ठक ठक पाठक पोस्ट के, छीने चर्चा मंच -
ठक ठक पाठक पोस्ट के, छीने चर्चा मंच |
"भला बुरा" बक्के बिना, हजम न होता लंच |
हजम न होता लंच, टंच गर होगी रचना |
"भला बुरा" बक्के बिना, हजम न होता लंच |
हजम न होता लंच, टंच गर होगी रचना |
है मिथ्या आरोप, चाहिए इससे बचना |
सुन्दर सत्यम-शिवम् , बतंगड़ बातें बनती |
होय घात-प्रतिघात, भृकुटियाँ खिंचती तनती ||
(2)
चर्चा का क्या अर्थ है, केवल टिप टिप टीप |
लिखना सचमुच व्यर्थ क्या, बुझता ज्ञान प्रदीप |
बुझता ज्ञान प्रदीप, सार्थक चर्चा समझो |
किया कराया लीप, व्यर्थ सज्जन से उलझो |
चर्चा करें सटीक, धीर जोशी जी आमिर |
वीरू भाई अरुण, कई पाठक है माहिर ||
होय घात-प्रतिघात, भृकुटियाँ खिंचती तनती ||
(2)
चर्चा का क्या अर्थ है, केवल टिप टिप टीप |
लिखना सचमुच व्यर्थ क्या, बुझता ज्ञान प्रदीप |
बुझता ज्ञान प्रदीप, सार्थक चर्चा समझो |
किया कराया लीप, व्यर्थ सज्जन से उलझो |
चर्चा करें सटीक, धीर जोशी जी आमिर |
वीरू भाई अरुण, कई पाठक है माहिर ||
क्यों - कमला बक़ाया (कविता)
चंदन कुमार मिश्र
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
आज के लिंक इसी कविता के साथ हैं-
कहानी बहुत पुरानी है,
पर अब तक याद ज़ुबानी है।
इक छोटा-सा घर कच्चा था,
उसमें माँ थी, इक बच्चा था।
बिन बाप मड़ैया सूनी थी,
औ' माँ पर मेहनत दूनी थी।
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२७वीं-कड़ी)
Kailash SharmaKashish - My Poetry
यह बच्चा बड़ा हुआ ज्यों-ज्यों,
हर बात पे पूछा करता, "क्यों?"
है बाप नहीं मेरा -पर क्यों?
दिन-रात अंधेरा है घर क्यों?
इतनी है हमें ग़रीबी क्यों?
और साथ में मोटी बीबी क्यों?
बहुतेरा माँ समझाती थी,
हर तरह उसे फुसलाती थी,
पर बच्चा हठ्ठी बच्चा था,
और आन का अपनी सच्चा था।
यह आदत बनी रही ज्यों-त्यों,
हर बात पे पूछा करता, "क्यों?"
माँ ने कुछ काम सँभाला था,
रो-धोकर उसको पाला था।
फिर वह भी उसको छोड़ गई,
दुनिया से नाता तोड़ गई।
बच्चे को अब घर-बार नहीं,
माँ की ममता और प्यार नहीं।
बस रैन-बसेरा सड़कों पे,
और साँझ-सबेरा सड़कों पे।
वह हर दम पूछा करता, "क्यों?"
दुनिया में कोई मरता क्यों?
यूँ फंदे कसे ग़रीबी के,
घर पहुँचा मोटी बीबी के।
घर क्या था बड़ी हवेली थी,
पर बीबी यहाँ अकेली थी।
थोड़ी स्त्री होकर
रंजीत/ Ranjit
गो नौकर भी बहुतेरे थे,
घर इनके अलग अंधेरे थे।
बच्चे को बान पुरानी थी,
कुछ बचपन था, नादानी थी।
पूछा- यह बड़ी हवेली क्यों?
औ' बीबी यहाँ अकेली क्यों?
हाइपर-एसिडिटी में उपयोगी है धनुरासन
कुमार राधारमणस्वास्थ्य
नौकर-चाकर सब हँसते थे,
कुछ तीखे फ़िक़रे कसते थे।
भोले बच्चे! पगलाया क्यों?
हर बात पे करने आया, "क्यों?"
दिन-रात यहाँ हम मरते हैं,
सब काम हम ही तो करते हैं।
रूखा-सूखा जो पाते हैं,
वह खाते, शुकर मनाते हैं।
क़िस्मत में अपनी सैर नहीं,
छुट्टी माँगो तो ख़ैर नहीं।
हिंसा का खेल
Madan Mohan Saxenaकाब्य सरोबर
चलती है कहाँ फ़क़ीरों की?
है दुनिया यहाँ अमीरों की।
यह जग की रीत पुरानी है,
मत पूछो क्यों, नादानी है।
बच्चा था नौकर बीबी का,
फिर देखा मज़ा ग़रीबी का।
दिन भर आवाज़ें पड़ती थीं,
हो देर तो बीबी लड़ती थी।
बावर्ची गाली देता था,
कुछ बदले माली लेता था।
पर आदत बनी रही ज्यों-त्यों,
हर बात पे पूछा करता, "क्यों?"
नित पकते हलुवे-मांदे क्यों?
हम रगड़ें जूठे भांडे क्यों?
बीबी है चुपड़ी खाती क्यों?
औ' सूखी हमें चपाती क्यों?
यह बात जो बीबी सुन पाई,
बच्चे की शामत ले आई।
क्यों हरदम पूछा करता, "क्यों?"
हर बात पे आगे धरता, "क्यों?"
यह माया है शुभ कर्मों की,
मेरे ही दान औ' धर्मों की।
सब पिछला लेना-देना है,
कहीं हलवा कहीं चबेना है।
माँ-बाप को तूने खाया क्यों?
भिखमंगा बनकर आया क्यों?
ज़िन्दगी जब भी मुस्कराएगी........कवि अशोक कश्यप
yashoda agrawalमेरी धरोहर
मुँह छोटा करता बात बड़ी,
सुनती हूँ मैं दिन-रात खड़ी।
इस "क्यों" में आग लगा दूँगी,
फिर पूछा, मार भगा दूँगी।
बच्चा यह सुन चकराया यों,
फिर उसके मुँह पर आया, "क्यों?"
माँ-बाप को मैंने खाया क्यों?
भिखमंगा मुझे बनाया क्यों?
फिर बोला! पाजी, हत्यारा!
कह बीबी ने थप्पड़ मारा।
बच्चा रोया, ललकारा- क्यों?
औ' तुमने हमको मारा क्यों?
जीवन बने तुम्हारा...!
डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' अंजुमन
दिल बात ने इतना तोड़ दिया,
बच्चे ने वह घर छोड़ दिया।
वह फिरा किया मारा-मारा
लावारिस, बेघर, बेचारा।
न खाने का, न पानी का,
यह बदला था नादानी का।
पर आदत बनी रही ज्यों-त्यों,
हर बात पे पूछा करता, "क्यों?"
इक ग्वाला दूध लिए जाता,
भर गागर मुँह तक छलकाता।
बच्चे का मन जो ललचाया,
भूखा था, पास चला आया।
यह दूध कहाँ ले जाते हो?
लो दाम निकालो, आओ ना।
पैसे तो मेरे पास नहीं।
तो दूध की रखो आस नहीं।
जो बच्चा पैसा लाएगा,
वह दूध-दही सब खाएगा।
यह सुन वह सटपटाया यों,
फिर उसके मुँह पर आया, "क्यों?"
दुनिया सब दूध उड़ाए क्यों?
भूखा ग़रीब मर जाए क्यों?
ग्वाला बोला- दीवाना है,
कुछ दुनिया को पहचाना है?
यह जग की रीत पुरानी है,
मत पूछो क्यों, नादानी है।
बच्चे ने मुँह की खाई तो,
पर भूख न मिटने पाई यों।
श्री नाथूराम शर्मा शंकर
मनोज कुमारराजभाषा हिंदी
गो थककर बच्चा चूर हुआ,
पर भूख से फिर मजबूर हुआ
थी पास दुकान मिठाई की,
लोगों ने भीड़ लगाई थी।
कोई रबड़ी बैठा खाता था।
आजादी ,आन्दोलन और हम
शालिनी कौशिक! कौशल !
क्या सुर्ख़-सुर्ख़ कचौरी थी,
कूंडे में दही फुलौरी थी।
थी भुजिया मेथी आलू की,
और चटनी साथ कचालू की।
बच्चा कुछ पास सरक आया,
न झिझका और न शर्माया।
भइया हलवाई सुनना तो,
पूरी-मिठाई हमें भी दो।
रविकर फैजाबादी - "लिंक-लिक्खाड़"
कुछ पैसा-धेला लाए हो?
यूँ हाथ पसारे आए हो?
पैसे तो अपने पास नहीं।
बिन पैसे मिलती घास नहीं।
हम देते हैं ख़ैरात नहीं,
यह सूरत खाने-पीने की!
अब रस्ता अपना नापो ना,
क़िस्मत को खड़े सरापो ना।
हलवाई ने धमकाया ज्यों,
फिर उसके मुँह पर आया, “क्यों?”
कहते हो मुझे कमीना* क्यों?
मेरा ही मुश्किल जीना क्यों?
स्वतंत्रता दिवस जिन्दाबाद
कुश्वंश
बच्चा हूँ, मैं बेजान नहीं,
बिन पैसे क्या इंसान नहीं?
हट, हट! क्यों शोर मचाया है,
क्या धरना देने आया है?
नहीं देते, तेरा इजारा है?
क्या माल किसी का मारा है?
अब चटपट चलता बन ज्यों-त्यों,
नहीं रस्ते नाप निकलता क्यों?
जो बच्चा पैसे लाएगा,
लड्डू-पेड़ा सब पाएगा।
यह जग की रीत पुरानी है,
मत पूछो क्यों, नादानी है।
बच्चा थककर बेहाल हुआ,
भूखा, बेचैन, निढाल हुआ।
आगे को क़दम बढ़ाता था,
तो सिर चकराया जाता था।
तरसा था दाने-दाने को,
कुछ बैठ गया सुस्ताने को।
तेरी बात और हैं ...
(Manish Kr. Khedawat " मनसा ")" अल्फ़ाज़ - ज़ो पिरोये मनसा ने "
न हिस था ठंडे-पाले का,
न होश उस गंदे नाले का।
थी सरदी खूब कड़ाके की
औ’ तपन पेट में फ़ाक़े की।
कुछ दूर को कुत्ता रोता था,
न जाने क्या-कुछ होता था।
दिखता हर तरफ़ अंधेरा था,
कमज़ोरी ने कुछ घेरा था।
आँखें उसकी पथराई थीं,
फिर मुँह पर उसके आया, “क्यों?”
आराम से कोई सोता क्यों?
कोई भूखा-नंगा रोता क्यों?
फिर जान पड़ी बेहोशी-सी,
एकदम गुमसुम ख़ामोशी-सी।
देखा कोई बूढ़ा आता है,
इक टाँग से कुछ लँगड़ाता है।
वह पास को आया बच्चे के,
सिर को सहलाया बच्चे के।
क्यों बच्चे सरदी खाता है,
यूँ बैठा ऐंठा जाता है?
बाबा मेरा घर-बार नहीं,
करने वाला कोई प्यार नहीं।
मैं ये ही पूछा करता- क्यों?
मुझ जैसा भूखा मरता क्यों?
कहते हैं रीत पुरानी है,
पर ऐसी रीत पुरानी क्यों?
मैं पूछूँ- यह नादानी क्यों?
यह तो कुछ नहीं बताते हैं,
उलटे मुझको धमकाते हैं।
बुड्ढे ने उसको पुचकारा,
यूँ अपना हाल कहा सारा।
हाँ, है तो रीत पुरानी यह,
पर अपनी ही नादानी यह।
गर सब ही पूछा करते यों,
जैसे तुम, पूछ रहे हो, “क्यों?”
तो अब तक रंग बदल जाता,
दुनिया का ढंग बदल जाता।
है समझ नहीं इन बातों की,
है करामात किन हाथों की।
हम ही तो अन्न उगाते हैं।
सब काम हम ही तो करते हैं,
फिर उलटे भूखों मरते हैं।
बूढ़ा तो हूँ, बेजान नहीं,
क्या मन में कुछ अरमान नहीं?
मैंने भी कुनबा पाला था,
बरसों तक काम सँभाला था।
जब तक था ज़ोर जवानी का,
मुँह देखा रोटी-पानी का।
यह टाँग जो अपनी टूट गई,
रोटी भी हम से रूठ गई।
कुछ काम नहीं कर पाता हूँ,
यूँ दर-दर ठोकर खाता हूँ।
जोड़ों में होता दर्द बड़ा,
गिर जाता हूँ मैं खड़ा-खड़ा।
न बीबी है, न बच्चा है,
इक सूना-सा घर कच्चा है।
आँच – 116 – चौंको मत
हरीश प्रकाश गुप्तमनोज -
मैं भी सोचा करता हूँ यों,
आहे ग़रीब है भरता क्यों?
कहानी यहाँ अधूरी है,
इसकी हमको मजबूरी है।
कुछ लोग यह अब भी कहते हैं,
जो दूर कहीं पर रहते हैं,
उनको था दिया सुनाई यों,
इक बच्चा पूछ रहा था, “क्यों?”
जयहिंद!
S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') at एहसासात... अनकहे लफ्ज़.
वह सड़क किनारे बैठा था,
नीला, सरदी से ऐंठा था।
पर दोनों होंठ खुले थे यों
जैसे वह पूछ रहा था, “क्यों?”"दर्द का, मरहम लगा लिया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आज एक पुराना गीत प्रस्तुत है
जीने का ढंग हमने, ज़माने में पा लिया।
सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।
दुनिया में जुल्म-जोर के, देखें हैं रास्ते,
सदियाँ लगेंगी उनको, भुलाने के वास्ते,
जख्मों में हमने दर्द का, मरहम लगा लिया।
सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।
|
भाई साहब होली सी होली ,आपने कही हमने सुनी ,हमने कही आपने सुनी ,चर्चा माने गुफ़्त -गु चलती रहे ,गिले शिकवे मिटें ,अपने फिर एक दूसरे से मिलें ...कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?
बहुत सुन्दर ढंग से कविता के साथ जोड़ी कई लिंक्स |तरीका मजेदार लगा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
ReplyDeleteआशा
आज की चर्चा का शीर्षक बहुत साथक है!
ReplyDeleteआपकी मुहिम रंग ला रही है रविकर जी!
हमारे सुधिपाठक चर्चा मंच पर उन्मुकत भाव से टिपियाते हैं।
आभार!
आज की चर्चा का शीर्षक बहुत साथक है!
ReplyDeleteआपकी मुहिम रंग ला रही है रविकर जी!
हमारे सुधिपाठक चर्चा मंच पर अनुरक्त होकर उन्मुक्त भाव से टिपियाते हैं।
आभार!
बृहस्पतिवार, 16 अगस्त 2012
ReplyDeleteहाइपर-एसिडिटी में उपयोगी है धनुरासन/अम्ल शूल पर बढ़िया पोस्ट है भाई साहब ./
हाइपर-एसिडिटी में उपयोगी है धनुरासन
कुमार राधारमण
स्वास्थ्य/पर एक बहुत उपयोगी पोस्ट ,अम्ल शूल कारण और निदान पर अच्छी रौशनी डाली गई है .तनाव और हताशा ,आपधापी आज हर मुश्किल की जड़ है .
ReplyDeleteआया गमों का दौर तो, दिल तंग हो गये,
मित्रों में मित्रता के भाव, भंग हो गये,
काँटों को फूल मान, चमन में सजा लिया।
सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं एक शैर इन पंक्तियों के नाम ज़नाब शास्त्री जी की नजर -
रफीकों से रकीब अच्छे ,जो जलके नाम लेतें हैं ,
गुलों से खार बेहतर हैं ,जो दामन थाम लेतें हैं .
"दर्द का, मरहम लगा लिया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भौतिक द्वंद्व क्या होता है यह आपने ठीक से समझा दिया है .कवियित्री अमृता तन्मय भाव्बोश और शब सामर्थ्य बड़ा व्यापक है ,नए शब्द लातिन हैं आप .आप की कृति की "चर्चा" समीक्षा बड़ी सटीक रही .डॉ राम विलास शर्मा जी ने हिंदी में इक प्रत्यय लगाकर शब्द टकसाल गढ़ी थी जैसे इतिहास से इतिहासिक ,समाज से समाजिक ,विज्ञानी ,शब्द का इस्तेमाल भी आपने ही सबसे पहले किया था .साइंटिफिक के लिए वैज्ञानिक (विज्ञानिक भी हो सकता है इस तरह ),भाषा को सीमा बद्ध क्यों कीजिएगा विकसित होने दो बढ़ने दो अंग्रेजी की तरह जिसके आज अनेक संस्करण चल पड़े हैं ,ब्रितानी अंग्रेजी अलग है अमरीकी अलग .हिन्दुस्तानी हिंगलिश अलग है .
ReplyDeleteआँच – 116 – चौंको मत
हरीश प्रकाश गुप्त
मनोज -
भौतिक द्वंद्व क्या होता है यह आपने ठीक से समझा दिया है .कवियित्री अमृता तन्मय भाव बोध और शब सामर्थ्य बड़ा व्यापक है ,नए शब्द लातीं हैं आप .आप की कृति की "चर्चा" समीक्षा बड़ी सटीक रही .डॉ राम विलास शर्मा जी ने हिंदी में इक प्रत्यय लगाकर शब्द टकसाल गढ़ी थी जैसे इतिहास से इतिहासिक ,समाज से समाजिक ,विज्ञानी ,शब्द का इस्तेमाल भी आपने ही सबसे पहले किया था .साइंटिफिक के लिए वैज्ञानिक (विज्ञानिक भी हो सकता है इस तरह ),भाषा को सीमा बद्ध क्यों कीजिएगा विकसित होने दो बढ़ने दो अंग्रेजी की तरह जिसके आज अनेक संस्करण चल पड़े हैं ,ब्रितानी अंग्रेजी अलग है अमरीकी अलग .हिन्दुस्तानी हिंगलिश अलग है .
ReplyDeleteभौतिक द्वंद्व क्या होता है यह आपने ठीक से समझा दिया है .कवियित्री अमृता तन्मय भाव बोध और शब्द सामर्थ्य बड़ा व्यापक है ,नए शब्द लातीं हैं आप .आप की कृति की "चर्चा" समीक्षा बड़ी सटीक रही .डॉ राम विलास शर्मा जी ने हिंदी में इक प्रत्यय लगाकर शब्द टकसाल गढ़ी थी जैसे इतिहास से इतिहासिक ,समाज से समाजिक ,विज्ञानी ,शब्द का इस्तेमाल भी आपने ही सबसे पहले किया था .साइंटिफिक के लिए वैज्ञानिक (विज्ञानिक भी हो सकता है इस तरह ),भाषा को सीमा बद्ध क्यों कीजिएगा विकसित होने दो बढ़ने दो अंग्रेजी की तरह जिसके आज अनेक संस्करण चल पड़े हैं ,ब्रितानी अंग्रेजी अलग है अमरीकी अलग .हिन्दुस्तानी हिंगलिश अलग है .
ReplyDelete"भ्रम एक शीशे का घर "
ReplyDeleteसुशील
उल्लूक टाईम्स
बढ़िया व्यंग्य विनोद और छीज़न आत्मा का इस रचना में है .
ReplyDeleteधर्म निरपेक्षता राज्य की धर्म से पूर्ण अलहेदगी है .चर्च की राज्य से दूरी है .हमारे यहाँ तो राज पाट ही चर्च के एजेंट चला रहें हैं (लिंग पे ध्यान न दें ,इशारा समझें ),जहां चुनाव अभियान मंदिर से शुरु होतें हैं वहां कैसी और काहे की धर्म निरपेक्षता .धर्म निरपेक्षता में हज सब्सिडी का क्या मतलब होता है .शाहबानो का ?एक राज्य एक क़ानून एक संविधान ही नहीं है आप धर्म निरपेक्षता की क्या बात करतें हैं .बिना बात का क्षेपक जड़ दिया संविधान की मूल प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष शब्द था ही नहीं लेकिन इंदिरा जी कर गईं भारतीय धर्म -निरपेक्ष गण -राज्य .आज कितना भारतीय है कितना इतालवी सब जानतें हैं .चर्च की हुकूमत चल रही है हिन्दुस्तान में ऊपर से धर्म निरपेक्ष होने का तुर्रा .
मत पूछो क्यों, नादानी है।
नितीश बनाम मोदी और धर्मनिरपेक्षता !!
पूरण खण्डेलवाल
ReplyDeleteतन व इन्द्रिय क्षुब्ध है करता,
मन स्वभाव से ही चंचल है.
निग्रह इस बलवान चित्त का,
वायु बांधने सम मुश्किल है.
सुन्दर मनोहर भावानुवाद सहज सरल सुबोध .
रविकर के लिए-
ReplyDelete--
मर्म-धर्म, गुण-ज्ञान का, सुन्दर किया बखान।
दूषण गर हट जाय तो, होगा विमल-वितान।।
क्यों-
ReplyDelete--
माँ-बेटे की बात का, मर्म दिया बतलाय।
रूखा-सूखा भूख में, अमृत सा हो जाय।।
बान हारे की बान न जाए ,कुत्ता मूते टांग उठाय ...भारत है ही एक नरम लक्ष्य /सोफ्ट स्टेट अमरीका में कोई दूसरा ९/११ करके दिखाए .क्या यही धर्म -निरपेक्षता है पाकिस्तान से पिटते रहो सहन शील बने रहो .
ReplyDeleteमिठाई के बाद गोली
DR ASHUTOSH SHUKLA
नजरिया-
ReplyDeleteजमें हुए हैं देश में, अब काले अंग्रेज।
समय आ गया अब इन्हें, कारा में दो भेज।।
तेरी बात और हैं ...
ReplyDelete(Manish Kr. Khedawat " मनसा
मैं नजर से पी रहा था कि ये दिल ने बद्दुआ दी ,तेरा हाथ ज़िन्दगी भर कभी जाम तक न पहुंचे .
भग्वतगीता-
ReplyDeleteदेवनागरी में किया, गीता का अनुवाद।
युगों-युगों तक अमर हो, हरे सभी अवसाद।।
हिन्दुतान में तो मेरे दोस्त यही हो रहा है कुछ दल अपने को धरम निरपेक्ष बतला रहें हैं एंटी -इंडिया -टी -वी उनके साथ है .
ReplyDeleteBeautiful Quotes in Hindi
पंछी
Hindi Thoughts
उपहार प्रकृति के-
ReplyDeleteजमाखोर हैं कोठी में और देशभक्त हैं सड़कों में।
संसद है गूँगा-बहरा और शोर उठा है सड़कों में।।
काव्यसरोवर
ReplyDeleteउग्रवाद की आग में, जलते हैं निर्दोष।
भारत की सरकार को, कब आयेगा होश।।
लिंक्स की प्रस्तुति का दिलचस्प फॉरमेट लेकर आये हैं भाई रविकर जी! कविता भी पढ़िए और क्लिक भी करते जाइये...वाह!....आनंद आ गया...
ReplyDeleteइतने सुन्दर गीत, चुराना बनता भैया ।
ReplyDeleteजियो मित्र संतोष, गजब तुम हुवे लुटैया ।।
वाह रविकर जी ,आशीषों तुम चोर को ,चोर बने लिख्खाड ....
केवल दो दो पैग, रोक है पूरी रविकर-
रविकर फैजाबादी - "लिंक-लिक्खाड़"
ज़िन्दग़ी जब मुस्करायेगी-
ReplyDeleteइन्तज़ार सब कर रहे, हो मुखरित मुस्कान।
उपवन में कब खिलेंगे, सुमनों के परिधान।।
दिल सोचता है मानता नहीं-
ReplyDeleteदिल पर काबू कीजए, कसकर थाम लगाम।
ये पंछी उन्मुक्त है, उड़ता तेज उड़ान।।
जीवन बने तुम्हारा-
ReplyDeleteजहाँ चाह हो राह तो, मिल जाती उस ओर।
जीवन जीने के लिए, आशा ही है डोर।।
धन्यवाद रवि जी....
ReplyDeleteचर्चा मंच पर प्रथमागमन...
ReplyDeleteमैं तो भूल गई.... कि ऑफिस भी जाना है
सुन्दर और रुचिपरक लिंक्स
साधुवाद
आज नये बाग-बागीचे मिले
ReplyDeleteआभारी हूँ
सदा सुहागन रहे ये चर्चा मंच
"दर्द का, मरहम लगा लिया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ReplyDeleteआज एक पुराना गीत प्रस्तुत है
मांसाहारी निगलते, तला कलेजा रान ।
कुक्कुर जैसा नोचते, तान तान हैरान ।
तान तान हैरान, दर्द का डाल मसाला ।
बना रहे स्वादिष्ट, आप क्यूँ गैर निवाला ?
रहिये फक्कड़ मस्त, रहे दुनिया ठेंगे पर ।
हो जाएँ अभ्यस्त, मार्ग दिखलायें गुरुवर ।।
ReplyDelete"भ्रम एक शीशे का घर "
सुशील
उल्लूक टाईम्स
भरी शरारत है विकट, नटखट बंड सरीर ।
शब्द बुद्धि से हीन गर, मुर्दा समझ शरीर।
मुर्दा समझ शरीर, समझदारी बस इतनी ।
ज्यों माथे की मौत, देर में दिल से जितनी ।
सत्यम शिवम् विचार, नाम से न आते हैं ।
सुन्दरता क्या ख़ाक, व्यर्थ पगला जाते हैं ।।
सुंदर लिंक्स समेटे अपने तरह की अलग ही चर्चा....
ReplyDeleteसादर आभार।
इतनी सुन्दर कविता पाई
ReplyDeleteलिंकों की सुध भी बिसरायी
जब अंतिम लाईन पे मै आई
मन में फिर आया ऐसा क्यों ?
जब इतनी सुन्दर चर्चा होती
तब टिप्पणियां क्यों कम होती ?
यह आदत तो हमको भी है
हर बात पे पूछा करते क्यों ?
अब जवाब पाया है यूँ
कोई जवाब देता नहीं क्यूँ ?
अब हम भी चुप हो जाये यूँ
नहीं तो सब पूंछेंगे हूँ...!!
आप रोज-२ नहीं आती क्यूँ ?
क्यों - कमला बक़ाया (कविता)
Deleteचंदन कुमार मिश्र
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
आज के लिंक इसी कविता के साथ हैं-
नितीश बनाम मोदी और धर्मनिरपेक्षता !!
ReplyDeleteपूरण खण्डेलवाल
आज बनी निरपेक्षता, सत्ता के सापेक्ष |
आड़ धर्म का ले चतुर, लगा रहे आक्षेप |
लगा रहे आक्षेप, करे निज उल्लू सीधा |
चल नीतीश के तीर, अगर बीधा तो बीधा |
एक तीर से आज, शिकारी करे अनोखा |
देखे दिल्ली राज, बना ऊपर से चोखा ||
ReplyDeleteमिठाई के बाद गोली
Dr Ashutosh Shukla
इफ्तारी कर पार्टी, बदहजमी हो जाए |
इसीलिए वह बाद में, गोली भी भिजवाये |
गोली भी भिजवाये, बड़ा उपकारी पाकी |
गोली गाली गाय, गजब है उसकी माँ की |
अगर इधर हथियार, उठे तो ऐसी तैसी |
पर दिल्ली भरतार, हाय पानी में भैंसी ||
वाह रविकर जी आपकी मेहनत और प्रेम भाव की मैं तो कायल हो गई आपने अपनी मेहनत से चर्चामंच को और भी खूबसूरत बना दिया आज का तो बहुत ख़ास है कविताओं से इन्साफ करते चित्र वाह क्या कहने मेरी रचना को भी शामिल किया हार्दिक आभार और इतनी खूबसूरत चर्चा के लिए बहुत- बहुत बधाई
ReplyDeleteक्यों - कमला बक़ाया (कविता)
Deleteचंदन कुमार मिश्र
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
आज के लिंक इसी कविता के साथ हैं-
दिलचस्प!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कवितामयी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteनए अंदाज में लिंक्स संयोजन बहुत अच्छा लगा ..
सार्थक चर्चा प्रस्तुति के लिए आभार
क्यों - कमला बक़ाया (कविता)
ReplyDeleteचंदन कुमार मिश्र
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
नहीं बकाया जा रहा, कमला जी आभार |
यही हकीकत है सखी, है ग़ुरबत की मार |
है ग़ुरबत की मार, गरीबी हम को खाई |
चौड़ी खाई होय, विकट सत्ता अधमाई |
पैदा होते रोय, रोय फिर सारा जीवन |
मरता खपता सोय, आज भी भूखा जन जन ||
उपहार प्रकृति के
ReplyDeleteAsha Saxena
Akanksha
हहर हहर हहराय तलैया, नदी काट तटबंध |
बड़ी बाढ़ की आफत भैया, जलधारा हो अंध |
जलधारा हो अंध, बहाए सकल सम्पदा |
फैली फिर दुर्गन्ध, बड़ी भरी थी विपदा |
पीकर सागर शांत, भूमि का गरल समेटा |
रही धरा हरियाय, नया जीवन फिर भेंटा ||
पहले बिजली माता हुई खफा
ReplyDeleteइंटरनेट पापा ने कहा भाग जा
बड़ी मुश्किल से दोनो को मनाना
पर चर्चामंच पर जब आया
तो ऎसा लगा आज कि
भटक कर कहीं और तो नहीं चला आया
रविकर तूने तो वाकई में आज
चर्चामंच को दूल्हा सा है बनाया
इसीलिये मैं पहचान नहीं पाया !!
ReplyDeleteहाइपर-एसिडिटी में उपयोगी है धनुरासन
कुमार राधारमण
स्वास्थ्य
आसन योगा से हटे, अत्याचारी लोग |
जिनके जीवन हैं लटे, नहीं करेंगे योग |
नहीं करेंगे योग, बढ़ेगी चुस्ती फुरती |
सद-बुद्धि सहयोग, उठेगी खिल यह धरती |
रहते वे तो खुश, पडोसी क्यूँ खुश होवे ?
इसीलिए बिन योग, जिंदगी बोझा ढोवे ||
kamal ka sanyojan. Meree kavita ko shamil karne ke liye shukriya Ravikar jee,
ReplyDeleteदान-पर्व है ईद-उल-फितर Eid 2012
ReplyDeleteDR. ANWER JAMAL
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महिमा गायें पंथ सब, सभी सिखाते दान |
बांटो अपना खास कुछ, करो जगत उत्थान |
करो जगत उत्थान, फर्ज है समझदार का |
मानवता का कर्ज, उतारो हर प्रकार का |
जो निर्बल मोहताज, करे कुछ गहमी गहमा |
होय मुबारक ईद, दान की हरदम महिमा ||
"दर्द का, मरहम लगा लिया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ReplyDeleteवाह वाह
जिगर इनका गजब का निकला
दर्द का बसा एक शहर निकला !
ReplyDeleteजयहिंद!
S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') at एहसासात... अनकहे लफ्ज़.
खूबसूरत पंक्तियाँ !
ReplyDeleteआँच – 116 – चौंको मत
हरीश प्रकाश गुप्त
मनोज -
अरूण चन्द्र राय जी की टिप्पणी से पूर्णतह सहमत हूँ पर देखिये ये भी लिखना जरूरी होता है पता नहीं कब कौन क्या कह दे?
प्रस्तुत कविता उपर्युक्त विचार मेरे निजी विचार हैं और रचनाकार का या किसी अन्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
दान-पर्व है ईद-उल-फितर Eid 2012
ReplyDeleteDR. ANWER JAMAL
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ऋगवेद से तुलना कर
समानता बताई है
बहुत सुंदर अंदाज है
ये बात हमें बहुत भाई है
काश सब पर्व अगर
आदमी के पर्व कहलाये जाते
स्वर्ग और जन्नत भी एक हो जाते !!!
नितीश बनाम मोदी और धर्मनिरपेक्षता !!
ReplyDeleteपूरण खण्डेलवाल
वाह !
मीडिया तो सबसे ज्यादा धर्म निरपेक्ष है !
ReplyDeleteमिठाई के बाद गोली
Dr Ashutosh Shukla
पाकिस्तान बाहर से कर रहा है
भारत के अंदर के पाकिस्तान का
कोई कुछ नहीं कर रहा है !!
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ......!!!
ReplyDeletesushma 'आहुति'
'आहुति'
लिखना चाहती हूँ में ही
जब इतना कुछ
आपने लिख दिया
जब लिखने लगेंगी तो
लोग कहेंगे देखो
इसने कितना लिख दिया ।
तेरी बात और हैं ...
ReplyDelete(Manish Kr. Khedawat " मनसा ")
" अल्फ़ाज़ - ज़ो पिरोये मनसा ने "
पीने पिलाना बिल्कुल ठीक नहीं
बोतल से हो तब भी ठीक है
दूसरे दिन होश तो आ जाता है
आँखों से पी लिया करता है जो
जिंदगी भर का नशेड़ी हो जाता है
उसकी आँखों को पीलिया हो जाता है !
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!
ReplyDelete"रुनझुन" at रुनझुन
आज बहुत दिनो के बाद आई रुनझुन
जय हिंद का बहुत सुंदर सा झुनझुना
साथ अपने ले के आई है रुनझुन !
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ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस जिन्दाबाद
ReplyDeleteकुश्वंश
अनुभूतियों का आकाश
बहुत सुंदर !!
रोज प्रभात फेरी बताइये
हम कैसे लगायेंगे
इतने सारे झंडे
माना मिल भी जायेंगे
अब साल भर स्वतंत्र
हम कैसे रह पायेंगे?
...क्योंकि हम आज़ाद हैं
ReplyDeleteकौशलेन्द्र
बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....
बहुत बार मन होता है
वो ही लिख दूँ
जो दिख रहा है
पर लिख नहीं पाता हूँ
शरमा जाता हूँ
फिर उसी चीज से मिलता
जुलता शब्द ढूँढ के लाता हूँ
उसकी अगरबत्ती बनाता हूँ
आप तो गजब कर जाते हैं
वैसा का वैसा दिखा जाते हैं
जय हो !
ReplyDeleteहोय बुराई पस्त, ढकी फूलों से झाड़ी
केवल दो दो पैग, रोक है पूरी रविकर-
रविकर फैजाबादी - "लिंक-लिक्खाड़"
दो पैग पीना भी
कोई पीना होता है
बोतल में बच जाये
शराब अगर थोड़ी भी
उसे देख देख कर जीना
भी कोई जीना होता है ?
आकर्षक चर्चा
ReplyDeleteमजा आ गया
रोचक अन्दाज़ चर्चा का
ReplyDeleteआजादी ,आन्दोलन और हम
ReplyDeleteशालिनी कौशिक
! कौशल !
अब झंडा कैसे फहराये कोई
जब आदमी ही इस देश का
बंदर हो जाये कोई
क्यों होता है इस देश में
कुछ कुछ अनहोनी सा
जो करता है वो मैं ही तो हूँ
इस बात को कैसे बताये कोई ?
श्री नाथूराम शर्मा शंकर
ReplyDeleteमनोज कुमार
राजभाषा हिंदी
कबीर खाते क्या होंगे?
चर्चा का नया अंदाज़ बहुत रोचक और मनभावन लगा...लिंक्स को भूल कर कविताओं में खो गए... आभार
ReplyDeleteउम्र भर का रोग नहीं हैं एलर्जीज़ .
ReplyDeleteveerubhai
कबीरा खडा़ बाज़ार में
अपने वीरू भाई भी
क्या किसी कबीर से कम हैं
सुंदर भाषा में बिखेर देते हैं
वो शिक्षा जिसकी वाकई में
जानकारी होना जरूरी है !
साधुवाद !
तुझपे दिल कुर्बान!!
ReplyDeleteचला बिहारी ब्लॉगर बनने
बेहतरीन !
इंसानियत है और रहेगी
उसे सुलाने की कोशिश
भी साथ साथ जारी रहेगी
देश में सुला भी लेंगे
विदेश चली जायेगी
पर जाग रही होगी
यहाँ नहीं भी दिखेगी
कहीं ना कहीं दिख जायेगी!
शिष्टमंडल के सदस्य के तौर पर इंगलैण्ड रवाना
ReplyDeleteमनोज कुमार
विचार
भूलते भूलते गाँधी को
आप याद दिलाते हैं
गाँधी फिर से याद
आ जाते हैं !
आभार !
जीवन बने तुम्हारा...!
ReplyDeleteडा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' अंजुमन
बहुत सुंदर हवा है
हवा ने कुछ कहा है
लग रहा है जैसे
सब कुछ सच में
हवा ने सुना है !
दिल सोचता है कि मानता नहीं (कुछ क्षणिकाएं)
ReplyDeleteRajesh Kumari
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
बहुत सुंदर !
पर सूरज को चढंने दो
रक्तचाप मत बढा़ओ
पडो़सी की खिड़की कौ
पत्थर मार के खटखटाओ!
ज़िन्दगी जब भी मुस्कराएगी........कवि अशोक कश्यप
ReplyDeleteyashoda agrawal
मेरी धरोहर
शेर, चीते, सियार हँसते हैं
गाय कोई इधर से आएगी
बहुत खूब है
शेर है चीता है
साथ में
सियार भी जीता है !
नए अंदाज़ की मनमोहक पोस्ट के लिए आपका आभार .
ReplyDeleteरविकर जी के लिए,,,
ReplyDeleteआज देखने को मिला, अलग नया कुछ भाई
चर्चामंच को खूब सजाया, रविकर बहुत बधाई,,,,
ReplyDeleteरूह तक उतर जाती हूँ ... !!!
सदा
SADA -
हौसला गजब का है
रुह तक उतरने का
पता नहीं चलता इसका
अच्छा है क्योंकी
डरता होगा तब भी कहेगा
मैं भी नहीं डरने का !
शास्त्री जी की पोस्ट पर,,,,
ReplyDeleteजुल्म देख कर दुनिया में, दिल में उठता दर्द
जख्म जमाना क्या जाने,जालिम दुनिया बेदर्द
ऐसी प्रस्तुति पहली बार देख रहा हूं। अच्छा लगा।
ReplyDeleteवास्तव में नये ढंग से प्रस्तुत किया आपने! बहुत बढिया। धन्यवाद!
ReplyDelete
ReplyDeleteश्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२७वीं-कड़ी)
Kailash Sharma
Kashish - My Poetry
अदभुद काम कर रहे हैं आप !
ठक ठक पाठक पोस्ट के, छीने चर्चा मंच -
ReplyDeleteब्लाग ब्लागर गर गर गर घड़ घड़ धूम धड़ाम
रविकर खेल खेल में खेलना हुआ अब हराम
टिप टिप टिप्पणी टिपियाना भी है कोई काम
संगति में रहकर टिप्पणीकार के हुआ जुखाम
भगवान बचाये हे राम हे राम हे राम !!
क्यों - कमला बक़ाया (कविता)
ReplyDeleteचंदन कुमार मिश्र
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
वाकई अदभुद है !
ReplyDeleteBeautiful Quotes in Hindi
पंछी
Hindi Thoughts
बहुत सुंदर पर कमेंट कहाँ पर करें ब्लाग में समझ में नहीं आ रहा है ।
वो ब्लाग वाला आके डाँठेगा तो नहीं ना ?
घबराइए नहीं|
Deleteअभी धरा पर सज्जन भी हैं -
कोई लिंक छूट गया हो तो क्षमा करेंगे !
ReplyDeleteउपहार प्रकृति के
Asha Saxena
Akanksha
बहुत सुंदर रचना !
वाह! चर्चा का अंदाज़ निराला,दिलचस्प...मज़ा ही आ गया।
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत लिनक्स दिए है आपने....मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
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