मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
सभी रोज़ेदारों को
पवित्र रमज़ान की शुभकामनाएँ देते हुए
अपनी पसंद के लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
सभी रोज़ेदारों को
पवित्र रमज़ान की शुभकामनाएँ देते हुए
अपनी पसंद के लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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प्रार्थना
कण कण में है बास तेरा
पल पल होता अहसास तेरा
फिर सामने क्यूं नहीं आता
क्या कमी रही अरदास में |
पारस को छू लोहा स्वर्ण होता
शिला चरण रज पा हुई अहिल्या
यदि तेरी छाया ही छू पाऊँ
मैं धन्य हो जाऊं |
है एक प्रार्थना तुझसे
तेरी शरण यदि मैं पाऊँ
जब भी साक्षात्कार हो
तुझमें विलीन हो जाऊं |
आशा
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दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया ...
पानी हवा थी धूप पनपना नहीं आया
गमले के फूल को तो महकना नहीं आया...
गमले के फूल को तो महकना नहीं आया...
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ओ मेरे !........
....खुमारी दिन चढ़ने पर ही ज्यादा अंगड़ाईयाँ लिया करती है ..........और मेरी मोहब्बत में कभी शाम होती ही नहीं ...........बस खुमारियों की पाजेबें छनछनाती रहती हैं और मैं उनकी धुन पर नाचती उमगती रहती हूँ एक तिलिस्मी दुनिया का तिलिस्म बनकर ..........क्या जी सकते हो तुम भी मेरी तरह ...........ओ मेरे !
vandana gupta
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कुछ पंक्तियाँ ज़हन में आईं हैं !
कुछ पंक्तियाँ ज़हन में आईं हैं !
माना बहुत कठिन है ऐसे दौर में मनवाना सच को,
झूठ बना देता है हद से ज़्यादा दोहराना सच को।
अरे सियासतदानों कुछ तो सोचो अब तो बंद करो,
झूठ के सुन्दर चमकीले फ्रेमों में मढ़वाना सच को।
अखिलेश 'कृष्णवंशी'
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सत्ता करे सुधार, करे कुछ निर्णय हट के-
टके टके पे टकटकी, लटके झटके देख ।
मटके मँहगाई मुई, व्याकुल पंडित शेख...
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मान जाओ
मान जाओ सुन लो मानसून अब आ भी जाओ ।
मत तरसाओ जल्दी से आओ सब तर कर जाओ ।
बरस बाद आए हो पाहुन बिन बरसे मत जाओ...
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे
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जाओ तुम भी ना
थाम कर मेरी हथेली
न जाने किस रौ में उस शाम
अनगिनत शब्द उकेरे थे तुमने
न जाने कितनी बार
लिखा तर्जनी के पोरों से
अपना ही नाम -
मानो मेरी भाग्यरेखाओं से
खुद को बांध रहे हो ...
Divya Shukla
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तुम प्रकाश,तुम हो अन्धकार !
हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार !!निगमागम तुम्हीं अपारगम्य | पा सकता तुम से कौन पार ??प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया-
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार ||
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार ...
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार ||
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार ...
ग़ज़लकुञ्ज पर देवदत्त प्रसून
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आसमां से परे
एक आसमां की तलाश है,
सुदूर उस पार क्षितिज के
जहा धरती और गगन
मिलने को बेकरार है।
और जो अब तक मिल नहीं पाये
बस और थोड़ा दूर...
सुदूर उस पार क्षितिज के
जहा धरती और गगन
मिलने को बेकरार है।
और जो अब तक मिल नहीं पाये
बस और थोड़ा दूर...
अंतर्नाद की थाप पर Kaushal Lal
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कोहरा होता हमारी मौत का ज़िम्मेदार
हिन्दुस्तानी आदत के कारण क्लच भी दबा चुका था तब तक. पलक झपकते दिमाग ने काम किया और झटके से कार को दाईं ओर घुमा दिया. यह भी नहीं सोचा कि पीछे से कोई गाड़ी आ रही होगी. लेकिन उस घने कोहरे में तो सभी एक दूसरे की गाड़ी के पीछे की बत्तियों के सहारे ही खिसक रहे थे. बाल बाल बचना किसे कहते हैं यह बाद में याद आया.....
ज़िंदगी के मेले पर बी एस पाबला
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चिट्ठियाँ हैं और बहुत हो गई हैं
सुशील कुमार जोशी (उलूक टाइम्स)
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चिट्ठियाँ हैं और बहुत हो गई हैं
चिट्ठियाँ इस
जमाने की
बड़ी अजीब
सी हो गई हैं
सुशील कुमार जोशी (उलूक टाइम्स)
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शास्त्री जी नाराज़गी छोडिये :
केवल भाई क्षमा मांगिये तकनीकी समस्या बताते हुए ..
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केवलराम को तो मैं अपने पुत्र के समान मामता था।
मगर वो अपनी हठधर्मिता पर अड़े रहे और
मगर वो अपनी हठधर्मिता पर अड़े रहे और
मुझ पर कानूनी कार्यवाही करने की धमकी तक दे डाली।
ब्लॉग सेतु को दूर से ही सलाम।
आपका आभार मित्रवर गिरीश बिल्लौरे जी।
ब्लॉग सेतु को दूर से ही सलाम।
आपका आभार मित्रवर गिरीश बिल्लौरे जी।
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कम्न्यूकेशन गैप के कारणआदरणीय रविकर जी ने भी
मंगलवार के लिए चर्चा शैड्यूल कर दी थी।
देखइे उनके द्वारा लगाये गये कुछ लिंक।
टके टके पे टकटकी, लटके झटके देख ।
मटके मँहगाई मुई, व्याकुल पंडित शेख ।
व्याकुल पंडित शेख, आज भी भारत भूखा।
घाटे का आलेख, स्रोत्र आमद का सूखा।
संभावना अपार, बढ़े आगे बेखटके ।
सत्ता करे सुधार, करे कुछ निर्णय हट के ।।
रविकर
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आखिर कुछ तो बात होगी- देवेन्द्र देव
Devendra Gehlod
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अहसास
Reena Maurya
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इक नए दिन का इंतज़ार
मीनाक्षी
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रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
नदिया-नाले सूख रहे हैं, जलचर प्यासे-प्यासे हैं। पौधे-पेड़ बिना पानी के, व्याकुल खड़े उदासे हैं।। चौमासे के मौसम में, सूरज से आग बरसती है। जल की बून्दें पा जाने को, धरती आज तरसती है... |
श्रीमद भागवतम 4
Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
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मन के कांटे........
रश्मि शर्मा
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Bust all snoring myths
Virendra Kumar Sharma
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Misra Raahul
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मर्यादा पुरुषोत्तम
महेश कुशवंश
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मंगलवारीय चर्चा
जवाब देंहटाएंगजब ढा रही है
आभारी है
'उलूक' भी
उसकी चिट्ठी
'चिट्ठियाँ हैं और
बहुत हो गई हैं'
भी कहीं पर
दिखा रही है ।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा मंच सजा है
यहाँ आने का मन्त्र मिला है |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
शानदार संयोजन. आदरणीय आशा सक्सेना जी की रचना "प्रार्थना" को पहला स्थान देकर बहुत अच्छा किया. आज जब सुबह-सुबह जब चर्चामंच को देखा तो ये प्रार्थना पढ़ कर मन को एक अदभुत शांति मिली.
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं पठनीय सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिये आपका आभार शास्त्री जी ! आशा है मेरी पोस्ट पाठकों के मुख पर थोड़ी सी मुस्कुराहट तो अवश्य ही ले आई होगी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर
धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी '' ग़ज़ल - अंधे ने जैसे साँप को...'' शामिल करने हेतु
जवाब देंहटाएंवाकई आप बड़ी अमूल्य कड़िय लेकर आये है सभी लिंक्स जाकर देख चूका हू कुछ बाकी है... मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंsundar chrcha...mujhe bhi inmay sthan diya...shukriya
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
आज के चर्चा-मँच पर अच्छे और रोचक तथा उपयोगी विषय लिए हैं | वधाई ! मेरी रचना को प्रकशित करने हेतु धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत चर्चा ... नए सूत्र ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मुझे भी जगह देने का ...
badhiya charcha..
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा व सूत्र , आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
खूबसुरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा....मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआभार जी
जवाब देंहटाएं