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शनिवार, जनवरी 06, 2018

"*नया साल जबसे आया है।*" (चर्चा अंक-2840)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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एक बुनाई एहसासों की .. 

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर लफ्जों का 
सुन कर ही शायद ठंड अबोला कर जाए... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव - 
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अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है /  

डी. एम. मिश्र 

अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है 
मेरे कमरे का रोशनदान तब भी जगमगाता है। 
किया जो फ़ैसला मुंसिफ़ ने वो बिल्कुल सही लेकिन 
ख़ुदा का फ़ैसला हर फ़ैसले के बाद आता है... 
कविता मंच पर kuldeep thakur  
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माँ की चरणों मे बैठकर 

इस जीवन के बीते कई बरस 
कहीं धूप खिला कहीं साया है 
इस अनुभव के हैं विविध रंग ... 
pragyan-vigyan पर 
Dr.J.P.Tiwari  
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एक हमारा प्यारा तोता 

एक हमारा प्यारा तोता'ओरियो ' है वह कहलाताबोली हमारी वह सीखताफिर उसको है दोहराता
चोंच उसकी है लाल-लालठुमक-ठुमक है उसकी चालघर-भर वह पूरे घूमता रहतामिट्ठू-मिट्ठू   कहता  फिरता... 

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मुझमें सच्चाईयों के कांटें हैं 

आसमानों से दूर रहता हूंबेईमानों से दूर रहता हूं
वो जो मिल-जुलके बेईमानी करेंख़ानदानों से दूर रहता हूं... 

Sanjay Grover 
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जाड़ा 

जाड़ा ताल ठोंक जब बोला,
सूरज का सिंहासन डोला,
कुहरे ने जब पांव पसारा,
रास्ता भूला चांद बिचारा... 
Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार  
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कभी ऐसा भी 

कुछ यूँ ही बिना

 कुछ पर 

कुछ भी सोचे 

कोई
बुरी बात
नहीं है

ढूँढना
लिखे हुवे
के चेहरे को

कुछ
लोग आँखें
भी ढूँढते हैं ...
सुशील कुमार जोशी 
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साल नूतन 

sapne(सपने) पर shashi purwar  
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5 टिप्‍पणियां:

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