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सोमवार, अगस्त 13, 2012

मत लिखिए सुन्दर / बल्कि करिए चर्चा -970

लिखिए 
इस ज्वलंत मुद्दे पर -

बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को

 File:Bulbul 2.JPGFile:Brown-eared Bulbul 1.jpg

चुलबुल बुलबुल ढुलमुला, घुलमिल चीं चीं चोंच |
बाज बाज आवे नहीं, हलकट निश्चर पोच |

हलकट निश्चर पोच, सोच के कहता रविकर |
तन-मन मार खरोंच, नोच कर हालत बदतर |

कर जी का जंजाल, सुधारे कौन बाज को |
बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को ||
File:Accipiter gentilis -injured Goshawk.jpg 
File:Nubianvulture.jpeg

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग-

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |

जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |

जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |
चोंच नुकीली तीक्ष्ण हैं ,पंजे के नाखून
जो भी आये सामने , कर दे खूनाखून
कर दे खूनाखून , बाज है बड़ा शिकारी
गौरैया खरगोश ,कभी बुलबुल की बारी
सबकी चोंचे मौन,व्यवस्था ढीली-ढीली
चोंच लड़ाये कौन, बाज की चोंच नुकीली ||
 


 शालिनी कौशिक 


2

तम और गहराता

Asha Saxena 



  3

चोरी भी सीनाजोरी भी ....फरीद ज़कारिया नहीं हैं भारतीय!

 (Arvind Mishra) 

  4

चाँद , उमर के साथ दिखाये , प्राणप्रिये



  5

Untitled

कविता विकास
काव्य वाटिका
   मैं शबरी बन जाऊं

मेरे अंतर्मन का महाकाश 
बाँध लो मुझे अपने पाश 
झेल चुकी जग का उपहास 
जब तुम न होते आस - पास ।

6

संस्कारित शान्ति

कमल कुमार सिंह (नारद ) 


7

जन्माष्टमी पर सबको शुभकामनाएं

DR. ANWER JAMAL
Blog News  

8

उन्हें पढ़ना नहीं आता

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
Mushayera  

9

"दोहा गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


10

क्षणिकाएं (ब्लोगर मित्रों को समर्पित )

Rajesh Kumari  



  11

मध्यमवर्गीय

देवेन्द्र पाण्डेय
बेचैन आत्मा

12

इस वर्ष दो भाद्रपद क्यों ? --- तेरह महीने का वर्ष

mahendra verma 

13

कितनी बदल रही है हिन्‍दी !



14

रक्त दान ( दोहे )

दिलबाग विर्क
बेसुरम्‌  

15

जैसे चाहूँ चित्र बनाऊँ ... ( बाल कविता )



16

भारतीय काव्यशास्त्र – 121

हरीश प्रकाश गुप्त
मनोज  

  17

इसकी इज्जत बचाने का यही तरीका है

[image: hockey india, hocky, london olympics, olympics, Sports Cartoon] Cartoon by Kirtish

49 टिप्‍पणियां:

  1. रविकर भाई, बहुत ही उपयोगी लिंक आपने चर्चा के बहाने उपलब्‍ध कराए। आपकी सार्थक द़ृष्टि को सलाम करता हूं।

    ............
    कितनी बदल रही है हिन्‍दी !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर लिंक्स हैं रविकर जी |पन्दरह अगस्त के लिए अग्रिम शुभ कामनाएं सब को |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह...
    इस चहकती-महकती चर्चा के लिए आपका आभार रविकर जी!
    बहुत सुन्दर सतरंगी प्रस्तुति...! सुप्रभात.... आपका दिन मंगलमय हो!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 8
      उन्हें पढ़ना नहीं आता
      डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
      Mushayera

      समझती ही नहीं है अब नजर, नजरों की भाषा को
      हमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता

      सुंदर है
      पर हमें सच में ही नहीं आता
      आपको कौन है ये आकर बताता ?

      हटाएं
    2. 9
      "दोहा गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
      उच्चारण
      बेहतरीन है !

      हटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा रविकर जी...
    अच्छे लिंक्स.
    शुक्रिया
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर चर्चा रविकर जी , मेरी रचना "संस्कारित शान्ति" शामिल करने के लिए आभार ...

    सादर

    कमल कुमर सिंह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 6
      संस्कारित शान्ति
      कमल कुमार सिंह (नारद )
      नारद
      सुंदर !

      वाह रे वाह सुंदर संस्कार महान
      आप तो डूबे सनम ले डूबे जजमान !!

      हटाएं
  6. सोमवार का खर्चा
    आन पड़ा रविकर पर
    बना के ले आया लेकिन
    फिर भी बहुत सुंदर चर्चा !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ज्वलंत
      अलग-अलग सबके यहाँ, प्रेम-प्रीत के ढंग।
      फैले हैं संसार में, सभी तरह के रंग।।

      हटाएं
  7. 17 इसकी इज्जत बचाने का यही तरीका है

    एक तरीका और है इससे ज्यादा अच्छा
    नेता देश के खेलें हाकी पहन कर कच्छा !

    जवाब देंहटाएं
  8. 16
    भारतीय काव्यशास्त्र – 121
    हरीश प्रकाश गुप्त
    मनोज
    बहुत सुंदर है
    पर कठिन भी है
    डगर पनघट की !

    जवाब देंहटाएं
  9. 15
    जैसे चाहूँ चित्र बनाऊँ ... ( बाल कविता )
    Suman
    Main aur Meri Kavitayen

    सब कुछ बनाइये
    जरूर बनाइये
    बनाते चले जाइये
    जो जो बन जाये
    हमको भी दिखाइये !

    जवाब देंहटाएं
  10. आज चर्चा की बहुत सी पोस्ट पढ़ी
    तबियत हो गई पूरी तरह से हरी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 11
      मध्यमवर्गीय
      देवेन्द्र पाण्डेय
      बेचैन आत्मा
      बहुत सुंदर भाव हैं !

      हटाएं
  11. 14
    रक्त दान ( दोहे )
    दिलबाग विर्क
    बेसुरम्‌
    रक्तदान महादान !
    बहुत सुंदर !

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को
    बहुत सुंदर ! रविकर की चोंच
    चोंच से नोंच कर दी एक खरोंच !
    गजब !!

    जवाब देंहटाएं
  13. 10
    क्षणिकाएं (ब्लोगर मित्रों को समर्पित )
    Rajesh Kumari
    HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR

    मैं जाती हूँ तुम्हारे ब्लॉग पर
    तुम आते हो मेरे ब्लॉग पर
    कुछ तो भाता होगा
    हम मिले आभासी दुनिया में
    कोई तो नाता होगा

    वाह वाह बहुत सुंदर !

    नाता होता है तो जाता है
    नहीं होता है तो बगल से
    ब्लाग के निकल जाता है !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. क्षणिकाएँ पढ़कर हुआ, हमको ये आभास।
      प्रेंम-प्रीत के साथ में, हो मन में विश्वास।।

      हटाएं
  14. प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े
    शालिनी कौशिक



    प्रोन्नति-पैमाना बने, पिछला कौशल-कार्य |
    इसमें आरक्षण गलत, नहीं हमें स्वीकार्य ||

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लिंक-1
      केवल तुष्टीकरण को, करती है सरकार।
      कुर्सी के ही वास्ते, यहाँ उमड़ता प्यार।।

      हटाएं
  15. लिंक-2
    सुख-दुख को ही भोगता, जब तक रहती साँस।
    जीवन के ही साथ में, रहती आस-निराश।।

    जवाब देंहटाएं
  16. तम और गहराता
    Asha Saxena
    Akanksha



    इधर गहनतम तम दिखा, तमतमाय उत लोग |
    तमसो मा ज्योतिर इधर, करें लोग उद्योग |
    करें लोग उद्योग, उधर बस चांदी काटें |
    रिश्वत चोरी छूट, लूट कर हिस्सा बाटें |
    रविकर कुंठित बुद्धि, नहीं कोशिश कर जीते |
    बेढब सत्तासीन, लगाते इधर पलीते ||

    जवाब देंहटाएं
  17. लिंक-3
    मौलिकता तो जा चुकी, सन्तों के ही साथ।
    अब तो होती हैं यहाँ, घिसी-पिटी सी बात।।

    जवाब देंहटाएं
  18. चोरी भी सीनाजोरी भी ....फरीद ज़कारिया नहीं हैं भारतीय!
    (Arvind Mishra)
    क्वचिदन्यतोSपि..

    सीनाजोरी कर सके, वही असल है चोर |
    माफ़ी मांगे फंसे जो, कहते उसे छिछोर ||

    जवाब देंहटाएं
  19. चाँद , उमर के साथ दिखाये , प्राणप्रिये
    अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)



    हरदम आकर धूम मचाये मनमौजी |
    चमचे से ही हलुवा खाए मनमौजी |
    तिरछे चितवन की चोरी न पकड़ी जाये-
    चुपके से झट दायें बाएं मनमौजी |
    चंदा सारी रात ताकता निश्चर हरकत -
    चंदा मोटा हिस्सा पाए मनमौजी |
    फिजा गई सड़ गल कर छोड़ी यह दुनिया-
    चाँद आज भी मौज मनाये मनमौजी ||

    जवाब देंहटाएं
  20. लिंक-4
    शीतलता से दे रहा, मन को शान्ति अपार।
    इसी लिए तो कर रहे, चन्दा से सब प्यार।।

    जवाब देंहटाएं
  21. Untitled
    कविता विकास
    काव्य वाटिका



    मोहपाश में जकड़ी जकड़ी, कड़ी कड़ी हरदिन जोडूं |
    बिखरी बिखरी तितर-बितर सब, एक दिशा में कित मोडूं |
    रविकर मन की गहन व्यथा में, अक्श तुम्हारे क्यूँ छोडूं-
    यादें तेरी दिव्य अमानत, यादों की लय न तोडूं ||

    जवाब देंहटाएं
  22. संस्कारित शान्ति
    कमल कुमार सिंह (नारद )
    नारद

    मुहाजिरों की बसी बस्तियां, और सरायें बनवाना |
    मियांमार के मियां बुलाओ, कैम्प असम में लगवाना |
    आते जाते खाते जाते, संसाधन सीमित अपने-
    मनमोहन की दृष्टि मोहनी, फिर से अपनी राय बताना ||

    जवाब देंहटाएं
  23. वाह बहुत खूब .
    बढ़िया लिंक्स !
    आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत सुन्दर चर्चा रविकर जी एक से बढ़कर एक ब्लॉग सूत्र मेरी रचना को शामिल करने पर हार्दिक आभार

      हटाएं
  24. बढ़िया लिंक्स संजोये है लगे बड़े रूचिकर ,
    आपकी मेहनत को सलाम जय हो श्री श्री रविकर .
    WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION

    जवाब देंहटाएं
  25. वाह ... गज़ब के लिंक और मस्त चर्चा ...

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत सुन्दर चर्चा रविकर जी ..सभी लिंक्स एक से बढ़कर एक हैं...

    जवाब देंहटाएं
  27. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  28. लिंक-5
    शबरी बनना है नहीं, इतना भी आसान।
    रामचन्द्र के नाम से, शबरी की पहचान।।

    जवाब देंहटाएं
  29. पठनीय लिंक्स को बखूबी संजोया है आपने।
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  30. @ तरह तरह के प्रेम हैं, तरह तरह के राग
    कहीं मेघ मल्हार तो , जलते कहीं चिराग
    जलते कहीं चिराग , भाग के खेल निराले
    जीवन उसका धन्य,जो सच्चा प्रेम जगाले
    मधुरिम फिर श्रृंगार,मधुर हों गीत विरह के
    सच्चा ढूँढे प्रेम, प्रेम हैं तरह - तरह के ||

    जवाब देंहटाएं
  31. @ तम और गहराता

    अंतर्मन को सालता , गैरों - सा व्यवहार
    रंगहीन जीवन हुआ , लागे सब निस्सार
    लागे सब निस्सार,'अपेक्षा' मूल दुखों का
    कीजे नष्ट समूल, खिलेगा फूल सुखों का
    नहीं असंभव कठिन किंतु खुद में परिवर्तन
    मन को थोड़ा मार, करें सुखमय अंतर्मन ||

    जवाब देंहटाएं
  32. @ हमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता

    परखते हैं नगीनों को , नहीं हम जौहरी तो क्या
    ये नकली नग अंगूठी में, हमें जड़ना नहीं आता ||

    लिखा तो कुछ नहीं होगा,छुआ तो प्यार से होगा
    कहा किसने,छुअन उनकी, हमें पढ़ना नहीं आता ||

    जवाब देंहटाएं
  33. क्षणिकाएं (ब्लोगर मित्रों को समर्पित )
    Rajesh Kumari

    आभासी - संसार के , नाते रहें अटूट
    नेह-प्रेम बिखरा यहाँ , लूट सके तो लूट
    लूट सके तो लूट , प्रेम से झोली भरले
    खूब लुटाकर प्रेम,सफल जीवन को करले
    तन क्षणभंगुर किंतु नाम होता अविनाशी
    हो जायें साकार , सभी नाते आभासी ||

    जवाब देंहटाएं
  34. लिंक न - १४

    रक्त दान से बढ़कर,कोई बड़ा न दान
    जीवनदाता बनकर,बन जाता भगवान,,,,,

    जवाब देंहटाएं
  35. रक्त दान ( दोहे )
    दिलबाग विर्क
    बेसुरम्‌


    रक्त दान को मानिये ,सबसे उत्तम दान
    किसी जरुरतमंद की , बच जाती है जान
    बच जाती है जान, रक्त फिर से बन जाता
    रक्त दान जो करे , कहाये जीवन - दाता
    खतरा बिल्कुल नहीं ,रक्तदाता के प्रान को
    सबसे उत्तम दान , मानिये रक्त दान को ||

    जवाब देंहटाएं
  36. मोहपाश में जकड़ी जकड़ी, कड़ी कड़ी हरदिन जोडूं |
    बिखरी बिखरी तितर-बितर सब, एक दिशा में कित मोडूं |
    रविकर मन की गहन व्यथा में, अक्श तुम्हारे क्यूँ छोडूं-
    यादें तेरी दिव्य अमानत, यादों की लय न तोडूं ||
    बहुत सुन्दर वचन ...मेहनत रंग लाती ही है ...अच्छे लिंक्स ....
    शुभ कामनाएं
    भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं

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