गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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काव्यानुवाद
"क्या है प्यार-रॉबर्ट लुई स्टीवेंसन"
(काव्यानुवादक- डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कितना शान्त अकेला घर है।
नये-पुराने मित्रवृन्द के लिए
प्रशंसा के कुछ स्वर हैं।...
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दोषी कौन ?
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQUJeX7yEyZWlZQ00RE6F_LneSBVfxryNXOfclaLdghrUBmSJy_vyOlm_pkdm8D3tww2cQFqsiJot5yYgrujvLh4qyiF66qFLBM-3E62rdefGGd8vF4Z9a1nVmjomJSJYUx5CXXUhyphenhyphenL1U/s320/question-mark.jpg)
वह ४८ वर्ष की तलाकशुदा महिला थी ,उसके दो बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं . एमिरात के इस छोटे शहर के प्राइवेट अस्पताल में अच्छे वेतन पर हेड नर्स की नौकरी में जनवरी २०१८ से लगी हुई थी,सूत्रों के अनुसार उसका सबसे मिलनसार स्वभाव था. कल शाम उसने अस्पताल की इमारत से कूदकर आत्महत्या कर ली. कोई नोट नहीं छोड़ा. यह घटना इसलिए लिख रही हूँ कि बात सिर्फ किसी दुर्घटना की नहीं बल्कि इस घटना के एक दूसरे दुखद पहलू की है. अस्पताल के अधिकारियों द्वारा भारत में उसके परिवार से संपर्क किये जाने पर उसके परिवार और उसके बच्चों तक ने उसका शव लेने से मना कर दिया ,न ही वे उसको देखना चाहते हैं...
Alpana Verma अल्पना वर्मा
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इक बच्चे ने सब देख लिया
इक बच्चे नेजब देख लिया
इक बच्चे नेसब देख लिया
ये बड़े तोबिलकुल छोटे हैं!
इक बच्चे ने कब देख लिया...
Sanjay Grover
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अभिशाप
ऐ हमसफ़र तेरे नवाजिश कर्म की ही मेहरबानियाँ
हैं धड़कने आज भी तेरे साँसों की कर्जदारियाँ ...
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL
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अनवर शमीम के कविता संग्रह
'अचानक कबीर' पर जितेन्द्र कुमार की समीक्षा
'चेतना सम्पन्न प्रतिरोध का सौन्दर्य'
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8G5UPM_jA5mfMWS9pyMgmqgTeB229Ex_hLnrGSo1M0rIjIjtzXFTsD0J1_xgBIySE3Z_hyphenhyphenW3WFS8H7y7OJViCezB_NYdV2D-C0z6cszikP_j3K_FQsixXeobAHVax_2nw37SK2EDtuNY/s320/20374664_154159528482147_1414853075282679808_n.jpg)
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राजनीतिक पार्टियों की व्यर्थ संवेदना
समाज के लिए घातक नहीं बल्कि जहर है
वंदे मातरम् पर
abhishek shukla
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हटा ! ये 'आरक्षण'!!!
हैं तो सहोदर ही!
खिलाया तूझे बना फूल,
और मैं मनोनित शूल!
गड़ता रहा बरबस मैं
विलास वीथिका में.
बुर्जुआ बाजीगरी,
अभिजात्य वैभव वर्ण!
मैं सर्वहारा विवर्ण,
कुलहीन, सूतपुत्र कर्ण!
कुलीन,गांडीवधारी, तू
सखा-गिरधारी,
द्रोण शिष्य,तुणीर भव्य!
लांछित,शापित, शोषित
सहता समाज का दंश
अकेला, मैं एकलव्य!...
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शुभ प्रभात |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर.....
जवाब देंहटाएंआभार आप का.....
चर्चा मंच यूँ ही सदा चलता रहे!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की पोस्ट को स्थान और मान दिया.आभार!