सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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बुद्ध की यशोधरा --
कविता |
बुद्ध की प्रथम और अंतिम नारी-
जिसने उसके मन में झाँका,
जागी थी जैसे तू कपलायिनी --
ऐसे कोई नहीं जागा !!
पति प्रिया से बनी पति त्राज्या--
सहा अकल्पनीय दुःख पगली,
नभ से आ गिरी धरा पे-
नियति तेरी ऐसी बदली ;
वैभव से बुद्ध ने किया पलायन
तुमने वैभव में सुख त्यागा...
वह पत्थर की मुर्ति थी।
सुना तो यह गया है, वह पत्थर की देवी थी। पत्थर की मूर्ति। संगमरमर का तराशा हुआ बदन। एक - एक नैन नक्श, बेहद खूबसूरती से तराशे हुए। मीन जैसी ऑखें ,सुराहीदार गर्दन, सेब से गाल। गुलाब से भी गुलाबी होठ। पतली कमर। बेहद खूबसूरत देह यष्टि। जो भी देखता उस पत्थर की मूरत को देखता ही रह जाता। लोग उस मूरत की तारीफ करते नही अघाते थे। सभी उसकी खूबसूरती के कद्रदान थे। कोई ग़ज़ल लिखता कोई कविता लिखता। मगर इससे क्या। . .. ? वह तो एक मूर्ति भर थी। पत्थर की मूर्ति...
Mukesh Srivastava
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हैवानियत की हद
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhW9b9JNtBG6WnqAUvmE7d1fbPN8hp_HoAqQn2k91KEF9XjiGXT7yswGNLtYvqVtGeCfRCK1ZHskX9kDsL8Jywon8AxWbHca0MxGd2uEyB4qj5SFWufOAPO4r0oy_FWSczY9evcJusPVPYi/s320/images+%25288%2529.jpg)
*समझ में नहीं आता हम विकास के किस पथ पर अग्रसर हैं ! अभी तक नाबालिग बच्चियों के साथ दिल दहलाने वाली दुष्कर्म की ख़बरें सुनाई देती थीं ! अब तो दुधमुंही चार माह और आठ माह की बच्चियों के साथ हैवानियत की ख़बरें सुनाई देने लगी हैं ! सख्त क़ानून बनाने के बाद भी ऐसी घटनाओं में कमी आने की जगह दिनों दिन और वृद्धि होती जा रही है ! इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी न्याय व्यवस्था की धीमी गति और लचीलापन ! सालों गुज़र जाते हैं कोर्ट कचहरी में मुकदमे चलते रहते हैं ! अपराधी बेख़ौफ़ रहते हैं !
समय के साथ बात आई गयी हो जाती है !
रोजाना की हज़ारों समस्याओं के चलते लोगों का आक्रोश भी मंद पड़ जाता है ! साक्ष्य मिट...
Sudhinama पर sadhana vaid
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![bashir badr](https://doosariaawaz.files.wordpress.com/2018/03/bashir-badr.jpg?w=232&h=174)
सुना है ‘बद्र’ साहब
महफिलों की जान होते थे
बहुत दिन से वो पत्थर हैं,
न हंसते हैं न रोते हैं
डॉ. बशीर बद्र की
मौजूदा हालत को
यह शेर बखूबी बयाँ करता है। ़
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKpYU36YYvj90HW3JDEB2jZsK4STyHyOoqLznrO9VoIE8PE_h8DYqd1G73mZpDwoCiz3nVWvk7nY5YRegYF__pLPTxOSGiTNkClYngxrtj9IcbbGEpjAzT_YSfQRRBQ_SGEKogSxkD6e6D/s320/29134936_889841477865380_126090038_n.jpg)
सड़क किनारे जो भी पाया,
पेट उसी से यह भरती है।
मोहनभोग समझकर,
भूखी गइया कचरा चरती है...
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सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार राधा बहन जी।
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
शुभ प्रभात राधा जी |मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा कलेक्शन है राधा जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा आज की ! मेरे आलेख को आज की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका आपका हृदय से आभार राधा जी ! सभी सूत्र बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंenuApril 23, 2018 at 4:11 PM
जवाब देंहटाएंआदरनीय राधा जी -- मन आह्लादित है पहली बार आपके माध्यम से रचना लिंक हुई है सादर आभार | कुछ लिंकों से साक्षात्कार हो चुका है बाकि बाद में | पर आदरणीय बशीर बद्र जी पर मर्मस्पर्शी लिंक मुझे बहुत ही भावपूर्ण लगा | आभार ऐसे लिंक ढूंढ पढवाने के लिए सादर -