गम क्यों हमसाया है सभी का किसे सुनाएँ गीत बिछड़े सभी बारी-बारी..तब मन तो दुखता है न, दूर हूँ की पास हूँ..यह भी पता नहीं चलता...आज के सूत्रों में कैसा अनजाना सा संबंध जुड़ रहा है..आभार मुझे भी आज की चर्चा में शामिल करने के लिए.
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
शानदार प्रस्तुति चर्चा में सबसे ऊपर स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय दिलबाग विर्क जी।
उम्दा चर्चा दिलबाग़ जी |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंगम क्यों हमसाया है सभी का
जवाब देंहटाएंकिसे सुनाएँ गीत
बिछड़े सभी बारी-बारी..तब मन तो दुखता है न, दूर हूँ की पास हूँ..यह भी पता नहीं चलता...आज के सूत्रों में कैसा अनजाना सा संबंध जुड़ रहा है..आभार मुझे भी आज की चर्चा में शामिल करने के लिए.
आभार
जवाब देंहटाएंवाह, उम्दा !
जवाब देंहटाएंसभी ब्लॉग से होकर गुजरा लेकिन इस शेर से गुजर नही पाया तो इसे अपने साथ ही ले आया
जवाब देंहटाएंचलो ‘विर्क’ मैं तो नादां ठहरा
ग़म क्यों हमसाया है सभी का ?
"हम किस किस से निकल आये,देखा तुमने
लेकिन जब यहाँ तक आये तो बेदम आये
खुद ही की मिटटी का मै पुतला हूँ
अंपनी ही तपिश से पक गया हूँ
या खुदा तेरा इतना कर्म रहा मुझ पर
रहम जरा भी नही ये कर्म भी ओर सही मुझ पर.
फिर भी आ गया हूँ मैं ये सोच कर तेरे पास
इससे ज्यादा क्या होगा देने के लिए तेरे पास." -रोहित
विजय कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजली
बहुत सुन्दर सूत्र आज की चर्चा में ! मेरी रचना 'तब और अब' को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार दिलबाग जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्तियों से सजा अंक। मेरी रचना को शामिल करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद। दुःखद खबर भी मिली विजय कुमार जी के निधन की। विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को अपने काव्यपटल पर स्थान प्रदान करने के लिये आभार
जवाब देंहटाएं