फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, फ़रवरी 13, 2016

"माँ सरस्वती-नैसर्गिक शृंगार" (चर्चा अंक-2251)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

--

माँ सरस्वती 

ई. प्रदीप कुमार साहनी 
--

दोहे 

"नैसर्गिक शृंगार" 


सरदी सूखी ही गयी, नहीं हुई बरसात।
फसलें अब भी झेलतीं, पाले का उत्पात।।
--
आवारा मौसम हुए, हुआ बसन्त उदास।
उपवन में कैसे बुझे, भँवरों की अब प्यास... 
--

पतझर 

मनहरण घनाक्षरी... 
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु 
--
--

बेबात की बात : 

तमसोऽ मा ज्योतिर्गमय..... 

आज बसन्त पंचमी है -सरस्वती पूजन का दिन है । या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता या वीणा वर दण्ड मण्डित करा या श्वेत पद्मासना या ब्र्ह्माच्युत् शंकर प्रभृतिभि देवै: सदा वन्दिता सा माम् पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा क्षमा करें माँ ! क्षमा इस लिए मां कि उपरोक्त श्लोक के लिए ’गुगलियाना’ पड़ा [यानी ’गूगल’ से लाना पड़ा] ... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
--

हिन्द के वीर -II 

परम वीरों की करूँ मैं नमन बारम्बार 
वतन के हित में जो बलि हुए 
वो भारत के हैं अमूल्य उपहार... 
कविता मंच पर Hitesh Sharma 
--

निहायत छोटे दिमाग छोटे स्तर के लोग स्वयं घोषित सेकुलर बन बैठे हैं बाकी इनके लिए साम्प्रदायिक हैं। इनके पुरखों को भी सम्प्रदाय शब्द का अर्थ पता न होगा -भारतीय दर्शन इस या उस सम्प्रदाय (मत ,समुदाय ,परम्परा ,धार्मिक तंत्र या पद्धति )के गिर्द घूमता रहा है। शैव ,वैष्णव आदि सब सम्प्रदाय ही हैं। विस्तार के लिए नीचे दिए सेतु (लिंक )पर जाए। 

Virendra Kumar Sharma 
--

देश-द्रोही देश-भक्त पर भारी 

*लांस नायक हनमंथप्पा बनाम इशरत जहां * मेरा भारत महान! क्या सचमुच हमारा देश भारत महान है? पिछले कुछ-एक महीनों से हमारे देश में तथाकथित धर्म-निर्पेक्ष बुद्धिजीवी नेताओँ (जिनमें अधिकतर अपने बड़बोलेपन के लिए जाने जाते हैं) ने भारत के चरित्र और सम्मान के चीथड़े उड़ा दिए हैं। कभी इनटॉलेरेंस के नाम पर, कभी गाय के मांस खाने के मुद्दे पर, कभी मुस्लिम समाज से जुड़े आतंकियों पर हुए कार्यवाई के विरोध में, कभी मंदिर के निर्माण के मुद्दे को लेकर और न जाने क्या-क्या... 
आपका ब्लॉग पर Sunil Kr. Singh  
--

मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी बार बार 

है डूब रहा सूरज ढल रही शाम 
हुआ सिंदूरी आसमान 
ऐसी चली हवा 
ले उड़ी संग अपने पत्ता पत्ता 
छोड़ अपना अस्तिव टूट कर बिखर गये 
चले गये सब जाने कहाँ 
देख रहा खड़ा अकेला असहाय सा पेड़.. 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
--
--

बसंत 

Jayanti Prasad Sharma 
--
--
--
--

बासन्‍ती पर्व कहलाऊंगा !!!! 

बसंत पंचमी को माँ सरस्‍वती का 
वंदन अभिनन्‍दन करते बच्‍चे 
आज भी विद्या के मन्दिरों में 
पीली सरसों फूली कोयल कूके 
अमवा की डाली पूछती हाल बसंत का 
तभी कुनमुनाता नवकोंपल कहता 
कहाँ है बसंत की मनोहारी छटा .. 
SADA 
--

अपनी नजर लक्ष्य पर रखें 

अपनी नजर लक्ष्य पर रखें ज्ञान 
आपको मंजिल तक पहुँचने में मदद करता है, 
लेकिन जब आपको अपनी मंजिल का पता हो । 
अगर हम अपने मकसद पर ध्यान नहीं लगाएँगें ,  
तो अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएँगे... 
Rahul Singh 
--
--

चुनाव आ गया है 

मुझको देखते ही रुक गया 
वो दुआ सलाम करने झुक गया... 
हालात आजकल पर प्रवेश कुमार सिंह 
--

अशोक आंद्रे 

सिसकती लय पर 
पौरुश्ता का दंभ 
आदमी का अट्टहास 
दिन के उजाले में 
अनाम सिसकती लय पर... 
kathasrijan पर ashok andrey 
--

अब खून भी बहता नहीं,  

और जख्म भी बढते गये । 

वक्त का हर  ज़िक्र मैं, लिखता चला गया ।
हर रंज-ओ-ग़म  को आप ही, सहता चला गया ।।

इस रास्ते के दरम्यां, शायद कहीं पर छाँव हो,
'मोहन ' भरम की धूप में, जलता चला गया ... 
अभिव्यक्ति मेरी पर मनीष प्रताप 
--
--
--
--

कहीं भी खुशहाली नहीं है।... 

आती है जब बसंत पंचमी 
झूमती है समस्त प्रकृति 
हर्षित होता है हर जीव 
गाती है धरा यौवन के गीत... 
kuldeep thakur  
--

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।