मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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काँखे भारत वर्ष, "पाक" है साफ़ कन्हैया
मिला समर्थन पाक से, जे एन यू में हर्ष।
छात्र वहाँ के साथ में, काँखे भारत वर्ष।
काँखे भारत वर्ष, "पाक" है साफ़ कन्हैया ।
देशद्रोह आरोप, नकारे पाकी भैया।
देवासुर संग्राम, करे वह सागर मंथन।
अमृत रहा निकाल, तभी तो मिला समर्थन।।
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'' ऐसा लगता है '' नामक मुक्तक ,
कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह -
'' चाँद झील में '' से लिया गया है -
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गहरे काले अक्षरों से
आओ चलकर देखते है,
क्या लिखा है
हमारे भाग्य में
उन बड़े -बड़े कमरों में
अपने अनुक्रमांक पर
बैठकर
उन सफेद पीले पन्नों में
गहरे काले अक्षरों से
देखते है क्या लिखा है हमारे भाग्य में ..
-----मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
क्या लिखा है
हमारे भाग्य में
उन बड़े -बड़े कमरों में
अपने अनुक्रमांक पर
बैठकर
उन सफेद पीले पन्नों में
गहरे काले अक्षरों से
देखते है क्या लिखा है हमारे भाग्य में ..
-----मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
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"काला-धन","काले-मन", "काले-उद्देश्य",
"काली-राजनीति","काली-पत्रकारिता "और "काला तंत्र",
तो क्या होगा भारत-माता तेरा !!-
पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)
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कुतर्क देखिए मां को बाप की बीवी बताते हैं
ग़ज़ल
अपने विरोधी को गोडसे और संघी बताते हैं
कुतर्क देखिए मां को बाप की बीवी बताते हैं
ऐब छुपाने के लिए क्या से क्या कर जाते हैं
रहते दिल्ली में लेकिन इस्लामाबाद गाते हैं...
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खाकी निक्कर
...मास्टर अपनी नाई की दुकान चलाता था. मास्टर अब नहीं है, उसकी मौत उस ज़माने में हुई जब दारू के नाम पर टिंचरी दवाई की दुकानों में खुलेआम बिका करी थी. मास्टर के अनेक किस्से हैं जैसे कि वो आँखों की कोई दवा मुफ्त बांटा करता था. या कि उसका खोका बेरोजगारों को छुपकर बीडी पीने की निशुल्क आड़ प्रदान किया करता था. पर छोड़ो, ये किस्सा मास्टर के बारे में नहीं बल्कि खुर्शीद और उसकी खाकी निक्कर के ...
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वो ठहरा हुआ चाँद
मेरे सिरहाने वाली खिड़की तब से मैने ख़ुली ही रख़ी है क्योंकि उसके ठीक सामने चाँद आकर रुकता है एक छोटे तारे के साथ मेरे पास बहुत से सवालों के नहीं है हिसाब वर्षों से रोज़ रात मेरे सिरहाने बैठ कर बेटी पूछती है "माँ , पापा कभी लौट कर आएंगे क्या...
Madhulika Patel
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