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Sunday, November 10, 2013

"‘सत्यमेव जयते’" (चर्चामंच : चर्चा अंक : 1425)

मित्रों।
आज रविवार है और हमारे रविवार के चर्चाकार
आदरणीय अरुण शर्मा 'अनन्त' 
न जाने कौन सी उलझन में हैं।
इसलिए चर्चा मंच के रविवासरीय अंक के लिए 
मेरी पसन्द के कुछ लिंक निम्नवत् हैं।
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छठ श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत है त्यौहार 
करके सूर्योपासना व्रत रखो संग प्यार...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया

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      उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तराञ्चल), 
उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात  भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तराञ्चल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।[4] राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम मेंहिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं...
--

आज 9  नवम्बर है। 
आज से ठीक तेरह वर्ष पूर्व भारत से 27वें राज्य के रूप में 
सन् 2000 को उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना हुई थी! 
uttarakhandmapadministrative1उत्तराखण्ड राज्य का गठन   -   9 नवम्बर, 2000 
कुल क्षेत्रफल                    -   53,483 वर्ग कि.मी.
कुल वन क्षेत्र                   -   35,384 वर्ग कि.मी.
राजधानी                        -   देहरादून (अस्थायी)
सीमाएँ 
अन्तर्राष्ट्रीय                     -   चीन, नेपाल
                        राष्ट्रीय                            -   उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
कुल जिले           -   13
उच्च न्यायालय            -   नैनीताल
प्रति व्यक्ति आय                -   15,187 रुपये
--

भ्रम का मारा....ये दिल बेचारा !!!
सब जानते-बुझते भ्रम 
अपने को मैं पालता रहा .....
होंटों पे नकली हंसी चेहरे पे ख़ुशी ओड़
 दिल को निहारता रहा .....
यादें...पर Ashok Saluja 
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आरएसएस, भाजपा (और भाजपा के पूर्व संस्करण जनसंघ) हमेशा एक प्रतीक की तलाश में रहे हैं। उनका अपना कोई ऐसा नेता पैदा नहीं हुआ जो खुद प्रतीक के रूप में याद किया जा सकता। ऐसे अकाल में निश्चय ही उन्हें एक प्रतीक के लिए भटकना पड़ रहा है। सत्तर के दशक में जनसंघ ने स्वामी विवेकानन्द को अपना प्रतीक गढ़ने का नापाक असफल प्रयास किया परन्तु विवेकानन्द के ऐतिहासिक शिकागो वक्तव्य ने जनसंघ की राह में रोड़े अटकाये जिसमें उन्होंने बड़ी शिद्दत से कहा था कि ”भूखों को धर्म की आवश्यकता नहीं होती है“। विवेकानन्द ने भूखों के लिए पहले रोटी की बात की जबकि जनसंघ और आरएसएस उस समय भारतीय पूंजीपतियों के एकमात्र राजनीतिक प्रतिनिधि के रूप में भारतीय राजनीति में कुख्यात थे।....
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सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान -
मंशा मनसूबे सही, लेकिन गलत बयान | 
सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान | 
खुलती पाक दुकान, सजा दे मंदिर मस्जिद | 
लेती माल खरीद, कई सरकारें संविद | 
नीर क्षीर अविवेक, बने जब कौआ हंसा |
 रहे गधे अब रेक, जगाना इनकी मंशा...
रविकर की कुण्डलियाँ

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साधुवाद हे मित्र, शब्द रोये तो रोये-
बोये बिन उगते रहे, घास-पात लत झाड़ | 
शब्द झाड़-झंकाड़ भी, उगे कलेजा फाड़...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर

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कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-4


यूँ ही झरोखे से झांक कर,हर रोज ढूंढ़ती ही तुम्हे,अपलक हर रोज़ खामोश,यूँ ही निहारती हूँ तुम्हे,सुन ले न कोई यूँ ही...मौन रह कर पुकारती हूँ तुम्हे....
'आहुति' पर sushma 'आहुति' 
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चलन ई-मेल का

हो गया मँहगा सफ़र अब रेल का। 
दाम फिर बढ़ने लगा है तेल का...
Kunwar Kusumesh

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" नाज़ायज़ घोषित C.B.I." 
किसका षड़यंत्र और क्यों ?????

5TH Pillar Corruption Killer

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कई बार होता है 
लम्हे का पता लम्हे को नहीं होता है
कुछ तो जरूर होता है 
हर किसी के साथ अलग अलग सा 
कितने भी अजीज और कितने भी पास हों 
जरूरी नहीं होता है एक लम्हे का हो जाना वही 
जैसा सोच में हो एक लम्हे को होना ही होता ...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी

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चिंता, चिता के सामान है, 
ऐसा मै नहीं लोग कहते हैं। 
चिंता की बिंदी भी वहीँ जा के हटती है। 
चूँकि लोकतंत्र में संख्याबल का महत्त्व है 
इसलिए ये मानने में कतई गुरेज़ नहीं है 
कि चिंता का दुष्प्रभाव अंततः चिता तक ले जा सकता है। 
वहाँ तक पहुंचने के अनेक कारक हो सकते हैं, 
उनमें चिंता को भी जोड़ लेना उचित होगा
वाणभट्ट

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रिछपाल सिंह कविया : परिचय

ज्ञान दर्पण

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प्यार
सुनो, मुझे तुमसे कुछ कहना है, 
हँसना नहीं, बस ध्यान से सुनना, 
कभी भी, कहीं भी, किसी कमज़ोर क्षण में भी 
यह मत कहना कि तुम्हें मुझसे प्यार है. ...
कविताएँ पर ओंकार

--
हनुमान मंदिर चलिया भाग 5.
आजकल के बच्चों को पता नहीं क्या हो गया है 
गाली निकाले बिना बात नहीं करते हैं 
साला साला तो ऐसे बोलते हैं 
जैसे इनकी मातृभाषा हो ...

--हनुमान मंदिर चलिया भाग 6.

ॐ ..प्रीतम साक्षात्कार ..ॐ पर सरिता भाटिया
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तोते में जान आ गयी

लो क सं घ र्ष ! पर Randhir Singh Suman

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ऐ मीत ! तुम याद आ रहे हो ..

*है वो ही मौसम* 
*वही सज़र .. वही शाम* 
*ऐ मीत ! तुम याद आ रहे हो .. 
*है वो ही शाम की लाली * 
*नदी का ठहरा पानी * 
*वही किनारा और मैं* 
*ऐ मीत ! तुम याद आ रहे हो ....
बावरा मन पर सु..मन(Suman Kapoor) 
--
कामयाबी.

 रोने से तकदीर बदलती नही 
वक्त से पहले रात ढलती नही 
दूसरों की कामयाबी लगती आसान 
मगर कामयाबी रास्ते में पडी मिलती नही....
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 
--
दीवाली और नयी भाभी
कहानी

नई-नवेली भाभी: 
अबूझ पहेली भाभी। 
प्यारी भाभी: दुलारी भाभी। 
हंसाने वाली भाभी: 
गुदगुदाने वाली भाभी। 
खुले दिमाग की भाभी: 
लाजबाब भाभी...
अभिनव सृजन पर डॉ. नागेश पांडेय संजय
--
आजकल की सास
आजकल की सास बहू को पार लगा देगी , 
बेटे की नैया की पतवार डुबा देगी...
! कौशल ! पर Shalini Kaushik

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कल ये हमारा नहीं रहेगा...!
तुम्हारे लिए ही अस्त हो रहा है...
कल तुम्हारे लिए ही पुनः उदित होगा... 
बस रात भर रखना धैर्य ये जो अँधेरा है न...
बीतते पहर के साथ यही उजाला पुनीत होगा... 
ये जो डूबती हुई लग रही है न नैया...
रखना विश्वास,किनारे लगेगी......
अनुशील पर अनुपमा पाठक

--
नव युवा हे ! चिर युवा ..
उठो ! नव युग का निर्माण करो । 
जड़ अचेतन हो चुका जग, 
तुम नव चेतन विस्तार करो ...
नूतन ( उद्गार) पर Annapurna Bajpai 

--
‘सत्यमेव जयते’

‘सत्यमेव जयते’ 
लिखने पढ़ने में यह नारा कितना अच्छा लगता है,
 ‘सत्य का आभामण्डल बहुत विशाल होता है’ 
कहने सुनने के लिये 
यह कथन भी कितना सच्चा लगता है ! 
लेकिन नायक वर्तमान परिस्थितियों में 
‘सत्य’जिन रूपों में समाज में 
उद्घाटित प्रकाशित हो रहा है 
उसे देख कर क्या तुम कह पाओगे कि 
इसी ‘सत्य’ की जीत हो, 
क्या तुम सह पाओगे कि 
इसी ‘सत्य’ के साथ सबकी प्रीत हो ...
Sudhinama पर sadhana vaid 
--
तू कौन ?
बिजली गिराती हैं तेरी अदाएं, 
ख़ुदा ने जो भेजा वो नूर हो तुम; 
देख ही बस सकता, छूना भी मुश्किल, 
पहुँच से सबकी बहुत दूर हो तुम ....
मेरा काव्य-पिटारा पर 

ई. प्रदीप कुमार साह
--
कार्टून:- मोटापा बड़े काम की चीज़ है
काजल कुमार के कार्टून
--
"झण्डा प्यारा" 
बालकृति "हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
तीन रंग का झण्डा न्यारा।
हमको है प्राणों से प्यारा।।

त्याग और बलिदानों का वर।
रंग केसरिया सबसे ऊपर।।
हँसता गाता बचपन
--
"आपका ब्लॉग" से..
--
पुष्टिकर तत्व को 
और भी देखभाल के विवेकपूर्ण तरीके से ही लें 
किसी माहिर की देखरेख में



22 comments:

  1. सुन्दर चर्चा...!
    आभार!

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  2. वाह ! एक से एक सुंदर रचनाओं के सूत्रों से भर आज रविवारीय चर्चा ! उल्लूक का : कई बार होता है
    लम्हे का पता लम्हे को नहीं होता है को भी स्थान दिया बहुत बहुत आभार !

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  3. सुन्दर प्रस्तुति व पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा , शास्त्री जी व चर्चा मंच को धन्यवाद
    नया प्रकाशन --: जानिये क्या है "बमिताल"?

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  4. सुन्दर लिंक्स।
    मुझे शामिल करने के लिए शुक्रिया।

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  5. 'चिंता' को स्थान देने के लिए धन्यवाद...रोचक संकलन...बधाइयाँ...

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  6. गुरु जी को प्रणाम
    मेरे दोनों ब्लॉग चर्चा मंच में शामिल हो सके उसके लिए शुक्रिया

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  7. सुन्दर चर्चा मंच-
    आभार आपका-गुरुवर

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  8. सुन्दर संयोजन. मेरी कविता को स्थान देने के लिए आभार

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  9. सार्थक, सशक्त, पठनीय सूत्रों से सजा हुआ है आज का चर्चामंच ! 'सत्यमेव जयते' को आपने इसमें सम्मिलित किया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवँ आभार !

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  10. BAHUT BAHUT DHANYWAAD SHASTRI JI !! AAPKA PREM OR AASHIRWAAD MUJHE MILTA RAHTA HAI JIS SE MAIN APNE AAPKO GOURWANVIT SAMJHTA HOON !! SHUKRIYA !! JO BHI RACHNAYEN AAP CHARCHA MANCH MAIN DAALTE HAIN WO SABHI PRSHANSA KI PAATR HOTI HAIN !!

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  11. सुंदर चर्चा ! आ. शास्त्री जी .

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  12. आदरणीय शास्त्री जी इस चर्चा मंच पर मेरी कविता को स्थान देने के लिए आपका आभार , आपका आशीर्वाद यूं ही मिलता रहे । आपका स्नेह हमारी हर रचना पर बरसे , इसी अभिलाषा के साथ नमन ।

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  13. बहुत सुंदर चर्चा ..!
    मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए लिए शुक्रिया,,,आभार

    RECENT POST -: कामयाबी.

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  14. खुलती पाक दुकान, सजा दे मंदिर मस्जिद |
    लेती माल खरीद, कई सरकारें संविद |

    चलती खूब दूकान यहाँ पर ,आतंकी हैं ढ़ेर
    नेताओं से हो रही दिनोरात देखो अब मुठभेड़ .

    सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान -
    मंशा मनसूबे सही, लेकिन गलत बयान |
    सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान |
    खुलती पाक दुकान, सजा दे मंदिर मस्जिद |
    लेती माल खरीद, कई सरकारें संविद |
    नीर क्षीर अविवेक, बने जब कौआ हंसा |
    रहे गधे अब रेक, जगाना इनकी मंशा...
    रविकर की कुण्डलियाँ

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  15. सुन्दर चर्चा मंच है। उत्तराखंड दिवस मुबारक।

    “मेरा उत्तराखण्ड” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक”')
    आज 9 नवम्बर है।
    आज से ठीक तेरह वर्ष पूर्व भारत से 27वें राज्य के रूप में
    सन् 2000 को उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना हुई थी!
    उत्तराखण्ड राज्य का गठन - 9 नवम्बर, 2000
    कुल क्षेत्रफल - 53,483 वर्ग कि.मी.
    कुल वन क्षेत्र - 35,384 वर्ग कि.मी.
    राजधानी - देहरादून (अस्थायी)
    सीमाएँ
    अन्तर्राष्ट्रीय - चीन, नेपाल
    राष्ट्रीय - उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
    कुल जिले - 13
    उच्च न्यायालय - नैनीताल
    प्रति व्यक्ति आय - 15,187 रुपये

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  16. सुन्दर चर्चा मंच है। उत्तराखंड दिवस मुबारक। विस्तृत जानकारी आपने मुहैया करवाई है उत्तराखंड पर।

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  17. मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम जो अंग्रेज़ों के मुखबिर थे क्रांतिकारियों की मुखबरी करते थे उनका कोई हक़ नहीं बनता है वह भारतीय प्रतीकों की बात करें।वे स्टालिन की बात करें जो उनकी प्रेरणा के स्रोत रहें हैं।

    भारत पर चीन ने बाहर से हमला किया था ये अंदर से कर रहें हैं इनके तो मस्तल पे लिखा होना चाहिए -मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम। बोले तो MBG.

    जहां तक कोंग्रेस पार्टी की बात है उसमें दो तरह के लोग थे -एक योरपीय समाजवाद के समर्थक जिनका प्रतिनिधित्व नेहरू करते थे। दूसरे सरदार वल्लभ भाई पटेल जो क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों के बीच की कड़ी थे। ये वही सरदार पटेल थे जिन्होनें सोमनाथ मंदिर का पुनरोद्धार करवाया था। जिन्हें नेहरू ने उस दौर का सबसे बड़ा साम्प्रदायिक कहा था।

    नेहरू तो खुद कहते थे मैं शिक्षा से ईसाई हूँ ,संस्कार से मुसलमान और इत्तेफाक से हिन्दू।

    आर एस एस पे प्रतिबन्ध भी नेहरू ने ही लगवाया था जो राष्ट्रवादी धारा से बे हद चिढ़ते थे। सरदार पटेल पे पूरी तरह दवाब बनाये रहे नेहरू। और नेहरूवियन राजनीति का करिश्मा देखिये उन्हीं सरदार पटेल की अंत्येष्टि पर जो उम्र में भी नेहरू से बड़े थे नेहरू नहीं पहुंचे।

    भारत धर्मी समाज में यदि आज कोई सरदार पटेल की विरासत को अक्षुण्य बनाये रख सकता है तो वह राष्ट्रवादी धारा ही रख सकती है मोदी जिसके प्रतीक बन चुकें हैं। और भारत का मुकुट सरदार पटेल को पहनाना चाहते हैं।

    बौद्धिक भकुओं को क्या हक़ हासिल है वह सरदार पटेल की विरासत और उन्हें प्रतीक बनाने की बात करें। वैसे भी आज इन लेफ्टियों का कोई नाम लेवा तो है नहीं।

    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

    --
    तोते में जान आ गयी

    लो क सं घ र्ष ! पर Randhir Singh Suman
    --

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  18. बहुत ही खुबसूरत लिनक्स दिए है आपने....मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

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  19. बहुत आभार शास्त्री जी .....

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  20. बहुत सुंदर रही ये चर्चा | मेरी रचना को स्थान दिया आपने आभार | बाहर होने के कारण देरी के लिए क्षमा |

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  21. अतिशय सुन्दर चर्चा मंच-
    हार्दिक आभार

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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