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रविवार, अप्रैल 29, 2018

"कर्तव्य और अधिकार" (चर्चा अंक-2955)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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मेरा वजूद 

ढूँढती आ रही हूँ 
बचपन से अपने वजूद को 
ज़िन्दगी के हर कोने में झाँक आई 
लेकिन अभी तक वो जगह नहीं मिली 
जहाँ मैं अपने आप से 
दो घड़ी के लिए ही सही 
कभी मिल पाती... 
Sudhinama पर sadhana vaid  
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करो हो क़त्ल .... 

परेशां हैं यहां तो थे वहां भी  
करे है तंज़ हम पर मेह्र्बां भी  
हमें ज़ाया न समझें साहिबे-दिल  
हरारत है अभी बाक़ी यहां भी ... 
Suresh Swapnil 
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बाहों में 

आ मेरी बाहों में आ जा
सब कि नज़रों से तुझे दूर रखूँ 
नजर का काला टीका लगाऊँ
जब भी कोई कष्ट आए
कष्ट से दूरी इतनी हो कि
वह तेरी छाया तक को न छू पाए... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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एकलव्य कथा 

कक्षा 9-10 के अहिन्दीभाषी बच्चों को हिन्दी पढ़ाते समय श्रुतिलेख लिखवा रही थी और इसी क्रम में शब्द "एकलव्य" लिखवाया। उत्सुकतावश मैनें उनसे पूछ लिया कि क्या वे एकलव्य के विषय में जानते हैं? उन्होंने कथा के विषय में जो बताया,मैं सन्न रह गयी... 
संवेदना संसार पर रंजना  
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उत्तरदायित्व 

उत्तरदायित्व का ज्ञान
"अंजना, जरा पानी देना।"
"अंजना, चादर ठीक से ओढ़ा दो बेटा।"
"अंजना, मन भारी लग रहा, कुछ देर मेरे पास बैठो।"
"माँ, पानी भी दिया, चादर भी दिया। पास बैठने का समय नहीं, आपके बेटे आएंगे, वही बैठेंगे।"
बहु की बात सुनकर प्रमिला जी की आंखें छलक गईं... 
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु' 
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7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |




    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात उम्दा लिंक्स |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा एक समग्र पत्रिका की तरह रोचक है .
    एक फूल हमारा भी है इस गुलदस्ते में .
    उम्मीद है खुशबू आप तक पहुंची होगी .
    शास्त्री जी का बहुत आभार .

    जवाब देंहटाएं

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