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सोमवार, फ़रवरी 15, 2016

"आग लगे इस वेलेंटाइन डे को" (चर्चा अंक-2253)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आज मैं 2 दिन के प्रवास पर हूँ, इसलिए
देखिए मेरी पसन्द के कुछ पुराने लिंक।
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"चौदह दोहे-प्रेम-दिवस का रंग" 

...पश्चिम की है सभ्यताप्रेमदिवस का वार।
लेकिन अपने देश मेंप्रतिदिन प्रेम अपार।१२।
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जीवनभर ना मिट सकेबरसाओ वह रंग।
सिखलाओ संसार कोप्रेम-प्रीत के ढंग।१३।
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आडम्बर से युक्त हैप्रेमदिवस का खेल।
चमक-दमक में खो गयाअब सुमनों का मेल।१४।
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मीडियाई वेलेंटाइन -तेजाबी गुलाब 

१४ फरवरी अधिकांशतया वसंत ऋतू के आरम्भ का समय है .वसंत वह ऋतू जब प्रकृति नव स्वरुप ग्रहण करती है ,पेड़ पौधों पर नव कोपल विकसित होती हैं ,विद्या की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिन भी धरती वासी वसंत पंचमी को ही मनाते हैं... 
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
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प्यार हम अपना लुटा देंगे... 

तुम आओ तो सही... 

ये किसकी आहटों से धरती सज गई है... 
किसने अपना दुपट्टा ऊंचे आसमान में 
लहराकर किया है अपने प्रेम का ऐलान.. 
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ए कहाँ हो ? 

देखो आज तुम्हारे शहर में 
मौसम ने डेरा लगाया है 
हवाएं पैगाम लिए दस्तक दे रही हैं 
दरवाज़ा खोलो तो सही 
घर आँगन ना महक जाए 
तो कहना... 
vandana gupta 
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प्रीत की झीनी चदरिया...! 

आओ हम ताना बुने 
ज़िन्दगी के करघे पर 
एक हाथ तुम्हारा, एक मेरा 
और रंग तो 
प्यार के ही होंगे ना?... 
अंजुमन पर डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 
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एक प्रेम गीत  

फूलों में रंग रहेंगे 

जब तक तुम साथ रहोगी 
फूलों में रंग रहेंगे , 
जीवन का गीत लिए हम 
हर मौसम संग रहेंगे... 
जयकृष्ण राय तुषार 
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दिल का मलाल क्या कहा जाए 

साथ गर आपका जो मिल जाए 
सफ़र जिंदगी का आसां से कट जाए 
मन का बंद दरवाजा खुलने को है 
खुशबुओं की राह से जो गुजरा जाए... 
यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा 
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विष्णु प्रभाकर का प्रेम पत्र  

अपनी पत्नी सुशीला के लिये 

प्रेम पत्र बहुत पढ़े लिखे हैं आज विष्णु प्रभाकर की किताब पंखहीन पढ़ते हुए उनका एक प्रेम पत्र मिला जिसे उन्होंने अपनी पत्नी सुशीला को लिखा है - 
रानी, सोचता हूँ जो हुआ क्या वह सत्य है? सवेरे उठा तो जान पड़ा जैसे स्वप्न देखा हो। लेकिन आँखे जो खोलीं तो प्रकाश ने उस सारे स्वप्न को सत्य के रूप में प्रत्यक्ष कर दिखाया... 
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तब तक बाबा वैलेंटाइन का आविर्भाव भारत की धरा पर नहीं हुआ था। ये कहना मुश्किल है कि उस दौर में देश, प्रेम के प्रभाव से मुक्त्त रहा होगा। 
प्रेम पर ग्रन्थ और महाकाव्य आदि काल से यहाँ लिखे जा चुके थे। वैलेंटाइन बाबा के दादा-परदादा की औकात नहीं थी कि हिंदुस्तानी प्रेम की ए-बी-सी भी समझ पाते। सोलह कला सम्पन्न भगवान यहाँ द्वापर में ही डेरा डाल चुके थे। क्यूपिड की अवधारणा भी हमारे कामदेव से चुराई हुयी लगती है। बसंत के आगमन के साथ ही शरद ऋतु में सोयी पड़ी सभी आकांक्षाएं और अपेक्षाएं अंगड़ाई लेना शुरू कर देतीं हैं... 
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प्यार ... 

Anita Lalit (अनिता ललित ) 
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कुछ गीत अधूरे रहने दो 

कुछ दर्द अधूरे रहने दो 
कुछ सर्द हवाएँ बहने दो 
सिलसिले ये चलते रहें 
कुछ गीत अधूरे रहने दो... 
sunita agarwal 
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खुश्बू की तरह आया वो.. 

(मुक्तक और रुबाईयाँ-5) 

  (1) 
खुश्बू   की  तरह   आया  
वो  तेज  हवाओं  में  
माँगा  था  जिसे  हमने  
दिन  रात  दुआओं में  
तुम छत पर नहीं आये 
मैं घर से नहीं निकला  
ये  चांद बहुत  भटका  
सावन  की  घटाओं  में 
-बशीर बद्र     
(2)... 
Sanjay Kumar Garg 
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Valentine..डायरी... 

अभी बाकी था....!!! 

तुम्हारी आखों में उतर कर,
तुम्हारे दिल के सच को जानना....
अभी बाकी था....
जो तुम लब्जों में नही कह पाये,
उस ख़ामोशी को सुनना...
अभी बाकी था...
'आहुति' पर sushma 'आहुति' 
प्यार नहीं मोहताज़ किसी दिन का 
यह है एक अनवरत प्रवाह 
मरुथल हो या गंगा का शीतल जल, 
रहता है प्रेम अव्यक्त 
नहीं मांगता कोई प्रतिदान... 


Kailash Sharma 
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902-तेरे हुस्न से... 

तेरे हुस्न से पिरोया अशआर हूँ मैं 
तेरी ही चाहत का हूबहू इजहार हूँ मैं... 
कवि किशोर कुमार खोरेन्द्र 
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हार जाना हार नही
हार स्वीकार ना करना हार है।
हार का स्वभाव स्थायी नही होता। उसके कारणों का विश्लेषण ना करना उसेस्थिरता की तरफ ले जाता है। पर निन्दा करना एक नकारात्मक प्रक्रिया हैऔरउसके परिंआन भी नकारात्मक ही होते है। यदि कोई विजयी हैतो इस बात की चर्चाअवश्य होनी चाहियेकि उसके क्या कारण थेविजय के पीछे परिश्रम  के साथ साथसकरात्मक सोचसकरात्मक कर्म और सकरात्मक लक्षय अवश्य होते हैं। हार कोभी सकारात्मकता से लेते हुयेस्वस्थ वातावरण और निष्पक्ष तथ्यों के साथमूल्याकंन और विश्लेशण करके भविष्य में अपनी विजय को स्थायी बनाया जासकता है।
पिछले तीन चार दिनों से जिस तरह से सोशल मीडिया पर लोग "आप" की जीत के विरुद्ध अपनी भावनाये प्रकट करते हुये  नकारात्मक विचार शेयर कर रहे हैं, वह विचार विमर्श किसी और ही दिशा मे ले जा रहा है
किस तरह से विचार व्यक्त किये जा रहे हैं, इसकी बानगी कुछ इस तरह से देखी जा सकती है......
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बात की बात: मजदूर 

जब आप अपने गृह नगर/प्रदेश से दूर रहते है, तब वो लोग जो जिनके शहर में आप है वो अखबारों के माध्यम से आपके शहर और प्रदेश को जानते है। उनका अपना नजरिया बना होता है। खासकर जब बात उत्तर प्रदेश की हो तो ये मान्यता आम है की उत्तर प्रदेश में अपराध बहुत होते है रोजगार के अवसर कम है... 
Vikram Pratap singh 
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