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सोमवार, नवंबर 11, 2013

रूहानी गुज़ारिश : चर्चामंच 1426

शुभम दोस्तो..
आज की 1426वीं चर्चा 
लेकर हाजिर हूँ 
मैं 
सरिता भाटिया 
आइये
बढ़ें 
||
तरही गजल 
||
हुआ है आज अँधेरा 
||
अब और क्या खाओगे 
||
प्रिय तुम तो प्राण समान हो 
||
परिकल्पना और प्रेम 
||
जगत का कैसे हो उद्धार 
||
वो जानती है 
||
नई  गज़ल 
|| 
माँ के लिए 
Cover Photo
||
छठ मैया को पुनः याद करने के बहाने 
प्रेम सरोवर 
||
सूत्र की तलाश 
||
नारी सशक्तिकरण 
||
बंगाल के निर्माता 
||
कहानी 
||
BEST of LUCK
******
बड़ों को नमस्कार 
छोटों को प्यार 
शुभविदा 

 गुरुवर का आदेश 

 (१)

भोथर होती धार, करे क्या सी बी आई -


काजल कुमार Kajal Kumar


आ जा आरा दें चला, काटें यह आराम |
चर्बी हम पर भी चढ़े, बचे राम का नाम |

बचे राम का नाम, दाम भी चलो बचाएं |
दूर कुपोषण होय, आप काया ढो पाएं |

इक सा हम हो जाँय, अन्यथा बाजे बाजा |
दोनों ना चल पाँय, घुटाले वापस आ जा || 

इक ठो काना पाय, बना दें राजा, अंधे-

अंधे बाँटे रेवड़ी, लगती हाथ बटेर |
अन्न-सुरक्षा काम भी, मनरेगा का फेर |

मनरेगा का फेर, काम बिन मिले कमीशन |
नगरी में अंधेर, किन्तु मन भावे शासन |

पाई अंधी अक्ल, बंद कर 'रविकर' धंधे |
इक ठो काना पाय, बना दें राजा, अंधे || 


फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है

सुशील कुमार जोशी 

 बोये बिन उगते रहे, घास-पात लत झाड़ |
शब्द झाड़-झंकाड़ भी, उगे कलेजा फाड़ |

उगे कलेजा फाड़, दहाड़े सिंह सरीखा |
यह टाइम्स उल्लूक, उजाले में भी चीखा |

साधुवाद हे मित्र, शब्द रोये तो रोये |
हँसे भाव नितराम, बीज मस्ती के बोये ||




सी वी आई मामला, दे ऊपर अब भेज |
अब तक सत्ता ने रखा, हरदम जिसे सहेज |

हरदम जिसे सहेज, हमेशा  डंडा थामे  |
शत्रु दिखा जो तेज, केस कर उसके नामे |

कह रविकर कविराय, निराशा चहुँदिश छाई ||
भोथर होती धार, करे क्या सी बी आई ||

सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान -

मंशा मनसूबे सही, लेकिन गलत बयान |
सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान |

खुलती पाक दुकान, सजा दे मंदिर मस्जिद |
लेती माल खरीद, कई सरकारें संविद |

नीर क्षीर अविवेक, बने जब कौआ हंसा |
रहे गधे अब रेक, जगाना इनकी मंशा ||

(२)

हम इसी नौकरी में अच्छे , जी करता नहीं बगावत को -सतीश सक्सेना

ये भी ले दे , बच जायेंगे , इज्ज़त दे कौन, शराफत को ! 
हर समय पैरवी चोरों की,जी करता नहीं वकालत को !

बरसों बीते , तेरे पीछे , चलते चलते , अब जाएँ कहाँ ?
हम इसी नौकरी में अच्छे, जी करता नहीं बग़ावत को !

धरती प्यासी,अम्बर सूखे , हरियाली नज़र नहीं आये !
अपने मालिक को  ले आये , ये  कौन कहे ऐरावत को !


(३)

"क्या हो गया है?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"क्या हो गया है?"
आज मेरे देश को क्या हो गया है?
मख़मली परिवेश को क्या हो गया है??
पुष्प-कलिकाओं पे भँवरे, रात-दिन मँडरा रहे,
बागवाँ बनकर लुटेरे, वाटिका को खा रहे,
सत्य के उपदेश को क्या हो गया है?

(४)
चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी
धूप है तो क्या घटा इक रोज़ छा ही जायेगी 
चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी 

आज पतझर, फूल, पत्ती, डालियों को रौंद ले 

जब बहार आएगी गुलशन को सजा ही जायेगी 

13 टिप्‍पणियां:

  1. मित्रों।
    कल सुबह से हमारा बी.ए., एन. एल. ब्रॉडबैंड का कनक्शन फेल है
    और मोबाइल सिम से नेट चलाने में आनन्द नहीं आता है।
    इसलिए ब्लॉग पर भी कुछ नहीं लगा पाया हूँ।
    --
    मन में खीझ हो रही है।
    स्लो कनक्शन से मजा नहीं आ रहा है दोस्तों।
    --
    आज मयंक का कोना नही "रविकर का कोना"
    आदरणीय रविकर जी लगा ही देंगे।
    --
    सुन्दर चर्चा सजाने के लिए आदरणीया सरिता भाटिया जी का आभार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कोई बात नहीं ,आ. शास्त्री जी .कई बार ऐसा हो जाता है.बहुत सी चीजों पर हमारा कोई वश नहीं रहता.सरिता जी ने सुंदर चर्चा की है.

      हटाएं
    2. और हमें भी तो आदत हो गयी है
      मयंक का कोना जब नहीं आता है
      पूरा होते हुऐ भी कुछ अधूरा हो जाता है !

      हटाएं
  2. आप अच्छा लिखते है। मेरे पर आपका स्वागत हैं।
    आईऐ

    जवाब देंहटाएं
  3. एक सुंदर चर्चा में कहीं दिख रही है उल्लूक के खेत की
    "फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है"
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर चर्चा-
    शुभकामनायें आदरणीया-

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया पठनीय सूत्र , सरिता जी व चर्चा मंच को धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बढ़िया चर्चा प्रस्तुति के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया चर्चा, प्रिय सरिता जी हार्दिक बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर चर्चा...शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं

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