मित्रों!
आज अवकाश का दिन रविवार है।
प्रस्तुत है ब्लॉगिस्तान की
पिछले 24 घण्टों की प्रमुख हलचल!
"मिस्टर हेल्पर " (विनोद मौर्य)इंसान और हैवान की ज़िन्दगी मेंतुलनात्मक रूप से इंसानों की जिंन्दगीअधिक जटिल और विसंगतिपूर्ण क्यों? :एक फ़ेसबुकीय परिचर्चा |
चुलबुल बुलबुल ढुलमुला, घुलमिल चीं चीं चोंच |
बाज बाज आवे नहीं, हलकट निश्चर पोच…
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साल 1984 * कुछ तारीखें, कुछ साल अंकित हो जाते हैं आपकी स्मृति में, ठीक उसी तरह जैसे महिलाएं याद रखा करती थीं बच्चों के जन्म की तारीख, सालों के माध्यम से, बडकी जन्मी थी* * जिस साल पाकिस्तान से हुई थी लड़ाई,… | रविकर ब्लॉगर श्रेष्ठ, सुने न समालोचना सर झुकता है हृदय से, श्रद्धा सह विश्वास | चारित्रिक उत्कृष्टता, होवें लक्षण ख़ास | होवें लक्षण ख़ास… |
"दोहे-बदलेंगे तकदीर" अनशन होता सफल वो, जिसका हो आधार। लोकतन्त्र के सामने, झुक जाती सरकार।.. |
एक बार विदाई दे माँ ... खुदीराम बोस (03/12/1889 - 11/08/1908) |
इस 15 अगस्त के माने ही क्या है ? "ये कहाँ आ गए हम ? 15 अगस्त' 1947 से 15 अगस्त' 2012 तक की यात्रा पर गौर करें… | आजादी की ६६ वीं वर्षगाँठ ! आ रही है आजादी की ६६ वीं वर्षगाँठ, जिसे हम बहुत जोर शोर से मनाते हें और कुछ लोग इस लिए ख़ुशी मनाते हें कि एक दिन ऑफिस से छुट्टी मिलेगी परिवार के साथ मौज मस्ती में कटेगा… |
मैया मैं बड़ा हो गया हूँ. इसलिए बता रहा हूँ क्यूंकि तू तो बस हर समय फिक्रमंद ही रहेगी.... |
तन्हाँ मेरी सुबहो शाम यादों का बस एक सिलसिला हर वक्त मेरे साथ है , इस दिल को क्या समझाऊं मै ये दिल बड़ा नादान है… |
आप यूँ ही हँसों और हँसाते रहो !! आप हँसते हैं तो, फूल खिल जाते हैं ! आप यूँ ही हँसों और हँसाते रहो !! आपकी ये हँसी है, मेरी जिन्दगी ! यूँ ही हँस कर, मेरी उम्र को बढ़ाते रहो… | त्रस्त है.....अभ्यस्त है यशवन्त माथुर जो मेरा मन कहे इन्हें शब्दों के बिखरे टुकड़े कहना सही रहेगा । अलग अलग समय पर अलग अलग मूड मे लिखे कुछ शब्दों को एक करने की कोशिश कर के यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ- जनता त्रस्त है, पार्षद मस्त है मेयर व्यस्त है, विधायक भ्रष्ट है, सांसद को कष्ट है, मौसम भी पस्त है |
जब मेल बेमेल होता इन्सान तब फेल होता. कोई नही कुछ भी करता, सब किस्मत का खेल होता. देवी आँख खुली रखती, फिर तो नेता जेल होता… | फ़ुरसत में … चिठियाना का साक्षात्कार (फ़ुरसत में **चिठियाना** (भाई राजेश उत्साही) के टिपियाना से एक नए चरित्र **चिचियाना** का सृजन हुआ |
श्याम की बंसी पुकारे किसका नाम --- देश विदेश में श्री कृष्ण जी का जन्मदिन जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है . श्री कृष्ण द्वापर में अवतरित हुए थे . कहते हैं , जिस दिन उन्होंने मानव देह का परित्याग किया , उसी दिन से कलियुग का प्रारंभ हुआ ... |
मेरी डायरी का एक पन्ना....30/9/2011 लिखा था किसी रोज..मगर ज़िक्र था कान्हा का, सो पढवाती हूँ आज.... कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाओं सहित... *आज बेटे के स्कूल में * *बैठी थी उसके इन्तज़ार में,* *एक बड़े से ,फूलों से लदे* *कदम्ब के पेड़ तले..*... |
लूटने की तमन्ना में खुद लुट जाते हो शाम होते पंछी भी लौट जाते, घरोंदों में भूल जाते, चुग्गा दाना विश्राम करते, रात भर तरोताजा उठते, सवेरे में तुम जागते हो रात भर, उठते अलसाए सवेरे में अधिक पाने की इच्छा में थके मांदे जुट जाते हो… | चाचाओं के चक्रव्यूह में अखिलेश और फिर चोरों के चक्रव्यूह में उत्तर प्रदेश यह अजब है कि उत्तर प्रदेश में एक बहुमत की सरकार के बावजूद इस का कोई एक खेवनहार नहीं है। अराजकता और अंधेरगर्दी की सारी हदें यहां जैसे बाढ़ में विलीन हो गई हैं… |
पर नहीं रह सकता भूखाचारों ओर कुदरत का फैला कैसा यह अंधेरा है मौत का तांडव है गिद्धों का डेरा है न पेड़ों की छांव है न कहीं बसेरा है… |
स्वदेशी आंदोलन के जनकःलोकमान्य बालगंगाधर तिलकलोकमान्य, अर्थात वह व्यक्ति जिसे लोग अपना नेता मानते हों। यह उपाधिबाल गंगाधर तिलक को भारत के स्वाधीनता प्रेमियों ने दी थी। लोकमान्य नेबंग-भंग आंदोलन के दौरान भारत के स्वाधीनता संग्राम को मुखर रूप प्रदान किया था। अंग्रेजों की विभाजन नीति ने सबसे पहले बंगाल को ही सांप्रदायिक आधार पर विभाजन करने की योजना बनाई। जिसे हम लोग बंग-भंग के नाम से जानते हैं। लार्ड कर्जन की इस नीति का विरोध करने वालों में लोकमान्य तिलक प्रमुख व्यक्ति थे। तिलक ने बंग-भंग आंदोलन के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजपरस्त नीति का विरोध किया और कांग्रेस को स्वराज्य प्राप्ति का मंच बनाया… |
रांची की शांति भंग करने की साजिश रांची शहर की शांति भंग करने की लगातार साजिश रची जा रही है और पुलिस प्रशासन साजिशकर्ताओं की नकेल कसने में आंशिक भूमिका ही निभा पा रही है.. | मेरी आँखों मे रहता है... मेरी आँखों मे रहता है, मगर गिरता नहीं... अजब बादल बरसता है, मगर घिरता नहीं... मेरे टूटे हुए घर में, बड़ी हलचल सी है... कोई इक दौर रहता है, कभी फिरता नहीं... |
न जाने कहीं से इक ख़बर आ गई… सपने आँखों में उनके सजे भी न थे, सजने के पहले सहर हो गयी, ख्वाब 'बनने के दुल्हन' जो सज ही रहे थे, सच होने के पहले ही ओ शहीद हो गये… | यादें... यादें बार-बार सामने आकर अपूर्ण स्वप्न का अहसास कराती हैं और कभी-कभी मीठी-सी टीस दे जाती है, कचोटती तो हर हाल में है चाहे सुख चाहे दुःख, शायद रुलाने के लिए यादें ज़ेहन में जीवित हो जाती हैं ... |
काजल कुमार के कार्टूनकार्टून :- ढीलू का चपरासी |
विराज के दुखों की गाथा है बिराज बहू
शरतचंद्र का उपन्यास बिराज बहू विराज के दुखों की गाथा है । पति के कोई काम न करने का दुःख उठाती है विराज । ननद को दिए गए दहेज़ और अकाल के कारण आई गरीबी का दुःख उठाती है विराज । सतीत्व में सावित्री से प्रतिस्पर्द्धा करने को उत्सुक विराज सतीत्व से लड़खड़ा जरूर जाती है लेकिन पतित होने से पूर्व ही वह खुद को संभाल लेती है और अंत में पति के पास रहते हुए वैसी ही मृत्यु को प्राप्त होती है जैसी कि विराज के अनुसार एक सती को मिलनी चाहिए ।
अन्त में पढ़िए! न दैन्यं न पलायनम्मेंप्रेम के निष्कर्ष प्रवीण पाण्डेय |
शास्त्री जी, मुद्दे की बात और उपयोगी और लिंक्स के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं............
महान गणितज्ञ रामानुजन!
चालू है सुपरबग और एंटिबायोटिक्स का खेल।
कई लिंक्स से सजा है ,आज का चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंबाबा जी भी चमक रहे ,जैसे हों मयंक |
अच्छी चर्चा
आशा
शास्त्री जी, आपने बडे श्रम से इतने उपयोगी लिंक्स हमें उपलब्ध कराए। आभार।
जवाब देंहटाएं............
कितनी बदल रही है हिन्दी !
एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएंचर्चामंच लाया है
आज तोहफे अनेक !
बहुत अच्छी चर्चा और बेहतरीन लिंक्स.
जवाब देंहटाएंविशेष आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए..
शुक्रिया शास्त्री जी
सादर
अनु
रविकर ब्लॉगर श्रेष्ठ,
जवाब देंहटाएंसुने न समालोचना
कहाँ कहाँ से नहीं उड़ाता है
कहाँ कहाँ की ला कर उड़ाता है
पतंग बिना धागे की ढूँड लाता है
एक अलग किस्म है इस आदमी की
ईशारों इशारों में बहुत कुछ कह जाता है
पतंग दिखती है उड़ती हुई आसमान में
धागे का क्या करता है पता नहीं लग पाता है !!!
"दोहे-बदलेंगे तकदीर"
जवाब देंहटाएंमुखिया की चलती नहीं, सबके भिन्न विचार।
ऐसा घर कैसे चले, जिसमें सब सरदार।४।
सटाक सटाक करते दोहे
सुंदर दोहे और सटीक दोहे !!
थोड़ी थोड़ी किया करो
जवाब देंहटाएंसटीक !
कहने की क्या जरूरत है
कर रहे हैं सब हर जगह
थोडी़ थोड़ी घर घर पर
एक ने कह क्या दिया
तमाशा सा हो गया यहाँ !
मेरी आँखों मे रहता है...
जवाब देंहटाएंसुनाऊं क्या बताओ महफ़िलों में मैं उसे...
शेर मेरा मुझे ही आजकल झिलता नहीं.
सुनाते रहो बहुत खूबसूरत है शेर
झेल हम लेंगे तुम खेलने चले जाना !
फ़ुरसत में …
जवाब देंहटाएंचिठियाना का
साक्षात्कार
बड़े चिट्ठाकार, मठाधीश टाइप के चिट्ठाकार अन्य लोगों से सुझाव लेने में रुचि नहीं दिखाते।
बहुत खूब !
सुप्रभात मित्रो!........अब लग रहा है की मेरा भी कही वजूद है!..........धन्यवाद, शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंमुंह देखे का प्यार, वासनामय अधनंगा
जवाब देंहटाएंसारे मलाईदार ब्लागों का रस है निचोड़ता
टिप्पणी भारी भारी करता है किसी और
के कहने के लिये कुछ नहीं है छोड़ता !
बहुत बढ़िया रविवारीय चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति हेतु आभार!
श्वेता जी का इन्सान और हैवान सचमुच एक विचारणीय तथ्य है!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंएक बार विदाई दे माँ ...
जवाब देंहटाएंखुदीराम बोस (03/12/1889 - 11/08/1908)
आपने याद दिलाया
तो हमें याद आया !
आभार !
"मिस्टर हेल्पर " (विनोद मौर्य)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है लिखते रहें !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद सुशील जी!!!!!!!!!!!!!....उस घटना के बाद स्कूल में लोग मुझे मिस्टर हेल्पर के नाम से ही बुलाते थे!........
हटाएंबेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
चोंच से नोंच कर दी एक खरोंच !
गजब !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति . आभार .
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम चर्चा बहुत अच्छे सूत्र मिले आभार
जवाब देंहटाएंआपकी रचना ''मैया'' ने मुझे भाव- विभोर कर दिया!............माँ- बाबा को मेरा प्रणाम!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंहाँ बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना है !
हटाएंअच्छे सूत्र.
जवाब देंहटाएंवाह रंगारंग चर्चा मज़ा आ गया, बेहतरीन लिंक्स
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएं''तन्हां मेरी सुबहो शाम '' नज्म अपनी चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद.हमेशां की तरह आज की चर्चा भी अच्छी है.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
आपका बहुत- बहुत धन्यवाद!........आपने मेरा हौंसला और बढ़ दिया है.....मै आपके उम्मीदों पर जरूर खरा उतरूंगा!
हटाएंबहुत सुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...........
जवाब देंहटाएंआभार...........
मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंसादर
एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
1. DISQUS 2012 और Blogger की जुगलबंदी
2. न मंज़िल हूँ न मंज़िल आशना हूँ
3. ज़िन्दगी धूल की तरह
जन्माष्टमी के मौके पर सबको शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक स्वागत है.
बहुत अच्छी चर्चा और बेहतरीन लिंक्स.
जवाब देंहटाएंरविवार के लिये पठनीय बढ़िया लिंक्स.
जवाब देंहटाएंदरवाजों के बाहर , कहीं जूठन फिक रही है
जवाब देंहटाएंकहीं कुलबुलाती आँतें,और आँखें सिसक रही हैं
बहुत खूब यशवंत जी , वाह !!!!!!!!!!!!!!!
चोंच नुकीली तीक्ष्ण हैं ,पंजे के नाखून
जवाब देंहटाएंजो भी आये सामने , कर दे खूनाखून
कर दे खूनाखून , बाज है बड़ा शिकारी
गौरैया खरगोश ,कभी बुलबुल की बारी
सबकी चोंच है मौन,व्यवस्था ढीली-ढीली
चोंच लड़ाये कौन,बाज की चोंच की नुकीली ||
बंग प्रांत में था गया, वापस आया आज |
जवाब देंहटाएंगाफिल जी से फिर हुई, बिजली फिर नाराज |
बिजली फिर नाराज, मुझे भेजें संदेशा |
चर्चा का क्रम टूट, हुआ उनको अंदेशा |
उतर ट्रेन से आय, लगाता चर्चा झटपट |
बदन थका सा जाय, करे न ऊँगली खटपट ||
जय राम जी की-
Sundar links ke saath sundar charchaa,ab samay aa gayaa hai ,charchaa manch par prastut rachnaaon ko pustak kaa roop de diyaa jaaye
जवाब देंहटाएंnice presentation.
जवाब देंहटाएंकृषि कार्य में लगा हूँ, दिन भर रहता व्यस्त
जवाब देंहटाएंरात्रि में जब समय मिला,बिजली करती त्रस्त,,,,,
बहुत बेहतरीन लिंक्स ! बहुत कुछ नहीं पढ़ा हुआ मिल गया !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत ही सुन्दर सूत्र सजाये हैं आज की चर्चा में..
जवाब देंहटाएंbehtarin raviwasariy charcha aur prastutikaran...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना ''यादें'' को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद. सुन्दर प्रस्तुतीकरण के लिए बधाई.
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