मित्रों!
किसी तकनीकी खामी के कारण
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी द्वारा
की गयी चर्चा के मध्य में एक लाइन आ गयी है।
जिसके कारण लिंक नहीं खुल पा रहे हैं।
अतः इस चर्चा को जस की तस
चर्चा मंच के इस अंक मे
उन्हीं के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है।
--
मैं
राजेंद्र कुमार
आज कि चर्चा में आपका स्वागत करता हूँ।
--
जीवन की कुछ जरूरी आवश्यक बातें
--
रिश्तों की डोर : हाइकू
--
राजेंद्र कुमार
आज कि चर्चा में आपका स्वागत करता हूँ।
--
जीवन की कुछ जरूरी आवश्यक बातें
--
रिश्तों की डोर : हाइकू
--
अनिता जी
सत्संग से जीवनमुक्ति मिलती है. सहजता आती है. निर्मोहता, निसंगता तथा स्थिरमन की निश्चलता आती है. जीवनमुक्ति का अर्थ है अपने आस-पास कोई दुःख का बीज न रह जाये.
--
प्रसाद-प्रांगण में पावन परिणय
श्याम बिहारी
काशी के सरायगोवर्द्धन में विख्यात प्रसाद-प्रांगण में 25 नवंबर 2013 की शाम कुछ खास रही। हमारी भाषा में तुलसीदास के बाद सबसे बड़े कवि जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री दिव्या के पावन परिणय का अवसर।
--
शुक्रिया ! बोलती हूँ
अमृता तन्मय
बेचारगी का आलम
और क्या होता है
इससे ज्यादा
--
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर
रविकर
काजल कुमार के कार्टून
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
पर
shikha kaushik
अन्नपूर्णा बाजपेई
नींद न ऐसी सोना तुम कर्म न ऐसे करना तुम
जिससे मान भंग हो तिरंगे की शान कम हो
सूर्य सम चमकना होगा ..
सृजन मंच ऑनलाइन
छोटी हो या बड़ी आफत कभी बता के नहीं आती है
और समझदार लोग
हर चीज के लिये तैय्यार नजर आते है...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
कलम से..
मैं सुनाता आ रहा हूँ गीत कविता सुन जिसे क्यों सो गया है
कुल जहाँ संकुल यहाँ क्यों आँख खोले सो गया है..
मेरी कविताएं
पर Vijay Kumar Shrotryia
ये पन्ने ........सारे मेरे अपने -
पर Divya Shukla
बालकृति नन्हें सुमन से
एक बालकविता
"यह है मेरी काली कार"
यह है मेरी काली कार।
करती हूँ मैं इसको प्यार।।
जब यह फर्राटे भरती है,
बिल्कुल शोर नही करती है,
सिर्फ घूमते चक्के चार।
करती हूँ मैं इसको प्यार।।
नन्हे सुमन
--
--
प्रसाद-प्रांगण में पावन परिणय
श्याम बिहारी
काशी के सरायगोवर्द्धन में विख्यात प्रसाद-प्रांगण में 25 नवंबर 2013 की शाम कुछ खास रही। हमारी भाषा में तुलसीदास के बाद सबसे बड़े कवि जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री दिव्या के पावन परिणय का अवसर।
--
शुक्रिया ! बोलती हूँ
अमृता तन्मय
बेचारगी का आलम
और क्या होता है
इससे ज्यादा
--
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर
रविकर
करमहीन नर हैं सुखी, कर्मनिष्ठ दुःख पाय |
बैठ हाथ पर हाथ धर, खुद लेता खुजलाय |
--
कितनी एहतियात बरतती है न माँ
सदा
खट्टी-मीठी पारले की गोली का
स्वाद याद है न ?
ये जिन्दगी भी बिल्कुल उसके जैसे है
--
चाय, फ़ेसबुक और सैमसंग
राविश कुमार
--
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.....!!!
सुषमा 'आहुति'
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका,
कितनी कसमे दी वादे दिए,
जिंदगी का वास्ता भी दिया.....
पर मैं फिर भी खुद को रोक न सकी,
--
काश...!
अनुपमा पाठक
बहुत अँधेरी है रात... आसमान में एक भी तारा नहीं... चाँद भी नहीं... हो भी तो मेरी धुंधली नज़रों को नहीं दिख रहा... बादल हैं इसलिए नीला अम्बर भी कहीं नहीं है...! दिन भर नहीं रहा उजाला तो रात तो फिर रात ही है... अभी कहाँ से होगी रौशनी...
--
"ग़ज़ल-आँखें कुदरत का उपहार"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
गुस्सा-प्यार और मनुहारआँखें कर देतीं इज़हार ...
पावस लगती रात अमावसहो जातीं जब आँखें चार...
--
मुड़े हुए पन्ने
रंजना भाटिया
--
फिर सहर आएगी फिर मिल लेंगे
--
सलीक़ा सिखा रब्त निभाने का मुझे
VenuS "ज़ोया"
--
आरोग्य प्रहरी
सेलरी हरे और सफ़ेद डंठल वाली एक सब्ज़ी होती है जो कच्ची भी खाई जाती है स्टीम लगाके भी।इसे अजमोदा का पत्ता भी कहा जाता है।
--
Offline Hindi typing Tool
आमिर दुबई
--
♥♥उजाला ..♥♥
महज खूबसूरत बदन को न समझो,
चेतन रामकिशन "देव"
अंधेरों से बढ़कर उजाला रहेगा!
ये सूरज हमेशा निराला रहेगा!
अगर दिल हमारा जो काला रहेगा!
--
कावड़ : लोकमन का उत्कृष्ट शिल्प
राजीव कुमार झा
किसी भी धार्मिक,पौराणिक कथानक को कई खण्डों में बांटकर क्रमबद्ध रूप में काष्ठ फलकों पर वांछित पारंपरिक रंग – शैली में चित्रण का लौकिक प्रभाव कावड़ की अनन्यतम विशिष्टताओं में से एक है.जहाँ कावड़िया भाट,कावड़ बांचकर पुण्य कमाता है,वहीँ श्रोता भक्त उसे सुनकर पुण्य अर्जित करते हैं.
--
महिला सम्मान और राजनीति
Dr Ashutosh Shukla
--
कितनी एहतियात बरतती है न माँ
सदा
खट्टी-मीठी पारले की गोली का
स्वाद याद है न ?
ये जिन्दगी भी बिल्कुल उसके जैसे है
--
चाय, फ़ेसबुक और सैमसंग
राविश कुमार
--
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.....!!!
सुषमा 'आहुति'
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका,
कितनी कसमे दी वादे दिए,
जिंदगी का वास्ता भी दिया.....
पर मैं फिर भी खुद को रोक न सकी,
--
काश...!
अनुपमा पाठक
बहुत अँधेरी है रात... आसमान में एक भी तारा नहीं... चाँद भी नहीं... हो भी तो मेरी धुंधली नज़रों को नहीं दिख रहा... बादल हैं इसलिए नीला अम्बर भी कहीं नहीं है...! दिन भर नहीं रहा उजाला तो रात तो फिर रात ही है... अभी कहाँ से होगी रौशनी...
--
"ग़ज़ल-आँखें कुदरत का उपहार"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
गुस्सा-प्यार और मनुहारआँखें कर देतीं इज़हार ...
पावस लगती रात अमावसहो जातीं जब आँखें चार...
--
मुड़े हुए पन्ने
रंजना भाटिया
--
फिर सहर आएगी फिर मिल लेंगे
--
सलीक़ा सिखा रब्त निभाने का मुझे
VenuS "ज़ोया"
--
आरोग्य प्रहरी
सेलरी हरे और सफ़ेद डंठल वाली एक सब्ज़ी होती है जो कच्ची भी खाई जाती है स्टीम लगाके भी।इसे अजमोदा का पत्ता भी कहा जाता है।
--
Offline Hindi typing Tool
आमिर दुबई
--
♥♥उजाला ..♥♥
महज खूबसूरत बदन को न समझो,
अंधेरों से बढ़कर उजाला रहेगा!
ये सूरज हमेशा निराला रहेगा!
अगर दिल हमारा जो काला रहेगा!
--
कावड़ : लोकमन का उत्कृष्ट शिल्प
राजीव कुमार झा
--
महिला सम्मान और राजनीति
Dr Ashutosh Shukla
देश में लगता है कि कथित तरक्की के बाद भी आज पुरुष मानसिकता के वर्चस्व और प्रभुत्व वादी सोच को कम नहीं किया जा सका है क्योंकि आज जिस तरह से दो मामलों में दो तरह की बातें की जा रही हैं उससे यही स्पष्ट होता है.
--
--
घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते -
दब कें रहनौ परौ दद्दा जो हते
बिन दिनन खूब ई मस्ती लूटी
बिन दिनन खूब ई मस्ती लूटी
नवीन
घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते
दब कें रहनौ परौ दद्दा जो हते
बिन दिनन खूब ई मस्ती लूटी
बिन दिनन खूब ई मस्ती लूटी
नवीन
घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते
हम सबन्ह के लिएँ बच्चा जो हते
--
आज के लिए वस इतना ही विदा चाहता हूँ,
आपका दिन मंगलमय हो, आगे जारी है
--
--
आज के लिए वस इतना ही विदा चाहता हूँ,
आपका दिन मंगलमय हो, आगे जारी है
--
"मयंक का कोना"
--
कार्टून :- अडवाणी जी की सुनी आपने ?काजल कुमार के कार्टून
--
कितना बदल गया इंसान ...! कौशल ! पर Shalini Kaushik
--
अपने शहर में हम मगर गुमनाम रह गए !WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
पर
shikha kaushik
--
उद्घोष फिर सुनना होगा...अन्नपूर्णा बाजपेई
नींद न ऐसी सोना तुम कर्म न ऐसे करना तुम
जिससे मान भंग हो तिरंगे की शान कम हो
सूर्य सम चमकना होगा ..
सृजन मंच ऑनलाइन
--
सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले छोटी हो या बड़ी आफत कभी बता के नहीं आती है
और समझदार लोग
हर चीज के लिये तैय्यार नजर आते है...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
तेरे होंठ की सुर्खी - Sudheer Mauryaकलम से..
--
सोच सकता हूँमैं सुनाता आ रहा हूँ गीत कविता सुन जिसे क्यों सो गया है
कुल जहाँ संकुल यहाँ क्यों आँख खोले सो गया है..
मेरी कविताएं
पर Vijay Kumar Shrotryia
--
छाप की पाँवों की धूमिल सीये पन्ने ........सारे मेरे अपने -
पर Divya Shukla
--
"यह है मेरी काली कार" बालकृति नन्हें सुमन से
एक बालकविता
"यह है मेरी काली कार"
यह है मेरी काली कार।
करती हूँ मैं इसको प्यार।।
जब यह फर्राटे भरती है,
बिल्कुल शोर नही करती है,
सिर्फ घूमते चक्के चार।
करती हूँ मैं इसको प्यार।।
नन्हे सुमन
--
इतने परिश्रम से मैंने अपनी निम्न पोस्ट को लगाया था।
मगर ऐसा लगता है कि हमारे चर्चामंच
के सहयोगी शायद इस पोस्ट को नहीं पढ़ पाये होंगे।
--
मित्रों!
बहुत दिनों से यह तकनीकी पोस्ट लगाने की सोच रहा था। मगर समय नहीं निकाल पा रहा था। वैसे तो यह पोस्ट सभी ब्लॉगर्स की समस्याओं को ध्यान में रखकर लिख रहा हूँ। मगर विशेषतया उन साथियों के लिए है जो चर्चा मंच के चर्चाकार हैं या चर्चाकार बनने की कतार में हैं।
अपनी नयी पोस्ट लगाने के लिए सबसे पहले आपको अपना डैशबोर्ड खोलना होगा इसके लिए आप https://draft.blogger.com/....लिखकर अपने डैशबोर्ड पर आसानी से जा सकते हैं। मगर सबसे पहले आप अपनी ई मेल जरूर खोलकर रखिए।
यह तो मेरा डैशबोर्ड है लेकिन आपको भी अपने ब्लॉगों के साथ कुछ ऐसा ही दिखाई देगा। जिसमें आपके ब्लॉग होंगे।
इसमें ब्लॉगों के आगे नारंगी रंग में एक पेन दिखाई दे रहा है। आपको जिस ब्लॉग पर पोस्ट लिखनी है केवल उसी के सामने नारंगी रंग के पेन पर क्लिक करना है।
अब आपको इस तरह का दृश्य दिखाई देगा-
सबसे पहले आपको इस कॉलम में पोस्ट का शीर्षक लिखना चाहिए।
उसके बाद आप अपनी पोस्ट से सम्बन्धित लेबल यहाँ लिख दीजिए।
आप अपनी पोस्ट को किस तारीख को प्रकाशित करना चाहते हैं। यह यहाँ पर क्लिक करने से आयेगा।
तारीख के दाहिनी ओर समय लिखा दिखाई दे रहा है। आप समय पर क्लिक करेंगे तो आपको निम्न सारिणी दिखाई देगी।
आप अपने अनुकूल समय का चयन करके उस पर क्लिक कर दीजिए।
यदि आप इस पोस्ट को तत्काल प्रकाशित करना चाहते हैं तो स्वत: (Automatic) पर ही क्लिक कीजिए।
--
इसके बाद चर्चा के कुछ गुर की बात आपको बताता हूँ।
जब आप कोई लेख या लिंक कॉपी करके यहाँ पेस्ट करें तो मैटर को के सलेक्ट करके, सामान्य या Normal पर क्लिक करके सबसे नीचे सामान्य या Normal का विकल्प आयेगा। उस पर अवश्य क्ल्कि कर दें। इससे आपकी पोस्ट एक समान दिखाई देगी और गैप भी नहीं दिखाई देगा।
अब यदि आपकी इच्छा शब्दों को छोटा-बड़ा या सबसे छोटा या सबसे बड़ा करने की इच्छा हो तो बायीं ओर T बनी है इस पर क्लिक करके आप अपने शब्दों को मनचाहा आकार दे सकते हैं।
एक बात और भी ध्यान रखिए
निम्न टेबिल में A और कलम का निशान
आपको दिखाई दे रहा होगा।
A को क्लिक करके से आप अक्षरों का रंग
और कलम को क्लिक करके आप
अक्षरों की पृष्ठभूमि का रंग भी बदल सकते हैं।
अब बात आती है चित्र लगाने की।
यदि आपको अपने कम्प्यूटर में सेव हुए किसी चित्र को लेना है
तो नीचे दिये हुए चित्र में link के दाहिनी ओर
आसमानी रंग का एक आइकॉन है।
आप उसे क्लिक करके वांछित चित्र लगा सकते हैं।
अग किसी वेबसाइट या किसी ब्लॉग से चित्र लेना हो तो
उसे आप सीधे ही उस साइट से कापी करके
अपनी पोस्ट में लगा सकते हैं।
अरे अभी टैक्स्ट पर लिंक लगाने का बिन्दु तो छूट ही गया है।
इसके लिए आपको जिस किसी वेब साइट या पोस्ट या प्रोफाइल का
लिंक अपने लिखे हुए किसी अंश पर या चित्र पर लगाना है
तो सबसे पहले आप उस स्थान पर जाइए
जहाँ से आपको लिंक लेना है।
यह लिंक पोस्ट के सबसे ऊपर एचटीटीपी://एबीसीडी.....
होता है आप इसको कॉपी कर लीजिए।
अब आप अपनी पोस्ट के सम्पादन में आकर
उस मैटर/चित्र को सलेक्ट कर लीजिए।
जिस पर कि आपको लिंक लगाना है।
इसके बाद आप ऊपर दिये हुए चित्र में
लिंक को क्लिक कीजिए।
वहाँ आपसे लिंक माँगा जायेगा।
आपके पास जो लिंक कॉपी है वह आप
यहाँ पेस्ट करके ओके कर दीजिए।
आपके वांछित मैटर/चित्र पर लिंक आ जायेगा।
मेरे विचार से अब शायद कोई महत्वपूर्ण
बात शेष नहीं रही है।
बस इतने से ही आपका काम चल जायेगा।
ऊपर दिये हुए चित्र में सबसे दाहिनी ओर
जो डाउनऐरो दिखाई दे रहा है
उसे क्लिक करके आप अपनी पोस्ट की सामग्री को
बाईं ओर, मध्य में या दाहिनी ओर भी
स्थापित कर सकते हैं।
इसके लिए आपको पहले मैटर को सलेक्ट करना होगा।
उसके बाद आप डाउनऐरो को क्लिक करके
मनचाहा अपना विकल्प कर सकते हैं।
अब आप अपनी पोस्ट का प्रकाशित करने के लिए
Publish पर क्लिक कर दीजिए।
सुन्दर चर्चा...!
जवाब देंहटाएंआभार!
सुन्दर चर्चा...!
जवाब देंहटाएंआभार - मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद
तकनीकी पोस्ट से मिली बहुत अच्छी जानकारी...आभार !
जवाब देंहटाएंआज की लाजवाब चर्चा में उल्लूक का 'सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले' शामिल करने के लिये आभार !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा-
जवाब देंहटाएंआदरणीय चर्चाकार आभार-
आदरणीय गुरुदेव को शत शत नमन-
बढ़िया जानकारी -
आभार
सुंदर चर्चा. मेरे पोस्ट को शामिल करने ले लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजन एवं प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआभार
अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबढिया लिक्स
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..आभार
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं प्रशंसनीय हैं, बेहतरीन links के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंbehtreen links...
जवाब देंहटाएंIs Sundar charcha ke liye dil se shukriya bolti hun.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक विस्तृत चर्चा मंच सेतु ही सेतु चुन तो लें। शुक्रिया आरोग्य प्रहरी को जगह देने का।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ! बोलती हूँ .....
जवाब देंहटाएंइससे ज्यादा
बेचारगी का आलम
और क्या होता है
कि बेतरतीब से बिखरे
बेजुबान हर्फों को
बड़ी तरकीब से
सजाने के बावजूद
मतलब की बस्ती में बस
मातम पसरा होता है....
वो उँगलियों के सहारे
कागज़ पर खड़ी कलम
इस हाले-दिल को
खूब जानती है
और अपनी मज़बूरी पर
कोई मलाल न करते हुए
घिसट-घिसट कर ही सही
दिए हुकुम को बस मानती है....
कोई तो आकर
मुझको समझाए
कि महज दिल्लगी नहीं है
उम्दा शायरी करना
गर करना ही है तो पहले
इक दर्द का दरिया खोदो
फिर उसमें कूद-कूदकर
सीखो ख़ुदकुशी करके मरना ....
शायद हर्फ़-दर-हर्फ़
महल बनाने वालों ने ही
मुझे इसतरह बहकाया है
व मेरे नाजुक लबों पर
उस 'आह-वाह' का
असली-नकली जाम लगाकर
हाय! किसकदर परकाया है....
असलियत जो भी हो
पर ये कलमकशी भी
फ़ितरतन मैकशी से
जरा सा भी कम नहीं है
और ये बेखुदी
आहिस्ता-आहिस्ता ही मगर
इस खुदी को ही पी जाए
तो कोई ग़म नहीं है....
बहुत खूब बाँधा है भाव और अर्थ को नज़म सा प्रवाह है रचना में।
नींद चैन सब उड़ जाएगा ,
जवाब देंहटाएंमत करना तुम आँखें चार।
सुन्दर भाव बोध की रचना है :
/पावस लगती रात अमावस
हो जातीं जब आँखें चार
नहीं जोत जिनकी आँखों में
उनका है सूना संसार
"ग़ज़ल-आँखें कुदरत का उपहार"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आदरणीय शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
हमें बहुत खेद है कि चर्चा में तकनीकी खामियाँ हो रही है, पर इसका इसका कारण समझ में नही आ रहा है.आपकी तकनीकी पोस्ट हिसाब से ही लिंक लगा रहा हूँ परन्तु दो सप्ताह से बीच में लाइन आ जा रहा है चर्चा के अंतिम चरण में.जैसा कि आपको विदित ही होगा कि अभी मैं इंडिया में ही हूँ,यहाँ इंटरनेट काफी धीमा भी मिल रहा है.१३ दिसम्बर तक इसे झेलना ही पड़ेगा मुझे। तकनीकी खामी के बारे में कोई सुझाव हो अवगत करायेंगे।
राजेंद्र कुमार
sarthak charcha .aabhar
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजन एवं प्रस्तुति ... सभी रचनाएं प्रशंसनीय हैं....
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को शामिल करने ले लिए आभार.
बहुत ही सुन्दर सूत्र..
जवाब देंहटाएं