मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"सात रंगों से सजने लगी है धरा"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
धानी धरती ने पहना नया घाघरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
पल्लवित हो रहा, पेड़-पौधों का तन,
हँस रहा है चमन, गा रहा है सुमन,
नूर ही नूर है, जंगलों में भरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
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घिर आए हैं ख्वाब
*घिर आए हैं*
*ख्वाब फिर *
*उनींदी पलकों में *
*फागुनी खुशबुओं में लिपटी *
*इन हंसी ख्वाबों से *
*रेशमी चुनर बुन *
*पहना दूं क्या ...
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रिश्तों का अहसास छोड़ गई
*टूट गया इस जनम का *
*तुम्हारा और मेरा रिश्ता ,*
*बेरहम मृत्यु ने तोड़ दिया *
*हमारा भौतिक जग-रिश्ता,*
*न मैं पति, न तुम मेरी पत्नी *
*अब तुम हो एक दैविक आत्मा *
*मैं मानव के रूप में हूँ एक जीवात्मा |*
*अलविदा कह कर तुम चली गई *
*पर रिश्तों का अहसास छोड़ गई...
कालीपद "प्रसाद"
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देश प्रेम
भाई कोई नई चीज नहीं है
सबको ही देश की पड़ी ही होती है
सभी देश के भक्त होते हैं
देश के बारे में ही सोचते हैं
देश के लिये ही उनके पास
वक्त ही वक्त होता है...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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सदा सुहागिन मनु रहे, जोड़ी रहें प्रसन्न-
अभिभावक अभिभूत हैं, व्याह हुआ संपन्न ।
सदा सुहागिन मनु रहे, जोड़ी रहें प्रसन्न।
जोड़ी रहें प्रसन्न, दुलारी बिटिया रानी।
करते कन्यादान, नहीं फिर भी बेगानी ।
पूरे फेरे सात, प्रज्वलित पावन पावक।
रखो वचन कुल याद , राम तेरे अभिभावक।।
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मन की बात, बस यूँ ही
कभी कभी निराशा में डूब जाता हूँ,
जब भबिष्य और वर्तमान की सोंचता हूँ,
खास कर तब।
पर गुरुदेव ओशो ने सिखाया है
प्रकृति के साथ बहो, लड़ो मत...
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Valentine day
खतो की डायरी...!!!
आज रात फिर गुजरी है
तुम्हारे ख़तो, तुम्हारे ख़्यालो में,
तुम्हारे ख़तो के, इक-इक शब्द
जैसे मेरे दिल की,
इक-इक बात कहते है...
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भारत में अर्द्धसैनिक बल की कमान
पहली बार महिला को :
अर्चना रामासुंदरम बनीं
सशस्त्र सीमा बल की डायरेक्टर जनरल
शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav
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...सर झुका पाया
पूछिए किसने मर्तबा पाया
हर कहीं दिल बुझा-बुझा पाया
जो न थे आपकी नज़र में हम
किस तरह दिल में रास्ता पाया..
साझा आसमान पर
Suresh Swapnil
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मगर हर साँप आखि़र साँप सूँघे से पड़े क्यूँ हैं
नहीं है वस्ल किस्मत में मगर यूँ फ़ासिले क्यूँ हैं
गयीं खो मंज़िलें फिर जगमगाते रास्ते क्यूँ हैं
तुम्हारे पास आने के बहाने सैकड़ों हैं पर
मुझे इक दो बहाने भी नहीं अब सूझते क्यूँ हैं...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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चाइना की नामी कंपनी
कूलपैड ने पेश किया है
एक सस्ता किफाईती मोबाइल
ज्ञान दर्पण पर
Ratan singh shekhawat
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'' दूर अब भी '' नामक मुक्तक ,
कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह -
'' चाँद झील में '' से लिया गया है -
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बदलते ही नया मौसम ठिकाने छूट जाते हैं
(ग़ज़ल)
( 25 शेरों से युत ग़ज़ल पहली बार )
वक्त के साथ ऐ जालिम, ज़माने छूट जाते हैं ।
मुहब्बत क्यों ख़ज़ानो से ख़ज़ाने छूट जाते हैं ।।
तजुर्बा है बहुत हर उम्र की उन दास्तानों में ।
तेरीे जद्दो जेहद में कुछ फ़साने छूट जाते हैं...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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