सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
--
--
--
--
३०७.
अँधेरा
कल रात बहुत बारिश हुई,
धुल गया ज़र्रा-ज़र्रा,
चमक उठा पत्ता-पत्ता,
बह गई राह की धूल,
निखर गई हर चीज़,
पर अँधेरा पहले-सा ही रहा...
कविताएँ पर Onkar
--
--
सुनो देवी
तुम तो नहीं हिन्दू या मुसलमान
फिर कैसे देखती रहीं अन्याय चुपचाप
क्यों न काली रूप में अवतरित हो
किया महिषासुर रक्तबीज
शुम्भ निशुम्भ का नाश ....
vandana gupta
--
मन रे तू काहे धीर धरे..
कुछ दिनों में क्या-क्या भाव
मन में आते-जाते रहे हैं
ये कहना चाहूँ तो भी कह नहीं पाऊँगी शायद...
वो ख़बर पढ़ते हुए दिल दहल गया...
--
सियासती रोटियां
सियासती रोटियां
एक नन्हीं बच्ची के
जिस्म को चूल्हा बनाकर...
भारतीय नारी परshikha kaushik
--
--
--
--
--
प्रेम नहीं विद्रोह लिखो
नंगी प्रजातियों की नंगी ज़बान
थूककर चाट रहे अपने बयान
चेहरों पर कराकर फेशियल
खोल ली है बारूद की दुकान...
Jyoti Khare
--
--
सुन्दर सोम्वारीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सार्थक रचनाओं का संकलन
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति । मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर आभार । संकलित सभी रचनाएँ बेहतरीन हैं।
जवाब देंहटाएं