मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्रवर बन्धु नमस्ते!
नहीं विसूरते देखा तुमको,
रहते हरदम हँसते..............
प्रवर बन्धु नमस्ते........।
नहीं दुखी करते क्या दुख तुमको,
शूल नहीं सालते क्या मन को।
कैसे सह लेते तन मन की पीड़ा,
इसका राज बताओ हमको।
दारुण दुख में भी नयन तुम्हारे,
देखे नहीं बरसते..............
प्रवर बन्धु नमस्ते...
Jayanti Prasad Sharma
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"बनाओ मन को कोमल"
महावृक्ष है यह सेमल का,
खिली हुई है डाली-डाली।
हरे-हरे फूलों के मुँह पर,
छाई है बसन्त की लाली।।
पाई है कुन्दन कुसुमों ने
कुमुद-कमलिनी जैसी काया।
सबसे पहले सेमल ने ही
धरती पर ऋतुराज सजाया।।
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'' प्यार '' - ( 8 ) , नामक मुक्तक ,
कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह -
'' चाँद झील में '' से लिया गया है -
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अन्दाज-ए-वफा सूरत से, हरगिज़ न लगाया जाये।
जिंदा लोगों को ,न फिर से, लाशों मे सुमारा जाये।
ऐ खुदा खैर करो , वो लम्हा न दुवारा आये।।
जलाए है आशियाने , दो पल के उजाले ने,
मेरे अंधेरों में कोई दीपक, फिर से न जलाया जाये...
ऐ खुदा खैर करो , वो लम्हा न दुवारा आये।।
जलाए है आशियाने , दो पल के उजाले ने,
मेरे अंधेरों में कोई दीपक, फिर से न जलाया जाये...
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घर फूँक तमाशा
देश में कहीं कुछ हो जाये हमारे मुस्तैद उपद्रवकारी हमेशा बड़े जोश खरोश के साथ हिंसा फैलाने में, तोड़ फोड़ करने में और जन सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाने में सबसे आगे नज़र आते हैं । अब तो इन लोगों ने अपना दायरा और भी बढ़ा लिया है । वियना में कोई दुर्घटना घटे या ऑस्ट्रेलिया में, अमेरिका में कोई हादसा हो या इंग्लैंड में, हमारे ये ‘जाँबाज़’ अपने देश की रेलगाड़ियाँ या बसें जलाने में ज़रा सी भी देर नहीं लगाते...
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२०४. नींद
मेरी आँखें खुली हैं,
पर मैं नींद में हूँ,
चल रहा हूँ,
मंज़िल से भटक रहा हूँ,
पर नींद है कि टूटती नहीं...
कविताएँ पर Onkar
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शीशे जो सच दिखाते ....
शीशे जो सच दिखाते पत्थर उठाते हो
सितम जो बयां हुये तो शातिर बताते हो...
udaya veer singh
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अपशब्द
अपशब्दों का प्रहार
इतना गहरा होता
घाव प्रगाढ़ कर जाता
घावों से रिसाव जब होता
अपशब्द कर्णभेदी हो जाते
मन मस्तिष्क पर
बादल से मडराते ...
इतना गहरा होता
घाव प्रगाढ़ कर जाता
घावों से रिसाव जब होता
अपशब्द कर्णभेदी हो जाते
मन मस्तिष्क पर
बादल से मडराते ...
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हमें चलना था
जो ठीक लगता है कह देते हो
जैसे शतरंज हो ,और शह देते हो
क्यों छीन लेते हो तुम रात को
जब रोशनी तुम सुबह देते हो...
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तो स्मृति ईरानी आप ने ग़लत बयाना ले लिया है
इन दिनों संसद में जो कुछ भी हो रहा है उस सब को देख कर एक पुराना लतीफ़ा याद आता है। आप भी इस लतीफ़े का लुत्फ़ लीजिए : एक लड़का था। एक शाम स्कूल से लौटा तो अपनी मम्मी से पूछने लगा कि, 'मम्मी, मम्मी ! दूध का रंग काला होता है कि सफ़ेद? ' ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?' मम्मी ने उत्सुकता वश पूछा। ' कुछ नहीं मम्मी, तुम बस मुझे बता दो ...
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Virendra Kumar Sharma
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परम विदुषी बहन मृणाल-पांडे जी ने हाल ही एक लेख में वेदों का उदाहरण देते हुए लिखा की हर समस्या का समाधान चर्चा करने से ही हो सकता है ! मैं भी इस वाक्य से शब्दशः सहमत हूँ , लेकिन चर्चा किस विषय पर कौन और किन नियमों के तहत होनी चाहिए , ये नियम भी तो वेदों ने बताये हैं ! उनका ज़िक्र करना शायद वो भूल गयीं , या फिर किसी विशेष "विचारधारा"के प्रति अपना पक्ष दिखने के चक्कर में उन्होंने चर्चा की शर्तों को बताना उचित नहीं समझा...
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कल भी हमारे आज पर होगा....
हम आए थे जब याद करो दुनियां में
ईश्वर की तरह निश्छल आए थे
न जानते थे कुछ न कुछ पाने की इच्छा थी...
ये भी जानते हैं हम
जब दुनियां से जाएंगे कोई साथ न चलेगा
छूट जाएगा सब कुछ यहीं,
साथ न कुछ ले जा पाएंगे...
kuldeep thakur
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