स्नेहिल अभिवादन
रविवासरीय चर्चा में आप का हार्दिक स्वागत है|
रविवासरीय चर्चा में आप का हार्दिक स्वागत है|
देखिये मेरी पसन्द की कुछ रचनाओं के लिंक |
- अनीता सैनी
-----
ग़ज़ल
"ज़ालिमों से पुकार मत करना"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
उच्चारण
-------
पंकज चौधरी :
समय, सत्ता और प्रतिपक्ष :
शहंशाह आलम
समालोचन
-------
विसंगतियां
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
---------
तीसरे.पहर
मन के पाखी
--------
कुछ लिखने से पहले…एक दृष्टांत
अब छोड़ो भी
------
भुतहा इमारत
कविताएँ
-------
माटी की देह (लघु कथा)
(साहित्यिक सरोकारों से प्रतिबद्ध)
-----
"स्मृति मंजूषा"
मंथन
------
रिश्तों के बियाबान में लहुलूहान चेतना
अनुशील
--------
अनकहे दर्द
मेरे मन के भाव
--------
मेरा विद्यालय
-------
ब्लॉग बुलिटेन-ब्लॉग रत्न सम्मान
प्रतियोगिता 2019 (बीसवां दिन) कविता
ब्लॉग बुलेटिन -
--------
सावन आया
मौसम बड़ा सुहावन आया। देख सखी री सावन आया। बादल गरज रहे अंबर से, झूम, झमाझम पानी बरसे, आँगन आज बना तालाब, तैराते बना कागज की नाव, भाव बड़ा मनभावन आया। देख सखी री सावन आया। बागों में कलियाँ मुस्कायी, पात-पात हरियाली छायी, चिड़ियाँ चहकी गाना गायी, भौरे ने भी तान मिलायी, कृष्णा का वृंदावन आया।
अपराजिता
-------
मुक्तक : 992 - चकोरा
कब मेरी जानिब वो शर्माकर बढ़ेंगे यार ? जो मैं सुनना चाहूँ वो कब तक कहेंगे यार ? ज्यों चकोरा चाँद को सब रात देखे है , इक नज़र भर भी मुझे वो कब तकेंगे यार ?
-----
ग़ज़ल
"ज़ालिमों से पुकार मत करना"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
उच्चारण
-------
पंकज चौधरी :
समय, सत्ता और प्रतिपक्ष :
शहंशाह आलम
समालोचन
-------
विसंगतियां
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
---------
तीसरे.पहर
मन के पाखी
--------
कुछ लिखने से पहले…एक दृष्टांत
अब छोड़ो भी
------
भुतहा इमारत
कविताएँ
-------
माटी की देह (लघु कथा)
(साहित्यिक सरोकारों से प्रतिबद्ध)
-----
"स्मृति मंजूषा"
मंथन
------
रिश्तों के बियाबान में लहुलूहान चेतना
अनुशील
--------
अनकहे दर्द
मेरे मन के भाव
--------
----------
काश ऐसा हो जाता… मेरा विद्यालय
-------
ब्लॉग बुलिटेन-ब्लॉग रत्न सम्मान
प्रतियोगिता 2019 (बीसवां दिन) कविता
ब्लॉग बुलेटिन -
--------
सावन आया
मौसम बड़ा सुहावन आया। देख सखी री सावन आया। बादल गरज रहे अंबर से, झूम, झमाझम पानी बरसे, आँगन आज बना तालाब, तैराते बना कागज की नाव, भाव बड़ा मनभावन आया। देख सखी री सावन आया। बागों में कलियाँ मुस्कायी, पात-पात हरियाली छायी, चिड़ियाँ चहकी गाना गायी, भौरे ने भी तान मिलायी, कृष्णा का वृंदावन आया।
अपराजिता
-------
मुक्तक : 992 - चकोरा
कब मेरी जानिब वो शर्माकर बढ़ेंगे यार ? जो मैं सुनना चाहूँ वो कब तक कहेंगे यार ? ज्यों चकोरा चाँद को सब रात देखे है , इक नज़र भर भी मुझे वो कब तकेंगे यार ?
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनिता जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा. मेरी कविता शामिल की.आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन । मेरी रचना को स्थान देने के हृदय से आभार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर संयोजन!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!
बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंकों का चयन सभी रचनाकारों को बधाई ।मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर समकलन।मेरी छोटी-सी रचना को साझा करने के लिए हृदय तल से आभार।
जवाब देंहटाएंNice charcha. Wordpress, Sites & Amazon profile
जवाब देंहटाएं