फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, अप्रैल 20, 2015

चित्र को बनाएं शस्त्र, क्योंकि चोर हैं सहस्त्र (अ-२ / १९५१, चर्चामंच)

चर्चामंच के सभी पाठकों को मेरा नमस्कार. सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है. चर्चा के विशेष अंक की तरफ ध्यान आकर्षित न हुआ हो, तो पूछे बिने ही बता दूं, ये "अ" से अनूषा की दूसरी चर्चा है, और विशाल संख्या १९५१ के सामने २ अंक नितांत नन्हा सा है. कई गुणीजनों के वर्षों के उद्यम से ये विशाल संख्या अर्जित की है आपके इस मंच ने.

तो ये हुआ मेरी चर्चा के अनोखे पते का अर्थ.  

अब बारी हमारे पहले स्तंभ की. "गुनगुनाती शुरुआत" में आज एक पॅरोडी है, जिसे मैंने लिखा है, और गाया भी है. कृपया अवश्य सुनें.

गुनगुनाती शुरुआत - “मिंकू चाहे मूवी”  

भाई के विवाह के अवसर पर, सोचा कुछ परिहास हो जाए. इसलिए फिल्मों के शौकीन भाई के साथ भविष्य में भाभी के संग क्या-क्या बीतेगी, इस का विवरण किया है  





एक झोंका तकनीक का - चित्र को बनाएं शस्त्र, क्योंकि चोर हैं सहस्त्र



अपनी पिछली चर्चा में मैंने कॉपीराइट और वॉटरमार्क के महत्व के बारे में चर्चा की थी - कि किस प्रकार चित्र उसकी रचयिता की सम्पत्ति हैं, और अनुमति बिना उनका प्रयोग निषेध है, और ऐसे कौन से चित्र हैं, जिनका प्रयोग आप बेखटके कर सकते हैं, ऐसे नि:शुल्क चित्र कहां मिल सकते हैं, आदि. 

चित्रों की तरह ही आपकी लिखी काविताएं, कहानियां आदि आपकी सम्पत्ति है. इन्हें यदि कोई बिना अनुमति पुन: प्रकाशित करता है, तो वह भी चोरी है. अंतरजाल पर ऐसे चोरों को पकड़ना और उन पर कार्यवाही करना पेचीदा काम है. पिछले दिनों एक सह-चिट्ठाकार की रचना को एक प्रकट रूप से फर्जी अकाउंट धारी ने गूगल प्लस पन्ने और शायद ब्लॉग पर भी प्रकाशित कर दिया. उक्त सह-चिट्ठाकार ने इन फर्जी महानुभाव की रचना को अपने गूगल प्लस पन्ने पर साझा कर, सबको सूचित किया, और आग्रह किया आगे भी साझा करने के लिए. मैंने उनसे ऐसा न करने का निवेदन किया - क्योंकि इस तरह, जिसने आपकी रचना चुराई है, उसे ही लाभ होता है. अधिक से अधिक लोग, उसके पेज को “विज़िट” करते हैं, या उसकी पोस्ट को देखते हैं. अक्सर ही ऐसे लोगों के ब्लाॅग्स पर ज़्यादा रचनाएं मिलेंगी, क्योंकि दूसरों की रचनाएं प्रकाशित करने में इन्हें कोई गुरेज नहीं होता. ऐसे में अधिक सामग्री वाली वेबसाइट होने के कारण गूगल सर्च भी प्राय: उन्हें ही “बेहतर” रैंकिंग दे देता है. 

इसके अलावा, चूंकि “चोर” का अकाउंट फर्जी था, तो आपके द्वारा उन सचित्र आक्षेप करने से, उल्टा आपके खिलाफ कार्यवाही भी हो सकती है. इस तरह की चोरी की शिकायत सही तरह से गूगल से की जा सकती है. किंतु आपके पास रचना के मौलिक होने व आपके रचयिता होने के पर्याप्त प्रमाण होने चाहिए. केवल ब्लॉग पर रचना का प्रकाशन पर्याप्त प्रमाण नहीं है, क्योंकि प्रकाशन की तिथि को कभी भी बदला जा सकता है. 

प्रथम प्रकाशन की तिथि, कॉपीराइट संबंधी दावों में अत्यंत उपयोगी होती है. इससे ये पता चल जाता है, कि आप ने ही सबसे पहले इस रचना का प्रकाशन किया. और बाद में प्रकाशित करने वाला नकलची है, आपके कॉपीराइट अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.

पर इसके लिए आवश्यक है, कि आपकी रचना किसी ऐसी जगह प्रकाशित हो, जो “थर्ड पार्टी” हो, विश्वसनीय हो, जो इस बात का समर्थन कर सके, कि रचना वास्तव में आपकी है, और सबसे पहले उन्हीं के पास प्रकाशित हुई है. 

इसका एक सरल तरीका है - चित्र. अपनी रचनाएं, विशेषकर छोटी कविताएं, शेर, लघु कथाएं आदि को अपने मौलिक चित्रों (आपके द्वारा बनाए हुए, या खींचे हुए) या जिन चित्रों पर आपका अधिकार हो, उन पर “एम्बेड” करें, और गूगल प्लस, फेसबुक आदि पर साझा करें. इससे आप रचना के प्रकाशन की पहली तिथि को सरंक्षित कर लेंगे, और प्रमाणित कर सकेंगे कि रचना को इस तिथि को सर्वप्रथम प्रकाशित आपने किया था. ये पढ़ने में पेचीदा लग रहा होगा, पर बहुत ही सरल है. ऐसा आप गूगल प्लस को प्रयोग करके भी कर सकते हैं. अनुक्रमिक निर्देश और उपयोगी सुझाव इस लेख में पाएं - 





किस्से-कहानियों की बातें


बड़ों को कहते सुना है, "ये सब तो किस्से-कहानियों में होता है”  

अनोखी होती है ये किस्से कहानियों की दुनिया, जहां सब कुछ संभव है. वैसे अंतरजाल पर उड़ने वाले घोड़ों की कहानियां न के बराबर ही लिखते हैं मेरे सह-चिट्ठाकार. सबको यथार्थ बड़ा प्रिय है, ऐसा प्रतीत होता है. मुझे परीकथाएं, और परीकथाओं जैसी कहानियां प्रिय हैं. पर यथार्थ से परहेज भी नहीं.  

तो आइए किस्से कहानियों की दुनिया की सैर कर लें. 

प्रेम-कहानियां भी परीकथाओं से कम सपनीली नहीं होतीं. तो पहली कहानी एक प्रेम कथा है.


एक प्यारी सी कहानी, सुबीर और निक्की की. पसंद आएगी, बात है ये पक्की सी.



दूसरी कहानी पढ़कर आप मुस्कुराए बिना नहीं रहेंगे - और यदि ऐसा हो, तो इनकी कहानी पर टिप्पणी अवश्य कीजिएगा.
तीसरी और आज की आखरी कहानी थोड़ी संजीदा है. कहानी पुरानी है. पर हाल ही में एक वाकया हुआ. ये एक अजीब इत्तिफाक है. मेरे तीन वर्षीय बेटे को गिरने से सिर पर चोट लग गई - क्योंकि सोसाइटी के पार्क के पास एक ७ वर्षीय बालक बहुत तेज़ रफ्तार से साइकिल चला रहा था - वो हमारे जनुष से टकरा गया. खैर, उसकी मां से उसके ब्रेक ठीक कराने को कहा, उन्हें उसकी तेज़ रफ्तार के बारे में बताया, उन्होंने क्षमा भी मांगी, और बेटे को भी समझाया. जनुष भी अब ठीक है, और उसकी साइकिल धारी बालक से पुन: मित्रता भी हो गई है. इत्तिफाक कैसे है, वो आप कहानी पढ़कर ही देखें, सालों पहले लिखी थी.

तो आप की आज की चर्चाकार की कलम से -


रफ़्तार 
(मेरी कहानी - विविध-संकलन से)




रोचक आलेख / हास्य व्यंग्य

इस खंड में बहुत विविधता है. कुछ रोचक आलेख हैं, कुछ कारगर जानकारियां, और थोड़ी सी मुस्कुराहटें.

My Photo
मनोज कुमार (डायनामिक)



प्रदीप (वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड)


विवेक रस्तोगी (कल्पतरू)
पारितोष त्रिवेदी (जियो हेल्दी)



तुकांत या ताल, या गज़ल बेमिसाल, बस कविताओं का धमाल  



My Photo
अंकुर जैन (बेचैनियों का गुलदस्ता)


दिगम्बर जी (स्वप्न मेरे)
प्यार हुआ व्यपार (दोहे)

मेरा फोटो
रमेशकुमार सिंह चौहान (नवाकार)
पूनम जैन कासलीवाल (अनुभूति)

My Photo
कल्पना रामानी (गज़ल संध्या)


image
राजीव श्रीवास्तव (छींटे और बौछारें)


चर्चामंच के संस्थापक शास्त्री जी की लेखनी से दो सुंदर रचनाएं

सुमधुर समापन - “अक्सर मैं तुम हो जाती हूं” 

अभी एक दिन, प्रसिद्ध टेलीविज़न सीरीज़, "देवों के देव - महादेव" का पुन: प्रसारण देख रही थी. महादेव पार्वती से बोले, “शिव और पार्वती एक दूसरे के पूरक हैं. शिव ही पार्वती हैं, पार्वती ही शिव हैं”. पहले अपनी एक गुरू को भी इसी बात को राधा कृष्ण के प्रसंग में कहते सुना, “कृष्ण ही राधा हैं, और राधा ही कृष्ण हैं.” 

प्रेम तो प्रेम है, और इसीलिए प्रेम की अनुभूति की अभिव्यक्ति युगों पुरानी हो, या इस हाल ही फिल्म के गीत में हो... सारगर्भिता से उत्पन्न सौंदर्य अत्यंत मनमोहक है. 

गीत के अंतरे के बोल हैं,

कभी तन्हा बैठे-बैठे यूं ही, अक्सर मैं गुम हो जाती हूं,
मैं भी कहां मैं रहती हूं, अक्सर मैं तुम हो जाती हूं...

गीत - कभी दिल के करीब... 
फिल्म का नाम है, “सोचा न था"




इस कर्णप्रिय गीत के इन सुमधुर बोलों के साथ मैं आपसे विदा लेती हूं. 

कुछ रह गया क्या? ओह हाँ, काफिया!

पिछले दो सोमवारों की छुट्टी की क्षमा भी चाहती हूं, और भविष्य के लिए ~ 

हर हफ्ते चर्चा का वादा नहीं है, 
यूं नागा हो, ऐसा इरादा नहीं है,
पर मेरी मंशा के आढ़े आती है,
समय की कमी बड़ा सताती है,
पर उम्मीद है हम जल्द मिलेंगे,
चर्चा-बाग में गुल और खिलेंगे. 




20 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चर्चा अनूषा जी। अच्छी मेहनत की है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी पोस्टो का संकलन . मेरी पोस्ट को चर्चामंच पर स्थान देने के लिए आपका शुक्रिया !

    नयी पोस्ट :"बिरूबाला राभा" तुम्हे सलाम !
    http://manojbijnori12.blogspot.in/2015/04/blog-post_20.html

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मनोज जी, आपका स्वागत है. आशा है, आपकी नई रचना को भी पाठक सराहेंगे

      हटाएं
  3. सुन्दर चर्चा और चर्चा अंदाज ... पैरोडी भी मस्त है ... आवाज़ भी लाजवाब ..
    शुक्रिया मेरी रचना को जगह देने के लिए आज की चर्चा में ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

      हटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविता जी, बहुत बहुत धन्यवाद, कोई सुझाव हों और भी अच्छा बनाने के, तो अवश्य बताइगा :)

      हटाएं
  5. सुन्दर सूत्र रोचक चर्चा
    अनूषा जी की सतत मेहनत
    और उद्यम का
    मनोहारी पर्चा !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी टिप्पणी पढ़कर मेरा मन प्रसन्न हो गया. जब कोई टिप्पणी में इतने सुंदर शब्द लिखे तो लगता है, किया गया श्रम सफल रहा :)

      हटाएं
  6. शुक्रिया इस मंच पे मुझे जगह देने के लिए :)

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर चर्चा, पठनीय लिंक्स

    जवाब देंहटाएं
  8. अनुषा जैन जी आपने बहुत शानदार चर्चा की है।
    आपका आभारी हूँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शास्त्री जी आप "आभारी हूँ" न कहा करें, "खुश रहो" ही कहा करें :)
      मुझे बहुत खुशी है, कि आपको चर्चा अच्छी लगी. :)

      हटाएं
  9. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    लिंक शामिल करने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. व्यापक चर्चा
    कुशलता से बाँचा पर्चा
    मन हो गया प्रसन्न
    साहित्य हुआ धन्य,
    फिर आना लेकर चर्चा
    नहीं लगता इसमें बिलकुल भी खर्चा :)
    रोचक चर्चा अनुषा जी।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक जी. और आपने बिल्कुल ठीक कहा,
    खर्चा तो बिल्कुल भी नहीं लगता, अपितु सृजनशील, गुणी पाठक हों, तो दिल को बाग बाग कर देने वाली, तुकांत-सुसज्जित टिप्पणियां अवश्य मिलती हैं :) पर क्या करूं, व्यस्तता आड़े आ ही जाती है. समय नियोजन के पाठ का और अच्छा अभ्यास करने के प्रयास में ~
    अनूषा :)
    ऐसी अनमोल टिप्पणी के लिए आपका पुनः धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।