मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शिशिर की राका-निशा की शान्ति है निस्सार!
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
बेनक़ाब मन
Anita Saini
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ठिठुरन
Akanksha पर
Asha Saxena
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सुन !
ओ वेदना--
कविता
सुन ! ओ वेदना
जीवन में - लौट कभी ना आना तुम !
घनीभूत पीड़ा -घन बन -
ना पलकों पर छा जाना तुम,,,
क्षितिज पर Renu
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ठंडा होता सूरज
हर तरफ शोर है
धुंध में लिपटी भोर है
खाकर जमीन की कसमें
पेड़ों को हवाएं लील रही है
समंदर में उबल रही हैं ....
Mera avyakta पर
राम किशोर उपाध्याय
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शीर्षकहीन
क्या हम एक विक्षिप्त समाज बन गये हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पाँच वर्ष से लेकर 29 वर्ष की आयु के बच्चों और युवा लोगों की मृत्यु का मुख्य कारण रोग या भुखमरी या मादक पदार्थों की लत या साधारण दुर्घटनाएँ नहीं है. इन बच्चों और युवकों की मृत्यु का *मुख्य कारण है सड़क दुर्घटनायें*....
आपका ब्लॉग पर
i b arora
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असर करती दुआ क्यों नहीं
बेवफ़ा तेरी याद, तेरी तरह बेवफ़ा क्यों नहीं
जैसे तूने किया, वैसे ये करती दग़ा क्यों नहीं ?
दर्द को हमदम बनाकर जीना क्यों चाहा मैंने
क्या बेबसी थी, मिली ज़ख़्मों की दवा क्यों नहीं ...
Dilbag Virk
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सत्य - -
वेंडोलिन ब्रुक्स
अमरीकी ब्लैक और जन सरोकारों के कवि
वेंडोलिन ब्रुक्स की एक कविता
" ट्रुथ" का अनुवाद ...
सरोकार पर Arun Roy
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धूप में
धूप में कुछ देर
मेरे पास भी बैठ लो पहले जैसे
जब खनकती चूड़ियों में
समाया रहता था इंद्रधनुष...
Jyoti Khare
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किसान विरोधी कारपोरेट ने
साधुओं और संतों की दीवार खड़ी कर दी है
अरुण कुमार त्रिपाठी
क्रांति स्वर पर
विजय राज बली माथुर
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धनुवाद |
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ ,सभी रचनाकरों को बधाई ,
मेरी रचना को स्थान देने के लिए ,सह्रदय आभार आदरणीय
सादर
रोचक सूत्रों से सजी बहुत ख़ूबसूरत चर्चा...मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंसूखा पाला पड़ रहा, फसल रही है सूख।
जवाब देंहटाएंलगती अधिक गरीब को, कंगाली में भूख।।
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नीयत चाहे नेक हो, नियमन में है खोट।
लगते लोग कतार में, पाने को कुछ नोट।।
सरदी पड़ती ग़ज़ब की, गया दिवाकर हार।
मैदानी भूभाग में, कुहरे की है मार।।
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लकड़ी-ईंधन का हुआ, अब तो बड़ा अभाव।
बदन सेंकने के लिए, कैसे जले अलाव।।
--सटीक शब्द चित्र हमारे वक्त की चुभन का पारिस्थितिकी पर्यावरण का :
हार मान बैठा नहीं जनमानस भगवान् ,
हार जीत में सम रहे वह सच में बलवान।
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हमारे वक्त की आवाज़ है कराहट है यह गीत। जिसमें संगीत भी है राजनीतिक खड़दूम भी ,नुचती छीजती प्रकृति भी कंगाली का आर्तनाद भी चिल्लाहट भी ,राजनीतिक बे -शर्मी की अट्टाहस भी ,सुंदर मनोहर :
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जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है?
गांधीजी का मन्त्र कहाँ है?
जिसके लिए शहादत दी थी.
वो जनता का तन्त्र कहाँ है?
कब्ज़ा है अब दानवता का,
मानवता के इस कानन में।
कुहरा पसरा है कानन में।।
दुर्नीति ने पाँव जमाया,
विदुरनीति का हुआ सफाया,
आदर्शों को धता बताकर,
देश लूटकर सबने खाया,
बरगद-पीपल सूख गये हैं,
खर-पतवार उगी उपवन में।
कुहरा पसरा है कानन में।।
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जवाब देंहटाएंभाव और अर्थ दोनों से अनुप्राणित बेहतरीन रचना राधा तिवारी जी बधाई !
कैसे तोड़े फूल
सोए अगर दोपहर में, करें रात में काम ।
अंधियारे में कठिन है, गिनना अपने दाम ।।
कैसे देखें बाग को, कैसे तोड़े फूल।
अंधियारे में हाथ में, चुभ जाएंगे शूल।।
अंतर कैसे हो भला, कुत्ता लोमड़ सियार।
गलियों में कैसे चले, बना नहीं आधार।।
मोल न होता रंग का, होता है अंधियार ।
सूरज को कैसे लखें ,( देंखे) चंदा से है प्यार।।
भूत पिशाच अगर ना हो, डर नहीं आए पास।
ठगे नहीं कोई कभी, रहे न बाकी आस।।
राधे कहती मत करो, उलटफेर तुम लोग।
दिन में करलो काम को, रात नींद लो भोग।।
हमारे वक्त की आवाज़ है कराहट है यह गीत। जिसमें संगीत भी है राजनीतिक खड़दूम भी ,नुचती छीजती प्रकृति भी कंगाली का आर्तनाद भी चिल्लाहट भी ,राजनीतिक बे -शर्मी की अट्टाहस भी ,सुंदर मनोहर :
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यह कविता का अर्थ जीवन का मर्म सार समझाती सम्प्रेषण प्रधान कविता कैलाश शर्मा साहब की !
यह कविता का अर्थ जीवन का मर्म सार समझाती सम्प्रेषण प्रधान कविता कैलाश शर्मा साहब की !
जवाब देंहटाएंहमारे वक्त की आवाज़ है कराहट है यह गीत। जिसमें संगीत भी है राजनीतिक खड़दूम भी ,नुचती छीजती प्रकृति भी कंगाली का आर्तनाद भी चिल्लाहट भी ,राजनीतिक बे -शर्मी की अट्टाहस भी ,सुंदर मनोहर :
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यह कविता का अर्थ जीवन का मर्म सार समझाती सम्प्रेषण प्रधान कविता कैलाश शर्मा साहब की !
हमारे वक्त की आवाज़ है कराहट है यह गीत। जिसमें संगीत भी है राजनीतिक खड़दूम भी ,नुचती छीजती प्रकृति भी कंगाली का आर्तनाद भी चिल्लाहट भी ,राजनीतिक बे -शर्मी की अट्टाहस भी ,सुंदर मनोहर :
जियो हर पल को
एक पल की तरह
सम्पूर्ण अपने आप में,
न जुड़ा है कल से
न जुड़ेगा कल से।
***
काश होता जीवन
कैक्टस पौधे जैसा,
अप्रभावित
धूप पानी स्नेह से,
खिलता जिसका फूल
तप्त मरुथल में
दूर स्वार्थी नज़रों से|
***
दुहराता है इतिहास
केवल उनके लिए
जो रखते नज़र इतिहास पर।
जो चलते हैं साथ
पकड़ उंगली वर्त्तमान की,
उनका हर क़दम
बन जाता स्वयं इतिहास
अगली पीढी का।
***
धुंधलाती शाम
सिसकती हवा
टिमटिमाते कुछ स्वप्न
कसमसाते शब्द
सबूत हैं मेरे वज़ूद का।
***
...©कैलाश शर्मा
आदरणीय सर-- सादर आभार | इस प्रतिष्ठित मंच पर आकर खुद को गौरवान्वित अनुभव कर रही हूँ |आपके सहयोग के लिए कृतज्ञ हूँ | प्रणाम |
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर