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मंगलवार, अप्रैल 10, 2018

"छूना है मुझे चाँद को" (चर्चा अंक-2936)

मित्रों! 
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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सुमिरन को अंग 3 

सुमिरन सों मन जब लगै, ज्ञानांकुस दे सीस।कहैं कबीर डोलै नहीं, निश्चै बिस्वा बीस॥
सुमिरन मन लागै नही, विषहि हलाहल खाय।कबीर हटका ना रहै, करि करि थका उपाय॥
सुमिरन मांहि लगाय दे, सुरति आपनी सोय।कहै कबीर संसार गुन, तुझै न व्यापै कोय... 

rajeev Kulshrestha  
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राम से ज्यादा लखन के नाम ये बनवास है ... 

जिनके जीवन में हमेशा प्रेम हैउल्लास है
दर्द जितना भी मिले टिकता नहीं फिर पास है  

दूसरों के घाव सिलने से नहीं फुर्सत जिन्हें
अपने उधड़े ज़ख्म का उनको कहाँ आभास है... 
Digamber Naswa  
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महापंडित राहुल सान्क्रत्यायन 

अद्भुत घुमक्कड़, प्रखर साहित्यकार और 
समाजवादी क्रान्ति के अग्रदूत थे 
महापंडित राहुल सान्क्रत्यायन 
9 अप्रेल जन्मदिवस पर- 
Randhir Singh Suman  
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मध्यप्रदेश में युवाओं का भविष्य - 

मेरा जन्म मध्यप्रदेश में और जन्म से लेकर अभी तक जबलपुर में पला-पुसा हूँ और मेरी शिक्षा दीक्षा भी जबलपुर में हुई है । मध्यप्रदेश में रोजगार के अनेकों अवसर हैं साथ ही साथ यहाँ पर अपार संसाधन भी उपलब्ध हैं । मध्यप्रदेश में युवा पीढ़ी में से अनेकों ने डॉक्टरेट की उपाधि ली है हजारों नवयुवक इंजीनियर हैं, कम्प्यूटर - सॉफ्टवेअर इंजीनियर अनेकों के पास विधि स्नातक की डिग्री हैं और इस प्रदेश ने कई विधा के ज्ञाता अनेकों होनहार पढ़े लिखे नवजवान दिये हैं । अनेकों ऐसे शिक्षित युवक भी हैं जिनका देश विदेश में नाम है । गत पचास वर्षों के दौरान यह अनुभव किया है कि रोजगार के अवसर रहते हुये भी नवयुवकों...  
समयचक्र पर महेंद्र मिश्र  
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----- ॥ टिप्पणी 14॥ ----- 

>> विशिष्ट कार्य करने वाले अथवा विशिष्ट स्वभाव वाले मानव वर्ग के समूहों को ही कदाचित समाज व्  किसी विशेष धार्मिक मत के अनुयायियों को संप्रदाय या समुदाय कहा जाता है | वास्तव में हमने समाजों अथवा सम्प्रदायों के विघटन को ही सामाजिक अथवा सांप्रदायिक चेतना समझ लिया है | वर्तमान में भारत ही नहीं अपितु अन्य राष्ट्रों के कर्णधार भी लगभग सा'हित्य-शुन्य' (illiterate)हैं इसलिए वह सदैव संप्रदाय व समाज की खिचड़ी पकाते हुवे लक्षित होते हैं | सामाजिक व्यवस्था पर आधारित राष्ट्रों का अस्तित्व चिरस्थायी रहा है साम्प्रादायिक राष्ट्रों की आयु केवल एक सहस्त्र वर्ष की ही है, समाज व् सम्प्रदाय हीन राष्ट्र अभी-अभी अभ्युदित हुवे हैं, इनका अस्तित्व कबतक रहता है यह देखने वाली बात है.....  
NEET-NEET पर Neetu Singhal  
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लोकतांत्रिक बाबा 

बच्चा छोटा हो तो सबसे पहले बोलने की कोशिश में म के बाद ब शब्द ही बोलता है,म से मां, मामा आगे बढ़ता है,और ब से बा और बाबा ... तब बाबा घरेलू न्याय किया करते थे ...
मामा से डर नहीं लगता मगर बाबा शुरू से डराने की कैटेगरी में शामिल हो जाते हैं ...
बाबा .....साधू बाबा ..को देख देख कर बड़े होते हुए हम अब ...स्वतंत्र लोकतंत्र  में लोकतांत्रिक बाबा से डरने लगे हैं ...डरें भी क्यों नहीं ..बड़ी साधना करते हैं ये साधन जुटाने में ... 
अर्चना चावजी Archana Chaoji  
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यादों का झरोखा - १४  

लाखेरी रामायण. 

कुछ भूली बिसरी यादें जब कभी जीवंत हो जाती हैं तो गुदगुदा जाती हैं. उन दिनों जो छोटे बालक हुआ करते थे वे अब बहुत सयाने हो गए हैं और जब से फेसबुक-मैसेंजर का चलन आम हुआ है मुझसे मित्रता करके पुराने दिनों की मस्ती पर कलम चलाने को कहते हैं... 
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मुस्कुरा देते हैं बच्चे... 

राजेश रेड्डी 

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं 
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं... 
yashoda Agrawal  
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जीवन एक अनंत यात्रा है –  

मेरी कविता 

अनंत यात्रा
जीवन एक अनंत यात्रा है 
जिसे हम खुद ही खोदकर
और कठिन करते जा रहे हैं
अपने अंदर खोदने की आदत
विलुप्त होती जी रही है... 
कल्पतरु पर Vivek  

5 टिप्‍पणियां:

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