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मंगलवार, जनवरी 30, 2018

"है सूरज भयभीत" (चर्चा अंक-2864)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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बजट 

सभी अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से बजट बनाते हैं। सरकार और व्यापारी साल भर का, आम आदमी महीने भर का और गरीब आदमी का बजट रोज बनता/बिगड़ता है। सरकारें घाटे का बजट बना कर भी विकास का घोड़ा दौड़ा सकती है लेकिन आम आदमी घाटे का बजट बनाकर आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है। आम आदमी को सीख दी जाती है कि जितनी चादर हो, उतना ही पैर फैलाओ लेकिन सरकारों को अधिकार होता है कि मनमर्जी पैर फैलाओ... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय  
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नक़ाब 

प्यार पर Rewa tibrewal  
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तूने जिंदा कवि को मार दिया 

हाँ, कविताओं को मैं पढ़ता हूँ
और कविता भी मैं लिखता हूँ
कवि की चाह, पढें सब कविता
डरता हूँ, कविता पढे न कविता... 
pragyan-vigyan पर 
Dr.J.P.Tiwari  
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२-क्षणिकाएं 

Akanksha पर Asha Saxena  
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किताबों की दुनिया -162 

नीरज पर नीरज गोस्वामी  
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9 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।

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  2. धन्‍यवाद, शास्‍त्री जी आपका आभार कि मेरे ब्‍लॉग को चर्चामंच में स्‍थान दिया।

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  3. बहुत ही उम्दा चर्चा प्रस्तुति, आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत उम्दा प्रस्तुति. मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी

    जवाब देंहटाएं
  5. Bahut Sundar Chacha Manch meri post ko Shamil karne ke liye bahut bahut dhanyavad sir ji

    जवाब देंहटाएं

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