मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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फिर भी इंतज़ार है ..
ना मिलने के दिन याद ,
ना ही बिछड़ने के दिन याद ,
याद रहे तो बस तुम।
शायद , जाते हुए पतझड़ में
बहार से आये थे तुम...
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भ्रष्टाचार का प्रथम गुरु
बचपन की कुछ बाते हमारे अन्दर नींव के पत्थर की तरह जम जाती हैं, वे ही हमारे सारे व्यक्तित्व का ताना-बाना बुनती रहती हैं। जब हम बेहद छोटे थे तब हमारे मन्दिर में जब भी भगवान के कलश होते तो माला पहनने के लिये बोली लगती, मन्दिर की छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिये धन की आवश्यकता होती थी और इस माध्यम से धन एकत्र हो जाता था। उस समय 11 और 21 रूपए भी बड़ी रकम हो जाती थी लेकिन हमारे लिये तो यह भी दूर की कौड़ी हुआ करती थी। बोली लगती और कभी 11 में तो कभी 21 में किसी बच्चे को अवसर मिलता की वह माला पहने...
smt. Ajit Gupta
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रात की रुमानियत
जैसे जैसे रात भींग रही है।
एक ख़ामोशी की पतली चादर पसारती जा रही है।
टिमटिमाते तारे जैसे उसे देखकर
अपनी आँखे खोलता और बंद करता है।
बीच बीच में सड़कों पर दौड़ती
गाडी की रौशनी जैसे पुरे क्षमता से
इन अंधरो को ललकारती है और
इनके गुजरते ही फिर वही
साया मुस्कुराते हुए बिखर जाती है...
Kaushal Lal
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जिन्दगी की धूप -छाँव
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkDVD5sEYq1APvgXKUZ1IR42ryGAMvk6o_8YjDTc3KxA7yzNPIwUwV4NrHQ2ta12KIRVKQa58XEoZYJNIpiNyBSyqPbFbDrYUVUECejuq0ZcdiC7KWj7KejGJ-XE5I8gjg7XUH_U23Mqs/s320/images.jpg)
जिन्दगी का मेला बड़ा है झमेला
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम किसी ने न जाना
पहले जब आँखें खुली लुकाछिपी खेली सूरज से
कुनकुनी धूप सुबह की
बहुत दूर कहीं मन को ले गईं ...
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औरत की तकदीर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjMMhX9tfJ0j3v6iq9G-ZYgoCjiSbEtUPZMLF_k4xQO5aa1AEkcdacNBe5D43pgOc74raj1JGLb9TfJi6xNtXV2K-xdzqhohSZf-phdoAQCv8rd_2zESyK2MzA2bCdXPhODxDgeHq-kvE/s320/20180401103038.jpg)
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कुछ ख़त हमारी याद के पन्नों से धुल गए ...
लम्हे जो गुम हुए थे दराजों में मिल गए
दो चार दिन सुकून से अपने निकल गए...
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa
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दमदार चर्चा ... सुंदर लिंक संयोजन ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आज की चर्चा में ...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
जवाब देंहटाएंआज मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बढ़िया अंक।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मयंक जी बहुत आभार इस चर्चा में शामिल करने के लिए .किसी कारणवश जो लिंक आपने मेरे ब्लॉग पर दी है वह काम नहीं करती . और इस पन्ने पर जहाँ मेरी रचना लिंक की गई है वहां सही जगह पर स्पेस नहीं है . क्या इसे ठीक किया जा सकता है ?
जवाब देंहटाएंसभी साथी रचनाकारों को बधाई . संभव हो तो मेरे लिखे पर अपने विचार और भावनाएं भी व्यक्त कीजियेगा . मार्गदर्शन पाने को उत्सुक हूँ . धन्यवाद .
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा। आभार।
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