मित्रों।
रविकर जी छुट्टियाँ मनाने के लिए अपने गाँव में गये हुए हैं। इसलिए मैं डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' शुक्रवार की चर्चा लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हूँ।
हम बेटियों का घर ही धूप में क्यूँ ...! »सहसा उसे नानी का कथन याद आ गया "तेरा ससुराल तो धूप में ही बाँध देंगे...!" कि ही होता है बेटियों का...रात के अन्धेरे में जब तीसरी बार पेट की खराबी ने विचलित किया तो शरीर की शक्ति चींटी के बराबर भी न रही। मेरी भावनाएं आशंका में स्थिर हो गईं...! लेकिन मान पाने का हक़ तो सब का बनता है...तुम मेरी हो तुम्हारा अधिकार है मुझ पर लेकिन अपनों को कैसे भूल जाऊँ जिनकी ममता है मुझ पर , उन सब से कैसे दूर जाऊँ....। अहसासों के सूने जंगल में ढूंढ रहा वे अहसास जो हो गये गुम जीवन में जाने किस मोड़ पर. हर क़दम पर चुभती हैं किरचें टूटे अहसासों की, सहेज कर जिनको उठा लेता, शायद कभी मिल जायें सभी टूटे टुकड़े और जुड़ जाये फिर से टूटे अहसासों का आईना.....! अभी-अभी जो चली हवा, एक सर्द सा एहसास हुआ,.. दिल को करार सा मिला, दर्द जाने कंहा गुम हुआ,.. गालों पे लुढ़क आई बूंदे, आंखो को जाने क्या हुआ,.. मेरे लब जरा सा हंस दिए, बेचैनियों को विदा किया,.। परन्तु हर ओर यही आलम है झरीं नीम की पत्तियाँ...‘मज़बूरी’ को भाँप कर, कई ‘वासना-व्याध’ | भूख मिटा कर पेट की, पूरी करते ‘साध’...।
कन्या जन्म का अधिकार...ध्यान से सुनो !! देश में लिंग अनुपात बिगड़ रहा हैं और व्यभिचार ज्यादा बढ़ रहा हैं ४-५ लडको पर हो रही हैं एक लड़की भविष्य में होगी विवाह के लिय कडकी तुम हो सूत्रधार हो सृष्टि की तुम ही प्रजनन का आधार भी तो अब सब तुम्हारे हाथो में है...! मगर जनता कह रही है कि मैं हूँ ना ............मैं हूँ ना...एक छटपटाती चीख रुँधता गला कुछ ना कर सकने की विडंबना मुझे रोज कचोटती है अंतस को झकझोरती है और सैलाब है कि बहता ही नहीं आखिर क्यों हुआ ऐसा ? प्रश्न मेरी व्याकुलता पर मेरी असहजता पर प्रश्नचिन्ह बन मुझे सलीब पर लटका देता है और मैं हूँ रोज सिसकियों के लावे को खौलाती हूँ और जीती हूँ क्योंकि .........तुम हो हाँ तुम .......! क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर.... कुछ फैसले अब हो ही जाएँ तो अच्छा होगा भारत के भविष्य हेतु...!
संघर्ष का दूजा नाम ही तो जवानी है....मुखौटों ने अपनी शक्लें पहचानी हैं इसीलिए तो आईने से आनाकानी है. परछाईं भी घटती बढती है पल पल खुद के दम पर नैया पार लगानी है....। हर जगह धोखा ही धोखा और फरेब...मर रही थी तुम्हारे लिये , लड़ रही थी अपनों से और तुम ! इंतज़ार कर रहे थे उसी नुक्कड़ वाली दूकान पर मेरे आने का...! तभी तो कहा जाता है कि आतंकवादी शहीद नहीं होता....राजनैतिक स्वार्थ के लिए आम जनता को भड़काना और ख़ून ख़राबे के लिए उनका इस्तेमाल करना राजनेताओं की पुरानी चाल है। नौजवानों में जोश ज़्यादा होता है और अनुभव कम। ऐसे में वे शातिर बूढ़े नेताओं के भड़काने के बाद दंगे से लेकर आतंकवादी घटनाएं तक अंजाम देते रहते हैं...। देस की युवा पीडी की बदलती सोच...आज से कुछ साल पहले जंहा किसी शराब की दूकान के बाहर कोई युवा खड़ा रहता था तो उस से हजारो सवाल पूछे जाते थे ! लेकिन आज शराब की दुकान में जाना और बिअर बार में जाना तो एक फेसन बन चूका है...! तभी तो कहा जाता है कि जिनके पंडित मोलवी घृणा पाठ पढ़ाएँ , दीन धरम को छोड़ के , वह मानवता अपनाएं ... क़ुदरत ही है आइना, प्रकृति ही है माप, तू भी उसका अंश है, तू भी उसकी नाप...! चारों ओर नजर आता है एक शून्य आदर्श के चेहरे पर अनर्थ की अनगिनत परतों का जमावड़ा मुखौटों पर मुखौटों की असंख्य और घिनौनी सतहें चेहरे पर नकली पाकीज़गी बात -बात पर गीता कुरान की कश्मे और मर्यादा का आवरण इतना झीना की सब कुछ पारदर्शी तो ज़िन्दगी को एक जलती चिता बनने में लगने वाला समय शून्य हो जाता है।
ऐसे में पावन गंगा कैसे पावन रह पायेगी...देखिए - गंगा प्रदूषण से सम्बन्धित आंकडे - १.गंगा में गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक प्रतिदिन १४४.२ मिलियन क्यूबिक मलजल प्रवाहित किया जाता है. २. गंगा में लगभग ३८४० नाले गिरते है. ३.गंगा तट पर स्थापित औद्योगिक इकाईया प्रतिदिन ४३० मिलियन लीटर जहरीले अपशिष्ट का उत्सर्जन करती है जो सीधे गंगा में बहा दिया जाता है.....! यही तो है - "मेरी विवशता"...मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था. गति मिली, मैं चल पड़ा, पथ पर कहीं रुकना मना था राह अनदेखी, अजाना देश, संगी अनसुना था. चाँद सूरज की तरह चलता, न जाना रात दिन है किस तरह हम-तुम गए मिल, आज भी कहना कठिन है...!
मेरी दुनिया मेरा जहान...यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी ...! .... रामवती (कंडक्टर से ) – भाई, बेलापुर आ गया ? Conductor – नहीं, अभी नहीं आया. थोड़ी देर बाद - रामवती – भाई, बेलापुर आ गया ? कंडक्टर – नहीं आया. फिर थोड़ी देर बाद - रामवती – भाई, बेलापुर……। इतना सुनते ही बदल गयी मेरी स्माइल - मेरे कुछ दांत चले गए हैं तो स्माइल भी बदल गयी है | मैं भी इस स्माइल के लिए बार बार आइना देखता हूँ आजकल ...! बिखरने का सौन्दर्य...मुस्कुराने लगते हैं कॉफ़ी के मग दीवारों पर उगने लगती हैं धडकने दरवाजे जानते हैं दिल का सब हाल खिडकियों बतियाती ही रहती हैं घंटों खाली सोफों पर खेलते हैं यादों के टुकड़े दीवार पर लगे कैलेण्डर को लग जाते हैं पंख...!
मेरी दुनिया मेरा जहान...यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी ...! .... रामवती (कंडक्टर से ) – भाई, बेलापुर आ गया ? Conductor – नहीं, अभी नहीं आया. थोड़ी देर बाद - रामवती – भाई, बेलापुर आ गया ? कंडक्टर – नहीं आया. फिर थोड़ी देर बाद - रामवती – भाई, बेलापुर……। इतना सुनते ही बदल गयी मेरी स्माइल - मेरे कुछ दांत चले गए हैं तो स्माइल भी बदल गयी है | मैं भी इस स्माइल के लिए बार बार आइना देखता हूँ आजकल ...! बिखरने का सौन्दर्य...मुस्कुराने लगते हैं कॉफ़ी के मग दीवारों पर उगने लगती हैं धडकने दरवाजे जानते हैं दिल का सब हाल खिडकियों बतियाती ही रहती हैं घंटों खाली सोफों पर खेलते हैं यादों के टुकड़े दीवार पर लगे कैलेण्डर को लग जाते हैं पंख...!
लड़की की शादी माता पिता दहेज़ विरोधी। २. लड़के की शादी माता पिता दहेज़ की हिमायती। लड़की की शादी सामत घराती की नखरे बाराती की....। यादों की पोटली ...चुन-चुन कर मैंने समेट लिया तुम्हारी यादों का कारवाँ और बना ली एक पोटली .....! क्या 'ऐसा' शिक्षक हो सकता है ?...मोटा वेतन शिक्षक का सब ऊंट के मुँह में जीरा है मुफ्त की नौकरी बैठे ठाले फिर भी हरदम पीड़ा है....! हाँ ऐसी ही थी ' माँ '.... बात करें ४0से ५0 के दशक की तो बात कुछ ओर थी ..उन दिनों पुरुष और महिलाओं के लिए अलग घरों में भी सीमाएं थी ...लडकियां दुपट्टा सर पर अवश्य रखती थी ...स्कूल गयीं ओर फिर घर ...पास -पडौस के सामाजिक कार्यों में अवश्य शामिल होती .....कीर्तन , गीत -संगीत ....इसके अलावा अनावश्यक घूमना तो बेहद बुरा समझा जाता ......!
नहीं आया जीना मुझे ...आखिरी कगार पर खड़ी जिन्दगी कहती है मुझसे "सब कुछ तो सीख लिया तुमनें,पर जीना न सीख पाई अभी " ...। मजदूर का हितैषी ठेकेदार...ठेकेदार लोग बहुत ही ज्यादा ईमानदार लोग अपने अपने ठेके का पूरा पेमेंट ले के आते हैं इसलिये वो मलाई भी थोड़ा खाते हैं इतनी सी बात आप क्यों नहीं* *समझ पाते ....! त्रिशूल,चीड़ और भांग --दिग दिगंत आमोद भरा...आह हा आज तो त्रिशूल दिख रही है. नंदा देवी और मैकतोली आदि की चोटियाँ तो अक्सर दिख जाया करती थीं हमारे घर की खिडकी से। परन्तु त्रिशूल की वो तीन नुकीली चोटियाँ तभी साफ़ दिखतीं थीं जब पड़ती थी उनपर तेज दिवाकर की किरणें....! चोरी घोटाला और काली कमाई....मुतकारिब मुसम्मन सालिम चोरी घोटाला और काली कमाई, गुनाहों के दरिया में दुनिया डुबाई, निगाहों में रखने लगे लोग खंजर, पिचासों ने मानव की चमड़ी चढ़ाई, दिनों रात उसका ही छप्पर चुआ है, गगनचुम्बी जिसने इमारत बनाई....!
एक झटपट पोस्ट...फ्रॉम अमस्टरडम :) इस समय होलैंड के अमस्टरडम शहर में हूँ। यह कैनालों का शहर है। कल सारा दिन कनालों के चक्कर लागते रहे हम। खूबसूरत लोगों का बहुत ही खूबसूरत शहर है....!Governments can use Cloud Computing to improve delivery of services तकनीकी पोस्ट हैं ये... अब google glass आपको बनायेगा super स्मार्ट...इसलिए.....डेस्कटॉप को करे व्यवस्थित....INTERNET and PC RELATED TIPS...मंथन कीजिए जनाब....कर्नाटक चुनावों में क्या वाकई भ्रष्टाचार मुद्दा था ...कुछ तो खूबिया होंगीं ही...स्मार्टफोन के मजेदार एप्पस....इस मैसेज से कैसे छुटकारा पायें...USB device not recognized solution...देखिए....मास्टर्स टेक टिप्स.....अब चलते हैं...सराहन से बशल चोटी के ओर तथा बाबाजी.....!
"मातृदिवस की शुभकामनाएँ"...जीवन देने वाली जननी, माता तुझको नमन हमारा।
माता नहीं कुमाता होती, माँ को उसका बालक प्यारा...!
कितने ही युग बदले लेकिन,
बदल न पायी माँ की ममता,
बेटा हो या चाहे बेटी हो,
माँ रखती दोनों में समता,
जीवनभर बालक को देती, उसकी माता सदा सहारा।
छपते-छपते...अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन में मध्यान्ह सत्र शुरूताऊ डाट इन
अन्त में दिखिए यह कार्टून...!
मेरा एक निवेदन है, अगर आप मानें तो...
चर्चा में आपका लिंक लगाने के लिए
मुझे धन्यवाद या आभार लिखकर
अपनी ऊर्जा या समय नष्ट न करें..!
यदि कुछ प्रतिदान देना जरूरी ही हो तो
चर्चा के नीचे लगे टिप्पणी बक्से में
कमेंट कर अपनी राय प्रकट दें...!
आपके सुझाव मुझ तक
अवश्य पहुँच जायेंगे!
"धन्यवाद"
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंकहानी नुमा लिंकों का गुलदस्ता
लिंक इतने सारे......
विस्तृत रुप से पठन आज तो मुश्किल ही है
और छोड़ना नामुकिन
सादर....
यशोदा बहन जी!
जवाब देंहटाएंमैं तो चर्चा में हमेशा ही 30 से 35 के बीच मे ही लिंक लगाता हूँ।
इतने तो सहजता से बाँचे जा ही सकते हैं!
बढ़िया लिनक्स हैं ....... चैतन्य को शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएंचर्चा लगाने वाला मेहनत से चर्चा लगाता है
जवाब देंहटाएंमेरे से लेकिन कहीं नहीं अब जाया जाता है
आभार व्यक्त तो करना ही है आकर यहाँ
टिप्पणी करने में खर्चा ज्यादा हो जाता है
महसूस कुछ ऎसा हुआ है हमेशा ही यहाँ
मैं जिसके वहाँ जाता हूँ वो ही मेरे यहाँ आता है !
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंमै तो सिर्फ ये दो शब्द आपके लिए कहना चाहूँगा ,
जवाब देंहटाएंमै तो आज ऑनलाइन आया हूँ सिर्फ आपके लिए वर्ना तो आज छुट्टी थी.
बढ़िया चर्चा !!
जवाब देंहटाएंउद्वेलित करने वाले लिंक्स. हरी धरती को जगह देने के लिये आभार्
जवाब देंहटाएंचर्चा बहुत शानदार |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
आभार.
जवाब देंहटाएंसही कहा जाता है कि
आतंकवादी शहीद नहीं होता....राजनैतिक स्वार्थ के लिए आम जनता को भड़काना और ख़ून ख़राबे के लिए उनका इस्तेमाल करना राजनेताओं की पुरानी चाल है। नौजवानों में जोश ज़्यादा होता है और अनुभव कम। ऐसे में वे शातिर बूढ़े नेताओं के भड़काने के बाद दंगे से लेकर आतंकवादी घटनाएं तक अंजाम देते रहते हैं...।
जवाब देंहटाएंमेरी विवशता---
’मेरी व्याकुलता पर मेरी असहजता पर प्रश्नचिन्ह बन,मुझे सलीब पर लटका देता है.’
जो कांटा आपको चुभ रहा है---मेरे विचार से,आज हर विचारशील को वह कांटा रोज चुभता है.
क्या करें---हमारी व्यवस्थाओं ने,सब्ज बाग दिखा कर,हमें जकड लिया है.
’ढूंढने चले थे,वादियों में चमन को
कि,एक पैर फिसला,और गर्त में चले गये’
ये खेल,ये तमाशे,हर नुक्कड,हर चौराहों पर चल रहें हैं---घरों में आग लगी हुई है,मंदिर धौकों की दुकाने हो गईं हैं.भगवान भी तो नहीं मिलता,वह भी लंगोटी-लौटा उठा कर कहीं रफूचक्कर हो गया है.
भ्रम के मकड जाल में पूरा आस्तित्व फंसा हुआ है.आज हम उम्र की गरिमा को नकार चुके हैं,रिश्तों की मिठास को भूल चुके हैं,किसी की खुशी हमें समझ नहीं आती,आसूं हमें मजाक लगते हैं.
शरीर पर आकर जीवन उलझ गया है,यह मन कुछ कह रहा है,आत्मा कुछ कह रही है,सुनने के लिये कान ही नहीं ---क्या करें शोर इतना हो गया है.
प्रकृति आंखे फाडे देख रही है---हो क्या रहा है?
हम चिडियों को दाना डालना भूल गये.चीटियों को चीने के दानें,फूलों को चुनना भूल गये,मालाओं में फूल गुंथते हैं,बिकने के लिये---५ रुपये की माला,१० रुपये की माला,उसी अनुपात में श्रद्धा बिक रही है.
’कुछ फैसले अब हो ही जाने चाहिये,भारत के भविष्य पर----’
गुरु जी,आपने आवाज उठाई,सादर धन्यवाद.
प्रश्न है---बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?
आदरणीय गुरुदेव श्री बहुत ही सुन्दर सार्थक चर्चा हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजन ... आभार इस प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर सार्थक चर्चा..मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार .....
जवाब देंहटाएं...
बहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंआज कुछ अलग ही अंदाज है चर्चा का।
बहुत अच्छा लिंक्स संयोजन शास्त्री जी ,मेरी रचना को भी आपने स्थान दिया ,आपका आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा है ..आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन...रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है आज की चर्चा को। धन्यवाद श्रीमान।
जवाब देंहटाएंमेरी दो रचनाओ " फरेब" " लड़की जन्म का अधिकार " को शामिल करने का हार्दिक आधार ....बहुत सुन्दर लिनक्स सजाई गये हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन ,आभार शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच की सभी चर्चाएं बेजोड हैं विशेष कर -
जवाब देंहटाएंआतंकवादी शहीद नहीं होता, संघर्ष का दूजा नाम ही तो जवानी है...., हम बेटियों का घर ही धूप में क्यूँ ...! इस चर्चा मंच के लिये माँ सरस्वती को धय्नावाद !!
मित्रवर!आज एक विशेषता जो नज़र आई वह यह कि चर्चा को एक अभिलेख के रूप में प्रस्तुत किया और रचनाओं के शीर्षकों को उद्धरण के रूप में प्रस्तुत किया |यह एक सराहनीय कला है |
जवाब देंहटाएंसाधुवाद!!
बहुत ही खूबसूरत अंदाज में बहुत ही शानदार चर्चा,सादर आभार आदरणीय.
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक और पठनीय सूत्र..
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