सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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" कमर कस लो कोई बाकी कसर ना रहे "
आँधियों का चट्टानों पर असर नहीं होता
हवाओं का जड़-तनों पे बसर नहीं होता...
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570.
कैक्टस...
एक कैक्टस मुझमें भी पनप गया है
जिसके काँटे चुभते हैं मुझको
और लहू टपकता है
चाहती हूँ
हँसू खिलखिलाऊँ
बिन्दास उड़ती फिरूँ
पर जब भी उठती हूँ
चलती हूँ
उड़ने की चेष्टा करती हूँ
मेरे पाँव और मेरा मन
लहूलूहान हो जाता है
उस कैक्टस से ...
पूरणमासी वित्तवर्ष की!
दूर क्षितिज के छोर पर
बंधी है सँझा रानी
रंभाती बांझीन गाय की तरह
आसमान के खूंटे से
वित् वर्ष की अंतिम पूरनमासी है जो!
पीये जा रहा है समंदर
बेतरतीब बादलों को , बेहिसाब!...
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ना आई सदा...!!
ना आई अब तक सदा ,उस मोड़ से,
जहां हुए थे हम जुदा, सब छोड़ के।
होता है धीरे धीरे असर,ज़िन्दगी में।...
गमे जुदाई है इक ,ज़हर ज़िन्दगी में,...
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चरैवेति चरैवेति ....
चलते रहो ।मुसलसल सफ़र में रहो ।मंज़िल तक पहुंचो,ना पहुंचो ।चलते रहो ।मील के पत्थरों से राह पूछो ।बरगद की छांव में कुछ देर सुस्ता लो ।नदी के बहते पानी में तैरो ।धूप में तपो ।रास्ते की धूल फांको ।बारिश में भीगो ।आते-जाते मुसाफ़िरों का हाल पूछो ।जिसे ज़रूरत हो,उसकी मदद करो...
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सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार राधा बहन जी।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सखी
सादर
हृदय से आभार!!! सभी साथी रचनाकारों को बधाई!!!!
आज की सुन्दर सोमवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र को शीर्षक पर स्थान देने के लिये आभार राधा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार । दिलचस्प चर्चा ।
जवाब देंहटाएंचाँद की ओर निकलते हुए,
सबने चार चाँद लगा दिए ।
बहुत ही सुन्दर कड़ियां प्रस्तुत की मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंVisit My Blog- https://ajabgajabjankari.com
बहुत सुंदर चर्चा. कुछ रचनाओं ने मन मोह लिया. मूरख दिवस के दोहे विशेष रूप से बहुत पसंद आए.
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