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सोमवार, जुलाई 29, 2019

"दिल की महफ़िल" (चर्चा अंक- 3411)

सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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याद - ए - माज़ी  

नज़ाकत   भरी   निगाहों  से 
पिला  दिया  दर्द- ए - जाम,  जिंदगी  के मयख़ाने में,
ज़िक्र   हुआ  दिल   की  महफ़िल  में, 
रुख   किया  यादों   के   तयखाने    का  ... 
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झूले 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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लिबास हो या चेहरा दोनों उम्र काटतें हैं 

दुनिया की तमाम धर्मों के चेहरे
अगर आकाश और धरती की तरह हो जाये
तब भी 
हरे लहलहाते जमीन पर
गेहूं की बालियों में
चांद का चेहरा होगा
और उसकी पूजा
इंसानियत बचाने के लिये है... 
हमसफ़र शब्द पर संध्या आर्य  
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गजल -  

कहाँ ढूँढें 

जो चैन से सोने दे उस धन को कहाँ ढूँढें  
संसार में भटका है उस मन को कहाँ ढूँढें... 
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अभी कुछ बाक़ी है ...... 

रूप-अरूप पर रश्मि शर्मा 
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8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात सर 🙏
    बहुत ही सुन्दर आज की चर्चा प्रस्तुति👌,मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को शामिल करने के लिये शुक्रिया और आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  4. स्थान देने के लिए सादर आभार सर।

    जवाब देंहटाएं
  5. चर्चा मंच, जिसने कइयों को चर्चित करवा दिया !

    जवाब देंहटाएं

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