मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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द्वंद्व
हृदय की अग्न से आहत न होना,
उस पल को थाम मुठ्ठी में, ज़िक्र मेरा करना,
उभरेगा एक अक्स आँखों में तेरे,
वक़्त को थमा अँगुली,
उस पल को थाम मुठ्ठी में, ज़िक्र मेरा करना,
उभरेगा एक अक्स आँखों में तेरे,
वक़्त को थमा अँगुली,
हिम्मत उठा कंधों पर,डग जीवन के भरना ...
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मेघ हैं आकाश में कितने घने ...
मेघ हैं आकाश में कितने घने
लौट कर आए हैं घर में सब जने
चिर प्रतीक्षा बारिशों की हो रही
बूँद अब तक बादलों में सो रही
हैं हवा में कागजों की कत-रने
मेघ हैं आकाश में ...
स्वप्न मेरे ...पर दिगंबर नासवा
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न बिकने वाले घोड़े
वह अस्तबल नहीं, देश का जाना माना, एक प्राइवेट प्रशिक्षण संस्थान था जहाँ देश भर से घोड़े उच्च शिक्षा के लिए आते। संस्थान में कई घोड़े थे। मालिक चाहता कि सभी घोड़े और तेज दौड़ें. और तेज..और तेज। इस 'और' की हवस को पाने के लिए वह अनजाने में ही घोड़ों के प्रति क्रूर होता चला गया। धीरे-धीरे घोड़े भी मालिक के स्वभाव से अभ्यस्त हो गये। दौड़ने का उत्साह जाता रहा। प्रभु से प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु! कोई सौदागर भेज दे तो इस मालिक से जान बचे...
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हम बड़े हैं, यही तो!
फोर्ड गाडी का विज्ञापन देखा ही होगा। सदियों से हमारी रग-रग में बसा है कि हम बड़े हैं, कोई उम्र से बड़ा है, कोई ज्ञान से बड़ा है, कोई पैसे से बड़ा है और कोई जाति से बड़ा है। बड़े होने का बहाना हर किसी के पास है...
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विविधापूर्ण रचनाओं से सजा आज का अंक बहुत अच्छा लगा सर। सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।
जवाब देंहटाएंइस अंक मेरी रचना शामिल करने के लिए सादर शुक्रिया सर।
सुप्रभात सर 🙏)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सजी चर्चा प्रस्तुति 👌,
सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार सर|
प्रणाम
सादर
सुंदर चर्चा सूत्र
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को जगह देने में लिए
सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को 'चर्चा मंच' में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसभी को गुरु पर्व की शुभकामनाएं
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