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शनिवार, फ़रवरी 27, 2016

"नमस्कार का चमत्कार" (चर्चा अंक-2265)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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नमस्कार का चमत्कार 

कुछ लोग नमस्कार करने में पीर होते हैं और कुछ नमस्कार करवाने में. नमस्कार करने वाले पीर, चाहे आपको जाने या न जाने, नमस्ते जरुर करेंगे. कुछ हाथ जोड़ कर और कुछ सर झुका कर, शायद उनको मन ही मन यह शान्ति प्राप्त होती होगी कि अगले को नमस्ते किया है और उसने जबाब भी दिया है याने वो पहचानने लगा है ... 
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----- ।। उत्तर-काण्ड ४८ ।। ----- 

बोले सुमति बचन ए हितप्रद । 
सस्त्रास्त्र विद जुद्ध बिसारद ॥ 
महाराज यहँ सब बिधि केरे । 
पुष्कलादि रन बीर घनेरे ॥ 
होत उपनत अधिकाधिकाई । 
लएँ लोहा रिपु संगत जाईं ॥ 
बायुनन्दन बीर हनुमाना । 
अहहि सूरता सन धनवाना ॥ 
देहि बिसाल बजर सब अंगा । 
एतएव जाएँ भिरे नृप संगा... 
NEET-NEET पर Neetu Singhal  
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एक 'लुटेरी' रात !! 

(रोमांच-कथा) 

रात काफी हो गयी थी, सौरभ के शहर को जाने वाली बसें बन्द हो गयी थी, रोडवेज अड्डे पर लम्बे-मार्ग (लांग रूट) की एकमात्र बस थी, सौरभ चालक-परिचालक से काफी निवेदन करके उस बस में बैठ पाया था, वो भी इस शर्त पर कि बाई-पास पर ही उतार दिया जायेगा। सौरभ टिकट लेकर सीट पर जा बैठा और अपना बैग नीचे रख दिया। वह पूस की एक सर्द रात थी। कुछ ही देर में गाड़ी रवाना हो गयी। दिन भर की भागदौड़ से थके सौरभ की आंखे लग गई... 
Sanjay Kumar Garg  
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और पलक झपकते ही ज्ञानेंद्र ने 

सरोकारनामा नाम से 

मेरा ब्लॉग बना दिया 

फ़ोटो सौजन्य : कुमार सौवीर
 ग़ज़ल
भटका हुआ बहुत है कराची के गीत गाता है
रहता है लखनऊ में लेकिन लाहौर सुहाता है... 
सरोकारनामा पर Dayanand Pandey  
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मुझे अपना जन्म-समय ज्ञात नहीं! 

आप में से कई लोग ऐसे होंगे, जिन्हें ज्योतिष-विद्या पर पूर्ण विश्वास है और वो इसका लाभ भी उठाना चाहते हैं; पर एक ही चीज जो हर बार उन्हें मायूस कर देती है, वो है सही जन्म-समय का ‌ज्ञात ना होना। पुराने समय में तो सही जन्म-समय लिखने पर कोई ध्यान ही नहीं देता था और सही समय लिखना तो दूर, माह और वर्ष भी अनुमान पर आधारित होते थे; जरा एक बानगी देखिए.....  
आह्वान पर डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 
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मुस्कराना आ गया 

(ग़ज़ल) 

तुझ से जो नज़र मिली तो मुस्कराना आ गया 
तुम्हारी जुल्फ उडी जो हवा में तो मौसम सुहाना आ गया... 
कविता मंच पर Hitesh Sharma 
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ग़ज़ल 

(हम पर सितम वो कर गए) 

दर्द के नग्मों में हक़ बस मेरा नजर आता है 
अब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता है ... 
Madan Mohan Saxena 
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फेसबुक पर 'लाइक' के साथ 

अन्य भाव कैसे करें व्यक्त ? 

फेसबुक पर अभी तक था सिर्फ 'लाइक' का विकल्प  अभी तक हम फेसबुक पर किसी पोस्टर, फोटो, वीडियो इत्यादि पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 'लाइक' बटन का ही इस्तेमाल करते थे, क्यों कि वहां कोई अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं था।  फेसबुक पर हम कई प्रकार के समाचार और सामग्री का देखते है, और हर समय किसी भी पोस्ट पर अपनी भावना व्यक्त करने के लिए 'लाइक' बटन उपयुक्त नहीं लगता, जैसे कि किसी दुखद समाचार.... 
हिंदी इंटरनेट पर Kheteshwar Boravat 
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आरक्षण : 

वरदान या अभिषाप 

भारत का संविधान हमें समान रूप से स्वतंत्रता प्रदान करता है और यह भारत सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो इस बात का खयाल रखे कि समाज के सभी तबके को समान अधिकार मिले। संविधान निर्माताओं ने आरक्षण के जरिये समाज के कमजोर एवं पिछड़े तबके को समान अधिकार देने की कल्पना की थी। संविधान में १० वर्ष पश्चात आरक्षण के समीक्षा की बात कही गयी थी। आज संविधान के लागु होने के तक़रीबन ६५ वर्ष बीत जाने के बाद, आरक्षण ने समाज में समानता की जगह असामनता को बढ़ावा दिया है। आरक्षण के प्रावधान ने आज भारतीय समाज को तीन ध्रुव में विभाजित कर दिया है... 
आपका ब्लॉग पर Sunil Kr. Singh 
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श्याम सलोने 

Akanksha पर Asha Saxena 
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  तेरहवां अध्याय (१३.५-१३.७)                                                                                     (with English connotation)
विश्राम, गति, शयन और कर्मों में, मेरा हानि लाभ न होता|
लौकिक व्यवहार में दंभ रहित मैं, आत्मानंद में स्थिर होता||(१३.५)

I incur no loss or profit while resting, moving,
sleeping or working. Performing my worldly duties
without any ego, I exist in my Self pleasantly.(13.5)

हानि नहीं मेरी कुछ भी सोने से, कार्य सिद्धि से लाभ न होता|
हर्ष विषाद का त्याग मैं कर के, स्थिर सब स्थितियों में होता||(१३.६)

I do not suffer any loss by sleeping and do not get any benefit by performing activities. By renouncing happiness and sorrow, I remainconstant in all situations. (13.6)

आध्यात्मिक यात्रा 


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