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शनिवार, फ़रवरी 06, 2016

"घिर आए हैं ख्वाब" (चर्चा अंक-2244)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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गीत 

"सात रंगों से सजने लगी है धरा" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

धानी धरती ने पहना नया घाघरा।
रूप कञ्चन कहीं हैकहीं है हरा।।

पल्लवित हो रहापेड़-पौधों का तन,
हँस रहा है चमनगा रहा है सुमन,
नूर ही नूर हैजंगलों में भरा।
रूप कञ्चन कहीं हैकहीं है हरा।।
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घिर आए हैं ख्वाब 

*घिर आए हैं* 
*ख्वाब फिर * 
*उनींदी पलकों में * 
*फागुनी खुशबुओं में लिपटी * 
*इन हंसी ख्वाबों से * 
*रेशमी चुनर बुन * 
*पहना दूं क्या ... 
यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा 
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रिश्तों का अहसास छोड़ गई 

*टूट गया इस जनम का * 
*तुम्हारा और मेरा रिश्ता ,* 
*बेरहम मृत्यु ने तोड़ दिया * 
*हमारा भौतिक जग-रिश्ता,* 
*न मैं पति, न तुम मेरी पत्नी * 
*अब तुम हो एक दैविक आत्मा * 
*मैं मानव के रूप में हूँ एक जीवात्मा |* 
*अलविदा कह कर तुम चली गई * 
*पर रिश्तों का अहसास छोड़ गई... 
कालीपद "प्रसाद" 
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देश प्रेम 

भाई कोई नई चीज नहीं है 
सबको ही देश की पड़ी ही होती है 
सभी देश के भक्त होते हैं 
देश के बारे में ही सोचते हैं 
देश के लिये ही उनके पास 
वक्त ही वक्त होता है... 
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
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सदा सुहागिन मनु रहे, जोड़ी रहें प्रसन्न- 

अभिभावक अभिभूत हैं, व्याह हुआ संपन्न । 
सदा सुहागिन मनु रहे,  जोड़ी रहें प्रसन्न। 
जोड़ी रहें प्रसन्न, दुलारी बिटिया रानी।
 करते कन्यादान, नहीं फिर भी बेगानी । 
पूरे फेरे सात, प्रज्वलित पावन पावक। 
रखो वचन कुल याद , राम तेरे अभिभावक।। 
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर 
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मन की बात, बस यूँ ही 

कभी कभी निराशा में डूब जाता हूँ,  
जब भबिष्य और वर्तमान की सोंचता हूँ,  
खास कर तब।  
पर गुरुदेव ओशो ने सिखाया है 
प्रकृति के साथ बहो, लड़ो मत... 
चौथाखंभा पर ARUN SATHI  
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Valentine day  

खतो की डायरी...!!! 

आज रात फिर गुजरी है 
तुम्हारे ख़तो, तुम्हारे ख़्यालो में, 
तुम्हारे ख़तो के, इक-इक शब्द  
जैसे मेरे दिल की,  
इक-इक बात कहते है... 
'आहुति' पर Sushma Verma  
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‘पथिक’ ..  

(स्टीफ़न क्रेन) 

अंजुमन पर डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 
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छाप 

॥ दर्शन-प्राशन ॥ पर प्रतुल वशिष्ठ 
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भले भारत में ऐसी सुविधाएं दक्षिण और पश्चिम भारत में ज्यादा केंद्रित हैं और कैंसर के माहिरों और अन्य सम्बद्ध स्वास्थ्यकर्मियों का भारत में न सिर्फ नितांत अभाव है घोर विषम अनुपात भी है ले देकर २००० कैंसररोगों के माहिर हमारे यहां उपलब्ध है जबकि मरीज़ों का आंकड़ा दो करोड़ के पार चला गया है।उत्तर तथा केंद्रीय भारत पीछे है। हर बरस दस लाख से भी ज्यादा नए मामले सामने आते जा रहे हैं।जबकि कैंसर रोगों के माहिर तथा अन्य सम्बद्ध स्वास्थ्य कर्मी इस क्षेत्र में बहुत काम आ रहे हैं। 

Virendra Kumar Sharma 
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...सर झुका पाया 

पूछिए किसने मर्तबा पाया 
हर कहीं दिल बुझा-बुझा पाया 
जो न थे आपकी नज़र में हम 
किस तरह दिल में रास्ता पाया.. 
Suresh Swapnil  
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मगर हर साँप आखि़र साँप सूँघे से पड़े क्यूँ हैं 

नहीं है वस्ल किस्मत में मगर यूँ फ़ासिले क्यूँ हैं 
गयीं खो मंज़िलें फिर जगमगाते रास्ते क्यूँ हैं 
तुम्हारे पास आने के बहाने सैकड़ों हैं पर 
मुझे इक दो बहाने भी नहीं अब सूझते क्यूँ हैं... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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बर्फ ही बर्फ 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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शेष है स्वपन 

हिमकर श्याम 
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बदलते ही नया मौसम ठिकाने छूट जाते हैं 

(ग़ज़ल) 

( 25 शेरों से युत ग़ज़ल पहली बार ) 
वक्त के साथ ऐ जालिम, ज़माने छूट जाते हैं । 
मुहब्बत क्यों ख़ज़ानो से ख़ज़ाने छूट जाते हैं ।। 
तजुर्बा है बहुत हर उम्र की उन दास्तानों में । 
तेरीे जद्दो जेहद में कुछ फ़साने छूट जाते हैं... 
Naveen Mani Tripathi 
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