Dancing Peacock - नाचता हुआ मोर
Aina Sidd
|
देश को खाते रहे
S.N SHUKLA
|
है कैसा पाषाण
Asha Saxena
|
भूकंप आया, धरती हिली या सहम गई धरा, कहीं तो कुछ होगा गिरा (कविता)
नुक्कड़
|
ख़लिश
raviish 'ravi'
|
कहीं कुछ शाश्वत नहीं
ऋता शेखर मधु
|
Jai Bhardwaj
|
आप भक्त हैं या भांड - सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना
|
पीछे मुड़कर देख लिया तो पत्थर के हो जाओगे.....नूर बिजनौरी
yashoda agrawal
|
मौसम सर्दियों का
Ghotoo
|
यदि तुम आजाते जीवन में….डा श्याम गुप्त ...
|
|
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
|
"मयंक का कोना"
--
एक दरख्त|दरख्त|अमि'अज़ीम'| पर amitesh jain
--
तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी 'सलिल'
--
बेटियाँ मिट्टी के दियों की तरह होतीं हैं
कहीं लेती हैं जन्म और कहीं जलती हैं
कुम्हार कैसे करीने से दिया गढ़ता है
आग में रखता है तब उसमे रंग चढ़ता है
कोई ले जाता है मन्दिर में जलाने के लिए
और कोई तो उसे सोने से भी मढ़वाता है
चार पल दुसरे के घर की रौशनी के लिए
ये दिया आग को माथे पे सजा लेता है...
--
जानती हूँ तुम मुझे मना नहीं करते किसी भी चीज के लिए,,
पर कभी - कभी तुम्हारी ना सुनने को जी चाहता है....
इसलिए जानबूझकर कुछ ऐसी बात कर ही देती हूँ
कि तुम चाहकर भी हाँ ना बोल पाओ ....
--
ज़िंदगी के मेले पर बी एस पाबला
--
समर्थन
मेरा पूरा समर्थन मुंबई की 'केम्पाकोला सोसायटी' के उन परिवारों के साथ
उन लोगो के साथ है जिनके आवासों को बीएमसी ने अवैध करार दिया है .......
मुझे कुछ कहना है ....पर अरुणा
--
क्या '' नोटा " का बटन दबाना ठीक रहेगा...
फ़िर चुनाव का मौसम आया आ पहुँचे घर-घर नेता ॥
भीख वोट की झुक-झुक माँगें जाकर के दर-दर नेता...
डॉ. हीरालाल प्रजापति
--
प्यार में हो न सकूंगी
तुम जबसे नहीं ज़िंदगी मेंहरेक सुबह ऎसी है जैसे कई दिन की छुट्टी के बाद काम पर जाना .
तुम्हारे बग़ैर ..हरेक सड़क ,बस...वन वे कुछ नहीं जिससे वापस आया जाये और अगर लौटा भी जाए किसी तरह तो ,सवाल यह की आखिर किसके लिए...
ज़िन्दगीनामा पर Nidhi Tandon
--
हनुमान मंदिर चलिया भाग 8
ॐ ..प्रीतम साक्षात्कार ..ॐ पर सरिता भाटिया
--
चेहरे को
खुद ही बदलना
आखिर क्यों नहीं आ पाता है
उल्लूक टाईम्स पर
सुशील कुमार जोशी
--
पुरूष प्रधान समाज
यह पुरुष प्रधान समाज
आज भी है वहीं का वहीं
चाहे हो बेटा,पति,दोस्त या भाई
इनका ATTITUDE आज भी है HIGH...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
--
ग़ज़ल ( जिंदगी का सफ़र)
बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है
प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है...
मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें
--
"सेबों का मौसम"
बालकृति नन्हें सुमन से
एक बाल कविता
"सेबों का मौसम"देख-देख मन ललचाया है
सेवों का मौसम आया है ।
कितना सुन्दर रूप तुम्हारा।
लाल रंग है प्यारा-प्यारा...
नन्हे सुमन
--
"अज्ञान के तम को भगाओ"
उच्चारण
--
कुछ लिंक आपका ब्लॉग से..
--
क्या है कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम ?
लक्षण और बचाव ?
अमूमन एक मिनिट के वक्फे में हम १८ बार पलक झपक लेते हैं। लेकिन कंप्यूटर पर काम करते हुए ऐसा अक्सर नहीं ही होता है कभी नौनिहालों को देखिये कैसे चिपक जाते हैं कंप्यूटर स्क्रीन से।और सिर्फ कंप्यूटर ही क्यों सभी डिजिटल प्रणालियों से चिपके नौनिहालों को आबालवृद्धों को कभी चेक कीजिये हमारी बात की पुष्टि हो जायेगी। पलक देर तक न झपकाने से और घंटों इसी सिलसिले के ज़ारी रहने से ड्राई आई सिंड्रोम ही नहीं ,आँखों में जलन और दाह का भी अनुभव हो सकता है आपको।बे -तरह आँख में खुजलाहट भी हो सकती है। आँखों में लाली भी दिख सकती है....
--
अमूमन एक मिनिट के वक्फे में
हम १८ बार पलक झपक लेते हैं।
लेकिन कंप्यूटर पर काम करते हुए
ऐसा अक्सर नहीं ही होता है कभी नौनिहालों को
देखिये कैसे चिपक जाते हैं कंप्यूटर स्क्रीन से
--
ट्रांस फैट खाते चले जाने का मतलब
धमनियों को सील करना है अदबदाकर
माजरीन कृत्रिम मख्खन को आप कह सकते हैं
यह पशु या वनस्पति से बना मख्खन जैसा खाद्य पदार्थ है।
और कृत्रिम ट्रांस फेट के एक उदाहरण के रूप में आप इसे ले सकते हैं।
कृत्रिम ट्रांसफैट कैसे तैयार किये जाते हैं ?
--
आस्था (कुण्डलिया)
आस्था से है सरोबर, अपना भारत देश ।
कण कण ईष्वर पूजते, पूजते साधु वेष ।।
पूजते साधु वेष, चाहे वह छला जावे ।
कोठी साधु कुटिया, भगत को भरमावे ।।
स्वयं माया लिप्त, सुनावे माया गाथा ।
सहे वार पर वार, कैसे बचे अब आस्था ।।
--
ग़ज़ल की ग़ज़ल...डा श्याम गुप्त ....
शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है।
और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है । हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है...
--
समर्थन
मेरा पूरा समर्थन मुंबई की 'केम्पाकोला सोसायटी' के उन परिवारों के साथ
उन लोगो के साथ है जिनके आवासों को बीएमसी ने अवैध करार दिया है .......
मुझे कुछ कहना है ....पर अरुणा
--
क्या '' नोटा " का बटन दबाना ठीक रहेगा...
फ़िर चुनाव का मौसम आया आ पहुँचे घर-घर नेता ॥
भीख वोट की झुक-झुक माँगें जाकर के दर-दर नेता...
डॉ. हीरालाल प्रजापति
--
प्यार में हो न सकूंगी
तुम जबसे नहीं ज़िंदगी मेंहरेक सुबह ऎसी है जैसे कई दिन की छुट्टी के बाद काम पर जाना .
तुम्हारे बग़ैर ..हरेक सड़क ,बस...वन वे कुछ नहीं जिससे वापस आया जाये और अगर लौटा भी जाए किसी तरह तो ,सवाल यह की आखिर किसके लिए...
ज़िन्दगीनामा पर Nidhi Tandon
--
हनुमान मंदिर चलिया भाग 8
ॐ ..प्रीतम साक्षात्कार ..ॐ पर सरिता भाटिया
--
चेहरे को
खुद ही बदलना
आखिर क्यों नहीं आ पाता है
उल्लूक टाईम्स पर
सुशील कुमार जोशी
--
पुरूष प्रधान समाज
यह पुरुष प्रधान समाज
आज भी है वहीं का वहीं
चाहे हो बेटा,पति,दोस्त या भाई
इनका ATTITUDE आज भी है HIGH...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
--
ग़ज़ल ( जिंदगी का सफ़र)
बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है
प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है...
मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें
--
"सेबों का मौसम"
बालकृति नन्हें सुमन से
एक बाल कविता
"सेबों का मौसम"देख-देख मन ललचाया है
सेवों का मौसम आया है ।
कितना सुन्दर रूप तुम्हारा।
लाल रंग है प्यारा-प्यारा...
नन्हे सुमन
--
"अज्ञान के तम को भगाओ"
उच्चारण
--
कुछ लिंक आपका ब्लॉग से..
--
क्या है कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम ?
लक्षण और बचाव ?
अमूमन एक मिनिट के वक्फे में हम १८ बार पलक झपक लेते हैं। लेकिन कंप्यूटर पर काम करते हुए ऐसा अक्सर नहीं ही होता है कभी नौनिहालों को देखिये कैसे चिपक जाते हैं कंप्यूटर स्क्रीन से।और सिर्फ कंप्यूटर ही क्यों सभी डिजिटल प्रणालियों से चिपके नौनिहालों को आबालवृद्धों को कभी चेक कीजिये हमारी बात की पुष्टि हो जायेगी। पलक देर तक न झपकाने से और घंटों इसी सिलसिले के ज़ारी रहने से ड्राई आई सिंड्रोम ही नहीं ,आँखों में जलन और दाह का भी अनुभव हो सकता है आपको।बे -तरह आँख में खुजलाहट भी हो सकती है। आँखों में लाली भी दिख सकती है....
--
अमूमन एक मिनिट के वक्फे में
हम १८ बार पलक झपक लेते हैं।
लेकिन कंप्यूटर पर काम करते हुए
ऐसा अक्सर नहीं ही होता है कभी नौनिहालों को
देखिये कैसे चिपक जाते हैं कंप्यूटर स्क्रीन से
--
ट्रांस फैट खाते चले जाने का मतलब
धमनियों को सील करना है अदबदाकर
माजरीन कृत्रिम मख्खन को आप कह सकते हैं
यह पशु या वनस्पति से बना मख्खन जैसा खाद्य पदार्थ है।
और कृत्रिम ट्रांस फेट के एक उदाहरण के रूप में आप इसे ले सकते हैं।
कृत्रिम ट्रांसफैट कैसे तैयार किये जाते हैं ?
--
आस्था (कुण्डलिया)
आस्था से है सरोबर, अपना भारत देश ।
कण कण ईष्वर पूजते, पूजते साधु वेष ।।
पूजते साधु वेष, चाहे वह छला जावे ।
कोठी साधु कुटिया, भगत को भरमावे ।।
स्वयं माया लिप्त, सुनावे माया गाथा ।
सहे वार पर वार, कैसे बचे अब आस्था ।।
--
ग़ज़ल की ग़ज़ल...डा श्याम गुप्त ....
शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है।
और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है । हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है...
कहीं कुछ शाश्वत नहीं
जवाब देंहटाएंकुछ भी तो नहीं
न अँधेरा न उजाला
न गीष्म न शरद
न अमृत न विष का प्याला
(शाश्वत है जीवात्मा ,परमात्मा और माया )
"ग्रीष्म "
बुढ़पे में जीने की इच्छा जगाती है
"बुढ़ापे" में जीने की इच्छा जगाती है -
यहाँ कोई किसी का पिता नहीं है न माता ,न भ्राता ,अनन्त काल से कितनी बार जिसे आप यह सब समझ रहें हैं वह अनेक अन्य संबंधों में आपके साथ रहा है। जीवात्मा निकल जाने दो -फिर कहतें हैं निकालो इस मिट्टी को।
हाँ गति भी शाश्वत है तभी तो परम गति या परम विराम नहीं है जगत में आवा जाही है।
हाँ शाश्वत है मृत्यु भी-
पैदा हो जातीहैजन्म के साथ,
मृत्यु भी -
जन्म और मृत्यु दो दरवाज़े हैं आमने सामने ,
बस एक से निकल दूजे में जाना है ,
जीवन का यही फ़साना है
रहना नहीं देश बिराना है
मन फूला फूला फिरे जगत में झूठा नाता रे ,
जब तक जीवे माता रोवे ,
बहन रोये दस मासा रे ,
तेरह दिन तक तिरिया रोवे ,
फेर करे घर वासा रे।
बेहद खूब सूरत रचना है आपकी। दर्शन को जगाती जड़त्व तोड़ती हुई
कहीं कुछ शाश्वत नहीं
ऋता शेखर मधु
मधुर गुंजन
छोड़ दो कर्कश विदेशी गान को,
जवाब देंहटाएंप्यार के मृदुगान को अब गुनगुनाओ।
बन सको तो, नारियल जैसे बनो,
“रूप” अन्तस का जमाने को दिखाओ।
अति सुन्दर भाव और अर्थ अन्विति।
छोड़ दो कर्कश विदेशी गान को,
प्यार के मृदुगान को अब गुनगुनाओ।
बन सको तो, नारियल जैसे बनो,
“रूप” अन्तस का जमाने को दिखाओ।
अति सुन्दर भाव और अर्थ अन्विति।
लोकशाही में हमेशा लोक ही होता बड़ा
प्रजा का तो तन्त्र होता है प्रजा से ही खड़ा
जुगनुओं ठेंगा न सूरज को दिखाना चाहिए
सुन्दर।
"ठेंगा न सूरज को दिखाना चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
सही कटाक्ष .
जवाब देंहटाएंमिला पाक से फैक्स, सफल भाजप की रैली -
रैली पटना की सफल, सी एम् रहे बताय |
आतंकी धंधा नया, रैली सफल कराय |
रैली सफल कराय, नए अब कारोबारी |
आये नए चुनाव , नई ले रहे सुपारी |
देते सर्विस टैक्स, मिली पटना को थैली |
मिला पाक से फैक्स, सफल भाजप की रैली ||
सब के सब रो -बोट -
जवाब देंहटाएंबने आतंकी दल्ले -
आई एस आई लिस्ट लिए है
बुद्धि -मंदे -
कार्टून :- नेताई ही कहॉं आसां है रे बांगड़ू
गोवा का हौव्वा बड़ा, खड़ा सामने आय |
तालिबान नेता बड़ा, फोटो लिया खिंचाय |
फोटो लिया खिंचाय, हमारे वित्त मिनिस्टर |
गृह-मंत्री विलखाय, यहाँ आई यम पर बककर |
इत दिग्गी तौकीर, देश का अमन बिलोवा |
मँहगाई की पीर, देख ना पाये गोवा ||
धारा के संग जाइए, चंगा रहे शरीर |
जवाब देंहटाएंचार दिनों का सफ़र कुल, काहे होत अधीर ||
अति सुन्दर मनोहर रस धार कथा चल रही है .
कन्या का नामकरण : भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता
सर्ग-२
भाग-3
कन्या का नामकरण
जीव-जंतु जंगल नदी, सागर खेत पहाड़ |
बंदनीय हैं ये सकल, इनको नहीं उजाड़ ||
रक्षा इनकी जो करे, उसकी रक्षा होय |
शोषण गर मानव करे, जाए जल्द बिलोय ||
केवल क्रीडा के लिए, मत करिए आखेट |
भरता शाकाहार भी, मांसाहारी पेट ||
जवाब देंहटाएंदूध को दूध
पानी को पानी बताता |
एक आम व्यक्ति के लिए
मन की अभिव्यक्ति के लिए
सत्य या झूठ को
उजागर करने के लिए
इस अबोले यंत्र का
है महत्त्व कितना
आज जान पाया |
नेता पर ये काम न आया
यंत्र अबोला
Asha Saxena
Akanksha
अच्छा है जो है नहीं, यंत्र पकड़ ले झूठ |
सपने जाते टूट फिर, अपने जाते रूठ ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजागे भारत / भाग 1
pratibha sowaty
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
वो कवि नहीं जिनका काव्य -
मौसिकी पे चलता है ,
हद है अब तो सरहद पर हर शब्द
अस्त्र में ढ़लता है -
सब शब्द हो चले आज मिसायल।
फ़नकारों का ज़हर तुम्हारे गीतों पर जम जाएगा
जवाब देंहटाएंकब तक अपने होंठ, मेरी जां,सांपों से डसवाओगे
चीखेंगी बदमस्त हवाएँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ों में
रूठ के जानेवाले पत्तों! कब तक वापस आओगे
जादू की नगरी है ये प्यारे, आवाजों पर ध्यान न दो
पीछे मुड़कर देख लिया तो पत्थर के हो जाओगे
सलाम नूर बिजनौरी को सलाम यशोधरा को जिन बिजनौरी दियो पढ़ाय
कृपया कहें कि हम किसी के भांड नहीं हैं और न बिकाऊ हैं ! विचारों का सपोर्ट करें मगर व्यक्ति का नहीं ! वह हम जैसा ही है, उसमे वे तमाम ऐब और कमजोरियां हैं जो हम सबमें होती हैं , उसे भगवन बना कर आप ईश्वर का अपमान और अपनी बेवकूफी उजागर कर रहे हैं !
जवाब देंहटाएंअब तो भैया देश मेरा चर्च के एजेंट का रिमोट हो गया -
क्या बात है सक्सेना साहब राजनीतिक भांड -गिरी मिनिस्टर पद दिलवाती है ,
आप भक्त हैं या भांड - सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना
मेरे गीत !
जवाब देंहटाएंख़लिश
raviish 'ravi'
सादर ब्लॉगस्ते!
बहुत खूब लिखा है !मुश्किल अलफ़ाज़ के अर्थ लिख देते तो बहुतों का भला हो जाता .
देश को खाते रहे
जवाब देंहटाएंदेश को खाते रहे
दीमकों से हम इधर घर को बचाते रह गए ,
और कीड़े कुर्सियों के, देश को खाते रहे.
हम इधर लड़ते रहे आपस में दुश्मन की तरह,
उधर सरहद पार से घुसपैठिये आते रहे .
प्याज-रोटी भी हुआ मुश्किल, गरानी इस कदर,
मुल्क मालामाल है , यह गीत वे गाते रहे .
क्या बात है एस एन शुक्ला साहब आज ऐसी गज़ल की ज़रुरत है जबकि गणतंत्र चूहे प्रजा तंत्र को कुतर कुतर के खा रहे हैं -
लंगोट गांधी का दिखला रहे हैं।
देश को खाते रहे
S.N SHUKLA
MERI KAVITAYEN
सुंदर चर्चा ! आ. रविकर जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा सुंदर सूत्र सुंदर सुंदर विरेंद्र जी की टिप्पणियों के साथ उल्लूक का भी कहीं दिख रहा है हाथ आभार "चेहरे को खुद ही बदलना आखिर क्यों नहीं आ पाता है" को शामिल करने के लिये !
जवाब देंहटाएंबढ़िया सजा आज का यह चर्चामंच |
जवाब देंहटाएंमेरी दोनों रचना शामिल करने के लिए आभार रविकर जी |
आशा
आदरणीय श्री रविकर जी , बहुत सुन्दर प्रस्तुति व पठनीय सूत्र , चर्चा मंच व श्री रविकर जी को धन्यवाद * जै श्री हरि: *
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....आभार!
जवाब देंहटाएंभाई रविकर जी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और उपयोगी चर्चा के लिए आपका आभार।
बढ़िया सूत्र संयोजन-सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंमेरी रचना 'क्या '' नोटा " का बटन दबाना ठीक रहेगा...' को शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएं'जागे भारत ' को शामिल करने के लिए / तहेदिल से शुक्रिया सर !
जवाब देंहटाएं