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सोमवार, जुलाई 01, 2019

" हम तुम्हें हाल-ए-दिल सुनाएँगे" (चर्चा अंक- 3383)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गीत :  

उम्र झूठ की तुमने बताई न होती 

वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।  
सूरज भी झुलसा होगा तन्हाई में  
अंधेरा सोया रहा मन की गहराई में ।  
चाँद ने चाँदनी बरसाई न होती  
वफ़ा की भी यूँ कभी रुसवाई न होती... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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मन बेचारा 

तोड़ डाला महज खुद को 
चाह जागी जिस घड़ी थी, 
पूर्ण ही था भला 
आखिर कौन सी ऐसी कमी थी ... 
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बातें -  

नागार्जुन 

बातें–
हँसी में धुली हुईं
सौजन्य चंदन में बसी हुई
बातें–
चितवन में घुली हुईं
व्यंग्य-बंधन में कसी हुईं... 
काव्य-धरा पर रवीन्द्र भारद्वाज 
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इस माटी पर सबका हक है 

ये बात यकीनन बेशक है  
इस माटी पर सबका हक है  
हम साथ रहे हैं सदियों से  
फिर आपस में क्यों बकझक है... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
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7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात आदरणीय 🙏)
    बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌,शानदार लिंक , सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें,
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार |
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. भावपूर्ण रचनाओं से सजा चर्चामंच |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी,
    मेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार 🙏🌺🙏

    जवाब देंहटाएं

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