मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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जरूरी है अस्तित्व बचाने
या बनाने के लिये
खड़े होना किसी ना किसी
एक भीड़ के सहारे
भेड़ के रेवड़ ही सही

उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताओं पर
आशीष सिंह का आलेख
"दरअसल कविताएं नहीं हैं ये,
ये नगण्यता के पक्ष में जारी अपीलें हैं"

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ये भी आये, वे भी आये
ये भी आये, वे भी आये,
सभी ही उनके, जनाजे मे आये।
आये करीबी, आये रकीबी,
रोते थे बिसूरते थे सभी ही।
उनमें से कुछ थे, मुखौटे लगाये...
मन के वातायन पर
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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पहली बारिश
उफ़्फ़ ये पहली बारिश...
ये पहली बारिश भी ना बड़ी जिद्दी होती है, हर बार चली आती है, अपने उसी पुराने रूप में। बचपन से आज तक सब कुछ बदल गया, लोग बदल गए, गाँव बदल गए, शहर बदल गए और तो और रिश्तों के रूप भी बदल गए। पर इसे देखो आज तक नही बदली...
अनकहे किस्से पर
Amit Mishra 'मौन'
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एक ग़ज़ल :
साज़िश थी अमीरों की----
साज़िश थी अमीरों की ,फाईल में दबी होगी
दो-चार मरें होंगे ,’कार ’ उनकी चढ़ी होगी ...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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मनमर्जियों की बेल लहलहा रही है
कोरी हथेलियों को देखती हूँ तो देखती ही जाती हूँ. कोरी हथेलियों पर मनमर्जियां उगाने का सुख होता है. मनमर्जियां...कितना दिलकश शब्द है लेकिन इस शब्द की यात्रा बहुत लम्बी है. आसानी से नहीं उगता यह जिन्दगी के बगीचे में. इस शब्द की तासीर सबको भाती है लेकिन इसे उगाने का हुनर कमाना आसान नहीं. और यह आसान न होना मनमर्जियो के माथे पर तमाम इलज़ाम धर देता है....
Pratibha Katiyar
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सुप्रभात सर 🙏)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌|
मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आप का
सादर
सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद आपका🙏
आभार आदरणीय। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteउम्दा चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
ReplyDeleteBahut badhia Charcha...
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeletesundar charcha hamen shamil karne hetu abhar
ReplyDeleteउम्दा संकलन सभी रचनाकारों को बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचनाओ का संकलन,मुझे स्थान देने के लिये
ReplyDeleteआभार