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बुधवार, जनवरी 10, 2018

"आओ कुत्ता हो जायें और घर में रहें" चर्चामंच 2844



गुजर गया है साल पुराना।
गाओ फिर से नया तराना।।

सब कुछ तो पहले जैसा है,
लक्ष्य आज भी तो पैसा है,
सिर्फ कलेण्डर ही तो बदला,
वही ठौर है, वही ठिकाना।

नित्य नये अनुभव होते हैं,
कुछ हँसते हैं, कुछ रोते हैं,
जीवन तो बस एक सफर है,
सबको पड़ता आना-जाना।

पीना पड़ा यहाँ गरल है,
शंकर बनना नहीं सरल है,
कैसे महादेव बन जायें?
मुश्किल गंगा धार बहाना।

आपाधापी, भाग-दौड़ है,
गुणा-भाग है और होड़ है,
इक आता है, इक जाता है,
जग है एक मुसाफिरखाना।

लोग मील के पत्थर जैसे,
अपनी मंजिल पायें कैसे?
औरों को पथ बतलाते हैं,
ये क्या जानें कदम बढ़ाना। 

प्रबंधन :  

कुछ क्षणिकाएं 

 समय पर नहीं आने के लिए 
निकाल दिए जायेंगे आप 
कोई बात नहीं कि 
आपके बेटे को है १०४ डिग्री बुखार... 
सरोकार पर Arun Roy 

फ़ायलुन × 4 

"लिंक-लिक्खाड़"
मैंने* तुझसे कहा, तूने* मुझसे कहा। 

तू तो* समझी नहीं, मैं भी* उलझा रहा।। 
देती* चेतावनी, ठोकरें भी लगीं  

तू तो*  पत्थर उठा किन्तु देती बहा...  
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर 

positivity - abstract pics के लिए इमेज परिणाम
केवल अधिकारों की देते हैं जानकारी 
पर कर्तव्यविहीन हो रही सोच हमारी 
खुल कर बोलना है अधिकार हमारा 
कब बोलना, कहाँ बोलना व विवादों को 
देना निमंत्रण क्या दुरुपयोग नहीं... 
Akanksha पर Asha Saxena  

दोहा गीत -  

अरुण कुमार निगम 

वन उपवन खोते गए, जब से हुआ विकास । 
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास... 

ताजी रोटी – बासी रोटी 

यदि आपके सामने बासी रोटी रखी हो और साथ में ताजी रोटी भी हो तो आप निश्चित ही ताजी रोटी खाएंगे। बासी रोटी लाख शिकायत करे कि मैं भी कल तुम्हारे लिये सबकुछ थी लेकिन बन्दे के सामने ताजी रोटी है तो वह बासी को सूंघेगा भी नहीं। ... 
"कुछ कहना है"

जिन्दगी के दोहे

भँवर सरीखी जिंदगी, हाथ-पैर मत मार।
देह छोड़, दम साध के, होगा बेडा पार ।।

चार दिनों की जिन्दगी, बिल्कुल स्वर्णिम स्वप्न।
स्वप्न टूटते ही लुटे, देह नेह धन रत्न।।


5 टिप्‍पणियां:

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