शान्तिपूर्वक विश्राम करो हेमराज, और आरूषि तुम भी... और प्लीज, बंद करो अब यह कांव कांव फिर से...
प्रवीण
कोठा पर टी आर पी, ज्यों कोठे पर देह |
बनते लाल दलाल तो, भरे तिजोरी गेह |
भरे तिजोरी गेह, नहीं मतलब शुचिता से |
चिता जले उस ओर, प्रश्न मत पूछ पिता से |
क़त्ल करे दुर्दांत, धार घटना की गोठा |
ले सबूत कुल खाय, बिगड़ता लेकिन कोठा ||
कोठा बिगड़ना=अपच होना /
|
कहानी- सवाल एक करोड़ का
savan kumar
बेटा लगता दाँव पर, युद्ध-क्षेत्र में भीड़ |
अब नकार हुंकार या, तिनके तिनके नीड़ | तिनके तिनके नीड़, चीर दे कई कलेजे | बिखर गए अरमान, कौन था उस दिन लेटा | यह तो टुकड़ा एक, करोड़ों कहाँ सहेजे | जब बिछ गई विसात, कौन फिर किसका बेटा || |
धन्य धन्य है काव्य यह, पड़े विज्ञ कि दृष्ट |
साधुवाद कवियत्री, बने श्रेष्ठ यह सृष्ट ||
|
राजेश श्रीवास्तव
झिल्लू यादव को नमन, दे कसाब को रोक | पहले कुर्सी फेंकता, फिर दे फायर झोंक | फिर दे फायर झोंक, राष्ट्रपति पदक दिए थे | साधुवाद हे वीर, बड़े उपकार किये थे | तेरे जैसे शेर, मार देंगे ये पिल्लू | खत्म होय आतंक, अगर होवे इक झिल्लू || |
चालाक महिला
Ayodhya Prasadc
|
सुबह का अहसास
Maheshwari kaneri
|
"कैजुअल सेक्स" बिगाड़ेगा मानसिक स्वास्थ्य
chandan bhati
|
क्या मिला है देश को इस संविधान से ...
Digamber Naswa
|
सोलवां साल.......यानि.......
mridula pradhan
|
श्लेष्मल झिल्लियों को नम बनाए रखने के लिए विटामिन -A हीरो है। इन सर्दियों में ठंड से बचाव के लिए
Virendra Kumar Sharma
|
इंसान बानीSwati Vallabha Raj |
चुनावी बेला में 'मताधिकार'
KK Yadav
|
सोच रहा हूँ आज कलम को अपने मन की बात बता दूँ
Manoj Nautiyal
|
"हाथ जलने लगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
|
आम आदमी सा धरे, जहाँ पार्टी नाम-
एकाकी उस नाम से, औरत का क्या काम |
आम आदमी सा धरे, जहाँ पार्टी नाम |
जहाँ पार्टी नाम, कटे आधी आबादी |
रहें साथ कुछ ख़ास, ख़ास कुछ अम्मा दादी |
बदल आदमी सोच, उपेक्षा यह अबला की |
मारे पंजा खोंच, उधर न जाए काकी ||
|
परिचयनामा : डा. रुपचंद्र शास्त्री "मयंक"
डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक” से युं तो आप उनके ब्लाग उच्चारण के माध्यम से अच्छी तरह परिचित हैं. इनके ब्लाग ने बहुत ही कम समय मे नई ऊंचाईयों को छुआ है. महज चार माह में २२७ कविताओं का प्रकाशन, अपने आप मे एक रिकार्ड है. |
--
श्याम स्मृति- ......बंधन ही स्वतन्त्रता है
बंधन क्या है, मुक्ति क्या है, स्वतन्त्रता क्या है ? क्या सांसारिक कर्तव्य, कृतित्व, दायित्व बंधन हैं ? गृहस्थी, पारिवारिक सम्बन्ध, आपसी संवंध या स्त्री-पुरुष के प्रेम व विवाह या दाम्पत्य संवंध बंधन हैं ? *क्या इन बंधनों से मुक्त व स्वतंत्र होकर जीवन-संगीत का आनंद लिया जा सकता है | क्या स्त्री-पुरुष आपसी बंधनों से मुक्त होकर जीवन-सुख का वास्तविक आनंद उठा सकते हैं| नहीं ....
भारतीय नारी पर shyam Gupta
--
कलियुग की जानकी -कहानी
भारतीय नारी पर shikha kaushik
--
हम एडवांस हैं
दिन हुआ सरपट हिरन रातें नशीली हो गयीं
माँ के चहरे की लकीरें और गहरी हो गयीं
उम्र छोटी पड़ गयी और रास्ते लम्बे हुए
राह में कुछ यात्रियों की म्याद पूरी हो गयी...
सृजन मंच ऑनलाइन पर
Nirmala Singh Gaur
--
केंद्रीय मन्त्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने
मुझे सलाह दी है कि
मैं अपना नाम 'अलबेला खत्री' के बजाय
'फक्कड़ अलबेला' रख लूँ
Albela Khtari
--
परेशाँ क्यूँ है?
आसमां बादलों से परेशाँ क्यूँ है?
घर लोगों से बेवज़ह हैरां क्यूँ है?
ज़िन्दगी खुश है तेरे जानिब यूँ?
फिर ये चेहरा हंसीन वीराँ क्यूँ है...
ज़रूरत पर Ramakant Singh
--
स्वेटर
आँखें खाली ज़हन उलझा ठिठुरते रिश्ते मन उदास....
सही वक्त है कि उम्मीद की सिलाइयों पर
नर्म गुलाबी ऊन से एक ख्वाब बुना जाय...
my dreams 'n' expressions.....
याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन.....
--
कर कुछ भी कर बात कुछ और ही कर
कुछ इधर की बात कर कुछ उधर की बात कर
करना बहुत जरूरी है बेमतलब की बात कर
समझ में कुछ आये कहा कुछ
और ही जाये बातों की हो
बस बात कुछ ऐसी बात कर....
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
"नही ज़लज़लों से डरता है"
--
मतदान दिवस
"लोकतंत्र मे जनता का मतदान करना महत्वपूर्ण है
मेरा यह प्रेरणा गीत सादर समर्पित है "
मतदान दिवस
करो मतदान भाईयो
तजो अभिमान भाईयो
आज मतदान दिवस है..
--
जैसे ही लिफ्ट का दरबाजा खुला
मैनें अपना अंडरवीयर उपर उठाया और बाहर भागी...
वह दरिंदा अभी भी मेरे पीछा कर रहा था...
मित्रों दरिंदगी यही खत्म नहीं हुई....
मित्रो तरूण तेजपाल से इस महिला पत्रकार ने जो कुछ किया वो दिल्ली में पिछले वर्ष हुए जघन्य अपराध से कम नहीं क्योंकि इस जानवर ने इस लड़्की से उसी तरह जोर जबरदस्ती की जिस तरह चलती बस में उन दरिंदों ने की थी बस फर्क इतना है कि इस दरिंदे के पास लोहे की छड़ नहीं थी वरना अगर आप परा वयौरा पढ़ोगे तो ये दरिंदा भी वही सब करने जैसे दरिंदगी पर उतारू था..
सुनील दत्त
श्याम स्मृति- ......बंधन ही स्वतन्त्रता है
बंधन क्या है, मुक्ति क्या है, स्वतन्त्रता क्या है ? क्या सांसारिक कर्तव्य, कृतित्व, दायित्व बंधन हैं ? गृहस्थी, पारिवारिक सम्बन्ध, आपसी संवंध या स्त्री-पुरुष के प्रेम व विवाह या दाम्पत्य संवंध बंधन हैं ? *क्या इन बंधनों से मुक्त व स्वतंत्र होकर जीवन-संगीत का आनंद लिया जा सकता है | क्या स्त्री-पुरुष आपसी बंधनों से मुक्त होकर जीवन-सुख का वास्तविक आनंद उठा सकते हैं| नहीं ....
भारतीय नारी पर shyam Gupta
--
कलियुग की जानकी -कहानी
भारतीय नारी पर shikha kaushik
--
दिन हुआ सरपट हिरन रातें नशीली हो गयीं
माँ के चहरे की लकीरें और गहरी हो गयीं
उम्र छोटी पड़ गयी और रास्ते लम्बे हुए
राह में कुछ यात्रियों की म्याद पूरी हो गयी...
Nirmala Singh Gaur
--
केंद्रीय मन्त्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने
मुझे सलाह दी है कि
मैं अपना नाम 'अलबेला खत्री' के बजाय
'फक्कड़ अलबेला' रख लूँ
Albela Khtari
--
परेशाँ क्यूँ है?
आसमां बादलों से परेशाँ क्यूँ है?
घर लोगों से बेवज़ह हैरां क्यूँ है?
ज़िन्दगी खुश है तेरे जानिब यूँ?
फिर ये चेहरा हंसीन वीराँ क्यूँ है...
ज़रूरत पर Ramakant Singh
--
स्वेटर
आँखें खाली ज़हन उलझा ठिठुरते रिश्ते मन उदास....
सही वक्त है कि उम्मीद की सिलाइयों पर
नर्म गुलाबी ऊन से एक ख्वाब बुना जाय...
my dreams 'n' expressions.....
याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन.....
--
कर कुछ भी कर बात कुछ और ही कर
कुछ इधर की बात कर कुछ उधर की बात कर
करना बहुत जरूरी है बेमतलब की बात कर
समझ में कुछ आये कहा कुछ
और ही जाये बातों की हो
बस बात कुछ ऐसी बात कर....
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
"नही ज़लज़लों से डरता है"
जो परिन्दे के पर कतरता है।
वो इबादत का ढोंग करता है।।
जो नहीं हो सका कभी अपना,
दम वही दोस्ती का भरता है...
उच्चारण--
मतदान दिवस
"लोकतंत्र मे जनता का मतदान करना महत्वपूर्ण है
मेरा यह प्रेरणा गीत सादर समर्पित है "
मतदान दिवस
करो मतदान भाईयो
तजो अभिमान भाईयो
आज मतदान दिवस है..
--
जैसे ही लिफ्ट का दरबाजा खुला
मैनें अपना अंडरवीयर उपर उठाया और बाहर भागी...
वह दरिंदा अभी भी मेरे पीछा कर रहा था...
मित्रों दरिंदगी यही खत्म नहीं हुई....
मित्रो तरूण तेजपाल से इस महिला पत्रकार ने जो कुछ किया वो दिल्ली में पिछले वर्ष हुए जघन्य अपराध से कम नहीं क्योंकि इस जानवर ने इस लड़्की से उसी तरह जोर जबरदस्ती की जिस तरह चलती बस में उन दरिंदों ने की थी बस फर्क इतना है कि इस दरिंदे के पास लोहे की छड़ नहीं थी वरना अगर आप परा वयौरा पढ़ोगे तो ये दरिंदा भी वही सब करने जैसे दरिंदगी पर उतारू था..
सुनील दत्त
उपयोगी लिंकों के साथ सधी हुई चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार रविकर जी।
Lajawab charcha aaj ki ... Mast link ...
जवाब देंहटाएंShukriya mujhe bhi jagah dene ka ...
बहुत बढ़िया चर्चा ...
जवाब देंहटाएंआभार!
लाजवाब चर्चा लेकर आये हैं
जवाब देंहटाएंउल्लूक का रंग भी दिखाये हैं
'कर कुछ भी कर बात कुछ और ही कर'
को यहां देख कर आभार आभार
आभार कहने यहां आये हैं !
अच्छ लिंक्स व बढ़िया चर्चा , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा.....सभी लिंक्स पठनीय हैं.....
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया रविकर जी.
सादर
अनु
बहुत बढ़िया लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंआभार..
dhanyabad------!
जवाब देंहटाएंkhubsurat sanklan
जवाब देंहटाएंबहुत हीं सुन्दर संकलन …''इंसान बानी'' को स्थान देने के लिए धन्यवाद ....
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा ! आ. रविकर जी.
जवाब देंहटाएंसटीक .आभार
जवाब देंहटाएंdhanybad , mujhe lene ke liye......links bahut achche hain.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुती बहुत अच्छी है और लेखकों रचनायें भी
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद जी