मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सरकार ने तो कर दिया
अब समाज कब करेगा ?
...और अंतत:
दुष्कर्मियों के लिए
फांसी का प्रावधान हो ही गया,
फांसी...
अब छोड़ो भी पर
Alaknanda Singh
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प्रेम की लौ
हो सके तो प्रेम की लौ खुद जलाइए।
यूँ नहीं इल्जाम ये हम पर लगाइए।
खत अनेकों लिख लिए हैं तेरे वास्ते।
किस पते पर भेज दूँ इतना बताइए...
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लुंज-पुंज से लेकर
छूट और लूट की दुकान
लुंज-पुंज से लेकर छूट और लूट की दुकान आज एक पुरानी कथा सुनाती हूँ, शायद पहले भी कभी सुनायी होगी। राजा वेन को उन्हीं के सभासदों ने मार डाला, अराजकता फैली तो वेन के पुत्र – पृथु ने भागकर अपनी जान बचाई। पृथु ने पहली बार धरती पर हल का प्रयोग कर खेती प्रारम्भ की, कहते हैं कि पृथु के नाम पर ही पृथ्वी नाम पड़ा। लेकिन कहानी का सार यह है कि राजा वेन का राज्य अब राजा विहीन हो गया था, प्रजा को समझ नहीं आ रहा था कि राज कैसे चलाएं। आखिर सभी ने पृथु को खोजने का विचार किया। पृथु के मिलने पर उसे राजा बनाया और कहा कि बिना राजा के प्रजा भीड़ होती है, इसलिये राजा का होना जरूरी है...
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बग़ावत का सैलाब ...
मोहसिनों की आह बेपर्दा न हो
शर्म से मर जाएं हम ऐसा न हो...
साझा आसमान पर
Suresh Swapnil
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टिक टिक टिक टिक
(बाल कविता)
टिक टिक टिक टिक
चलती जाती घड़ी
सुबह सुबह
घड़ी की टिक टिक
हमें जगाती...
Rekha Joshi -
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शीर्षकहीन
तुम्हे जिस सच का दावा है
वो झूठा सच भी आधा है
तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती
जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं
कोरे मन पर महज़ लकीरें हैं
लिख लिख मिटाती रहती हो
एक बार पढ़ क्यूँ नहीं लेती...
Vandana Singh
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दोहे
"पुस्तक दिन"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पाठक-पुस्तक में हमें, करना होगा न्याय।
पुस्तक-दिन हो सार्थक, ऐसा करो उपाय।।
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अब कोई करता नहीं, पुस्तक से सम्वाद।
इसीलिए पुस्तक-दिवस, नहीं किसी को याद...
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यादों का झरोखा -
१८ -
स्व. कुंजबिहारी मिश्रा
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जोकर
राधा तिवारी 'राधेगोपाल '
सर्कस में जोकर ने मुखौटा जो पहना कहा उसने जग में सबसे हंसते ही रहना
ना रोना कभी भी आंसू बहा कर हँसना सदा ही ठहाके लगाकर
मगर जब उसने मुखौटा उतारा हंसते हुआ चेहरे से किया किनारा...
ना रोना कभी भी आंसू बहा कर हँसना सदा ही ठहाके लगाकर
मगर जब उसने मुखौटा उतारा हंसते हुआ चेहरे से किया किनारा...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत बढ़िया चर्चा काफी अच्छे पठनीय लिंक मिलें साथ ही समयचक्र की पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा...मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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