सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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शमा रातभर जलती रही
शमा रातभर जलती रही,
पिघलती रही।
खोती रही अपना अस्तित्व,
मिटाने को तमस।
उसकी सदेच्छा,
न भटके कोई अँधेरे में।
न होये अधीर,
घबड़ा कर निबिड़ अन्धकार से...
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
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बेबस दिखते राम अभी
राजनीति के रखवालों ने किया है ऐसा काम अभी।
निर्बल के बल राम सुना पर बेबस दिखते राम अभी...
मनोरमा पर
श्यामल सुमन
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उम्मीदों का श्रृंगार करती हुई कविता किरण जी की खूबसूरत ग़ज़ल तबले के बोल सी मुखर
जवाब देंहटाएंsatshriakaljio.blogspot.com
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बेहद खूबसूरत भाव और अर्थ के शिखर को छूती हुई ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंदिल का दीया जलाके गया ये कौन मेरी तन्हाई में ,
रोम रोम क्यों पुलक रहा रिश्तों की अंगड़ाई में ?
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गीत-ग़ज़ल, दोहा-चौपाई, सिसक रहे अमराई में
भाईचारा तोड़ रहा दम, रिश्तों की अँगनाई में
फटा हुआ दामन दर्जी को, सिलना नहीं अभी आया
सारा जीवन निकल गया है, कपड़ों की कतराई में
रत्नाकर में जब भी होता, खारे पानी का मन्थन
मच जाती है उथल-पुथल सी, सागर की गहराई में
केशर की क्यारी को किसने, वीराना कर डाला है
महाबली बलिदान हो गये, बारूदों की खाई में
मन के दर्पण में लोगों ने, चित्र-चरित्र नहीं देखा
'रूप' सलोना देख रहे सब, धुँधली सी परछाई में
उपयोगी लिंकों के साथ पठनीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार आपका राधा तिवारी जी!
सुन्दर सोमवारीय चर्चा प्रस्तुति। आभार राधा जी 'उलूक' के स्थापना दिवस को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात आदरणीया
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
गूंगी गुड़िया को स्थान देने के लिय सह्रदय आभार आदरणीया
सादर
ख़ूबसूरत सूत्रों से सजी रोचक चर्चा... मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राधाजी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को इस संकलन में सम्मिलित करने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा, शामिल किया आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
ह्रदय से आभार आपका
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