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शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2016

"कर्तव्य और दायित्व" (चर्चा अंक-2264)

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है। 
'जमाना बहुत बदल गया है', 'लोग बदल गए हैं', आजकल ईमानदार लोग मिलते कहाँ हैं' ऐसे वाक्य अक्सर सुनने को मिलते हैं। हम सब दूसरों को कोसने और उनकी आलोचना करने में ही अपनी ऊर्जा खर्च करते रहते हैं पर अपने कर्तव्य और दायित्व के पालन पर ध्यान नहीं देते हैं।  हम सब चाहते हैं की सब कुछ सरकार करे पर सरकार में भी तो आज के कमजोर, खुदगर्ज, लालची और बेईमान लोग घुस गए हैं वे न तो खुद कर्तव्य और दायित्व का पालन करते हैं और न दूसरों को करने देते हैं।  अब तो ऐसा लगता है की भलाई करना जुर्म लगने लगा है और ऐसे भले आदमी को सज्जनता का ऐसा दण्ड मिलता है की होश ठिकाने आ जाते हैं फिर भी ऐसे सज्जन लोग कष्टों और संघर्षों से हारते नही, डट  कर मुकाबला करते हैं।  मैं आप सब से अपील करता हूँ अपने कर्तव्य और दायित्व का पालन करने से कदापि पीछे न हटें। 
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आकांक्षा सक्सेना 
दोस्तों हमेशा सिर्फ अपने लिये जीना बस खुद के लिऐ सोचना क्या ये खुदगर्जी नहीं और क्या आप यही जीवन चुनना चाहेंगे शायद नहीं |
कुछ लोग बड़े मंच पर खड़े होकर समाजहित, राष्ट्रहित, प्रेम और दया की बड़ी - बड़ी बातें करते हैं पर देखा गया है कि वही लोग जब बस और ट्रेन का सफर कर रहे होते हैं तब अपने साथी यात्री को पूरी यात्रा में उसे खड़े हुऐ यात्रा करते देख,उनका मन नहीं पसीजता जो थोड़ा सा खिसक जाते और वो भी यात्री बैठ जाता |
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 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
यहाँ मोहन दास कर्मचन्द गान्धी की आत्मा बसती है!
आठ अक्टूबर 2008 को मेरा 
किसी समारोह में जाने का कार्यक्रम 
पहले से ही निश्चित था। 
समारोह/सम्मेलन दो दिन तक चला।
यूँ तो अहमदाबाद के कई दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया, 
परन्तु मुझे गांधी जी का साबरमती आश्रम देख कर बहुत अच्छा लगा।
डॉ मोनिका शर्मा 
ज़िन्दगी संभलती नहीं है | 
ये पकड़ो तो वो छूट जाता है और वो संभालो तो ये बिखर जाता है | 
हर लेखक अपनी रचना के बाद मर जाता है | नई रचना के लिए वह फिर से जन्म लेता है | साहित्य की समझ हो तो पत्रकारिता में भी निखार आता है | 
लेखन, समय और एकांत चाहता है | 
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प्रभात रंजन 
मैं तो एक बनी बनाई औरत थी । औरत क्या बीवी थी । और तुम जब अपने लड़कपन में जमाने भर के चस्खे ले रहे थे लफंगई ,गुंडई ,तफरी कर रहे थे तब मैं घास थोड़े न छील रही थी ।
तुम बेहथियार जंग में उतरे हो और मैं न जाने कबसे अपनी काबिलियत तराश रही थी ।
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अशोक पाण्डेय 
चिंतन में श्रृगाल परिपाटी,
हुआं-हुआं इत हुआं-हुआं उत फिर क्यों उम्मत बांटी
हर सियार का रंग अलग है तिरक चाल भन्नाटी
अलग तंज़ मुनफ़रिद किनाया चौकस कन्नी काटी
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डॉ दिव्या श्रीवास्तव (ZEAL)
क्या थी विभाजन की पीड़ा ? विभाजन के समय हुआ क्या क्या ?
विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक पार्टियों दृष्टिकोण ?
क्या थी पीड़ा पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की ... मदन लाल पाहवा और विष्णु करकरे की?
क्या थी गोडसे की विवशता ?
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उदयवीर सिंह 
हे संसद ! तूँ स्वस्थ रहे स्वच्छ रहे निशिवासर तूँ
संविधान की गुरुता का देख सके विधि आदर तूँ
गंतव्य बने स्तम्भ बने मंतव्य बने हित चिंतन का
राष्ट्र निरंतर प्रणीत हो पथ्य-पाथेय की गागर तूँ
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मनोज कुमार 
आपको यह जानकर ख़ुशी होगी की तकनीक के इस समय में सुचना एवं संचार तकनीक के उपयोग के क्षेत्र में हुयी अद्भुत क्रांति के चलते आज भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 35 करोड़ के पार पहुंच गयी है अभी हाल ही में  ...... 
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इंदुरवी सिंह 
हमारे तुम्हारे बीच का
ये मौन
बहुत शोर करता है
इसकी बातें
कभी ख़त्म नहीं होतीं
अनगिनत सवाल-जवाब
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उपासना सिआग 
समुन्दर से
मन की लहरें
भागती है क्यूँ
बार -बार
किनारे की तरफ !
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मुकेश कुमार सिन्हा 
देखी है कभी कवि की डायरी ?
अधिकतर कवियों के पास होती है
पुरानी, जर्द पन्नो वाली किसी कंपनी की
उपहारस्वरूप प्राप्त डायरी !
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अशोक कुमार पाण्डेय 
नेपाली के युवा कवि सुमन पोखरेल की ये कविताएं उस जीवन जगत के प्रामाणिक चित्र हैं जिनसे कवि वाबस्ता है। यहाँ बच्चों का एक मासूम जीवन है जिसमें बहुत सी बदशक्ल सरंचनायेँ भी उनके स्पर्श से कोमल हो जाती है, बनता-बिगड़ता-बदलता शहर है जो
लोकेन्द्र सिंह 
इं दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय पर एक रोचक वाकया घटित हुआ है। इसकी चर्चा सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में हो रही है। कांग्रेस ने 22 फरवरी को मध्यप्रदेश के संघ कार्यालयों पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई थी।
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आमिर अली 
डियर रीडर्स ,बहुत सारे लोग इंटरनेट पर अर्निंग करने के बारे में सर्चिंग करते रहते हैं.और कई बार किसी गलत जगह में जाकर भी फस जाते हैं, तो कई बार फेक  ..... 
वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
जिनके गुरूजी अफजल हों ,साधू संतों में में जिन्हें कोई गुरु ही न मिले ,ऐसे कांग्रेस के सुरजेवाला नुमा प्रवक्ता सोच के भगोड़े संसद छोड़कर भाग गए ईरानी के सच की आंच को सह न सके। जबकि कश्मीरियों में गुरु सरनेम किसी का नहीं है।
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आशा सक्सेना 
श्यामल गात 
सुदर्शन सुन्दर 
मनमोहक छवि तेरी 
रोम रोम में बसी 
भाव भंगिमा तेरी 
तेरा मुकुट 
तेरी बाँसुरी
रश्मि शर्मा
नीला शहर...नीला आसमान
सुरमई सी शाम थी
जब
शहर की बूढ़ी दरख़्त तले
नजरें बचा
उसने पि‍या था
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धन्यवाद,




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