नमन हे अविनाश वाचस्पति-
रविकर
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श्यामल सुमन
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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ५ ,फ़रबरी २०१६ में
Madan Mohan Saxena
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रोके अपनी बहन को, दकियानूसी भाय |
ऊँची शिक्षा के लिए, शहर नहीं ले जाय |
शहर नहीं ले जाय, भाय खुद जाय कमाया |
घर भी लिया बसाय, बाप बनने को आया |
होय प्रसव का दर्द, मर्द-डाक्टर को टोके |
महिला डाक्टर खोज, रहा कब से रो रो के || |
हमिंग बर्ड - मुकेश कुमार सिन्हा
shashi purwar
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जब भाषा दरबारी ,दैवीय....
udaya veer singh
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नयी-नयी पोशाक बदलकर, मौसम आते-जाते हैं,
yashoda Agrawal
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गीत "पात झर गये मस्त पवन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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