Followers


Search This Blog

Tuesday, November 19, 2013

मंगलवारीय चर्चामंच---१४३४ ओमप्रकाश वाल्मीकि को विनम्र श्रद्धाँजलि

आज की मंगलवारीय  चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते , आप सब का दिन मंगल मय हो,देहरादून के मशहूर साहित्यकार ओम प्रकाश बाल्मीकी जी को भावभीनी श्रद्धांजली देते हुए अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लॉग्स पर 

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

______________________________________________

ओ मेरे काल्पनिक प्रेम

------------------------------------------------------------------

आ गया जो धर्म धड़े हो गए ...

------------------------------------------------------------------

कांग्रेस मानती है : मनमोहन सिंह "भारत रत्न" के लायक नहीं ?

--------------------------------------------------------------

"पेड़ जंगल के सयाने हो गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक at उच्चारण 
जो नये थे वो पुराने हो गये हैं।
पेड़ जंगल के सयाने हो गये हैं।।

वक्त की रफ्तार ने जीना सिखाया,
जिन्दगी ने व्याकरण को है भुलाया,
प्यार-उल्फत के ठिकाने खो गये हैं।
-----------------------------------------------------------

हज़ारों दाग़ हैं ...!

Suresh Swapnil at साझा आसमान - 
-------------------------------------------------------------

समझाइशों की नदी !!!!!!!!!!!

सदा at SADA
------------------------------------------------------------------

आप भी तो अब पुराने हो गये

नीरज गोस्वामी at नीरज -

मेरा बचपन मेरा गाँव (दोहा गीत )

Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
---------------------------------------------------------

शीला कहे पुकार, जानती यद्यपि कारण-


हर-की-दून घाटी में ट्रेकिंग -- एक संस्मरण।

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन

ख़ुद अपनी नाक के नीचें धुआँ करते नहीं देखा - नवीन

Navin C. Chaturvedi at ठाले बैठे
----------------------------------------------------

आस्ट्रेलिया-आस्ट्रेलिया

-----------------------------------------------------

"झूला झूलें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक at हँसता गाता बचपन - 

भाव भाषा का अद्भुत स्नेहिल नाता...!

अनुपमा पाठक at अनुशील 
-------------------------------------------------------------

नहीं अकेला कोई जग में

-------------------------------------------------------------

बैठे ठाले - ९

noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय) at जाले -
----------------------------------------------------------

बस धन से पहचान

श्यामल सुमन at मनोरमा -
------------------------------------------------------

’ओशो’---- अछूते क्यों हैं/अछूत क्यों है?

मन के - मनके at मन के - मनके - 
---------------------------------------------------------

नारे और भाषण लिखवा लो- नारे और भाषण की दुकान


भारत कठिन परिश्रम करने वाले लोगों को सम्‍मानित करता है: वैज्ञानिक सी एन राव

---------------------------------------------------------------

Untitled

Vaanbhatt at वाणभट्ट - 
----------------------------------------------------------

तटस्थता का झंझट

संजय अनेजा at मो सम कौन कुटिल खल
-------------------------------------------------------------------

''यारों दोस्ती बड़ी ही हसीन है''

Ragini at अस्तित्व - 

कार्तिक पूरनमासी की रात

रश्मि शर्मा at रूप-अरूप 

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी और चक्रव्यूह : दो फ़िल्में: आंदोलन तब और अब

नारी भावना...


ओमप्रकाश वाल्मीकि को विनम्र श्रद्धाँजलि

naveen kumar naithani at लिखो यहां वहां 

अब अंत में देहरादून के मशहूर साहित्यकार ओम प्रकाश बाल्मीकी जी

  को नमन करते हुए ये उनकी ये विडियो दिखा रही हूँ  

आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ  फिर चर्चामंच पर हाजिर होऊँगी  कुछ नए सूत्रों के साथ तब तक के लिए शुभ विदा बाय बाय ||

--
'मयंक का कोना'
--
एक ग़ज़ल के साथ...आज से "सृजन मंच ऑनलाइन" पर ग़ज़ल की शुरूआत की जा रही है। सभी योगदानकर्ताओं से अनुरोध है कि अपनी ग़ज़ल और उससे सम्बन्धित जानकारीपरक पोस्ट इस ब्लॉग पर लगाने की कृपा करें।
जवानी ढलेगी मगर धीरे-धीरे।करेगा बुढ़ापा असर धीरे-धीरे।।सहारा छड़ी का ही लेना पड़ेगा।झुकेगी सभी की कमर धीरे-धीरे।।
प्रश्न : मतला क्या होता है ?
उत्तर : ग़ज़ल के प्रारंभिक शे'र को मतला कहते हैं | मतला के दोनों मिसरों में तुक एक जैसी आती है | मतला का अर्थ है उदय | उर्दू ग़ज़ल के नियमानुसार ग़ज़ल में मतला और मक़ता का होना अनिवार्य है वरना ग़ज़ल अधूरी मानी जाती है । लेकिन आज-कल नवागुन्तक ग़ज़लकार मकता के परम्परागत नियम को नहीं मानते है या ऐसा भी हो सकता है कि वो इस नियम की गहराई में जाना नहीं चाहते व इसके बिना ही ग़ज़ल कहते हैं...
--

तारा टूटे कहीं तो भगवान करे उसे बस माँ देखे

ऐसा बहुत बार हुआ है 
आसमान से टूटता हुआ एक तारा 
नीचे की ओर उतरता हुआ जब दिखा है 
गूंजे हैं कान में किसी के कहे हुऐ कुछ शब्द 
तारे को टूटते हुऐ देखना बहुत अच्छा होता है
 सोच लो मन ही मन कुछ
कभी ना कभी जरूर पूरा होता है...

उल्लूक टाईम्सपरसुशील कुमार जोशी

--

आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma 
--

आपका ब्लॉग पर Ramesh Pandey 

--
पूर्वाग्रहों का क्‍या अर्थ है? यही कि अगर बिल्‍ली वो भी काली बिल्‍ली रास्‍ता काट दे तो अपशकुन तय है। काला कौवा घर के आंगन में कांय-कांय करे तो बुरी खबर मिलने के आसार हैं। इनके अलावा भी कितनी ही बातें पूर्वाग्रह के अन्‍दर आती होंगी। मेरे अबोध दिमाग में जब ये बातें पड़ी होंगी तो निश्चित रुप से मैं इन्‍हें नकार नहीं सकता था क्‍योंकि इनके बारे में मुझे मेरे बड़ों द्वारा बताया गया था। आज जब दीन-दुनिया को खुद समझ सकता हूँ तो अबोध स्‍मृति में कैद हुए पूर्वाग्रहजनित अनुभव मुझे अब भी कहीं न कहीं किसी न किसी बात पर या घटना होने पर विचलित करते हैं...
--
सारा दिन, घन्ना और छेनी की आवाज़ आती रहती थी ।  बड़े-बड़े चट्टान निकल आये थे कूएँ के अंदर, और उनको तोड़ने का एक ही उपाय था, चट्टानों में छेनी-हथौड़े से सुराख बनाना, उनमें बारूद भरना, पलीता लगाना और आग लगा कर भागना...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा 
--
--
बादल के कोर पर 
पलकों के छोर पर 
एक आँसू सा रुका है 
मेघ का मौसम झुका है...
यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा 

--

निरंजन बेजोड़

शब्‍द श्‍यामल पर Shyam Bihari Shyamal 

35 comments:

  1. स्व.बाल्मिकी जी को श्रद्धांजलि और नमन |
    आशा

    ReplyDelete
  2. श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि जी को श्रद्धांजलि!
    ***

    ReplyDelete
  3. चर्चा सूत्र इतनी सुन्दरता से पिरोने हेतु बधाई
    व आभार!

    ReplyDelete
  4. ओमप्रकाश वाल्मीकि जी को विनम्र श्रद्धाँजलि के साथ आभार मयंक के कोने पर उल्लूक का "तारा टूटे कहीं तो भगवान करे उसे बस माँ देखे" को स्थान देने के लिये !

    ReplyDelete
  5. बहुत ही बेहतरीन चर्चा सजाई है .. सारे सूत्र एक से बढ़ कर एक ..

    ReplyDelete
  6. बढ़िया चर्चा पढ़ लिया, दीदी जी आभार |
    मंगल मंगल दृश्य हैं, जय जय मंगलवार ||

    ReplyDelete
  7. तारा टूटे कहीं तो भगवान करे उसे बस माँ देखे

    उल्लूक टाईम्सपरसुशील कुमार जोशी

    टूटा तारा देख कर, माता के मन-प्राण |
    मांग रही हरदम यही, हो सबका कल्याण ||

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर चर्चा एवं लिंक्स ! आ. राजेश जी एवं आ. शास्त्री जी.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
    स्व.वाल्मिकी जी को श्रद्धांजलि और नमन .

    ReplyDelete
  9. आज की चर्चा भी बहुत बढ़िया रही व सूत्र भी , चर्चा मंच को धन्यवाद
    नया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६

    ReplyDelete
  10. अच्छी चर्चा
    बढिया लिंक्स

    ReplyDelete
  11. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार

    ReplyDelete
  12. लिंक-लिक्खाड़ पर..........

    विविध - भारती की तरह ,पचरंगी अंदाज
    कहीं खिलाते फूल तो कहीं गिराते गाज
    कहीं गिराते गाज, आज पर गढ़ कुण्डलिया
    भाँति -भाँति के रंग,दिखाते हैं बन छलिया
    कभी महकती साँझ , कभी है प्रात-आरती
    पचरंगी प्रोग्राम , लग रहे विविध-भारती ||

    ReplyDelete
  13. सुन्दर चर्चा, सुन्दर लिंक्स.............

    ReplyDelete
  14. सुन्दर चर्चा लिंक ... शुक्रिया मुझे शामिल करने का ...

    ReplyDelete
  15. बेहतरीन चर्चा ..... चैतन्य को शामिल करने का आभार

    ReplyDelete
  16. सुन्दर चर्चा ...............आभार

    ReplyDelete
  17. सुंदर चर्चा....मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार..

    ReplyDelete
  18. स्वार्थ के रँग में रँगे अनुबन्ध हैं,
    बस दिखावे के लिए सम्बन्ध हैं,
    “रूप” अपने भी बिराने हो गये हैं।

    बहुत सुन्दर है।

    ----------------------------------
    "पेड़ जंगल के सयाने हो गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    रूपचन्द्र शास्त्री मयंक at उच्चारण

    जो नये थे वो पुराने हो गये हैं।
    पेड़ जंगल के सयाने हो गये हैं।।

    वक्त की रफ्तार ने जीना सिखाया,
    जिन्दगी ने व्याकरण को है भुलाया,
    प्यार-उल्फत के ठिकाने खो गये हैं।

    ReplyDelete
  19. बहुत सुन्दर है।

    तफसील से समझाया है गज़ल को लेकिन यार ये मतला को मत्ला और शैर को यार लोग शेर (लाइन )काहे कह रहें हैं लिख रहें हैं ?कई तो गज़ल को भी गजल कह लिख रहे हैं ?एक गज़ल इन पर भी हो जाए।

    "ग़ज़ल की शुरूआत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    एक ग़ज़ल के साथ...आज से "सृजन मंच ऑनलाइन" पर ग़ज़ल की शुरूआत की जा रही है। सभी योगदानकर्ताओं से अनुरोध है कि अपनी ग़ज़ल और उससे सम्बन्धित जानकारीपरक पोस्ट इस ब्लॉग पर लगाने की कृपा करें।

    जवानी ढलेगी मगर धीरे-धीरे।
    करेगा बुढ़ापा असर धीरे-धीरे।।
    सहारा छड़ी का ही लेना पड़ेगा।
    झुकेगी सभी की कमर धीरे-धीरे।।
    प्रश्न : मतला क्या होता है ?
    उत्तर : ग़ज़ल के प्रारंभिक शे'र को मतला कहते हैं | मतला के दोनों मिसरों में तुक एक जैसी आती है | मतला का अर्थ है उदय | उर्दू ग़ज़ल के नियमानुसार ग़ज़ल में मतला और मक़ता का होना अनिवार्य है वरना ग़ज़ल अधूरी मानी जाती है । लेकिन आज-कल नवागुन्तक ग़ज़लकार मकता के परम्परागत नियम को नहीं मानते है या ऐसा भी हो सकता है कि वो इस नियम की गहराई में जाना नहीं चाहते व इसके बिना ही ग़ज़ल कहते हैं...
    सृजन मंच ऑनलाइन


    ReplyDelete
  20. बहुत खूब चैतन्य भाई -तुमको हमारी उम्र लग जाए।


    चैतन्य का कोना

    ReplyDelete

  21. भाई साहब बड़े मौज़ू सवाल उठाएं हैं आपने जाले के तहत। इन बचकाने सेकुलर सियारों के बारे में यही कहना पर्याप्त होगा -तुलसी बुरा न मानिये जो सेकुलर कह जाए। जो लोग प्रजा तंत्र में लोगों की भावना का सम्मान नाहन कर सकते वे भले देश छोड़के चले जाएं। देश की अस्मिता किसी व्यक्ति की मोहताज़ नहीं रहती है। यहाँ कितने आये गए। आखिर किसी भी व्यक्ति को डेमोनॉइज़ करने का क्या मकसद है।

    बैठे ठाले - ९
    noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय) at जाले -
    ----------------------------------------------------------

    ReplyDelete
  22. अच्छा बांधा है भाव को तारा टूटने ,उलका और उलकापात९अनेक तारों का एक साथ टूटना ) के मार्फ़त। हर समाज की अपनी आस्थाएं इन आकाशीय पिंडों से जुडी रहीं हैं। कहीं भय मूलक कहीं आस का पल्लू थामे। हमारी माँ कहती थी -तारा टूटा है कोई मर गया -राम राम बोलो।

    अच्छी प्रस्तुति जी सुशील कुमार जी।

    --
    तारा टूटे कहीं तो भगवान करे उसे बस माँ देखे
    ऐसा बहुत बार हुआ है
    आसमान से टूटता हुआ एक तारा
    नीचे की ओर उतरता हुआ जब दिखा है
    गूंजे हैं कान में किसी के कहे हुऐ कुछ शब्द
    तारे को टूटते हुऐ देखना बहुत अच्छा होता है
    सोच लो मन ही मन कुछ
    कभी ना कभी जरूर पूरा होता है...
    उल्लूक टाईम्सपरसुशील कुमार जोशी
    --

    ReplyDelete
  23. सुन्दर !नहीं अकेला कोई जग में
    Anita at डायरी के पन्नों से

    ReplyDelete

  24. नाहक हमको टोक रही क्यों?
    हमें खेल से रही क्यो??

    नाहक हमको टोक रही क्यों?
    हमें खेल से "रोक' रही क्यो??सुन्दर बाल गीत।
    --------------------------------------------
    "झूला झूलें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    रूपचन्द्र शास्त्री मयंक at हँसता गाता बचपन -

    ReplyDelete
  25. याला याला दिल ले गया ,कोई हसीं सपनो में आये ,ट्रेकिंग तस्वीरें दिखाए याला याला दिल ले गया। ... बढ़िया संस्मरण टेकिंग की मस्ती और ज़ाबाज़ी संग।

    ReplyDelete
  26. प्यासी बहनें जा रहीं, रुकने का अनुरोध |
    शीला का दुःख देखिये, शहजादे का क्रोध |

    शहजादे का क्रोध, मन:स्थित समझ करीबी |
    करते रहते शोध, किन्तु नहिं ख़तम गरीबी |

    रविकर देखें बोय, खेत में सत्यानाशी |
    बढ़िया पैदावार, बहन पर भूखी-प्यासी ||


    भाषण सुनकर जाइये, पूरी करिये साध |
    एक घरी आधी घरी, आधी की भी आध |

    आधी की भी आध, विराजे हैं शहजादे |
    करिये वाद-विवाद, किन्तु सुनिये ये वादे |

    शीला कहे पुकार, जानती यद्यपि कारण |
    जाने को सरकार, फर्क डाले क्या भाषण ||

    दीवाने का हाल तो देखो कवि से भी बदतर दिख रहा है कोई इसे सुनने को तैयार नहीं अम्मा मंत्री प्रधान बनाने के सपने देखे जाए है।

    ReplyDelete
  27. मक्के की वो रोटियां ,औ सरसों का साग|
    कोल्हू का वो गुड़ गरम , गन्ने का वो झाग||

    कोल्हू का वो गुड़ गर्म रसगन्ने का झाग।

    सुन्दर परिवेश रचा है दोहावली में।

    ReplyDelete
  28. ज़ुल्म के खिलाफ खड़े हो गए
    नौनिहाल आज बड़े हो गए

    थे जो सादगी के कभी देवता
    बुत उन्ही के रत्न जड़े हो गए

    ये चुनाव खत्म हुए थे अभी
    लीडरों के नाक चड़े हो गए

    नकचढ़े -नाकचढ़े हो गए

    बहुत सुन्दर रचना है नासवा साहब।

    ReplyDelete
  29. सेकुलर सियार सभी आ गए ,

    वोटरों के कान खड़े हो गए।

    नौनिहाल आज बड़े हो गए ,

    बहुत सुन्दर गज़ल कही है नासवा साहब।

    ReplyDelete
  30. सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
    सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

    बहुत सुन्दर है अनंत भाई अरुण -

    पानी से पानी मिले ,मिले कीच से कीच ,

    अच्छों को अच्छे मिलें ,मिलें नीच को नीच।

    ReplyDelete
  31. बहन राजेश कमारी जी आपका आभार।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों
    और टिप्पणीदाताओं का धन्यवाद।

    ReplyDelete
  32. राजेश जी, कल व्यस्तता के कारण नहीं आ सकी, सुंदर चर्चा ... आभार !

    ReplyDelete
  33. आप सभी मित्रों का चर्चामंच पर उपस्थित होने पर हार्दिक आभार .

    ReplyDelete
  34. Meri Ghazal ko charcha manch laayak samajhne ka shukriya...

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।