आज की मंगलवारीय चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते , आप सब का दिन मंगल मय हो ,अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लॉग्स पर .....
महिला खेलों के आयोजक-लघु कथा
shikha kaushik at भारतीय नारी
अब तोते में नहीं बसती जान.....
रश्मि शर्मा at रूप-अरूप
सकारात्मक सोच की रौशनी
vandana gupta at ज़ख्म…जो फूलों ने दिये
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मिथिलांचल का भाई-बहन के प्रेम से जुड़ा लोकपर्व सामा-चकेवा
अभिषेक मिश्र at DHAROHAR
परिकल्पना और स्मृतिनामा
रश्मि प्रभा... at परिकल्पना
चन्द्रगुप्त की बात, करारा उत्तर पाया -
रविकर at "लिंक-लिक्खाड़"
junbishen100
Munkir at Junbishen
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हम इसी नौकरी में अच्छे , जी करता नहीं बगावत को -सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना at मेरे गीत !
हृदय से बहता निर्झर!
अनुपमा पाठक at अनुशील
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लहरें ......
Saras at मेरे हिस्से की धूप
कोई
Anita at मन पाए विश्राम जहाँ
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Let,s go to Dharamshala आओ धर्मशाला चले
SANDEEP PANWAR at जाट देवता का सफर/journey
ज़िंदगी
Pallavi saxena at Pasand
मगर हम कुछ नहीं कहते....
***Punam*** at तुम्हारे लिए..
कितनी बयार
rahul misra at खामोशियाँ...!!
चुनावी हथकंडा -एक लघु कथा .
Shalini Kaushik at ! कौशल !
ये कैसा प्रयोग किया ?
प्रतुल वशिष्ठ at ॥ दर्शन-प्राशन ॥
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जख्म का क्या है कभी तो ये भर जाएगा...........
Amit Chandra at ehsas
थे अपने ही हिसार में - नवीन
Navin C. Chaturvedi at ठाले बैठे
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दर्द
babanpandey at " 21वीं सदी का इंद्रधनुष "
देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं
Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
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आज की
चर्चा यहीं समाप्त करती
हूँ फिर चर्चामंच पर
हाजिर होऊँगी कुछ
नए सूत्रों के साथ
तब तक के लिए
शुभ विदा बाय बाय ||
गुरुवर का आदेश
मिला पाक से फैक्स, सफल भाजप की रैली -
रैली पटना की सफल, सी एम् रहे बताय |
आतंकी धंधा नया, रैली सफल कराय |
रैली सफल कराय, नए अब कारोबारी |
आये नए चुनाव , नई ले रहे सुपारी |
देते सर्विस टैक्स, मिली पटना को थैली |
मिला पाक से फैक्स, सफल भाजप की रैली ||
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ख्वाब
रचना दीक्षित
ख्वाब
झलती रही पंखा साँझ सारी शाम,रात बोझिल हुई चुप चाप सो गई.
मुंह ढांप के कुहासे की चादर से,हवा गुमनाम जाने किसकी हो गई. चाँद ने ली करवट बांहों में थी चांदनी, रूठी छूटी छिटकी ठिठकी वो गई. बदली के आंचल की उलझने की हठ,आकाश की कलँगी भिगो गई. बादल के बाहुपाश में आ कर दामिनी, मन के सारे गिले शिकवे भी धो गई.
राग ने रागिनी को धीमे से जो छुआ, वो बही बह के कानों में खो गई.
आँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे, सुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
सज संवर के पंखुरियों पे बैठी थीं जो,आज वो ओस की बूंदें भी रो गईं.
मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई. |
कमाई खत्म हो जाती है अपना घर बनाने में ...
Digamber Naswa
बाजुओं में दम अगर भरपूर है
Digamber Naswa
सिर झुकाते हैं सभी दस्तूर है
बाजुओं में दम अगर भरपूर है चाँद सूरज से था मिलना चाहता रात के पहरे में पर मजबूर है छोड़ आया हूँ वहाँ चिंगारियाँ पर हवा बैठी जो थक के चूर है बर्फ की वादी ने पूछा रात से धूप की पदचाप कितनी दूर है हो सके तो दिल को पत्थर मान लो कांच की हर चीज़ चकनाचूर है वो पसीने से उगाता है फसल वो यकीनन ही बड़ा मगरूर है बेटियाँ देवी भी हैं और बोझ भी ये चलन सबसे बड़ा नासूर है |
चर्चा मंच का शुरू से ही आभारी हूँ ... क्योकि मुझे पाठक वर्ग चर्चा मंच से मिला है
जवाब देंहटाएंआपका आभारी हु मेरी रचना को शामिल करने के लिये.
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र संकलन सुंदर संयोजन !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति व अच्छे सूत्र चर्चा मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएं" जै श्री हरि: "
अच्छे सूत्र ... आभार मेरी गज़लों को जगह देने का ...
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा लिंक हमारी गजल को तवज्जो देने हेतु धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंअपनी नज़र बनाए रखे....
-खामोशियाँ
सुंदर चर्चा ! आ. राजेश जी.
जवाब देंहटाएंbahut shandar charcha prastut ki hai aapne .thanks a lot to take my post here rajesh ji
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहन राजेश कुमारी जी और भाई रविकर जी का आभार।
आप सभी का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस सुंदर चर्चा में 'धरोहर' की मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए भी...
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