आभार SIR
जवाब देंहटाएंऔर अंत में
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी के पच्चीस दोहे
जैसा उपर रविकर भी बता गया है:-
"दोहे चर्चा मंच से, चोरी हुवे पचीस ।
दर्ज करता हूँ रपट, दोहे बड़े नफीस ।
दोहे बड़े नफीस, यहाँ न फीस दे गया ।"
फीस की आकाँक्षा में ।
आगे रविकर संभाले ।
रविकर SIR और सुशील SIR आप दोनों टिप्पणियों से कमाल कर देते हैं,
जवाब देंहटाएंउड़ा लिया है मंच से, मैंने अपना माल।
जवाब देंहटाएंचोरी के इल्जाम से, मुक्त हुआ हर हाल।।
(रविकर जी और सुशील जी ) के लिए
जवाब देंहटाएंदोनों मिलके कर रहे टिप्पणियों पर राज,
चर्चामंच को दे रहे एक नया अंदाज़.
देंगे "भूषण" फीस को, वो हैं माला-माल।
जवाब देंहटाएंलाऊँ कहाँ से फीस मैं, मैं तो हूँ कंगाल।।
मोहब्बत नामा,के पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंखानों के खान है, कलाकार ये महान
पहले थे प्रोफ़ेसर, नाम है कादर खान
नाम है कादर खान, काम बड़ा मतवाला
फिल्मो में छागए,फिल्म थी हिम्मतवाला
हिट फिल्मे थी कुली,याराना और लावारिश
बालीवुड में अब न रहा,कोई उनका वारिश,,,,,,
बहुत अच्छी शुरुआत...
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स से सजी है आज की चर्चा
शासन की डोर न सम्हाल सके,,,,पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंनेता गण लगने लगे, जैसे बड़ा गिरोह
सभी लोग करने लगे, कुर्सी का है मोह,
कुर्सी का है मोह ,कर रहे आपस में मेल
चुनाव के लिए हो रहा, आरक्षण का खेल,
जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
अंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,
चर्चा मंच की यह धजा दिखी बहुत दिन बाद।
जवाब देंहटाएंपढ़ने को उम्दा मिला पाए लिंक प्रसाद।
bahut sundar charcha pratuti. Sushil ji ki charchamanch mein lagi links par tipani bhi kaabiletaarif hain..
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha prastuti ke liye aabhar!
शास्त्री जी, सभी लिंकों पर नम्बर डाल दे ताकि लिंक नम्बर डालकर टिप्पणी करने में सुविधा होगी,
जवाब देंहटाएंमेरे सुझावों को मानकर,मान दिया अपार,,,
शाश्त्री जी, इसके लिए बहुत बहुत आभार
आधा सच,
जवाब देंहटाएंमहेंद्र श्रीवास्तव जी के पोस्ट पर,,,,
सुप्रीम कोर्ट का फैसला,और माया का ये मेल,
राष्ट्रपति के लिए हो रहा, ये सियासती खेल
ये सियासती खेल, नकेल में फसी गई माया
ममता क्यू नाराज, अभी कोई समझ न पाया
लगता मुलायम संग, सरकार की हो गई डील
इसलिए ममता नाराज है हो रही उनको फील ,,,,,
वाह कम्मेन्ट्स पढने में तो मज़ा ही आ गया......:)
जवाब देंहटाएंto good.:):)
बेहतरीन लिंक्स...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा मंच
मेरी रचना को शामिल
करने के लिए..
आभार:-)
भारत एकता पर,,,
जवाब देंहटाएंसरकारी पाले में है मौज करने को वो,
दिखावे को ही गाल बजा रहा है दोस्तों ..............
सबके अपने गीत हैं सबकी अपनी प्रीत है,
पर महफिले दुश्मनी सजा रहा है दोस्तों .
प्रेम सरोवर जी की पोस्ट पर,,,,
जवाब देंहटाएंदुनिया में हम आये है जीना ही पडेगा,
जीवन अगर जहर तो पीना ही पडेगा,,,,,,
संघर्ष ही जीवन है,,,,
बहुत रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंकैलाश जी की पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंकैलाश जी की पोएट्री, गीता का अनुवाद
क्रमशः लेखन चल रहा, देता हूँ मै दाद
देता हूँ मै दाद, हमेशा लिखते रहिये
गीता का उपदेश सदा पढवाते रहिये
कृष्णने अर्जुन को दिया गीता का ज्ञान
सब इसको ग्रहण करे बढती जाये शान
दास्ताने दिल,,पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंप्राणी समझे न कभी नैनों की हर बात,
नयना जबभी बोलते लग जाती है आग
लग जाती है आग, जल जाते परवाने
लैला मजनू का हाल, सारी दुनिया जाने
नयनो के ये नीर,तीर से बच कर रहना
वरना फिर पछताओगे,रुलायेगें ये नयना,,,,,,,
दास्ताने दिल,,पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंप्राणी समझे न कभी नैनों की हर बात,
नयना जबभी बोलते लग जाती है आग
लग जाती है आग, जल जाते परवाने
लैला मजनू का हाल, सारी दुनिया जाने
नयनो के ये नीर,तीर से बच कर रहना
वरना फिर पछताओ,रुलायेगें ये नयना,,,,,,,
म्हारा हरियाणा पोस्ट पर,,,,
जवाब देंहटाएंबचपन बीता गई जवानी आ गया आज बुढापा
बेटा बहू यदि खुश रखे,कट जाय मजे से बुढापा
@ मनोज जी, की पोस्ट पर,,,
जवाब देंहटाएंजीवन सुंदर और सरल है,हम लेते उलझाय,
जटिल बनाकर स्वम ही, फिर पीछे पछताय,,,,
ऐ मह्जवी, पोस्ट पर,,,,,
जवाब देंहटाएंतुमको देखा है जब से आँखों ने
और कोई चेहरा नजर नहीं आता
तुम हर नजर का ख़्वाब हो,
हर दिल की धडकन हो
कैसे तारीफ करता तुम्हारे हुस्न की
तुम्हारा चेहरा तो किताबी है,
कहाँ से आया इतना हुस्न....
जबाब में वे मुस्करा दिए और बोले-?
कुछ तो आपकी मोहब्बत का नूर है
कुछ कोशिश हमारी है
उच्चारण,
जवाब देंहटाएंदोहा पच्चीसी,पोस्ट पर,,,,
लाठी तो चलती रहे, पर आवाज न आय,
मंहगाई की मार से, जनता मरती जाय!
जनता मरती जाय, होय काला बाजारी,
रोते रहे किसान,देखो हँस रहे ब्यापारी!
नेता व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
होय तभी सुधार, लेय जब जनता लाठी,
सर मनोज कैलाश द्वय, जीता दंगल आज |
जवाब देंहटाएंगीता की नव-सूक्तियां, दिल की उलझन-राज |
दिल की उलझन-राज, धीर की मस्त टिप्पणी |
सबसे आगे आज, यथोचित ही सजी खड़ी |
अरुण बहुत आभार, राय रंजन की सुन्दर |
चर्चा और प्रगाढ़, चाहता हर दिन रविकर ||
बहुत शानदार चर्चा बढ़िया लिंक आभार
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा देख कर मन प्रसन्न हो गया रविकर जी, सुशील जी और शास्त्री जी को बहुत बहुत बधाई और आभार
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा के लिए धीरेन्द्र जी का विशेष आभार
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी को 73 टिप्पणियों का यह गुलदस्ता मुबारक़ हो
जवाब देंहटाएंकरे बहाना आलसी, अश्रु बहाना काम |
जवाब देंहटाएंहोय दुर्दशा देह की, जब से लगी हराम ।।
अजगर की तो ऐश है,सदा दिखाये तैश
मुँह में दबी सिगार है,खेल रहा स्कैवैश |
अन्न पकाना छोड़ दी, कान पकाना रोज |
विकट पुत्र पति का चरित, अभिनेता मन खोज ।
ना पकड़े हैं कान ये, शुक्र मनायें मित्र
रही बात पति पुत्र की,थोड़ी लगी विचित्र |
दही जमाना भूलती, रंग जमाना याद |
करे माडलिंग रात भर, बढ़ी मित्र तादाद ||
जब तक सिक्का चल रहा,खूब कमा लें कैश
ढली जवानी फिर करें,बाकी जीवन ऐश |
पुत्र खिलाना भाय ना, निकल शाम को जाय |
सदा खिलाना गुल नया,जाय कजिन आ भाय ||
मॉम सँवर जब क्लब गई,करने को आमोद
आया से पूछे लला, क्या होती है गोद ?
सुंदर चर्चा, बढिया लिंक्स.
जवाब देंहटाएंराम राम भाई,,,,
जवाब देंहटाएंबीरू भाई जी की पोस्ट पर ,,,,,
वीरू भाई जी सदा, लिखते बढ़िया बेस्ट
स्वास्थ विषय बतलाते,सदा सुंदर उत्कृष्ट
सदा सुंदर उत्कृष्ट देते नई नई जानकारी
अगर उनको अपनाय,होती बहुत लाभकारी
सझाव इनके मानकर,बचालो अपनी जान
पीछे पछताओगे, जब कौवा ले गया कान