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सोमवार, जुलाई 08, 2013

मेरी 100वीं गुज़ारिश :चर्चा मंच 1300

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शुभम दोस्तो ..
मैं 
सरिता भाटिया 
हाजिर हूँ 
चर्चामंच की 1300 वीं चर्चा 
लेकर 
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गुलेरी जयंती पर विशेष 
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पहली बार केक काटा 
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अभी अभी 
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कुचलो या कुचले जाओगे 
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हूँ तुम्हारी हि कृष्णा 
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नारी की सम्पूर्णता प्रेम में निहित है 
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आतंक से मिलझुल  कर लड़ लेंगे 
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ये पूछ तू मेरे दिल से 
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कभी यूँ भी 
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स्मृति का खजाना 
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मौत जीना सिखा दे 
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आज फिर बारिश डराने आ गई 
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मालिनी अवस्थी की पाठशाला 
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बोधगया पर आतंकी हमले 
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फूल खिले हैं डाली डाली 
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दोस्तो 
आज की चर्चा को देती हूँ 
यहीं विराम 
आज के मौसम का एक गाना 
बड़ों को नमस्कार 
छोटों को प्यार 
...शुभविदा...
आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)
नज़्मः 'निसार करूँ'......महबूब राही

हसीन फूलों की रानाइयाँ निसार करूँ 
सितारे चाँद कभी, कहकशाँ निसार करूँ 
बहार पेश करूँ गुलसिताँ निसार करूँ 
जहाने-हुस्न की रंगीनियाँ निसार करूँ ज़मीं निसार करूँ 
आसमाँ निसार करूँ तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ...
मेरी धरोहरपरyashoda agrawal 
(2)
हणोगी माता मंदिर , हिमाचल

Yatra, Discover Beautiful India पर Manu Tyagi

(3)
लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज
दिनदिनांकविवरणदूरी
पहला दिन4 जून 2013दिल्ली से प्रस्थानबस से
दूसरा दिन5 जून 2013मनाली से गुलाबा21 किलोमीटर
तीसरा दिन6 जून 2013गुलाबा से मढी13 किलोमीटर
चौथा दिन7 जून 2013मढी से गोंदला64 किलोमीटर
पांचवां दिन8 जून 2013गोंदला से गेमूर34 किलोमीटर
छठा दिन9 जून 2013गेमूर से जिंगजिंगबार42 किलोमीटर
सातवां दिन10 जून 2013जिंगजिंगबार से सरचू47 किलोमीटर
आठवां दिन11 जून 2013सरचू से नकी-ला37 किलोमीटर
नौवां दिन12 जून 2013नकी-ला से व्हिस्की नाला11 किलोमीटर
दसवां दिन13 जून 2013व्हिस्की नाला से पांग28 किलोमीटर
ग्यारहवां दिन14 जून 2013पांग से शो-कार व शो-कार मोड88 किलोमीटर
बारहवां दिन15 जून 2013शो-कार मोड से तंगलंग-ला19 किलोमीटर
तेरहवां दिन16 जून 2013तंगलंग-ला से उप्शी65 किलोमीटर
चौदहवां दिन17 जून 2013उप्शी से लेह49 किलोमीटर
पन्द्रहवां दिन18 जून 2013लेह से ससपोल62 किलोमीटर
सोलहवां दिन19 जून 2013ससपोल से फोतु-ला70 किलोमीटर
सत्रहवां दिन20 जून 2013फोतु-ला से मुलबेक59 किलोमीटर
अठारहवां दिन21 जून 2013मुलबेक से शम्शा71 किलोमीटर
उन्नीसवां दिन22 जून 2013शम्शा से मटायन46 किलोमीटर
बीसवां दिन23 जून 2013मटायन से श्रीनगर126 किलोमीटर
इक्कीसवां दिन24 जून 2013श्रीनगर से जम्मू व दिल्लीसूमो व बस से
मुसाफिर हूँ यारों पर नीरज कुमार ‘जाट’
(4)
अक्श हैं मेरे फ़साने
सामने आते भी नहीं चिलमन को हटाते भी नहीं 
हिज्र में मरते भी नहीं हँस-हँस के रुलाते भी नहीं 
अजीब पर्दा है कि सब कुछ दिखाई देता है 
मासूम कातिल की तरह छुप-छुप के सताते भी नहीं....
Zindagi se muthbhed पर Aziz Jaunpuri 

(5)
"क्यों अपने बेताल की किस्मत का बाजा बजा रहा है"
विक्रमादित्य के समय से बेताल फिर फिर पेड़ पर लौट कर जाता रहा है तुझे हमेशा खुशफहमी होती ही रही है तेरा बेताल तुझे छोड़ कर कहीं भी नहीं जा पा रहा है पेड़ पर लटकता है जाकर जैसे ही वो तू अपनी आदत से बाज नहीं आ रहा है समय के साथ जब बदलते रहे हैं मिजाज विक्रमादित्य के भी और बेताल के भी तू खुद तो उलझता ही है बेताल को भी प्रश्नों में उलझाता जा रहा है बदल ले अपनी सोच को और अपने बेताल को भी...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय सरिता जी सुन्दर सूत्रों से सजा चर्चामंच हार्दिक बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. सरिता जी !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति है...आभार...

    जवाब देंहटाएं
  4. सरिता जी आपकी चर्चा हमेशा खास होती है. आप बहुत अच्छे लिंक्स चुन चुन कर लाती है. इससे आपकी म्हणत तो होती है परन्तु हम सब के लिए कॉफी आसानी हो जाती है अच्छे लेखन का मज़ा लेने हेतु. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. सुबह की गयी टिप्पणी
    शाम तक यहाँ से क्यों
    रोज रोज भाग जा रही है
    ये बात मेरी समझ
    में नहीं आ रही है
    कोई बात नहीं
    आज भी दुबारा ये
    डाली जा रही है
    उल्लूक को करना है
    आभार ! बार बार
    उसकी पोस्ट क्योंकि
    मयंक जी का कोना
    ला कर के दिखा रही है !

    जवाब देंहटाएं

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