मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दिसम्बर की बेदर्द रात....
श्वेता सिन्हा
भोर धुँँध में
लपेटकर फटी चादर
ठंड़ी हवा के
कंटीले झोंकों से लड़कर
थरथराये पैरों को
पैडल पर जमाता
मंज़िल तक पहुँचाते
पेट की आग बुझाने को लाचार
पथराई आँखों में
जमती सर्दियाँ देखकर
सोचती हूँ मन ही मन
दिसम्बर तुम यूँ न क़हर बरपाया करो...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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बहुत ठंड है जी-----
ठंडक बहुत बढ़ते जा रही ,
ठंडक में मेरी ताजी रचना
आपके अवलोकन हेतु प्रस्तुत है....
Lovely life पर
lovely edu
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विराम-अविराम
[यह पूर्व- कथन पढ़ना अनिवार्य नहीं है - संस्कृत, पालि,प्राकृत भाषाओँ में विराम चिह्नों की स्थिति - ( ब्राह्मी लिपि से ,शारदा,सिद्धमातृका ,कुटिला,ग्रंथ-लिपि और देवनागरी लिपि.) संस्कृत की पूर्वभाषा वैदिक संस्कृत जिस में वेदों की रचना हुई थी, श्रुत परम्परा में रही थी. मुखोच्चार के उतार-चढ़ाव, ठहराव भंगिमा आदि के द्वारा आशय को स्पष्ट करने हेतु पृथक किसी आयोजन की आवश्यकता नहीं थी (श्रुत परंपरा का प्रयोग ही इसलिये किया गया था, कि उच्चारण, वांछित आशयों से युक्त और संपूर्ण हों.लिखित रूप में वह पूर्णता लाना संभव नहीं). अतः तब विराम-चिह्नो की आवश्यकता नहीं अनुभव की गई...
लालित्यम् पर प्रतिभा सक्सेना
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शीर्षकहीन
अलीपुर बम केस श्री अरविन्द अलीपुर बम केस में एक आरोपी थे. अपनी पुस्तक, ‘टेल्स ऑफ़ प्रिज़न लाइफ’, में उन्होंने इस मुक़दमे का एक संक्षिप्त वृत्तांत लिखा है. यह वृत्तांत लिखते समय उन्होंने ब्रिटिश कानून प्रणाली पर एक महत्वपूर्ण टिपण्णी की है. उन्होंने लिखा है कि इस कानून प्रणाली का असली उद्देश्य यह नहीं है की वादी-प्रतिवादियों के द्वारा सत्य को उजागर किया जाए, उद्देश्य है कि किसी भी तरह, कोई भी हथकंडा अपनाकर केस जीता जाए. यह केस श्री अरविन्द और अन्य आरोपियों पर 1908 में चला था. सौ वर्ष से ऊपर हो गये हैं पर देखा जाए तो आज भी न्याय प्रणाली में वादी-प्रतिवादी का असली उद्देश्य किसी न किसी तरह...
आपका ब्लॉग पर
i b arora
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शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर...
सुन्दर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंसाभार धन्यवाद सर
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