मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उसी समय लिख देना जरूरी होता है
जिस समय दूर बहुत
कहीं अंतरिक्ष में चलते नाटक को
सामने से होता हुआ देखा जाये
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भारतीय धर्म, दर्शन राष्ट्र -
संस्कृति के विरुद्ध उठती नवीन आवाजें
व उनका यथातथ्य निराकरण --
पोस्ट १०----
उपसंहार ----
डा श्याम गुप्त
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सूर्य का प्रकाश
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सूर्य का प्रकाश जब भी मेरे आँगन आता है
सूर्य की चटक किरणों से घर मेरा जगमगाता है
अंधेरे को दूर भगा उजियारा वह करता है
दुख दर्द की पीड़ा हर कर गीत खुशी के गाता है...
RADHA TIWARI
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जादू
जाने क्या क्या सपने बुनने लगता है मन
तुमसे बतियाऊं तो महकने लगता है मन
बुझा हुआ अलाव था मेरा मन
तुमसे मिल जाने क्यूँ
हौले- हौले दहकने लगता है मन
Mukesh Srivastava
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सोच के चौराहेपर खड़ा
चौराहे पर खडा है
सोच में डूबा हुआ सा
खल रहा अकेलापन
उसे दुविधा में है कहाँ खोजे उसे
जो कदम से कदम मिला कर चले ...
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ग़ज़ल
गाली गलौच में’ सभी बेबाक हो गए
धोये जो’ राजनीति से’, तो पाक हो गए |
कर लो सभी कुकर्म, हो’ चाहे बतात्कार
सत्ता शरण गए है’ अगर, पाक हो गए...
कालीपद "प्रसाद"
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
आज चर्चा मंच ने अपनी छठा बिखेरी है |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद| |
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। आभार आदरणीय नौटंकी 'उलूक' के नाटक को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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