आजकल गर्मी अपने पूरे यौवन पर है ऐसे में पेड़ों पर पकती हैं बेल... "गर्मी को कर देती फेल " फिर भी...छाँव है कही ,कही है धूप जिंदगी ....तरक्की इस जहाँ में है तमाशे खूब करवाती ...मिला जिससे हमें जीवन उसे एक दिन में बंधवाती ....दिल्ली की झुलसा देने वाली गर्मी में दोपहर के तीन बजे इंदिरा गाँधी स्टेडियम के बास्केटबाल कोर्ट में पसीने से लथपथ सातवीं कक्षा की आद्या से लेकर ग्यारहवीं के अखिलेश तक हर एक बच्चे की आँखों में एक ही सपना नजर आता है....क्रिकेट की कालिख को अपने पसीने और सपनों से धोता युवा भारत....एक मुखड़ा निश्छल हंसी , तृप्ति के साथ जब बढ़ आते थे स्वागत को माँ के हाथ गले मिल उमड़ता आँखों में सैलाब मन करता करूँ जोर -- जोर से प्रलाप गले लगा कर कन्धों को थपथपाना और अपने आंसुओं को आंचल में छिपाना....भावनाओं का ज्वार...बहुत बलवान होता है!
मिलिए "सूरज" की मालकिन से....अब हो सकता है कि आपको सूर्य की रोशनी प्राप्त करने के लिए भी शुल्क चुकाना पडे!पढने में यह विचित्र लग सकता है, परंतु स्पैन की एक महिला ने दावा किया है कि "सूर्य" उसकी सम्पत्ति है और उसने अपनी इस सम्पत्ति को पंजीकृत भी किया है.परंतु सूर्य क्या किसी की सम्पत्ति हो सकता है...! बचपन में तो यह कल्पना की जा सकती है...ममता की छाँव में परवान चढ़ पल्लवित होता प्यारा सा भोला सा बचपन माँ के दुलार में खोया रहता कुंद के पुष्प सा महकता मीठी लोरी सुनता बचपन | प्यार भरी थपकिया पा चुपके सेआँखें मूंदता सोने का नाटक करता फिर धीरे से अँखियाँ खोल माँ को बुद्धू बनाता बचपन | मधुर मुस्कानअधरों पर ला मीठी मीठी बातों से सारी थकान मिटाता अपना प्यार जताता माँ का सबसे प्यारा बैभव | कभी कभी गुस्सा करता रूठता मनमानी करता जब तक बात पूरी ना हो रो रो घर सर पर उठाता पर....!
कर्मों की गुह्य गति....द्वापर शुरू होते ही हम देह अभिमान में आ जाते हैं .विकारों में आते चले जाने से हमारी आत्मा कमज़ोर होती चली जाती है .यद्यपि धर्मात्माएं इस अवपतन को रोकने की पूरी चेष्टा करतीं हैं लेकिन ईश्वर का सही परिचय न मिल पाने से पुण्य का खाता चुकता जाता है पाप का बढ़ता जाता है....! .ओ मेरे !..........सपनों के संसार की अनुपम सुंदरी नहीं जो तुम्हें ठंडी हवा के झोंके सी लगती, फिर भी हूँ .......सोचती हूँ , शायद , कुछ ...........तुम्हारी भी या तुम्हारी बेरुखी की सजायाफ्ता तस्वीर ....! ...कहानी साहित्य की – यह कहानी है या आलेख, मैं स्वयं समझ नहीं पारहा हूँ, सुनने पढ़ने वाले व विज्ञ साहित्यकार स्वयं निश्चय करें | कविता जन जन से दूर क्यों हुई है....? ताऊ को ध्यान मुद्रा की दीक्षा देने वाला गुरू है या गुरूमाई? लोकसभा का चुनाव कब होगा, ये अभी तय नहीं है, यूपीए में कौन से दल शामिल रहेंगे, ये भी तय नहीं है, एनडीए की मुख्य सहयोगी पार्टी जेडीयू का क्या रुख होगा, तय नहीं है। बात तीसरे मोर्चें की भी बहुत हो रही, इसमें कौन कौन शामिल होगा, जिम्मेदारी से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन मीडिया ने सरकार के भविष्य का फैसला सुना दिया...सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
जिस्म की बेपर्दगी में लिपटी कालिमा को देखिए, आईना है सच कहेगा ख़ुद को दिखा कर देखिए....नव गीतिका...को ग़ज़ल मत कह देना ज़नाब!...रौशनी कैद है और परेशान है, अब जमाने की ये ही तो पहचान है। हाँ मैं हाँ बस करो और कुछ न कहो, फिर तो सब से भले आप इन्सान हैं...। और इस इंसान में...लरजती उम्मीद ...फौलादी विश्वास बहुत जरूरी है...इस तपतपाती धरा पर कोई इल्ज़ाम न डाल...!! सूरज ने एसिड लदी बोतले उड़ेली है उसपे...!! ज़रा छिड़्क कमंडल खोल दो चार बूंदे ए अब्र..क्योंकि गरमी...बहुत पड़ रही है। जहाँ भी देखो बैनर -पोस्टर ...दूर -दूर तक नज़र न आए मंज़र क्यों बहारों के.....! दिल लगे तब दुःख होता है दुःख होता है तो तू रोता है जो रोता है तो चैन से सोता है सोता है तो सपनो में खोता है बातें जो तप चुकी दिन में शब्द जो पक चुके मन में अब सपनो में दिख जाते है सियाह रात में बहे जाते है बाल सफ़ेद हो गए तेरे...!
कीमत क्यूँ कम आंकी जाये....कोई तो हमको समझाये सच क्यूँ सूली टांगा जाये गम से कोई रिश्ता होगा उन आँखों सहरा लहराये बस्ती में बेमौसम ही क्यूँ आशाओं के बादल छाये....मन सुने माँ सरस्वती की मधुर वाणी....एक मुट्ठी में धूप और एक में चांदनी हवा की सीढ़ी से चढ़े कल्पना सुहानी पेड़ों के कलम और समंदर की स्याही अम्बर के कागज़ पे लिखे नई कहानी ...! हमें कुछ फ़र्क लगता ही नहीं अपनों में-गैरों में...! एक तूफ़ान की तरह आया था तेरा इश्क अपनी सारी हदें लांघता हुआ डुबो डाला था मेरा सारा वजूद...नाकाम इश्क...!
कार्टून :- उफ़्फ, यहां तो खुजाना भी ज़ुर्म हो गया !!!
ओ मेरी सुबह---------सींच देती हो जीवन की सूखी जड़ें बहने लगती हो ताजा खून बनकर धमनियों में कर देती हो फूलों के रंग चटक पोंछ देती हो एक-एक पत्तियों की धूल-----नीर..... पनघट की हलचल गयी, कहीं न पानी देख। नदिया की कल कल गयी, बची न पानी रेख....! अभी पता नहीं चला क्या ?...एक खुशखबरी... गूगल फाइबर लायेगा इन्टरनेट की ऑधी...! हिंद स्वराज्य....एक ऐसे समाज की बात करता है जो पिरामिड नहीं है। यह ऊंचाई के साथ चौड़ाई में प्रसारित होता है। यह समाज भारत का ग्राम समाज है...!
गर्मी की छुट्टियाँ...क्या करोगे माधव? कह सकती हूँ अकेले , पर बाँट सकती हूँ,तुम्हारे संग | मुस्करा सकती हूँ अकेले , पर हंस सकती हूँ तुम्हारे संग ...अनुभूति तुम्हारे प्यार की...! हमने भरे हैं ‘स्नेह के,आँचल’ में ‘अंगार’। क्यों यह नारी सह रही, है ज़ुल्मों की मार....झरीं नीम की पत्तियाँ...! अपने गांव गया था. एक बस यात्रा में बड़ा ही रोचक अनुभव हुआ. अगर आप गौर करें तो बस यात्रियों की आपस में बातचीत, खलासी-ड्राईवर के संवाद....वो कत्ल करे हैं या करामात करे है... ! विशाल हिमखण्ड के नीचे मंथर गति से बहती सबकी नज़रों से ओझल एक गुमनाम सी जलधारा हूँ मैं...यही तो है...मेरा परिचय...!
अब देखिए-
आज के लिए बस इतना ही....!
वार्तानुमा रोचक चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंacchhe links samay nikal kar padhungi .....
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंयहाँ तो लिंक्स का खज़ाना है....
हमारी रचना को भी स्थान देने का शुक्रिया शास्त्री जी.
सादर
अनु
सुन्दर और पठनीय लिंक !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स... मजा आ गया पढ़कर........
जवाब देंहटाएंकभी कभी ऐसे भी चर्चा का आनंद लिया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा, अच्छे लिंक्स
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंvisit to
http://hinditech4u.blogspot.in/
वाह ... बेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
रोचक चर्चा
जवाब देंहटाएंचर्चा का बहुत सुंदर प्रारूप एवँ अंदाज़ ! मेरी रचना को भी यहाँ स्थान दिया आभारी हूँ शास्त्री जी ! सभी सूत्र आकर्षक हैं !
जवाब देंहटाएंकहीं गद्य-कविता,कहीं सम्वाद |
जवाब देंहटाएंकहीं सुखानुभव कहीं अवसाद||
भयानक धूप में सूखता'प्रेम-पादप-
रोशाकता का पानी रसात्मक खाद ||
वास्तव में आज की चर्चा सचमुच चर्चा है बिना चित्र के ही शब्द चित्र का आनन्द !
बढ़िया लिंक्स |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुरूदेव बहुत ही सुंदर और उपयोगी लिंक्स अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किए हैं। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका आभार!
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुरुदेव श्री अलग अंदाज में सुन्दर प्रस्तुतीकरण पठनीय सूत्र संजोये हैं आपने. हार्दिक आभार आपका.
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंनमस्कार शास्त्री जी , अत्यंत सुन्दर संयोजन
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा अनुभव कर रही हूँ आप के द्वारा मेरी दो रचनाएं सम्मिलित की गयी हैं
मेरे लिए बड़े ही हर्ष का विषय है .......सादर आभार
aadrniy shastri ji aap ka sneh bhav sda mere sath rhta hai
जवाब देंहटाएंaap hardik aabhar vykt krta hoon ttha ek soochna bhi de rha hoon ki aa[ ke unmitron ne mujhe apni soochi se hta kr block kr diya hai un ka bhi hridy se aabhar ve aap ke kthn ko pcha nhi ske yh un ki mhanta hi hai mhan log aise hi hote hain
शास्त्री जी, नमस्कार,बहुत बढ़िया चर्चा ,मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंनये कलेवर के साथ चर्चामंच बेहद आकर्षक लगा
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक लिंक्स को बहुत सुंदरता से सहेजा है
गुरुदेव "शास्त्री"के सार्थक संयोजन को साधुवाद
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सारगर्भित टिप्पणियों के साथ कई दिलचस्प लिंक्स आपने दिए हैं. बहुत -बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंसारगर्भित टिप्पणियों के साथ कई दिलचस्प लिंक्स आपने दिए हैं. बहुत -बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंसारगर्भित टिप्पणियों के साथ कई दिलचस्प लिंक्स आपने दिए हैं. बहुत -बहुत धन्यवाद .
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स.
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