शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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आखिर प्रेम का गान जीत ही गया
एक फालतू पोस्टके बाद इसे भी पढ़ ही लें। लोहे के पेड़ हरे होंगे तू गान प्रेम का गाता चल यह कविता दिनकर जी की है, मैंने जब पहली बार पढ़ी थी तब मन को छू गयी थी, मैं अक्सर इन दो लाइनों को गुनगुना लेती थी। लेकिन धीरे-धीरे सबकुछ बदलने लगा और लगा कि नहीं लोहे के पेड़ कभी हरे नहीं होंगे, यह बस कवि की कल्पना ही है...
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सुन्दर शनिवारीय अंक।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति, उम्दा रचनाएँ, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार सर
प्रणाम
सादर
भव्य मंच, सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार।
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