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Sunday, April 01, 2018

"रचनाचोर मूर्खों बने रहो" (चर्चा अंक-2927)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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कविता  

"थीम चुराई मेरी"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

कुछ ने पूरी पंक्ति उड़ाई,
कुछ ने थीम चुराई मेरी।
मैं तो रोज नया लिखता हूँ
रोज बजाता हूँ रणभेरी।

चोरों के नहीं महल बनेंगे,
इधर-उधर ही वो डोलेंगे।
उनको माँ कैसे वर देगी,
उनके शब्द नहीं बोलेंगे... 

किसलय 

purushottam kumar sinha  
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माँ से मिलती है बुद्धिमत्ता 

बहुत दिनों की ब्रेक विद बिटिया के बाद आज लेपटॉप को हाथ लगाया है, कहाँ से शुरुआत करूं अभी सोच ही रही थी कि बिटिया ने पढ़ाये एक आलेख का ध्यान आ गया। आलेख सेव नहीं हुआ लेकिन उसमें था कि हमारी बुद्धिमत्ता अधिकतर माँ से आती है... 
smt. Ajit Gupta  
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बेस्वाद ज़िंदगी 

कैसी विचित्र सी मनोदशा है यह ! 

भूलती जा रही हूँ सब कुछ इन दिनों ! 

इतने वर्षों का सतत अभ्यास 

अनगिनत सुबहों शामों का 
अनवरत श्रम 
सब जैसे निष्फल हुआ जाता है 
अब अपनी ही बनाई रसोई में 
कोई स्वाद नहीं रहा... 
Sudhinama पर sadhana vaid  
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नहीं ये मैं नहीं 
नहीं वो भी मैं नहीं 
मैं कोई और थी 
अब कोई और हो गयी... 

vandana gupta  
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क्षमा 

क्षमा भाव अपनाइए
इसे  अनमोल जान
ज़रा सी बात बढ़ जाएगी
न किया यदि क्षमा दान... 
Akanksha पर Asha Saxena  
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कोमल पत्ते 

2
जिजीविषा

मन की धरती

जब होने लगे पठार

संवेदनाएँ तोड़ने लगें दम

उत्साह डूबने लगे
निराशा के समंदर में
आसपास के सूखे पत्ते
मन में शोर करने लगें... 
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु' 
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10 comments:

  1. शुभ प्रभात
    आभार
    सादर

    ReplyDelete
  2. सुप्रभात मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर

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  3. सुन्दर मूर्ख दिवस अंक

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  4. बहुत शानदार चर्चा .......हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  5. सुंदर चर्चा

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  6. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

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  7. बहुत सुन्दर सूत्रों से सजी आज की चर्चा ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  8. सुंदर रचनाओं का संकलन. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी.

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  9. बहुत अच्छा संकलन ।

    ReplyDelete
  10. सुंदर चर्चा.. . मेरी रचना "असहिष्णुता" को स्थान देने हेतु आभार|

    https://meremankee.blogspot.in/2018/03/intolerance.html?m=1

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